12 मार्च को भारत में नोवेल कोरोनावायरस, जिसे कोविड-19 भी कहते हैं, से मौत की पहली खबर आई. मृतक 76 वर्ष के कर्नाटक के रहने वाले थे. इसके एक दिन पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 को महामारी घोषित करते हुए इस बात की पुष्टि कर दी कि इस वायरस के दुनिया के सभी देशों में फैलने की आशंका है. उसी दिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कड़े यात्रा प्रतिबंधों की घोषणा करते हुए विदेशों से आने वाले यात्रियों पर रोक लगा दी और कुछेक श्रेणियों को छोड़ कर सभी तरह के वीजा को 15 अप्रैल तक के लिए रद्द कर दिया. लेकिन लगता नहीं कि इन यात्रा निषेधों का कोई खास असर पड़ेगा क्योंकि वायरस दुनिया के अधिकांश हिस्सों में पहुंच चुका है. भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान में महामारी विज्ञान (एपिडीमीआलजी) के प्रोफेसर गिरिधरा बाबू ने कहा है कि “प्रतिबंध नए मामलों को आने से रोकेगा लेकिन फिलहाल स्थानीय संक्रमण का पता लगाने की जरूरत है.”
कर्नाटक सरकार ने संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले लोगों का पता लगाकर उन्हें अलग रखने की शुरुआत तो कर दी है लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि सरकार के पास भारत में स्थानीय संक्रमण का कोई साक्ष्य नहीं है. 12 मार्च को स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने मीडिया को बताया था, “डरने की कोई बात नहीं है क्योंकि हमारे यहां सीमित मात्रा में स्थानीय संक्रमण हुआ है.” लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भारत सरकार की प्रतिक्रिया में दो मुख्य चिंताओं को रेखांकित किया है. पहली, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 के परीक्षण को चुनिंदा सरकारी प्रयोगशालाओं तक सीमित किया है और दूसरी यह कि सरकार सिर्फ उन लोगों की जांच कर रही है जिन्होंने हाल में यात्राएं की हैं और जो लोग अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों के संपर्क में आए हैं.
कोविड-19 की पहली बार पहचान पिछले साल दिसंबर में चीन के वुहान शहर में हुई थी. तब से यह वायरस दुनिया के 114 देशों में फैल चुका है और इसके संक्रमण से चार हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. 12 मार्च शाम 6 बजे तक भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में कोविड-19 के 74 मामले सामने आए हैं. अब भारत भी इजराइल और अमेरिका जैसे उन देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने यात्रा में प्रतिबंध लगाए हैं. बाबू ने बताया, “चूंकि वायरस भारत में मौजूद है इसलिए जरूरी होगा कि हम सभी संक्रमित लोगों की पहचान कर लें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी मानव से मानव में होने वाले संक्रमण की पहचान हो गई है.” बाबू ने आगे कहा, “बाद में पछताने से ज्यादा अच्छा होगा कि हम जरूरत से अधिक सतर्कता दिखाएं. स्थानीय संक्रमण न हो यह सुनिश्चित करने का तार्किक तरीका होगा कि सभी यात्रियों के संपर्कों पर नजर रखी जाए और पॉजिटिव मामलों में 14 दिनों का इनकुबेशन पीरियड हो.”
प्रेस से अपनी बातचीत में लव अग्रवाल ने बताया था कि देश के 14 राज्यों में कोविड-19 के मामले पाए गए हैं. जिस स्तर तक इस संक्रमण का फैलाव हो चुका है उसे देखते हुए स्वास्थ्य मामलों के जानकारों को आशा थी कि जांच के मानदंडों का विस्तार उन लोगों तक किया जाएगा जिन्होंने यात्राएं नहीं की हैं ताकि इस संकट की पूरी तस्वीर सामने आ जाए. लेकिन अग्रवाल ने खुलासा किया कि भारत सरकार का “जांच मानदंडों में संशोधन करने की कोई योजना नहीं है क्योंकि सभी की जांच करने से भय पैदा होगा.”
