भारत की महत्वाकांक्षी कोविड-19 जीनोम सीक्वेंसिंग परियोजना के उतार-चढ़ाव

16 फरवरी 2022 को पुणे में भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान में जीनोम सीक्वेंसिंग पर काम करते परियोजना सहायक. प्रथम गोखले/हिंदुस्तान टाइम्स

29 जनवरी 2020 की रात नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) की वैज्ञानिक प्रज्ञा यादव की जिंदगी की सबसे तनावपूर्ण रात थी. यादव ने मुझे बताया, "मुझे वह रात बहुत अच्छी तरह से याद है." उनके कुछ दिन तो यही सुनिश्चित करने में बीत गए थे कि उनकी प्रयोगशाला उन पहले दो भारतीयों के नमूनों की जांच करने के लिए तैयार है या नहीं, जिनके बारे में माना गया था कि उन्हें कोविड-19 है. उस दिन की शुरुआत में यादव ने यह पुष्टि करने के लिए कि दुनिया भर में फैल रही खतरनाक नई बीमारी के नमूने वास्तव में पॉजिटिव है या नहीं, दो अलग-अलग प्रयोगशालाओं में दो दौर की जांच की थी. शाम तक वह वायरल नमूनों की सीक्वेंसिंग (अनुक्रमण) करने और वायरस के आनुवंशिक संरचना को समझने के लिए अपनी प्रयोगशाला में वापस आईं.

यादव चश्मा पहने वालीं एक मृदुभाषी महिला हैं. उन्होंने जीनोमिक सीक्वेंसिंग की शब्दावलियों को बड़े धैर्य के साथ मुझे समझाया और मेरे सवालों के जवाब दिए. "मैंने और मेरी टीम ने शाम 7 बजे तक जांच कार्य पूरा किया और घर चले गए लेकिन अपनी सीक्वेंसिंग रणनीति पर चर्चा करने के लिए रात 10.30 बजे तक परिसर में वापस आ गए थे," उन्होंने याद करते हुए कहा. यादव और एनआईवी की निदेशक प्रिया अब्राहम ने तय किया कि टीम सीक्वेंसिंग को पूरा करने के लिए रात भर काम करेगी. यह कठिन काम था और कष्टदायक भी. उन्हें एक अत्यधिक संक्रामक नए रोगजनक के नमूनों का अध्ययन करना था जिसके बारे में वे इस तथ्य के अलावा बहुत कम जानते थे कि यह लोगों को बहुत बीमार बना रहा था और तेजी से लोगों की जान ले रहा था. उन्हें दम घोटू सुरक्षात्मक उपकरण भी पहनने पड़े, जिससे प्रयोगशाला के भीतर की भौतिक स्थिति असहनीय हो गई. यादव और उनकी टीम ने रात और अगले दिन काम करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी और अपने परिवारों से आने वाले बेचैनी भरे फोन कॉलों की अनदेखी की. उन्होंने 30 जनवरी की सुबह तक सीक्वेंसिंग पूरी कर ली. यादव ने मुझे बताया, "आखिरकार हमारे पास एक संपूर्ण जीनोम अनुक्रम या कहें कि वायरस का ढांचा था."

यादव ने जो डिकोड किया था वह उनके द्वारा भेजे गए नमूने से वायरस की संरचना और गठन था जो दुनिया भर के कई समान नमूनों में से एक जो वायरस की कार्यविधि को सुलझाने में मदद कर सकता था और यह भी बता सकता था कि बीमारी को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है.

सार्स-कोव-2 वायरस जो कोविड-19 का कारण बनता है, एक एकल आरएनए स्ट्रैंड से बना होता है जिसमें विकसित होने और गुणात्म वृद्धि करने के लिए आवश्यक सभी तत्व होते हैं. न्यू यॉर्क जीनोम सेंटर के पोस्टडॉक्टरल छात्र साकेत चौधरी ने कहा, "मूल रूप से हम आरएनए के इस स्ट्रैंड को देखते हैं और हम प्रोटीन बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए पैटर्न को देखते हैं, जो खुद को दोहराते हैं और संभावित होस्ट को संक्रमित करते हैं. तो हम इस जानकारी का उपयोग दवाओं के निर्माण और नए टीके विकसित करने के लिए कर सकते हैं जो वायरस के इन पैटर्न को तोड़ सकते हैं. जितना अधिक आप इसके बारे में जानते हैं कि यह कैसे कार्य करता है, उतना ही आप इसे बेअसर करने में काबिल होंगे."

यादव और उनके सहयोगियों के उस पहले नमूने को अनुक्रमित करने के बाद से भारत के जीनोमिक अनुक्रमण प्रयास महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़े हैं. यादव की टीम को जांच और सीक्वेंसिंग से लैस देश की इकलौती प्रयोगशाला में यह काम करना था. 2020 के मध्य तक जैव प्रौद्योगिकी विभाग, जो केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय​ के अंतर्गत आता है, से जुड़े कुछ भारतीय वैज्ञानिकों ने देश भर में संक्रमित व्यक्तियों से रक्त के नमूनों का एक प्रतिनिधि पूल इकट्ठा करना शुरू कर दिया था. उन्होंने पाया कि वायरस के विभिन्न उत्परिवर्तन पहले ही स्थानीय रूप से उभरने लगे थे, खासकर उन राज्यों में जहां संक्रमण में वृद्धि देखी गई थी. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स के पूर्व निदेशक डॉ सौमित्र दास ने कहा, "यह एक आरएनए वायरस है और हम जानते थे कि यह जल्दी से उत्परिवर्तित होने की संभावना रखता है, लेकिन किस पैमाने पर और इतनी तेजी से, यह नहीं जानते थे. 2020 के उत्तरार्ध तक यह और ज्यादा साफ हो गया था कि मामलों में वृद्धि और वायरस में भिन्नता के बीच एक संबंध था. तो एक महत्वपूर्ण सवाल सामने आया : वेरिएंट और इन उछाल के बीच ठीक-ठीक जुड़ाव क्या है?

यह जुड़ाव एक कारण था कि भारत सरकार ने कोविड-19 जीनोम अनुक्रमण के लिए प्रयोगशालाओं का एक कॉन्सॉर्टियम बनाने का निर्णय लिया. दूसरा महामारी से लड़ने के वैश्विक प्रयास में शामिल होना था, जिसके लिए कई अन्य देशों ने पहले ही ठोस अनुक्रमण प्रयास शुरू कर दिए थे. दिसंबर 2020 में जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने आधिकारिक तौर पर जीनोमिक्स या आईएनएसएसीओजी पर भारतीय सार्स-कोव2 कॉन्सॉर्टियम की स्थापना की, जो कोविड-19 नमूनों को अनुक्रमित करने के लिए शुरू किया गया एक अभूतपूर्व राष्ट्रव्यापी प्रयास था. "दिसंबर 2020 में जब यूके वेरिएंट उभरा और वहां मामले तेजी से बढ़े, तब इस योजना को ठोस बनाने और औपचारिक रूप से आईएनएसएसीओजी की स्थापना करने का निर्णय लिया गया," दास, जिन्होंने संघ के लिए एक समन्वयक के रूप में भी काम किया, ने कहा.

आईएनएसएसीओजी में शुरू में दस सरकारी प्रयोगशालाएं शामिल थीं. एक साल में, इसका विस्तार निजी प्रयोगशालाओं सहित 38 केंद्रों तक हो गया. हालांकि, कॉन्सॉर्टियम जरूरी संख्या में नमूनों को अनुक्रमित करने में धीमा था. यह संक्रमण की भविष्य की लहरों की तैयारी और रोकथाम के लिए अनुक्रमण जानकारी को प्रभावी ढंग से तैनात करने में भी सक्षम नहीं है. ऐसा आंशिक रूप से संघटक प्रयोगशालाओं के लिए स्पष्ट प्रणाली स्थापित करने में आईएनएसएसीओजी की अपनी अक्षमता और आंशिक रूप से कॉन्सॉर्टियम द्वारा प्रदान की गई जानकारी के प्रति राजनीतिक उदासीनता के कारण रहा है. आईएनएसएसीओजी परियोजना महामारी से निपटने में वैज्ञानिक सलाह को लेकर सरकार के नजरिए की नजीर पेश करती है जो इसे अनदेखा करने की रही है.

आईएनएसएसीओजी के लिए यह जरूरी था कि संक्रमण के पैटर्न का पता लगाने के लिए देश भर में कोविड-19 रोगियों के सभी नमूनों में से पांच प्रतिशत का अनुक्रम करे. नमूने संग्रह केंद्रों के निकटतम कॉन्सॉर्टियम प्रयोगशालाओं में भेजे गए. यादव ने मुझे बताया कि म्यूटेशन के लिए हर नए क्रम की जांच की गई. "मूल रूप से हम वायरस के पूरे जीनोम में विभिन्न जीन खंडों में उत्परिवर्तन या परिवर्तन की तलाश करते हैं कि वे परिवर्तन वायरस के विभिन्न प्रोटीनों को कैसे प्रभावित करते हैं. मसलल, स्पाइक प्रोटीन संक्रमण पैदा करने के लिए जिम्मेदार है," उन्होंने बताया. तब इस क्रम की तुलना पुराने नूमनों से की गई जो पहले से ही संक्रमण या लक्षणों के विशेष पैटर्न से जुड़े थे. वैज्ञानिकों ने जांच की कि क्या जांच किए जा रहे अनुक्रम में उत्परिवर्तन वायरस के पिछले रूपों में भी मौजूद थे. उन्होंने मेडिकल किताबें पढ़ीं कि कैसे विशेष उत्परिवर्तन वायरस की कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं. "अगर जीनोमिक अनुक्रम में कहीं एक बार की भिन्नता है, तो हम इसे चिंता का विषय नहीं देखते हैं. लेकिन यदि हम नमूनों के समूह में समान उत्परिवर्तन का एक पैटर्न देखते हैं, तो हम इसमें आगे जांच करते हैं," पुणे में भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान में जीव विज्ञान के सहायक प्रोफेसर डॉ. कृष्णपाल कर्मोदिया ने कहा. आईआईएसईआर पुणे आईएनएसएसीओजी का हिस्सा है और महाराष्ट्र के राज्य स्तरीय सीक्वेंसिंग कार्यक्रम का भी हिस्सा है, जो आईएनएसएसीओजी की स्थापना से पहले शुरू हुआ था. "हम जांचते हैं कि क्या कोई विशेष उत्परिवर्तन पहले से ही उच्च विषाणु या प्रतिरक्षा दूर करने जैसी नैदानिक विशेषताओं से जुड़ा हुआ है."

