10 मई को बिहार के बक्सर जिले के चौसा गांव में गंगा नदी के घाट पर दर्जनों शव पानी में तैरते मिले. घाट से लगभग 500 मीटर के दायरे में मिले ये शव संभवत: कोविड-19 रोगियों के थे. सुबह जब गांव के लोगों ने शव देखे तो स्थानीय अधिकारियों को सूचना दी. बक्सर के उप-विभागीय अधिकारी के. के. उपाध्याय ने मुझे बताया कि शव क्षत-विक्षत हालत में थे और सड़ रहे थे और ऐसा लगता है कि उन्हें “तीन-चार दिन पहले फेंका गया था.” उपाध्याय ने फिर कहा, “मुझे लगता है कि शवों को फेंका तो और कहीं गया होगा लेकिन चूंकि नदी चौसा घाट पर मुड़ती है इसलिए यहां शव इकट्ठा होने लगे.” हालांकि चौसा के लोगों का मानना है कि शवों को उनके ही घाट पर फेंका गया है.
ये शव चौसा घाट के बगल में बरामद हुए जहां उन लोगों का दाह संस्कार होता है जो कोविड-19 से इतर बीमारियों या अन्य वजहों से मरते हैं. बक्सर उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर स्थित है और गंगा नदी यहां से बिहार में घुसती है. जिले में कोविड-19 हताहतों के दाह संस्कार के लिए एक घाट निर्दिष्ट है जो चरित्रवन इलाके में है. उपाध्याय ने मुझे बताया, "चरित्रवन घाट के अलावा कोविड-19 मृतकों को वाराणसी घाट ले जाते हैं.” वाराणसी घाट चौसा से 100 किलोमीटर दूर है. चौसा के निवासियों के अनुसार, कोविड-19 से मरने वाले लोगों के परिजन चरित्रवन घाट पर भीड़ होने के कारण अपने परिजनों को दाह संस्कार के लिए चौसा घाट ला रहे हैं.
चौसा की मुखिया आशा देवी ने मुझे बताया, “चिता के लिए लकड़ी की कमी है इसलिए बहुत से लोग शवों को यहां लाते हैं और मुखाग्नि देने के बाद शवों को नदी में फेंक देते हैं.” एक स्थानीय रिपोर्टर ने मुझे बताया कि उसने गांव के दीन दयाल पांडे और अंजोरिया देवी से फेंकने वाली बात सुनी है. पांडे पुजारी हैं और घाट पर हिंदू रीति-रिवाजों से संबंधित संस्कार कराते हैं और अंजोरिया देवी दाह संस्कार करने वाले की बीवी हैं.
स्थानीय रिपोर्टर के अनुसार, पांडे और अंजोरिया दोनों ने उसे बताया है कि “शव अन्य क्षेत्रों से बहकर नहीं आए थे बल्कि यहीं फेंके गए थे." अंजोरिया ने मीडिया को यह भी बताया कि चौसा घाट पर शवों को नियमित रूप से गंगा में फेंक दिया जाता था क्योंकि दाह संस्कार के लिए इंतजार करने और चिता के लिए लकड़ी की लागत में भारी वृद्धि हुई है. स्थानीय रिपोर्टर ने कहा, "अंजोरिया देवी ने मुझे बताया कि वह इस घाट पर 25 साल से काम कर रही हैं लेकिन कभी इतनी लाशें एक साथ देखी. पहले दो-तीन शव घाट आते थे लेकिन अब औसतन हर रोज 20 शव आ रहे हैं.”
चौसा निवासी कालीचरण सिंह ने द ट्रिब्यून को बताया, “भले ही जिला प्रशासन दावा कर रहा है कि शव यूपी के वाराणसी और गाजीपुर जिलों से बह कर आए हैं लेकिन कुछ शव ऐसे हैं जो बांस से बंधे हुए थे. इससे साफ है कि लोग यहां आते हैं और कोविड-19 के डर से शवों को छोड़ जाते हैं.” सिंह ने आगे बताया, “यहां तक कि दाह संस्कार का भी शुल्क, जो कभी सामान्य समय में 5000 से 6000 रुपए के बीच हुआ करता था अब कई गुना बढ़ कर 16000 से 20000 रुपए तक हो गया है. हो सकता है कि इस वजह से भी लोग यहां लाशों को छोड़ गए हों.”
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