मूक महामारी

मज़दूरों का दम घोंटती उद्योगों से उठती सिलिका की धूल

राजस्थान के करौली निवासी रामदेव जाटव को करीब 35 साल की उम्र में सिलिकोसिस हो गया. लगभग दो दशकों तक एक पत्थर खदान में काम करने के चलते वह इसके शिकार हुए.  सिब्तैन हैदर
राजस्थान के करौली निवासी रामदेव जाटव को करीब 35 साल की उम्र में सिलिकोसिस हो गया. लगभग दो दशकों तक एक पत्थर खदान में काम करने के चलते वह इसके शिकार हुए.  सिब्तैन हैदर

We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing

यह रिपोर्ट पुलित्जर सेंटर से मिले फंड की मदद से हुई है.

1

22 साल का मिलन पात्रा 2016 में पश्चिम बंगाल के जंगलमहल इलाके के झाड़ग्राम जिले से झारखंड आ गया था. गरीबी की वजह से वह पढ़ाई नहीं कर सका और गांव में रोज़गार भी नहीं था. क्षेत्र के दूसरे नौजवानों की तरह वह भी अपने गांव राय पारिया से मीलों दूर झारखंड में 'रैमिंग मास' फैक्ट्री में दिहाड़ी मज़दूर बन गया. 'रैमिंग मास' कई आकार के साइज़ के पत्थरों को पीस कर बनाया जाने वाला पाउडर होता है जिसका इस्तेमाल इस्पात कारखानों में किया जाता है. पात्रा का काम पाउडर को बोरियों में भरना था.

Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute