बिहार के गांवों में तेजी से फैल रहा कोरोना, प्रवासी कामगारों की जांच में ढिलाई के चलते हालात गंभीर

10 अप्रैल 2021 को पटना स्टेशन के बाहर महाराष्ट्र से लौटे मजदूर. पहली लहर की तुलना में अबकी बिहार में तैयारी ज्यादा खराब है.
संतोष कुमार / हिंदुस्तान टाइम्स / गैटी इमेजिस
10 अप्रैल 2021 को पटना स्टेशन के बाहर महाराष्ट्र से लौटे मजदूर. पहली लहर की तुलना में अबकी बिहार में तैयारी ज्यादा खराब है.
संतोष कुमार / हिंदुस्तान टाइम्स / गैटी इमेजिस

40 साल के राजेश पंडित 20 अप्रैल को रेलगाड़ी में सवार होकर लुधियाना से पटना आए थे. लुधियाना में उनकी गोश्त की दुकान थी. जब वह पटना आए तो उन्हें तेज बुखार था. उन्होंने रात पटना रेलवे स्टेशन पर काटी क्योंकि देर रात घर जाने का साधन नहीं मिला. लेकिन राज्य सरकार ने स्टेशन में उनकी कोविड-19 जांच नहीं की. फिर अगले दिन उन्होंने पटना के मीठापुर बस स्टैंड से अपने गांव बारूना रसलपुर की बस पकड़ी.

बीमार राजेश को परिवार वाले स्थानीय दवा की दुकान से दवाई लाकर देते रहे लेकिन उनकी हालत नहीं सुधरी. राजेश के छोटे भाई राम उदेश पंडित ने मुझे बताया, “24 अप्रैल को हम भैया को समस्तीपुर ले गए और उनका कोविड टेस्ट कराया.” जांच के बाद पता चला कि राजेश को कोविड-19 है. फिर अगले दिन एक निजी केंद्र से कराए गए सीटी स्कैन से यह भी पता चला की उनके 35 फीसदी फेफड़ों में संक्रमण है. इसके बाद भी जब उनका बुखार नहीं उतरा और उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी, तो उन्हें समस्तीपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. तीन दिन बाद राजेश को दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल ले जाया गया जहां 4 मई को उनकी मौत हो गई.

राम उदेश ने मुझे बताया कि राजेश तगड़े आदमी थे और अगर उनका टेस्ट पहले हो जाता तो शायद वह बच जाते. उन्होंने मुझसे कहा कि कोविड-19 की दूसरी लहर में उनके गांव में मरने वालों में भैया पहले व्यक्ति थे. राम उदेश ने बताया, “गांव से हम लोग आइसोलेट हैं लेकिन फिर भी गांव के अन्य लोगों में कोविड-19 के लक्षण नजर आ रहे हैं.” जिस दवा की दुकान से राम अपने भैया के लिए दवा लाते थे उसके मालिक को पिछले सप्ताह से बुखार और खांसी है. राम उदेश ने मुझे बताया कि उनके गांव में कई लोगों में ऐसे ही लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं लेकिन किसी तरह की टेस्टिंग या स्क्रीनिंग की व्यवस्था नहीं है.

दिल्ली और मुंबई में कोविड की दूसरी लहर से मची तबाही से डरे बिहार के प्रवासी मजदूर वापस लौटने लगे हैं लेकिन पहली लहर की तुलना में, जब अचानक लगा दिए गए लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों को बिहार लौटना पड़ा था, अबकी बिहार में तैयारी की स्थिति अधिक खराब है.

इसके बावजूद कि महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में कोविड-19 की दूसरी लहर में ढेरों लोगों की जानें जा रही हैं, बिहार सरकार ने पहली लहर जितनी भी तैयारी नहीं की है. राज्य में बहुत कम ऐसे बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन हैं जहां लौट रहे लोगों की जांच की जा रही हो और और जहां कहीं जांच की सुविधा है वहां लापरवाही हो रही है जिसके चलते ग्रामीण बिहार में वायरस का प्रसार हुआ है. गांव में स्वास्थ्य कर्मियों को लौट रहे प्रवासी मजदूरों की जांच या उन्हें क्वारंटीन करने के निर्देश नहीं दिए गए हैं. पंचायतों के नेता और ग्रामीण स्वास्थ्य कर्मियों ने मुझे बताया कि अपने गांवों में कोविड लक्षणों के प्रसार की सूचना देने के बावजूद राज्य सरकार ने इससे लड़ने के लिए उन्हें किसी तरह का आदेश या संसाधन मुहैया नहीं कराए हैं. इसके साथ ही शहर के मुख्य अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की गंभीर कमी है.

उमेश कुमार राय पटना के स्वतंत्र पत्रकार हैं.

Keywords: COVID-19 Deaths COVID-19 coronavirus lockdown coronavirus migrants migrant workers Bihar Health
कमेंट