यह रिपोर्ट पुलित्जर सेंटर से मिले फंड की मदद से हुई है.
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22 साल का मिलन पात्रा 2016 में पश्चिम बंगाल के जंगलमहल इलाके के झाड़ग्राम जिले से झारखंड आ गया था. गरीबी की वजह से वह पढ़ाई नहीं कर सका और गांव में रोज़गार भी नहीं था. क्षेत्र के दूसरे नौजवानों की तरह वह भी अपने गांव राय पारिया से मीलों दूर झारखंड में 'रैमिंग मास' फैक्ट्री में दिहाड़ी मज़दूर बन गया. 'रैमिंग मास' कई आकार के साइज़ के पत्थरों को पीस कर बनाया जाने वाला पाउडर होता है जिसका इस्तेमाल इस्पात कारखानों में किया जाता है. पात्रा का काम पाउडर को बोरियों में भरना था.