मई से जून के बीच पंजाब सरकार ने राज्य के निजी अस्पतालों को ढाई गुना से अधिक कीमत पर टीके बेचे. निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने मुझे बताया कि राज्य ने अस्पतालों को सीधे निर्माताओं को ऑर्डर देने के बजाय सरकार से बढ़े हुए दामों पर टीके खरीदने के लिए अपने प्रभाव का प्रयोग किया. इसका मतलब यह है कि पंजाब में लोगों की सरकारी टीकों तक पहुंच सीमित थी. टीके निजी अस्पतालों को भेजे गए और अस्पतालों ने जनता से बहुत अधिक शुल्क वसूला. जिन डॉक्टरों से मैंने बात की उनके अनुसार कुछ बड़े निजी अस्पतालों ने सेवा शुल्क के रूप में कीमत को और बढ़ा कर छोटे निजी अस्पतालों को बेचा. इसके कारण कुछ लोगों को टीकों के लिए तीन गुना कीमत चुकानी पड़ी. उन्हें टीके के एक डोज के लिए 1560 रुपए तक देने पड़े.
पंजाब ने मार्च की शुरुआत में निजी अस्पतालों को वैक्सीन लगाने की मंजूरी दी. 1 मार्च को भारत के महत्वाकांक्षी टीकाकरण कार्यक्रम का दूसरा चरण शुरू हुआ जिसका उद्देश्य 60 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों और 45 वर्ष से अधिक आयु के उन लोगों का टीकाकरण करना था जिन्हें पहले से ही गंभीर बीमारियां थीं. दो दिन पहले स्वास्थ्य मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निदेशक वंदना गुरनानी ने एनएचएम के राज्य स्तरीय मिशन निदेशकों को एक पत्र भेजा था कि निजी अस्पताल केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजना आयुष्मान भारत कार्यक्रम या किसी भी राज्य की स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत लोगों का टीकाकरण कर सकते हैं.
पत्र में निर्दिष्ट किया गया है, "कोविड टीकाकरण केंद्रों के रूप में कार्य करने वाले निजी अस्पतालों द्वारा वसूल किए जाने वाला सेवा शुल्क 100 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति खुराक की सीमा से अधिक नहीं होगा." पत्र में आगे कहा गया है, “इसके अलावा निजी अस्पताल टीके की खुराक की लागत के रूप में प्रति व्यक्ति प्रति खुराक 150 रुपए की वसूली करेंगे. इसलिए निजी अस्पतालों द्वारा वसूली योग्य कुल राशि की वित्तीय सीमा 250 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति खुराक है. 150 रुपए का शुल्क वैक्सीन की खुराक की लागत थी जिसे एक केंद्रीकृत बैंक खाते में भेजा जाना था. इसके बाद पंजाब सरकार ने राज्य के निजी अस्पतालों में वैक्सीन का स्टॉक बांटना शुरू कर दिया.
22 अप्रैल को पंजाब सरकार ने यह भी घोषणा की कि लागत की परवाह किए बिना वह हर वयस्क के लिए मुफ्त टीकाकरण सुनिश्चित करेगी. राज्य सरकार ने इसके लिए पंजाब के 2021-22 के बजट में आवंटन किया था. हालांकि अप्रैल के अंत तक राज्य में कोविड-19 मामले की दर तेजी से बढ़ी.
30 अप्रैल को मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने चिंता जाहिर करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को एक पत्र भेजा. पत्र में कहा गया है, "हमें कोविशील्ड की 33.43 लाख खुराक और कोवैक्सिन की 3.34 लाख खुराक मिली हैं और इनमें से अधिकांश का उपयोग होने के बाद केवल 1-2 दिनों के टीकाकरण के लिए स्टॉक बचा है. 18-44 वर्ष आयु वर्ग के टीकाकरण के उद्घाटन के साथ टीकाकरण की मांग में अचानक वृद्धि हुई है. जबकि राज्य टीकाकरण के तीसरे चरण के लिए वैक्सीन निर्माताओं के संपर्क में है. भारत सरकार द्वारा प्राथमिकता श्रेणियों के लिए उपलब्ध कराई जा रही आपूर्ति बहुत कम है और टीकाकरण की कमी के कारण लाभार्थी वापस लौट रहे हैं.'' सिंह ने अनुरोध किया कि केंद्र सरकार कोविशिल्ड की 30 लाख और कोवैक्सिन की 10 लाख खुराक पंजाब को तत्काल मुहैय्या कराए.
