भारत में कोविड-19 के मामले एक लाख और इससे हुई मौतों का आंकड़ा पच्चीस हजार के पार पहुंच गया है लेकिन राजनीतिक खींचतान महामारी से संबंधित तैयारी और प्रतिक्रियाओं में अवरोध डाल रही है. 27 जून से 5 जुलाई के बीच दिल्ली सरकार और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) ने राजधानी दिल्ली में कोरोनावायरस के प्रसार का निर्धारण करने के लिए सेरोलॉजिकल सर्वे किया. सर्वे का विश्लेषण एनसीडीसी कर रहा है. यह स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिनस्त है और इसने अब तक सर्वे का निष्कर्ष दिल्ली सरकार को नहीं बताया है.
16 जुलाई को एनसीडीसी ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचना दी कि वह अभी तक डेटा की समीक्षा कर रहा था और सर्वेक्षण के प्रारंभिक परिणामों को घोषित करने में एक और सप्ताह लगेगा. लेकिन वैज्ञानिकों की एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स, जिसे केंद्र सरकार को इस महामारी के प्रभाव पर सलाह देने के लिए गठित किया गया था, के तीन सदस्यों के अनुसार, रिपोर्ट गृह मंत्रालय द्वारा बनाई जा रहा है क्योंकि इसकी समीक्षा गृह मंत्रालय द्वारा की जा रही है.
तीनों सदस्यों ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि एनसीडीसी ने अपने सर्वे और परिणामों की जांच में टास्क फोर्स को शामिल नहीं किया था. यहां तक कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, जो भारत में कोविड-19 रणनीति तैयार करने में सबसे आगे रहा है, की सेरोलॉजिकल सर्वे तक पहुंच नहीं है. 15 जुलाई को एक प्रेस वार्ता में एक पत्रकार ने सर्वे के नतीजे जारी करने के बारे में एक सवाल किया और स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी राजेश भूषण ने शायद अनजाने में स्वीकार किया कि यह रिपोर्ट अभी तक आईसीएमआर से साझा नहीं की गई है. भूषण ने जवाब बताया, "यह मुश्किल काम हैं और इसमें समय लगता है. दिल्ली में सर्वे 5 जुलाई को समाप्त हो गया था. आंतरिक रूप से इसकी समीक्षा करने और आईसीएमआर के साथ साझा करने के बाद, हम साझा करेंगे."
टास्क फोर्स के एक सदस्य के अनुसार आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने 11 जुलाई को उन्हें सूचित किया कि परिणाम गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करने वाले कैबिनेट सचिव राजीव गौबा और स्वास्थ्य सचिव प्रीति सुदन की अनुमति के कारण लंबित हैं. एक दूसरे सदस्य ने मुझे बताया कि एनसीडीसी के निदेशक सुजीत सिंह ने कहा था कि संगठन एमएचए की मंजूरी का इंतजार कर रहा है. सदस्य ने बताया, "हमारा कोविड के लिए किया गया कार्य अब गृह मंत्रालय के अधीन है और इसलिए इसे पुलिस हस्तक्षेप के रूप में लागू किया जा रहा है, स्वास्थ्य हस्तक्षेप के रूप में नहीं." कोरोनावायरस संक्रमण में तेजी के बाद कई राज्यों को दोबारा लॉकडाउन में धकेलने वाले नरेन्द्र मोदी प्रशासन ने वैज्ञानिकों को दरकिनार कर, गृह मंत्रालय को इसकी बागडोर सौंप दी.
यह स्पष्ट नहीं है कि गृह मंत्रालय दिल्ली सरकार या आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय की जगह परिणामों की समीक्षा क्यों करेगा. सेरोलॉजिकल परीक्षण रक्त नमूनों में वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडी (प्रतिरोधक) के निर्माण को मापते हैं और इस सर्वे में पूरी दिल्ली से कुल 22823 नमूने लिए गए थे. शरीर मे कोरोनावायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडी की व्यापकता का निर्धारण करके सर्वे वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को संक्रमण के पैमाने और इसकी फैलने की गति को समझने मदद मिलेगी. इससे महामारी से निपटने के लिए किए गए अब तक के उपायों की प्रभावशीलता के बारे में पता चलेगा और यह पता चलेगा कि दिल्ली के निवासियों को संक्रमण की आशंका है या नहीं. यह महत्वपूर्ण जानकारी है जो कोविड-19 के खिलाफ तैयारी करने और इससे लड़ने की रणनीति का आधार बनेगी. इससे मामले की जानकारी रखने वाले दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर मुझे बताया कि हम एनसीडीसी से इस डेटा को हमसे साझा करने के लिए कह रहे हैं ताकि हम उचित निर्णय ले सकें.