जीनोमिक सीक्वेंस को नैदानिक जानकारी से जोड़ने का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को बेहतर करना है. केरल के एक जीनोमिक वैज्ञानिक ने मुझे बताया कि कैसे राज्य में कठोर सीक्वेंसिंग के कारण सरकार ने एक निवारक उपाय के रूप में दो मास्क लगाने पर जोर दिया. 2020 के अंत में यह दिखाने के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण थे कि वायरस हवा से फैलता है. जब अल्फा-1 प्रमुख संस्करण के रूप में उभरा, तो यह स्पष्ट था कि कपड़े के मास्क पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं करते और अच्छी तरह से फिट किए गए एन-95 मास्क हवाई कणों के खिलाफ बेहतर सुरक्षा प्रदान करते हैं. "लेकिन हम जानते थे कि हम सभी को एन-95 मास्क पहनने की सलाह नहीं दे सकते, जिससे हमारे अनिवार्य कर्मचारियों के लिए मास्क की कमी हो सकती है," वैज्ञानिक ने कहा. "इसलिए हमने इसके समाधान के रूप में डबल-मास्किंग की सिफारिश की.” कुछ महीने बाद, अप्रैल 2021 में, जीनोमिक निगरानी ने अल्फा के सामुदायिक प्रसार के बारे में शुरूआती अंतर्दृष्टि दी, जब वैज्ञानिक उच्च संक्रामकता वाले वायरस में उत्परिवर्तन को जोड़ने में सक्षम हुए. उस समय भारत में टीकाकरण की दर बहुत ही कम थी. वैज्ञानिक ने कहा, "गैर-औषधीय हस्तक्षेप के रूप में डबल-मास्किंग का निर्णय इस तथ्य के आधार पर किया गया था कि राज्य में तेजी से फैलने वाला संस्करण (अल्फा) बढ़ रहा था," वैज्ञानिक ने कहा.

निवारक उपायों को लागू करने के लिए जीनोमिक अनुक्रमण से एकत्रित जानकारी का उपयोग करने में केरल ने जो दक्षता दिखाई, वह पूरे भारत में नहीं देखी गई. फरवरी 2021 में, महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर ने भारत में लाखों लोगों की जिंदगी लील दी. महाराष्ट्र कोविड-19 टास्क फोर्स के सदस्यों ने राज्य के अमरावती और यवतमाल जिलों में रोगियों से नमूने एकत्र किए. दोनों जिलों में मामलों में अचानक वृद्धि देखी गई और जब इन क्षेत्रों के नमूनों का परीक्षण आईएनएसएसीओजी प्रयोगशालाओं में किया गया, तो वैज्ञानिकों ने पाया कि उनमें उत्परिवर्तन शामिल थे जो प्रतिरक्षा से बचने और संक्रामकता में वृद्धि से जुड़े थे. वे इसका अनुमान लगाने में सक्षम थे क्योंकि उनके पास दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे अन्य देशों के जीनोमिक डेटा थे जहां समान उत्परिवर्तन वाले वेरिएंट केस संख्या और अस्पताल में भर्ती दरों को बढ़ा रहे थे. आईएनएसएसीओजी के वैज्ञानिकों ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने मार्च की शुरुआत में सरकार को आबादी में फैल रहे एक नए संस्करण के बारे में चेतावनी दी थी लेकिन अधिकारियों ने इसके बारे में कुछ नहीं किया. हालांकि एक नए प्रकार की मौजूदगी संक्रमण की लहरों के लिए पूरी तरह जिम्मेदार नहीं है, यह संक्रमण दर को बढ़ाने के प्राथमिक कारणों में से एक हैं. दूसरी लहर काफी हद तक डेल्टा संस्करण से प्रेरित थी, जो वायरस के पहले के वेरिएंट की तुलना में बहुत अधिक फैलने वाला और अधिक गंभीर था और जल्दी से आबादी को संक्रमित कर गया. सरकार ने डेल्टा संस्करण के प्रसार को कम करने के लिए निवारक उपाय नहीं किए, बल्कि अप्रैल 2021 में कुंभ मेले, बड़ी चुनावी रैलियों और बड़े पैमाने पर सभाओं की अनुमति दी.

जब जीनोमिक वैज्ञानिकों ने सार्स-कोव2 वेरिएंट में नए म्यूटेशन पाए, जो अन्य देशों में नहीं मिले थे, तो उन्होंने ऐसे पैटर्न की तलाश की, जो नैदानिक प्रभाव प्रकट कर सकें. कर्मोदिया ने कहा, "अगर हम इन नए म्यूटेशन के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं, तो हमें इस बात का डेटा एकत्र करना शुरू करना होगा कि यह म्यूटेशन कितनी तेजी से फैल रहा है, लोग कितने बीमार हो रहे हैं और क्या वे अस्पताल में भर्ती हैं, आदि."