राज्य में टीकों की कमी गंभीर है. राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का तीसरा चरण, जो अब सभी वयस्कों के लिए खुला है, अगले दिन शुरू होने वाला था. पड़ोसी हरियाणा और चंडीगढ़ ने पहले ही वैक्सीन का पंजीकरण शुरू कर दिया था लेकिन 30 अप्रैल को सिंह ने एक संक्षिप्त प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि वह "वैक्सीन की अनुपलब्धता के कारण" टीकाकरण को टाल रहे हैं. तब तक पंजाब कोविड-19 की दूसरी लहर में सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में से एक बन गया था.
टीकाकरण के तीसरे चरण की शुरुआत के साथ केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि वह हर महीने केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला द्वारा स्वीकृत किसी भी निर्माता से 50 प्रतिशत खुराक खरीदेगी और राज्य सरकारों को मुफ्त में खुराक पहुंचाएगी. राज्य सरकारें और साथ ही निजी अस्पताल अन्य 50 प्रतिशत के लिए निर्माताओं के साथ बातचीत करने और आवश्यकतानुसार खरीद करने के लिए स्वतंत्र होंगे. 30 अप्रैल तक कोवैक्सिन के निर्माता भारत बायोटेक ने घोषणा की कि वह राज्य सरकार को 400 रुपए प्रति खुराक पर वैक्सीन बेचने जा रही है. कोविशील्ड की वितरक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया राज्य सरकारों को एक खुराक 300 रुपए में बेचने को तैयार थी.
अप्रैल के अंत में पंजाब राज्य सरकार ने टीकाकरण को प्राथमिकता देने के लिए एक विशेषज्ञ समूह बनाया था, जिसका नेतृत्व वायरोलॉजिस्ट गगनदीप कांग ने किया था. विशेषज्ञ समूह में सीएमसी वेल्लोर के सामुदायिक-स्वास्थ्य विशेषज्ञ जैकब जॉन और पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ में सार्वजनिक स्वास्थ्य के पूर्व प्रमुख राजेश कुमार भी थे. 25 अप्रैल को विशेषज्ञ समूह ने प्राथमिकता वाले समूहों में निर्माण मजदूर, औद्योगिक मजदूर और पहले से ही गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों को रखा. सरकार ने वायरस से सबसे अधिक प्रभावित जिलों को प्राथमिकता देने का भी फैसला किया. आने वाली वैक्सीन की कमी को देखते हुए पंजाब सरकार ने 25 अप्रैल को सीरम इंस्टीट्यूट को कोविशील्ड की 30 लाख खुराक का ऑर्डर दिया. हालांकि एक लाख डोज की पहली खेप 10 मई को आ पाई.
1 मई को टीकों की गंभीर कमी का हवाला देते हुए पंजाब सरकार ने टीकाकरण अभियान के दूसरे चरण के दौरान 150 रुपए में वितरित की गई अप्रयुक्त वैक्सीन खुराक को वापस लेना शुरू कर दिया. अमृतसर में निजी अस्पताल चलाने वाले एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर मुझसे कहा, ''मुझे यह बात समझ नहीं आती की जब तीव्र और व्यापक स्तर पर टीकाकरण पर जोर दिया जाना चाहिए था राज्य सरकार ने इन टीकों को क्यों वापस ले लिया?'' उन्होंने आगे कहा, ''हमने महसूस किया कि वह बाद में उन्हें बहुत अधिक कीमत पर बेचने के लिए ऐसा कर रहे थे." हालांकि डॉक्टर का डर कि 1 मई को लिए गए टीके अधिक कीमत पर बेचे गए बाद में साबित नहीं हो सका. मई में पंजाब सरकार ने निजी अस्पतालों को तय मूल्य पर टीके बेचना शुरू कर दिया.
निजी अस्पतालों के कई डॉक्टरों ने मुझे बताया कि पंजाब सरकार ने निर्माताओं के साथ सीधे समझौते के बजाय सरकार से टीके हासिल करने के लिए निजी अस्पतालों की बांह मरोड़नी शुरू कर दी. राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा भेजे गए तीन पत्रों में पंजाब सरकार ने निजी अस्पतालों को टीके बेचने के लिए एक प्रणाली स्थापित की है.
