दिल्ली के पॉश इलाके न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के पीछे खिजराबाद नाम की तंग और घनी आबादी वाली बस्ती है जहां पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के हजारों मजदूर रहते हैं. वर्षों से ये मजदूर खिजराबाद में रह रहे हैं और संपन्न इलाके को विकसित करने और बनाए रखने के लिए श्रम और घरेलू सेवाएं दे रहे हैं. अचानक हुए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के चलते इन मजदूरों को बेरोजगारी और भूख का सामना करना पड़ रहा है. घर लौटने की कोई सार्वजनिक व्यवस्था नहीं होने से ये लोग ऐसी हालत में जीने को मजबूर हैं जिसमें कोविड-19 महामारी का खतरा ज्यादा बड़ा है. सरकार या जन प्रतिनिधियों से उन्हें किसी भी तरह की सहायता नहीं मिल रही है.
9 मई को मैंने खिजराबाद में रहने वाले इन मजदूरों से बात की और मुझे पता चला कि लगभग 100 मजदूर हताश होकर अपने घर बिहार जाने की कोशिश में लगे हैं. अगले दिन ऐसा चाहने वालों की संख्या लगभग 200 हो गई. 11 मई को दोपहर लगभग 1 बजे मैं उन मजदूरों से मिलने के लिए इलाके में गया, जो अभी वहीं थे. वहां रहने वाले मजदूर और उनके जैसे अन्य लोग के पास भोजन, पैसा या अन्य सहायता नहीं है. ये लोग लॉकडाउन से सबसे ज्यादा पीड़ित हैं.
संकरी गलियों, टूटी सड़कों और घरों के बाहर बहती नालियों से इस इलाके को पहचाना जा सकता है. भीड़भाड़ वाली गलियों से गुजरने के बाद मैं एक पुरानी इमारत के पास पहुंचा जो एक खुली नाली के पास थी. इसमें लगभग 200 लोग रहते थे. इसकी दीवारें नम थी. गलियारा इतना तंग था कि दो लोग साथ नहीं रुक सकते और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना कठिन था. दरवाजों को ढके पर्दों से कुछ बच्चे बाहर झांक रहे थे और अन्य बच्चे उस तंग गलियारे में खेल रहे थे.
इस चार मंजिला इमारत में चार या पांच कमरे, दो सामान्य शौचालय और प्रत्येक मंजिल पर एक साझा बाथरूम था. प्रत्येक कमरे का आयाम लगभग दस वर्ग फीट था और इसमें बच्चों वाले परिवार, कुंवारे लोग और वरिष्ठ नागरिक रहते हैं. यहां चार लोगों वाला एक परिवार है जो एक कमरे का 2600 रुपए (बिजली अलग से) किराया देता है. लेकिन काम के बिना मजदूरों के पास बहुत कम या बिल्कुल पैसा नहीं बचा है. उन्होंने बताया कि उनके मकान मालिक उन पर किराया चुकाने का दबाव डाल रहे हैं.
बिहार के सुपौल जिले के प्रमोद यादव, जो अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ उस कमरे में रहते हैं, ने मुझे बताया कि मकान मालकिन उसी दिन किराया लेने आई थी. "मेरे पास अपनी गाड़ी है और मैं हर दिन 200 से 300 रुपए कमाता था," उन्होंने बताया. “अब आप लॉकडाउन के बाद से उस काम के बिना मेरी हालत की कल्पना कर सकते हैं. उसमें अगर मुझे किराया देने का दबाव डाला जाए तो मैं यहां कैसे रह सकता हूं?''
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