​विदेशों में रिपोर्ट किए गए वेरिएंट के साथ जीनोम अनुक्रमों में समानता की यह सभी खोज और म्यूटेशन को ट्रैक करने के लिए यह देखने कि क्या वे बीमारी में इजाफा करेंगे या इसके नतीजे खराब होंगे, एक निश्चित संख्या में नमूनों को एकत्र करने, अनुक्रमित करने और रिपोर्ट करने की आवश्यकता है. आईएनएसएसीओजी ने हर राज्य से एकत्र किए गए सभी पॉजिटिव नमूनों में से पांच प्रतिशत का अनुक्रम करना निर्धारित किया है. मई 2021 में पद से इस्तीफा देने तक आईएनएसएसीओजी के वैज्ञानिक सलाहकार समूह की अध्यक्षता करने वाले वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील ने मुझे बताया कि पांच प्रतिशत लक्ष्य बड़ी बात नहीं थी क्योंकि "उस समय, सर्वश्रेष्ठ अनुक्रमण कर रहे देश उस सीमा में अनुक्रमण कर रहे थे. यह सरकार की ओर से तय नहीं किया गया था लेकिन आईएनएसएसीओजी की 10 घटक प्रयोगशालाओं द्वारा वित्त पोषण आवेदन में प्रस्तावित किया गया था.” दिसंबर 2021 तक प्रयोगशालाएं इस लक्ष्य का केवल पांचवां हिस्सा ही जुटा पाईं.

चौधरी ने भारत से कोरोनोवायरस अनुक्रमण डेटा का बारीकी से विश्लेषण किया है जिसे ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन शेयरिंग ऑल इन्फ्लुएंजा डेटा या जीआईएसएआईडी वेबसाइट पर अपलोड किया गया है. जीआईएसएआईडी सार्स-कोव2, एच1एन1 और एच5एन1 सहित कई प्रकार के वायरस के लिए ओपन एक्सेस जीनोमिक डेटा प्रदान करता है. उन्होंने पाया कि 2021 के अंत तक भारत लगातार हर महीने सभी सकारात्मक कोविड-19 नमूनों में से केवल एक प्रतिशत का ही अनुक्रमण कर रहा था.

अपलोड किए गए आंकड़ों के अनुसार, आईएनएसएसीओजी के गठन के समय से जनवरी 2022 के अंत तक, महाराष्ट्र ने 24704 नमूनों का अनुक्रम किया, जबकि बिहार और झारखंड जैसे राज्यों ने क्रमशः केवल 594 और 783 नमूनों की सीक्वेंसिंग की. इसलिए भारत में 25 प्रतिशत से अधिक अनुक्रमण डेटा अकेले महाराष्ट्र से था. नतीजतन राष्ट्रीय स्तर के अनुक्रमण डेटा और नए वेरिएंट की व्यापकता ज्यादातर यह दर्शाती है कि उन राज्यों में क्या हो रहा है जो देश के बाकी हिस्सों की तुलना में बहुत अधिक सीक्वेंसिंग कर रहे हैं. 

जिन वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं से मैंने बात की, उन्होंने विभिन्न राज्यों में अनुक्रमण की दरों में असमानताओं के कारण जीनोमिक अनुक्रमण के लिए एक सुसंगत और व्यवस्थित केंद्रीय रणनीति की कमी की ओर इशारा किया. दिसंबर 2020 में आईएनएसएसीओजी की प्रारंभिक रणनीति हर राज्य को अपने पांच प्रतिशत पॉजिटिव नमूने अपने प्रयोगशाला नेटवर्क को भेजने के लिए कहने की थी. अप्रैल 2021 में कॉन्सॉर्टियम ने अपनी रणनीति को निगरानी करने में बदल दिया. इसने प्रत्येक राज्य से पांच प्रयोगशालाओं और पांच तृतीयक देखभाल अस्पतालों को ऐसे निगरानी केंद्रों के रूप में नामित करने के लिए कहा जिनमें से प्रत्येक 15 नमूने भेजेगें.