20 मई को राज्य के स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव अमित कुमार ने कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को पत्र लिखकर कहा कि टीकाकरण के लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए एक नया बैंक खाता बनाया जा रहा है. चंडीगढ़ में एचडीएफसी की एक शाखा में खोले गए खाते को "टीकाकरण कोष, पंजाब" कहा गया और टीकाकरण से संबंधित सभी सीएसआर निधियों को खाते में पुनर्निर्देशित किया जाना था. 20 मई तक राज्य सरकार को 3.6 लाख खुराकें मिल चुकी थीं, जिनमें से 2.3 लाख का उपयोग पहले ही सरकारी टीका केंद्रों में किया जा चुका था.
29 मई को पंजाब में स्वास्थ्य और कल्याण के निदेशक जीबी सिंह ने राज्य के कई वरिष्ठ अधिकारियों और सभी टीकाकरण अधिकारियों को पत्र भेजकर सुनिश्चित किया कि निजी अस्पतालों को टीके दिए जाएं. पत्र में कहा गया है, "आप राज्य में अधिकतम कवरेज के लिए निजी अस्पतालों में टीकों की उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे." इसमें यह भी निर्दिष्ट है कि “भारत सरकार द्वारा वैक्सीन आवंटन के अनुसार टीकों के लाभार्थी केवल पंजाब राज्य / केंद्र शासित प्रदेश से होने चाहिए.” उसी दिन अमृतसर के सिविल सर्जन चरणजीत सिंह ने जिले में पंजीकृत सभी निजी अस्पतालों को एक पत्र भेजा. पत्र में पिछले दो पत्रों का उल्लेख किया गया है और कहा गया है, "इस संबंध में उपरोक्त दो पत्रों के अनुसार टीके खरीदे जाने चाहिए और आपके अस्पताल में प्रशासित किए जाने चाहिए." कारवां के पास तीनों पत्रों की प्रतियां हैं.
अमृतसर के एक निजी अस्पताल के एक डॉक्टर ने मुझे बताया कि वह उन निजी अस्पतालों के लिए बने एक व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा थे जो सरकार से टीके खरीदना चाहते थे. इस ग्रुप में अमृतसर के सहायक सिविल सर्जन अमरजीत सिंह भी थे. डॉक्टर ने ग्रुप चैट के स्क्रीनशॉट साझा किए जिसमें अमरजीत सिंह लिखते हैं, “जिन अस्पतालों ने वैक्सीन खरीदने के लिए पंजाब सरकार के खाते में पैसा जमा किया है कृपया मेरे कार्यालय को उसका विवरण दें ताकि राज्य को उनकी आपूर्ति करने के लिए जानकारी भेजी जा सके." बाद के संदेशों में सहायक सिविल सर्जन कहते हैं, "1060 प्रति खुराक," और "न्यूनतम 100 खुराकों का आदेश." उन्होंने मुझे बताया कि पंजाब के अन्य शहरों में भी इसी तरह के व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए थे.
अमृतसर के एक ऑर्थोपेडिक सर्जन ने मुझे बताया कि उन्हें अमरजीत से सख्त मौखिक आदेश मिले थे कि वह केवल राज्य सरकार के माध्यम से टीके प्राप्त करें, न कि सीधे निर्माताओं से. "तब तक मैंने भारत बायोटेक से ही कोवैक्सिन की खुराक की व्यवस्था कर ली थी. राज्य सरकार इसे 1060 रुपए प्रति खुराक पर बेच रही थी और बाद में मुझे पता चला कि राज्य सरकार ने इसे महज लगभग 400 रुपए में खरीदा है.” पूछने पर अमरजीत ने इस बात से इनकार नहीं किया कि उन्होंने निजी अस्पताल के डॉक्टरों को मैसेज भेजे थे. उन्होंने पुष्टि की कि अमृतसर के निजी अस्पतालों ने पंजाब सरकार से वैक्सीन की 999 खुराकें खरीदी हैं.
पंजाब के सूचना और जनसंपर्क निदेशालय द्वारा 29 मई को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति से वैक्सीन खरीदने के लिए राज्य सरकार की लागत की गणना आसानी से की जा सकती है. टीकाकरण के लिए राज्य के नोडल अधिकारी विकास गर्ग के हवाले से प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, “कोविशील्ड की 4.29 लाख खुराकें 13.25 करोड़ रुपए की लागत में खरीदी गई हैं. और कोवैक्सीन की 114190 खुराकें 4.70 करोड़ रुपए की लागत में खरीदी गईं." इसका मतलब है कि पंजाब सरकार को कोविशील्ड की एक खुराक की कीमत औसतन 309 रुपए और कोवैक्सिन की एक खुराक की कीमत 411 रुपए चुकानी पड़ी.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने मुझे बताया कि यह देखना निराशाजनक था कि कैसे राज्य सरकार ने एक महीने से भी कम समय में निजी टीकाकरण की लागत 250 रुपए से बढ़ाकर 1060 रुपए कर दी. उन्होंने मुझे बताया, "पहले हमें टीका 150 रुपए प्रति खुराक पर मिल रहा था और इंजेक्शन लगाने या सेवा शुल्क के लिए 100 रुपए अतिरिक्त लेने की अनुमति थी लेकिन अब हम बहुत अधिक दर पर वैक्सीन लेने के लिए मजबूर हैं."