जानकारों ने यह भी आशा जताई थी कि स्वास्थ्य मंत्रालय निजी जांच केंद्रों को कोविड-19 की जांच करने की अनुमति देगा ताकि सरकारी केंद्रों और अस्पतालों पर अधिक भार न पड़े. नाम न छापने की शर्त पर विश्व स्वास्थ्य संगठन में काम करने वाले महामारीविद ने बताया कि सरकार इसलिए सभी की जांच की अनुमति नहीं देना चाहती क्योंकि वह संक्रमित लोगों की संख्या को कम दिखाना चाहती है.” उन्होंने आगे कहा, “अगर आप मामलों को देखोगे ही नहीं तो आपको मामले मिलेंगे ही नहीं. भला बताइए सरकार को पता कैसे चलेगा की समुदाय से संक्रमण नहीं हो रहा जब वह पर्याप्त लोगों की जांच ही नहीं कर रही.”
मुझसे बात करने वाले कम से कम दो शीर्ष महामारीविदों और एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने वायरस की जांच पर लगे प्रतिबंधों पर चिंता जाहिर की. 12 मार्च तक केवल 52 सरकारी केंद्रों में जांच की अनुमति है और मात्र 56 संकलन केंद्र हैं जहां सैंपल दिए जा सकते हैं. इसके बावजूद अग्रवाल ने दावा किया कि देश में पर्याप्त जांच केंद्र हैं और “जांच में निजी क्षेत्र को लगाने की कोई जरूरत नहीं है.”
केंद्र सरकार ने महामारी रोग कानून, 1897 को भी लागू कर दिया है जो क्वारंटीन अथवा संगरोधन के नियमों का उल्लंघन करने वाले राज्यों या व्यक्तियों पर कार्रवाई करने की अनुमति देता है. यह फैसला तब लिया गया जब बेंगलुरु और पंजाब से एक-एक रोगी, जिनमें कोविड-19 के लक्षण दिखाई दिए थे और जिनका स्थानीय अस्पतालों में क्वारंटीन किया गया था, अस्पताल से गायब हो गए.
कोरोनावायरस जूनोटिक वायरस परिवार का हिस्सा है. इसका मतलब है कि इस वायरस का संक्रमण जानवरों से इंसानों में भी हो सकता है. वायरस का यह परिवार लंबे समय से इंसानों को संक्रमित कर रहा है. इन वाइरसों के संक्रमण से जुकाम से लेकर गंभीर किस्म के रोग जैसे मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम और सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम होते हैं. लेकिन वुहान से फैलने वाला कोरोनावायरस नया है जिसकी पहले पहचान नहीं हुई थी. इसका न कोई टीका है और न कोई दवा अब इजाद हुई है.
बुखार आना, खांसी, सांस लेने में परेशानी और लंबी सांस नहीं ले पाना, इस संक्रमण के आम लक्षण हैं. गंभीर मामलों में संक्रमण से निमोनिया, सिवियर रेस्पिरेटरी सिंड्रोम, किडनी फेलियर और मौत तक हो सकती है. वैज्ञानिक इस नोवेल कोरोनावायरस को पूर्ण रूप से समझने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन यह स्पष्ट है कि यह रोग बुखार से अधिक जानलेवा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दोनों रोग समान दिखाई देते हैं लेकिन कोविड-19 अधिक संक्रामक है और इसकी मृत्यु दर भी बुखार से अधिक है.
इस महामारी का फैलाव अभूतपूर्व वैश्विक परिघटना है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि नए संक्रमणों को रोकने के लिए व्यवहार में रैडिकल बदलाव लाने की दरकार है. संगठन ने अपनी वेबसाइट में सार्वजनिक एडवाइजरी जारी कर बताया है कि हाथों को नियमित रूप से धोना, छींकते समय मूंह को ढक लेना और लोगों से दूरी बनाए रखना, इस संक्रमण से लड़ने के सबसे प्रभावशाली उपाय हैं. फिलहाल संक्रमण को फैलने से रोकने का सबसे प्रभावकारी उपाय लोगों से दूरी बना कर रखना है.
11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने मीडिया को बताया कि यह “महज जन स्वास्थ्य संकट नहीं है. यह एक ऐसा संकट है जिसका असर सभी क्षेत्रों में पड़ेगा इसलिए हर क्षेत्र और हर व्यक्ति को इसके खिलाफ जारी लड़ाई में शामिल होना होगा.” उन्होंने यह भी कहा कि स्थिति के और अधिक खराब हो जाने की आशंका है. घेब्रेयेसस ने बताया, “आने वाले दिनों और सप्ताहों में संक्रमण के मामलों, इससे होने वाली मौतों और प्रभाव वाले देशों की संख्या में बढ़ोतरी हो सकती है.”