दिसंबर 2021 के अंत में, जब पूरे देश में मामले फिर से बढ़ रहे थे, आईएनएसएसीओजी से जुड़े एक प्रमुख जीनोमिक वैज्ञानिक ने मुझे बताया कि कॉन्सॉर्टियम किसी भी रणनीति का पालन नहीं कर रहा था. वैज्ञानिक ने कहा, "महाराष्ट्र और केरल राज्यों को छोड़ कर, जिनकी अपनी राज्य स्तरीय निगरानी रणनीति है, अन्य किसी में रणनीति का पालन नहीं किया जा रहा है." महाराष्ट्र और केरल दोनों में राज्य-स्तरीय जीनोमिक निगरानी कार्यक्रम थे जिन्हें आईएनएसएसीओजी के गठन से पहले शुरू किया गया था और फिर आईएनएसएसीओजी  के साथ समन्वय में काम करने के लिए ढाला गया था. इन दो राज्यों ने भारत में सभी नमूनों का एक तिहाई अनुक्रमित किया. आईआईएसईआर में कर्मोदिया की प्रयोगशाला आईएनएसएसीओजी का हिस्सा थी लेकिन महाराष्ट्र राज्य जीनोमिक सर्विलांस के लिए समानांतर काम करती थी. “केंद्र और आईएनएसएसीओजी के अलावा, हम राज्य-स्तरीय बैठकें करते हैं और आगे दूर तक जाने के लिए राज्य के भीतर प्रयोगशालाओं के साथ समन्वय करते हैं. हम आईएनएसएसीओजी के साथ मिलकर काम करते हैं, लेकिन जिलों में अधिक से अधिक नमूनों को अनुक्रमित करने के लिए इसके ऊपर और उससे आगे भी जाते हैं,” कर्मोदिया ने कहा. केरल का अनुक्रमण कार्यक्रम जेनेसकोव2 केरल के लिए आईएनएसएसीओजी की स्थापना के एक महीने पहले नवंबर में स्थापित किया गया था. हर महीने हर जिले से 100 सैंपल लेने का विचार था. केरल के जीनोमिक वैज्ञानिक ने मुझे बताया, "नमूनों की इस निरंतर संख्या ने विविधता और विकास को और अधिक व्यवस्थित तरीके से समझने का एक अनूठा मौक दिया है." हालांकि, नवंबर 2021 से केरल की अनुक्रमण रणनीति आईएनएसएसीओजी की निगरानी रणनीति पर आधारित थी.

अनुक्रमण से महामारी विज्ञान की जानकारी जुटाना महज संख्या का खेल नहीं है. सीक्वेंसिंग डेटा तब तक सीमित उपयोग का होता है जब तक कि जिनसे नमूना लिया गया उनकी नैदानिक जानकारियां, जैसे उम्र, लिंग और रोगी की सहवर्ती बीमारियां (कोमोर्बेडिटी), अस्पताल में भर्ती कराया गया है या ऑक्सीजन देने की जरूरत है या उन्हें टीका लगाया गया है, यह सब शामिल है. वेल्लोर में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के एक वायरोलॉजिस्ट प्रोफेसर गगनदीप कांग ने कहा, "आप अधिक अनुक्रमण चाहते हैं, आप इसे तेजी से चाहते हैं, आप यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि आपके पास अनुक्रमण के साथ अधिक विस्तृत नैदानिक जानकारियां हों." कांग का कहना है कि अधिक संक्रामक रोगों के लिए नैदानिक रूप से सहसंबंधित जीनोमिक डेटा एकत्र किया जाना चाहिए, न कि केवल कोविड-19 के लिए. "हमारे पास जो डेटा है वह बेमेल है, हम समय के साथ या भौगोलिक रूप से चीजों को ट्रैक नहीं कर सकते," उन्होंने कहा. "उदाहरण के लिए, अगर ज्यादा या कम अस्पताल में भर्ती है, तो आप जानते हैं कि यह कुछ ऐसा है जिसका आपको तुरंत जवाब देने की जरूरत है, बजाय यह कहने के कि खास लक्षणों के जुड़ाव के बिना किसी विशेष प्रकार का अनुपात बढ़ रहा है."

आईएनएसएसीओजी वेबसाइट के माध्यम से उपलब्ध कोविड-19 जीनोमिक डेटा ने हमें केवल यह बताया कि अब तक प्रत्येक राज्य से कितने नमूनों की सीक्वेंसिंग की गई है और हर प्रकार के कितने नमूने मौजूद हैं. चौधरी ने कहा, "पोर्टल ने कई विवरण हटा दिए और इसमें कोई बारीक डेटा नहीं है. तब भी नहीं जब ये नमूने इकट्ठा किए गए थे या सीक्वेंसिंग की गई थी. वे जो इंटरफेस प्रदान करते हैं, वह किसी निष्कर्ष को निकालने के लिए उपयोगी नहीं है. यह केवल पूर्ण संख्याओं तक ही सीमित है." आईएनएसएसीओजी ने शायद ही कभी सार्वजनिक डोमेन में सीक्वेंसिंग डेटा पर कोई विश्लेषण प्रस्तुत किया हो. जितनी बार उसने यह जानकारी दी, वह नमूना संग्रह के महीनों बाद आई.

दिसंबर 2021 में, जब ओमिक्रॉन वेरिएंट के कारण मामले बढ़े, तो भारत सभी पॉजिटिव नमूनों का छह प्रतिशत सीक्वेंसिंग करने में कामयाब रहा. उस समय तक, सरकार ज्यादातर हवाई अड्डों पर पहुंचने वाले अंतरराष्ट्रीय यात्रियों से लिए गए नमूनों की सीक्वेंसिंग कर रही थी. जीनोमिक वैज्ञानिक ने हुए मुझे बताया कि हवाई अड्डे के आगमन पर ध्यान लगाना गुमराह करने वाला था. ओमिक्रॉन के प्रसार की खतरनाक गति के कारण स्थानीय समुदायों के नमूनों के परीक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए था. उस समय, हर दिन लगभग दस हजार नए मामलों के साथ कोविड-19 की तीसरी राष्ट्रीय लहर के चरम पर, केवल हवाई अड्डे के नमूनों की सीक्वेंसिंग करने की रणनीति ने भारत के लिए यह जानने का कोई तरीका नहीं छोड़ा कि पहले से ही स्थानीय स्तर पर वेरिएंट कितना फैल चुका है, खासकर जब ज्यादातर मामलों में संक्रमण के लक्षण नहीं नजर आए या बहुत ही मामूली रहे. दूरदर्शिता की कमी से जीनोमिक वैज्ञानिक निराश थे. "हम अपने प्रयासों को सिर्फ इसलिए नहीं छोड़ सकते कि मामले कम हो गए हैं और तभी अपनी कोशिश को तेज करें जब अगली लहर हम पर आ बरसे."