अमृतसर में श्री गुरु राम दास स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (एसजीआरडीयूएचएस) एसजीआरडीयूएचएस शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा चलाया जाता है जो पूरे पंजाब के साथ-साथ अन्य राज्यों में गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार संगठन है. "21 मई को हमारे अस्पताल ने 53.76 लाख रुपए मूल्य में कोवैक्सिन की 512 शीशियां खरीदी. इनमें 5120 खुराक शामिल हैं," एसजीआरडीयूएचएस में एनेस्थीसिया के प्रोफेसर और डीन एपी सिंह ने मुझे बताया. “संक्षेप में प्रत्येक खुराक की कीमत हमें लगभग 1050 रुपए पड़ी है और हम बिना किसी भेदभाव के 18 वर्ष से ऊपर के सभी लाभार्थियों को नि:शुल्क टीकाकरण कर रहे हैं. जब हम राज्य सरकार से कोविशील्ड खरीद रहे थे तब भी हमने कभी किसी लाभार्थी से कोई शुल्क नहीं लिया.” सिंह ने मुझे बताया कि उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव विनी महाजन को पत्र लिखकर अस्पताल को मुफ्त टीके देने की मांग की थी,लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
जालंधर के एक अन्य डॉक्टर ने मुझे बताया, “राज्य सरकार द्वारा बेचे जा रहे टीकों का एक बड़ा हिस्सा मैक्स और फोर्टिस जैसे बड़े अस्पतालों को मिल रहा था.” इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है कि पंजाब सरकार द्वारा निजी अस्पतालों को बेची गई 42000 खुराकों में से मोहाली के मैक्स अस्पताल ने 30000 खुराकें खरीदी. जालंधर के डॉक्टर ने आगे कहा, “इससे फिर से कमी हो गई और हम छोटे अस्पतालों को फोर्टिस से टीके खरीदने पड़े जिसने 200 रुपए बढ़ा दिए और हमें 1250 रुपए में टीका बेचा. जब हमने लोगों को टीका लगाया तो हमें फिर से कीमत थोड़ी बढ़ानी पड़ी." उन्होंने मुझे बताया कि कुछ जगहों पर टीके की एक खुराक की कीमत 1560 रुपए तक थी.
मई में वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट करके लोगों से निजी टीके लगवाने का आग्रह किया. उदाहरण के लिए, 15 मई को पंजाब के मुख्य सचिव विनी महाजन ने ट्वीट किया, "#Privatehospitals Max Mohali और @fortis_hospital ने #Punjab में वैक्सीन खरीद ली है और 18 से 44 साल वालों को #वैक्सीन लगाना शुरू कर दिया है. मैक्स कोविशिल्ड के लिए 900 रुपए वसूल रहा है और फोर्टिस कोवैक्सिन के लिए 1250 रुपए. कृपया इन अस्पतालों में स्लॉट बुक करने के लिए #CowinPortal पर पंजीकरण करें."
4 जून को विपक्षी पार्टी शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने पंजाब सरकार द्वारा निजी अस्पतालों को एक तय मूल्य पर टीके बेचने की वैधता की जांच उच्च न्यायालय की निगरानी में कराने की मांग की. बादल ने पंजाब सरकार पर टीकों की कृत्रिम कमी पैदा करने का आरोप लगाया. उसी दिन स्वास्थ्य मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव वंदना गुरनानी ने पंजाब के प्रमुख स्वास्थ्य सचिव हुसैन लाल को टीकों के इस तरह के बटवारे के बारे में पत्र भेजा. विपक्ष के दावों के बारे में एनडीटीवी की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कि पंजाब सरकार ने निजी अस्पतालों को तय मूल्य पर टीके बेचे, गुरनानी ने पत्र में कहा, “इस समाचार की सामग्री प्रथम दृष्टया उदारीकृत मूल्य और त्वरित राष्ट्रीय कोविड-19 टीकाकरण रणनीति का स्पष्ट उल्लंघन प्रतीत होती है.” पत्र में आगे कहा गया है, "इसलिए राज्य सरकार से अनुरोध है कि इस समाचार की सत्यता की पुष्टि करे और इस संबंध में तुरंत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को स्पष्टीकरण भेजे."