टास्क फोर्स के तीन सदस्यों ने कहा कि उन्हें अध्ययन के प्रारूप या मॉडल के बारे में कोई जानकारी नहीं है जिससे यह पता चले कि सर्वे के लिए दिल्ली के लगभग 23000 निवासियों को कैसे चुना गया. उन्होंने कहा कि उन्हें समाचार रिपोर्टों से सर्वे का पता चला. एक सदस्य ने कहा कि टास्क फोर्स की बैठक जून के तीसरे सप्ताह में हुई थी लेकिन बैठक के दौरान इसकी ना तो चर्चा की गई और ना ही इसे अपने एजेंडे में सूचीबद्ध किया गया.
भले ही राजधानी में स्थिति में सुधार हुआ हो लेकिन कोविड-19 की तैयारी के लिए आईसीएमआर द्वारा गठित 11 सशक्त समूहों में से एक के एक सदस्य ने वैज्ञानिकों और आईसीएमआर को इस प्रक्रिया में शामिल रखने के महत्व पर जोर दिया.
अपनी पहचान जाहिर ना करने का अनुरोध करते हुए सदस्य ने कहा, "इस महामारी जैसे संकट में, मजबूत लोकतंत्रों ने स्थापित संस्थागत प्रक्रियाओं पर भरोसा किया है. यह एक वैश्विक बीमारी है और सरकार को नए डेटा को प्राप्त करने, इस वायरस के बारे में नए विज्ञान की सही व्याख्या करने के लिए वैज्ञानिकों की आवश्यकता है. नौकरशाहों के पास इस जानकारी को व्याख्या करने का ज्ञान नहीं है. जब स्थापित मानदंडों को दरकिनार किया जाता है और नए मानदंड बनाए जाते हैं तो यह अल्पावधि में प्रभावी हो सकता है लेकिन लंबे समय में यह संस्थानों को अस्थिर कर देगा."
सदस्य ने आगे बताया, "हम पहले ही देख चुके हैं कि कॉन्टैक्ट ट्रैसिंग जैसे ऑपरेशन मुख्य रूप से सुरक्षा एजेंसियों द्वारा चलाए जाते हैं. "एक सुरक्षा संस्थान के सेरो सर्वे डेटा पर काम करना बहुत बड़ी समस्या है." टास्क फोर्स के एक दूसरे सदस्य ने इन चिंताओं को उठाया.
उन्होंने आगे कहा, "पुलिस और प्रशासन की मदद से नेताओं ने महामारी नियंत्रण का काम अपने हाथों में लिया है, तो वास्तव में यह एक महामारी नियंत्रण अभ्यास ना रह कर कानून और व्यवस्था बनाने के कार्यक्रम में बदल गया है.
8 जुलाई को द हिंदू में खबर थी कि इन निकायों में से किसी को भी सर्वे के परिणाम प्राप्त नहीं हुए थे और अधिकारियों के अनुसार, सर्वे के प्रारंभिक परिणामों से पता चला है कि "दिल्ली की कम से कम 15 प्रतिशत आबादी में "वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडी हैं." मैंने जिन टास्क फोर्स के सदस्यों से बात की, उन्होंने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि मीडिया ने भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों से पहले इस महत्वपूर्ण सर्वे के बारे में जानकारी हासिल कर ली.
दिल्ली सरकार के अधिकारी ने जोर देकर कहा कि सर्वे के परिणाम उनके साथ साझा किए जाने चाहिए. उन्होंने कहा, "स्वास्थ्य राज्य से संबंधित विषय है. हमें इस जानकारी का अधिकार है."