मामलों में वृद्धि के चलते सीक्वेंसिंग में तेजी लाने का पैटर्न 2021 में दूसरी लहर के दौरान हुआ और 2022 की शुरुआत में तीसरी लहर के दौरान यही दोहराया गया. आईएनएसएसीओजी ने जनवरी में अपनी सीक्वेंसिंग रणनीति का विस्तार किया जब दैनिक कोविड-19 मामलों की संख्या कुछ ही दिनों में दसियों हजारों से बढ़कर एक लाख से ज्यादा हो गई. इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के पूर्व निदेशक अनुराग अग्रवाल ने उस समय मुझे एक ईमेल में लिखा था कि, "सीक्वेंसिंग का ध्यान हवाई अड्डों और विदेशी यात्रियों से हट कर भारत में ओमिक्रॉन की निगरानी में लग गया है." अग्रवाल ने यह भी कहा कि बड़े महानगर पहले से ही "ओमिक्रॉन के चंगुल में" लग रहे थे और छोटे शहरों की जानकारी जल्द ही और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती.

जीनोमिक निगरानी महामारी के दौरान चरम पर होने के बजाय गिरावट के चरणों में ज्यादा फायदेमंद होती है यानी जब मामले सबसे कम होते हैं. "अगर आप मामले नीचे आने के चरण के दौरान बहुत सीक्वेंसिंग करते हैं तो आप जल्दी ही विभिन्न प्रकार की विविधताओं को पकड़ लेंगे," जीनोमिक वैज्ञानिक ने कहा. “जबकि चरम के दौरान, यहां तक कि जब आप बड़ी संख्या में नमूनों की सीक्वेंसिंग करते हैं, तो उनमें से अधिकांश वायरस के एक या दो प्रमुख रूप पाए जाएंगे क्योंकि ये प्रमुख रूप ही लहर के लिए जिम्मेदार होते हैं."

हालांकि, 2021 के दिसंबर में राष्ट्रीय सीक्वेंसिंग दर छह प्रतिशत तक पहुंच गई थी लेकिन जनवरी 2022 में यह घट कर केवल 0.3 प्रतिशत रह गई और जीआईएसएआईडी के आंकड़ों के अनुसार फरवरी 2022 में यह 0.9 प्रतिशत थी.

फरवरी 2022 में आईएनएसएसीओजी ने घोषणा की कि आईआईएसईआर पुणे अस्पताल में भर्ती मरीजों के नमूनों की जांच यह समझने के लिए करेगा कि क्या उनकी बीमारी ओमिक्रोन की खास उप-पंक्ति के चलते हुई या किसी अन्य कारण से हुई. मैंने उस समय कर्मोदिया से बात की और उन्होंने पुष्टि की कि पुणे में उनका संस्थान और अन्य लोग जीनोमिक सीक्वेंसिंग का विस्तार करने के लिए सहयोग कर रहे हैं ताकि नए म्यूटेशन और वेरिएंट को अस्पताल में भर्ती कोविड-19 रोगियों में नैदानिक प्रवृत्तियों से जोड़ा जा सके. आईएनएसएसीओजी अब इसे पूरे भारत में अस्पतालों के नेटवर्क में विस्तारित करने की दिशा में काम कर रहा है, जहां से प्रयोगशालाएं अस्पताल में भर्ती कोविड-19 रोगियों के नमूनों का आंकलन कर सकती हैं.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स के निदेशक और आईएनएसएसीओजी के संयुक्त समन्वयक सौमित्र दास ने कहा कि इस प्रयास का नेतृत्व जैव प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट द्वारा किया जा रहा है.

कॉन्सॉर्टियम के डेटा संग्रह के अपर्याप्त प्रयास इसकी सीक्वेंसिंग रणनीति में जटिलता की एक और परत जोड़ते हैं. चौधरी ने कहा कि जहां आईएनएसएसीओजी या जीआईएसएआईडी वेबसाइटों पर डेटा अपलोड करने में कुछ देरी समझ में आती है, वहीं भारत से डेटा में बैकलॉग ने जानकारी को अधिकतर अनुपयोगी बना दिया है. उदाहरण के लिए मार्च 2021 में एकत्र किए गए नमूनों का डेटा दिसंबर 2021 के अंत में अपलोड किया गया. यह महीने में सीक्वेंसिंग में अचानक हुई वृद्धि को भी समझा सकता है. "सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित बड़ी प्रयोगशालाओं में से एक ने 6 दिसंबर को एक बार में 6000 सीक्वेंस को अजीब तरह से अपलोड किया. यह पिछले छह महीनों में अलग-अलग दिनों में एकत्र किए गए नमूनों का डेटा था. छह महीने बाद डेटा लगभग किसी काम का नहीं होता है इसलिए हम निश्चित रूप से इससे बेहतर काम कर सकते हैं,” चौधरी ने जनवरी की शुरुआत में मुझसे बात करते हुए कहा था. जीआईएसएआईडी वेबसाइट के अनुसार, जब भारत में नमूना एकत्र किया जाता है और नमूना से डेटा सीक्वेंसिंग की जाती है, तो औसतन 63 दिनों का अंतराल होता है. इसकी तुलना में पड़ोसी देशों में, बांग्लादेश और पाकिस्तान में, क्रमशः 36 और 48 दिनों का औसत अंतराल है.