बाद में लाल ने गुरनानी के जवाब में एक स्पष्टीकरण एक पत्र भेजा. पत्र में उन्होंने दावा किया कि मई के दूसरे सप्ताह में मोहाली के केवल दो निजी अस्पतालों के पास टीके थे और राज्य के अधिकांश निजी अस्पतालों के पास टीके समाप्त हो गए थे. लाल ने कहा कि निजी अस्पतालों को टीके बेचने का निर्णय मुख्य रूप से निजी अस्पतालों की स्वयं टीकों की खरीद में असमर्थता और विशेषज्ञ समूह द्वारा निर्धारित प्राथमिकता समूहों के कारण लिया गया था.
लाल के पत्र में कहा गया है, "राज्य सरकार को 18-44 वर्ष आयु वर्ग की आबादी की उन श्रेणियों के टीकाकरण की अनुमति देने के संबंध में अनुरोध प्राप्त हुए हैं जिन्हें राज्य सरकार द्वारा प्राथमिकता नहीं दी गई थी. इनमें उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने के इच्छुक छात्र आदि शामिल हैं. इस पृष्ठभूमि में निजी अस्पतालों को टीके की सीमित खुराक प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया गया था ताकि टीकाकरण की आवश्यकता वाले व्यक्तियों को निजी अस्पतालों में जल्दी से टीका लगाया जा सके."
कीमत के बारे में पूछे जाने पर लाल ने मुझसे कहा, "अगर हमने इतनी ही कीमत पर खुराक दी होती, तो यह इन निजी अस्पतालों के माध्यम से सार्वजनिक आपूर्ति को बर्बाद करने जैसा होता. ऐसे लोग थे जो पैसे खर्च कर टीके लगवाने के लिए बेताब थे उन्हें हमने इन दरों पर केवल 40000 खुराक बेचने का फैसला किया था. भविष्य में और टीके खरीदने के लिए पैसा वैक्सीन फंड में जा रहा था लेकिन इसे लेकर बहुत आक्रोश था.”
अन्य अधिकारियों ने भी इसी तरह का तर्क दिया. टीकाकरण के लिए राज्य के नोडल अधिकारी गर्ग ने यह भी तर्क दिया कि "समाज के विभिन्न वर्गों ... विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने वाले छात्रों सहित" टीकाकरण के लिए निजी अस्पतालों को टीके देना अनिवार्य था. उन्होंने मुझसे कहा, "इससे समाज के उन वर्गों को टीकाकरण की अनुमति मिलती, जिन्हें अभी तक प्राथमिकता नहीं दी गई है, लेकिन वह भुगतान करने को तैयार हैं और उन्हें टीकाकरण की आवश्यकता है."
विशेषज्ञ समूह के प्रमुख कांग ने भी इसी तरह की दलीलें दीं. “हमने छात्रों पर विचार किया, विशेष रूप से उन लोगों पर जिन्हें यात्रा करनी थी और यह निर्णय लिया कि अगर वे विदेशी शिक्षा पर खर्च कर सकते हैं, तो संभवत: निजी अस्पतालों में टिके भी लगवा सकते हैं.”
यह स्पष्ट नहीं है कि कांग या गर्ग इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे कि अस्पतालों को टीके बेचना छात्रों के लिए टीकाकरण सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका था. कई निजी डॉक्टरों ने मुझे यह भी बताया कि किसी भी सरकारी अधिकारी ने उन्हें यह निर्दिष्ट नहीं किया था कि केवल चुनिंदा समूहों, जैसे कि विदेश जाने वाले छात्रों को ही टीका लगाया जाना है.
ऐसा प्रतीत होता है कि पंजाब राज्य सरकार एकमात्र ऐसी राज्य सरकार है जिसने निजी अस्पतालों को टीकों को राज्य सरकार के स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के माध्यम से वितरित करने के बजाय एक तय मूल्य पर बेचा है. लाल को भेजे गए गुरनानी के पत्र ने भी यही सुझाव दिया गया है. कर्नाटक जैसे राज्यों में राज्य सरकार के पास निजी अस्पतालों द्वारा खरीदे गए टीके की खुराक की संख्या का डेटा भी नहीं है. स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए मीडिया और संचार की अतिरिक्त महानिदेशक मनीषा वर्मा ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्या उनके पास अन्य राज्य सरकारों द्वारा निजी अस्पतालों को टीके बेचने की रिपोर्ट है.