हालांकि, गृह मंत्रालय ने सेरोलॉजिकल सर्वे में शामिल होने की बात से इनकार किया. ईमेल में सर्वे के बारे में पूछे गए सवालों का मंत्रालय की प्रेस सूचना ब्यूरो इकाई ने जवाब दिया कि "दिल्ली सेरोलॉजिकल सर्वे का विषय एमएचए से संबंधित नहीं है." ईमेल में दिया गया यह जवाब मंत्रालय के ट्विटर हैंडल पर लिखी पोस्ट से मेल नहीं खाता. 26 जून को मंत्रालय के प्रवक्ता ने दिल्ली के सेरोलॉजिकल सर्वे की घोषणा करते हुए ट्वीट किया, "एचएम @AmitShah के निर्देशों के अनुसार, दिल्ली में सेरोलॉजिकल सर्वे पर चर्चा की गई थी जिसे एनसीडीसी और दिल्ली सरकार द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा." एमएचए प्रवक्ता के ईमेल में ना ही इस बात की पुष्टि की गई कि रिपोर्ट मंत्रालय द्वारा तैयार की गई थी, ना ही इस बात से इनकार किया.
एनसीडीसी और आईसीएमआर के प्रमुखों, सिंह और भार्गव, ने ईमेल में भेजे गए प्रश्नों के जवाब इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के समय तक नहीं दिए थे. उनके जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को इसे अपडेट किया जाएगा.
सेरोलॉजिकल सर्वे दिल्ली में कोविड-19 की तैयारी में गृह मंत्रालय के शामिल होने का शायद पहला मामला है. जून महीने की शुरुआत में जब दिल्ली में कोविड-19 के दैनिक मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी गई तब आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली के निवासियों के लिए राष्ट्रीय राजधानी के अस्पतालों में बिस्तर आरक्षित करने की घोषणा की. लेकिन लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल ने इसे तुरंत पलट दिया. अनिल बैजल ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोई जिम्मेदार सरकार निवास स्थान के आधार पर रोगियों के बीच भेदभाव कर रही है." बयान के रूप में दिए गए इस ताने में व्याप्त विरोधाभास भारत के सार्वजनिक-स्वास्थ्य हलकों और विशेष रूप से क्षय रोग पर काम करने वालों से छिप नहीं सका.
उन्होंने एक मुकदमे के बारे में बताया जिसमें एक क्षय रोग से पीड़ित किशोरी ने एक नई दवाई बेडाक्विलिन प्राप्त करने के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार पर एक मुकदमा दायर किया था. उसे इस आधार पर दवा से वंचित कर दिया गया कि केवल दिल्ली के निवासी ही इसे प्राप्त कर सकते थे. जनवरी 2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि रोगी का निवास स्थान उसे दवा से वंचित करने का पर्याप्त कारण नहीं था. अंत में उसे बेडाक्विलिन प्राप्त हुई, लेकिन देरी घातक साबित हुई. जब तक वह इस मुश्किल से जीते गए मुकदमे से उपचार लेती, तब तक वह ऑक्सीजन पर चली गई और सभी फेफड़ों के काम करने की क्षमता खत्म हो गई थी. 9 अक्टूबर 2018 को उसकी मौत हो गई. उस समय वह 19 वर्ष की थी.
लेकिन केंद्र के पिछले प्रतिकूल फैसले को इंगित नहीं किया क्योंकि लेफ्टिनेंट गवर्नर दिल्ली सरकार का फैसला पलट दिया था. राजधानी में स्थिति बिगड़ने के साथ ही केंद्र की भागीदारी अधिक स्पष्ट हो गई. 14 और 15 जून को गृह मंत्री अमित शाह ने राजधानी के कोविड-19 की तैयारियों के बारे में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित दिल्ली सरकार के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक की. एमएचए की भागीदारी पर लगे सभी संदेह दूर हो गए जब अगले दिन शाह ने दिल्ली में कोविड-19 का उपचार करने वाले सबसे बड़े अस्पताल, लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल’ में सुविधाओं का जायजा लेने के लिए दौरा किया.
उनके दौरे के बाद दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने अपना नाम ना जाहिर करते हुए इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “दिल्ली में दिन-प्रतिदिन बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार ने इन्हें नियंत्रित करने के लिए सहयोग करने का संकेत दिया है. प्रसार की दर और सुविधाओं को जल्द पहुंचाने के लिए दिल्ली सरकार ने केंद्र को अपना समर्थन दिया है." केंद्र की भागीदारी पर आउटलुक की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “जैसे ही शाह ने दिल्ली के लिए एक बहुआयामी रणनीति की घोषणा की आप सरकार की वह कमजोरी सामने आ गई जिसे वह अपनी उपलब्धी की तरह पेश कर रही थी. शाह के दिल्ली सरकार द्वारा संचालित एलएनजेपी अस्पताल का दौरा करने से साफ हो गया कि वही असली प्रभारी है."