कर्मोदिया ने डेटा संग्रह में आने वाली कुछ चुनौतियों की ओर इशारा किया जो इन अंतरालों का कारण बनी. “हम सीक्वेंसिंग के पूरा होने के अगले तीन दिनों के दौरान जीआईएसएआईडी और आईएनएसएसीओजी दोनों को सीक्वेंसिंग डेटा देने का का प्रयास करते हैं. हालांकि, कई बार मेटाडेटा उपलब्ध नहीं होने के कारण इसमें देरी हो जाती है. “एक कारण यह हो सकता है कि उनके पास हवाई अड्डे से बड़ी संख्या में नमूने हैं, जिसमें कोई मेटाडेटा संलग्न नहीं है. मेटाडेटा यानी वह स्थान जहां से नमूना लिया गया था या जहां से यात्री ने यात्रा की थी. इन प्रयोगशालाओं को उस डेटा को इकट्ठा करने के लिए वापस जाना होगा क्योंकि आप कुछ बुनियादी मेटाडेटा संलग्न किए बिना इन पोर्टलों पर सीक्वेंसिंग डेटा नहीं भर सकते हैं.

चौधरी को जीआईएसएआईडी के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, भारत में दिसंबर 2021 में और जनवरी 2022 की शुरुआत में जिन नमूनों का सीक्वेंसिंग किया गया था, उनमें से अधिकांश ओमिक्रोन नमूने थे. “अगर आप जमा किए गए नमूनों की संख्या को देखे, तो प्रयोगशालाओं से प्रस्तुत संख्या बहुत कम है. इसलिए हम नहीं जानते कि क्या यह वेरिएंट की व्यापकता को दर्शाता है या लैब इन नमूनों को जमा करने के लिए जल्दबाजी कर रहे हैं क्योंकि हम सभी अब ओमिक्रोन को लेकर खासतौर पर चिंतित हैं.” चौधरी चिंतित थे कि केवल ओमिक्रोन नमूनों पर सीक्वेंसिंग और डेटा जमा करने में एक चयनात्मक पूर्वाग्रह भारत को उन अन्य वेरिएंटों की उपस्थिति के लिए अंधा कर देगा जो पहले से ही आबादी में फैल रहे होंगे.

जीनोमिक वैज्ञानिक राकेश मिश्रा जो सेल्यूलर और मॉलिक्यूलर बायोलॉजी केंद्र- पहली 10 आईएनएसएसीओजी प्रयोगशालाओं में से एक- के निदेशक बतौर 2021 के अप्रैल में सेवानिवृत्त हुए. उन्होंने मुझे दिसंबर के मध्य में बताया कि सरकार के लिए वास्तविक समय में सार्वजनिक डेटा प्रस्तुत करना आवश्यक था. “हमें उपायों को लागू करने के लिए डेटा का इंतजार नहीं करना चाहिए क्योंकि अब कार्रवाई का समय है. लेकिन डेटा महत्वपूर्ण है और भारत को वेरिएंट और इसकी नैदानिक विशेषताओं पर डेटा एकत्र करना शुरू करने की जरूरत है,” उन्होंने कहा था. "डेटा हमारी आंखे हैं और इनके बिना हम इस युद्ध में अंधे हो कर भाग ले रहे हैं."

दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने ओमिक्रोन के बारे में पहली बात यह देखी कि यह डेल्टा से भी अधिक फैलने वाला था. मिश्रा ने कहा, "अधिकांश नई लहरें अत्यधिक संक्रामक रूपों से संचालित होती हैं." एक संक्रामक लहर से निपटने के लिए सबसे बेहतर तैयारी तभी की जा सकती है अगर यह डेटा सार्वजनिक रूप से सुलभ पोर्टलों पर तुरंत साझा या अपलोड किया जाए. कॉन्सॉर्टियम के गठन के तुरंत बाद, आईएनएसएसीओजी डेटा पोर्टल 2021 की शुरुआत से ही बना हुआ है. लेकिन पोर्टल के माध्यम से साझा किया गया डेटा सीमित रहता है और रियल टाइम में अपडेट नहीं होता है. फरवरी 2022 से इस पोर्टल को अब तब अपडेट नहीं किया जा रहा है और आईएनएसएसीओजी डेटा को भारतीय जैविक डेटा केंद्र द्वारा संचालित एक वेबसाइट पर होस्ट किया गया है जो एक ऐसी वेबसाइट है जिसकी पहुंच रिस्ट्रिकटेड है और बहुत सीमित सार्वजनिक डेटा उपलब्ध है. पहले के आईएनएसएसीओजी पोर्टल में साप्ताहिक बुलेटिन थे. अंतिम नियमित बुलेटिन 10 जनवरी 2020 को साझा किया गया था, जिसके बाद तीन महीने तक कोई अपडेट नहीं था. अप्रैल के अंत में उस माह के तीन साप्ताहिक बुलेटिन एक साथ अपलोड किए गए.

