18 अगस्त 2021 को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कोविड-19 के संबंध में घोषणा की कि जिन लोगों ने फाइजर और मॉडर्ना का टीका लगवाया है उन्हें टीके की दूसरी खुराक के आठ महीने बाद तीसरी खुराक लेनी होगी. बाद में इन अंतराल को आठ महीनों से घटा कर पांच कर दिया गया. इजराइल भी अब जनता के लिए टीके की चौथी खुराक की तैयारी कर रहा है.
इस बीच भारत ने संभावित दीर्घकालिक चिंताओं पर पूरी तरह विचार किए बिना ही जल्दबाजी में एक डीएनए वैक्सीन को मंजूरी दे दी है. दुनिया भर के देशों की सरकारों ने तीसरे चरण के परीक्षणों की प्रभावकारिता के प्रारंभिक आंकड़ों के मद्देनजर कोविड-19 टीकों का उपयोग करने की अनुमति देने में जल्दबाजी दिखाई है क्योंकि टीके कितने समय तक कोविड से सुरक्षा प्रदान करेंगे इसका पता और इससे होने वाले गंभीर विपरीत प्रभाव दो साल बाद ही पता चलेंगे. भारत ने इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए और तीसरे चरण के डेटा के आधार के बिना ही टीके के उपयोग की अनुमति दी है. ऐसा करना अनावश्यक रूप से जोखिम भरा है. जबकि अमेरिकी खाद्य एवं औषधि विभाग द्वारा तीसरी खुराक की आवश्यकता का मूल्यांकन करने से पहले ही बूस्टर खुराक को लेकर बाइडेन का फैसले घबराहट में लिया गया दिखाई पड़ता है.
मूल रूप से यह निर्णय कोविड-19 के नए अत्यधिक संक्रामक डेल्टा के प्रसार को रोकने के लिए लिया गया था. यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की निदेशक रोशेल वालेंस्की ने एक प्रेस वार्ता में साफ शब्दों में कहा कि टीके द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा घट रही है. उन्होंने कहा कि इजराइल के आंकड़ों से पता चला है कि पहले चरण में टीका लगवाले वालों में बीमारी के गंभीर होने का खतरा बढ़ गया है. टीका लगवाने वाले लोगों में बीमारी की गंभीरता कुछ साल पहले डेंगू के टीके के साथ हुई घटना की याद दिलाती है.
2016 में फिलीपींस में सनोफी की डेंगवैक्सिया लोगों में डेंगू के खिलाफ एंटीबॉडी पैदा करने के लिए तैयार की गई थी. हालांकि जब इसे लगवाने वाले लोग अगले डेंगू के मौसम में जीवाणु के संपर्क में आए तो टीका न लगवाने वाले लोगों की तुलना में उन्हें अधिक गंभीर लक्षणों का सामना करना पड़ा. इस असफलता के कारण फिलीपींस में वैक्सीन निर्माताओं के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे. जीवाणु के खिलाफ काम करने वाले एंटीबॉडी विभिन्न प्रकार के होते हैं जो आमतौर पर सुरक्षा कवच का काम करते हैं.
अधिकांश एंटीबॉडी को आमतौर न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी कहा जाता है. लेकिन कुछेक फैसिलिटेटिंग एंटीबॉडी होते हैं जो विपरीत रूप से वायरस की मदद करते हुए रोगी की स्थिति को और अधिक गंभीर बनाते हैं. इस प्रकार के एंटीबॉडी, जिसे बाइनडिंग एंटीबॉडी कहा जाता है, और भी अधिक समस्याएं पैदा कर सकता है. बाइनडिगं एंटीबॉडी जीवाणु को खत्म नहीं कर सकते लेकिन वे प्रतिरक्षा तंत्र के "पैनिक बटन" को सक्रिय करते हैं. वे शरीर में साइटोकिन्स को बढ़ाते हैं, जो एक प्रकार का प्रोटीन होता है. वे प्रतिरक्षा तंत्र में कोशिकाओं की वृद्धि और गतिविधि करने में मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं. यदि न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी का स्तर गिर जाता है, जो समय के साथ होता रहता हैं, तब बाइनडिगं एंटीबॉडी ऐसे मध्यस्थों के अनियमित रूप बढ़ने और साइटोकिन के उथल-पुथल का कारण बन सकते हैं जो शरीर पर हावी हो जाते हैं जिसके कारण मौत भी हो सकती है. अधिक गंभीर बीमारी पैदा करने वाले ऐसी एंटीबॉडी प्रक्रिया को एंटीबॉडी पर निर्भर वृद्धि या एडीई कहा जाता है. इससे सामूहिक टीकाकरण की प्रकिया में बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है. सीडीसी द्वारा सुरक्षात्मक न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी के घटने के उल्लेख और टीका लगवाने वालों में बीमारी की बढ़ती गंभीरता से पता चलता है कि एंटीबॉडी पर निर्भर वृद्धि की प्रक्रिया केविड-19 के संक्रमण के मामले में भी समान रूप से काम कर रही है.
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