4 जून को अमरिंदर सिंह ने कहा कि वह वैक्सीन स्टॉक को निजी अस्पतालों को देने के आदेश को उलट देंगे. उस शाम जारी पंजाब डीआईपीआर की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, “स्वास्थ्य मंत्री श्री बलबीर सिंह सिद्धू ने कहा है कि राज्य द्वारा निजी अस्पतालों को एकमुश्त सीमित वैक्सीन खुराक उपलब्ध कराने के निर्देश को वापस ले लिया गया है और सरकारी टीकाकरण केंद्रों पर 18 से 44 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों को मुफ्त में टीके लगाए जाएंगे. विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा निजी अस्पतालों को बेची गई 42000 खुराकों में से केवल 600 का ही उपयोग इन अस्पतालों ने किया है. विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि सिद्धू ने कहा कि "सभी सिविल सर्जनों को निर्देश जारी किया गया है कि किसी भी निजी अस्पताल को कोई नया आवंटन नहीं किया जाना चाहिए और निजी अस्पताल अपने पास उपलब्ध सभी वैक्सीन खुराक तुरंत वापस कर दें."
अमृतसर के डॉक्टर ने मुझे बताया, "3 जून को हमें अपने व्हाट्सएप ग्रुप पर खुराक खरीदने का संदेश मिला." उन्होंने आगे कहा, "4 जून को मेरा कर्मचारी जिला टीकाकरण अधिकारी के पास गया. अधिकारी को सिविल सर्जन का फोन आया. फिर मेरे कर्मचारी को यह कहते हुए वापस भेज दिया गया कि वैक्सीन की शीशियों को वापस करना है. बाद में पता चला कि कोवैक्सिन आवंटित नहीं किया जा रहा है और पैसा वापस कर दिया जाएगा. अमृतसर के एसीएस अमरजीत ने मुझे बताया, "निजी अस्पतालों को राज्य द्वारा टीकों का पैसा वापस कर दिया गया है और टीके अब हमारे पास हैं."
सिद्धू का दावा है कि निजी अस्पतालों को टीके बेचने के फैसले का उनसे कोई लेना-देना नहीं है. 4 जून को सिद्धू ने मीडिया को बताया कि स्वास्थ्य मंत्री के कार्यालय का उक्त आदेश से कोई लेना-देना नहीं है. "हमारा विभाग केवल परीक्षण और उपचार को संभालता है," उन्होंने कहा.
गौरतलब है कि "वैक्सीन फंड, पंजाब" के बैंक खाते की स्थापना की घोषणा वाला पत्र स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव अमित कुमार द्वारा भेजा गया था जो सिद्धू के अधीन काम करते हैं. ओडिशा और झारखंड जैसे अन्य राज्यों में टीकों की खरीद और वितरण का काम स्वास्थ्य मंत्री के दायरे में आता है. इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि छत्तीसगढ़, पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश, बिहार और तेलंगाना में टीकों की खरीद का प्रबंधन संबंधित राज्य के स्वास्थ्य मंत्री द्वारा किया जाता है. वापसी का आधिकारिक आदेश टीकाकरण के नोडल अधिकारी गर्ग की ओर से आया है. उनके आदेश में लिखा था, "निजी अस्पतालों के माध्यम से 18-44 वर्ष आयु वर्ग की आबादी को टीका खुराक उपलब्ध कराने के आदेश को सही भावना से नहीं लिया गया है और इसे वापस लिया जाता है."
फिलहाल सिद्धू ने आदेश दिया है कि निजी अस्पतालों को निर्माताओं से सीधे टीके खरीदने होंगे. उन्होंने यह भी घोषणा की कि निजी अस्पतालों द्वारा वैक्सीन फंड में जमा की गई राशि शीघ्र वापस कर दी जाएगी. एसजीआरडीयूएचएस के एनेस्थेटिस्ट एपी सिंह ने मुझे बताया कि उनके अस्पताल को टीकों के लिए दिया गया पैसा वापस नहीं मिला है. उन्होंने कहा, "उन्हें हमारा पैसा वापस करना चाहिए. लेकिन पंजाब के लोगों को पैसा कौन लौटाएगा? एक सरकार जिसने अपने बजट में टीके मुफ्त देने का वादा किया था उसने लोगों को 1500 रुपए में खरीदने के लिए मजबूर किया है. जनता को कौन पैसा लौटाएगा?”