महामारी से पहले भारत के जीनोमिक सीक्वेंसिंग प्रयास विशेष प्रयोगशालाओं तक सीमित थे और छिटपुट रूप से किए जाते थे. “टीबी एकमात्र रोग है जिसकी सीक्वेंसिंग के लिए एक राष्ट्रव्यापी प्रयास किया गया था. राष्ट्रीय स्तर पर कई नमूने एकत्र किए गए थे लेकिन देश में बहुत कम प्रयोगशालाएं थीं जो वास्तविक सीक्वेंसिंग प्रयास से जुड़ी थीं," आईजीआईबी के निदेशक अग्रवाल ने कहा. एनआईवी में यादव की प्रयोगशाला भारत में एकमात्र प्रयोगशाला थी जो सीक्वेंसिंग के लिए समर्पित प्रयोगशाला थी. यादव ने तीन सप्ताह के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में रोग नियंत्रण केंद्र में प्रशिक्षण लिया था, जहां उन्होंने अगली पीढ़ी के सीक्वेंसिंग या एनजीएस प्रौद्योगिकी-उन्नत सीक्वेंसिंग का उपयोग करना सीखा, जो वैज्ञानिकों को डीएनए या आरएनए के कई किस्में समानांतर रूप से सीक्वेंसिंग करने में सक्षम करता है. वह भारत वापस आईं, एनआईवी में वैज्ञानिकों की एक टीम इकट्ठी की और 2017 में एक प्रयोगशाला स्थापित की, जो उभरते हुए रोगजनकों पर शोध करने के लिए एनजीएस का उपयोग करती है. यह वही लैब है जहां उन्होंने भारत में पहले दो कोविड-19 नमूनों की जांच की थी. तब से देश ने सीक्वेंसिंग क्षमता में वृद्धि की है. अब लगभग चालीस प्रयोगशालाओं को आईएनएसएसीओजी में जोड़ा गया है और छिटपुट रूप से अपने पांच प्रतिशत लक्ष्य से ऊपर सीक्वेंसिंग नमूनों की संख्या में वृद्धि की है.

लेकिन इस बात की परवाह किए बिना कि भारत लगातार अपनी सीक्वेंसिंग क्षमता बढ़ाता है या आकांक्षात्मक पांच प्रतिशत लक्ष्य को पूरा करता है, आईएनएसएसीओजी को अपनी रणनीति को सुव्यवस्थित करना होगा और समय पर सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप के लिए इसे पूरे देश में समान रूप से लागू करना होगा. जिन वैज्ञानिकों से मैंने बात की, जो विभिन्न आईएनएसएसीओजी प्रयोगशालाओं में काम कर रहे हैं, उन्होंने मुझे उन अलग-अलग रणनीतियों के बारे में बताया जिनका का उन्होंने अनुक्रमण करते समय पालन किया, और यह भी दावा किया कि आईएनएसएसीओजी द्वारा अनिवार्य रणनीति बदलती रही. इसके अलावा, इस रणनीति के लिए नैदानिक जानकारी से जुड़े अच्छी गुणवत्ता वाले डेटा प्रदान करने की आवश्यकता है. इस डेटा को समय पर अपलोड और विश्लेषित करने की जरूरत है ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी और प्रशासक जानकारी का उपयोग कर सकें. यह सब इस बात पर भी निर्भर करता है कि क्या सरकार वैज्ञानिक समुदाय के साथ मिल कर काम करती है, उन्हें अपना काम करने के लिए संसाधन उपलब्ध कराती है और नए म्यूटेशन के बारे में चेतावनी दिए जाने पर तुरंत एक्शन लेती है.

वैज्ञानिक प्रयास के प्रदर्शन को मापने के दो तरीके हैं : पिछले प्रयासों की तुलना में इसकी प्रगति और इसके लक्ष्यों की तुलना में इसकी प्रगति. कांग ने कहा कि आईएनएसएसीओजी की गति संतोषजनक है. यहां तक कि प्रशंसनीय भी है, यह देखते हुए कि भारत ने इस पैमाने पर जीनोमिक अनुक्रमण पहले कभी नहीं किया था. "लेकिन स्पष्ट रूप से हमेशा सुधार की गुंजाइश होती है," उन्होंने कहा. कांग भारत में जीनोमिक सीक्वेंसिंग के भविष्य के लिए आशान्वित हैं. “अगर हम मजबूत सार्वजनिक-स्वास्थ्य निगरानी और डेटा संग्रह के लिए एक प्रणाली का निर्माण शुरू करते हैं, तो यह मूल्यवान होगा. इसका तब हमेशा महत्व होगा जब आपको कोई ऐसी बीमारी होगी जो दूर नहीं हो रही है. बात इतनी है कि पिछले डेढ़ साल में हमारे पास ऐसा डेटा उपलब्ध नहीं था इसलिए यह नहीं मान लेना चाहिए कि भविष्य में भी डेटा न होने से कुछ नहीं होगा.”