यह निर्विवाद है कि पिछले महीने में राष्ट्र राजधानी में कोरोनावायरस मामलों के दैनिक 4000 प्रति दिन से घटकर लगभग 1500 प्रति दिन हो गए हैं. ऐसा लगता है कि दिल्ली कोरोनावायरस का पीक पार कर चुकी है क्योंकि प्रति दिन मरने वालों की संख्या में भी काफी गिरावट आई है.
इसमें भी दो राय नहीं है कि नेताओं ने बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक सुझावों का मजाक उड़ाया है. टास्क फोर्स के तीन सदस्यों साथ ही सशक्त समूह के सदस्य ने मुझे बताया कि उन्हें भारत में कोविड-19 वैक्सीन के बारे में पता चला है, जिसे मीडिया की खबरों के मताबिक 15 अगस्त तक सार्वजनिक-स्वास्थ्य उपयोग के लिए तैयार होना है.
देश में वैज्ञानिकों के शीर्ष संगठनों में से एक भारतीय वैज्ञानिक अकादमी ने घोषणा को "अनुचित और बिना नजीर वाली" करार देते हुए खारिज कर दिया गया था. वैज्ञानिक फैसलों को दरकिनार कर राजनीति करने की आलोचनाओं का सामना करते हुए, भार्गव ने दावा किया कि "अनावश्यक लालफीताशाही" को खत्म करने के लिए टीके को तेजी से विकसित करने की अपील की गई थी. लेकिन तब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर में बदनामी हो चुकी थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक और पूर्व आईसीएमआर महानिदेशक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने वैक्सीन के बारे में द वायर को दिए एक साक्षात्कार में वैक्सीन विकसित करते समय "वैज्ञानिक और नैतिक मानकों" को बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया.
जबकि दिल्ली में महामारी में सुधार हो रहा है तो यह पूरे भारत में तेजी से फैल रही है. संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्राजील के बाद शीर्ष तीन देशों में भारत भी शामिल हो गया. उन दोनों देशों का नेतृत्व ऐसे प्रमुखों के हाथ में है जिन्होंने महामारी से लड़ने में विज्ञान की उपेक्षा की है. इसी के समानांतर भारत में केंद्र की तरफ से जानकारी देना कम हो गया है और दैनिक मीडिया ब्रीफिंग कभी कभार ही होती है. जुलाई में केवल दो ब्रीफिंग हुई हैं. लव अग्रवाल, जो स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रतिनिधि के रूप में भारत में महामारी को लेकर लड़ाई का चेहरा बन गए थे, अब ब्रीफिंग से अनुपस्थित रहते हैं. आईसीएमआर के प्रमुख महामारी विज्ञानी रमन गंगाखेड़कर सेवानिवृत्त हो चुके हैं. नीति आयोग के सदस्य और टास्क फोर्स के अध्यक्ष विनोद पॉल, जिन्होंने 16 मई तक महामारी के अंत की भविष्यवाणी की थी, भी प्रेस वार्ता से अनुपस्थित हो गए हैं.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने 17 जुलाई को सुबह 8 बजे तक कुल 1003832 मामलों और 25602 मौतों की पुष्टि की थी. भारत दस लाख से अधिक मामलों को दर्ज करने वाला विश्व में तीसरा देश बन गया है. मोदी प्रशासन का कानून-व्यवस्था के रूप में महामारी से निपटने का निर्णय देश की स्वास्थ्य सुरक्षा को तेजी से कमजोर कर रहा है.
डिसक्लोजर : यह रिपोर्ट अंग्रेजी कारवां में 17 जून को छपी थी. हिंदी में प्रकाशित होने तक सेरोलॉजिकल रिपोर्ट जारी हो चुकी थी लेकिन इसमें बताई गई अन्य संबंधित जानकारियों से पाठकों को अवगत करने के लिए इसे हिंदी में अनुवाद कर प्रकाशित किया जा रहा है.
अनुवाद : अंकिता