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ओडिशा के ओडागांव में रहने वाले 46 वर्षीय मैला हटाने वाले राकेश एक दशक से अधिक समय से सेप्टिक टैंक साफ कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "दलित होने के नाते मेरे लिए ब्राह्मणों के घरों में जाकर अपना काम करना मुश्किल हो जाता है. यह काम और भी मुश्किल हो जाता है जब सेप्टिक टैंक को तीन साल से अधिक समय तक साफ नहीं किया गया होता, क्योंकि रिसाव के कारण घर बदबूदार और गंदा हो जाता है." राकेश के बताया कि उन्हें अक्सर पिछले दरवाजे से घरों में आने के लिए कहा जाता है, क्योंकि लोगों को डर होता है कि वह जगह को "अशुद्ध" कर देंगे. लोगों की जातिवादी मान्यताओं के कारण राकेश को भी गमबूटों के बिना घरों में जाना पड़ता है, जो उनके काम को और अधिक मुश्किल बना देता है, क्योंकि सेप्टिक टैंक खाली करते समय फिसलने की संभावना होती है.
भारत में लगभग 50 लाख सफ़ाई कर्मचारी हैं. 2018 से अब तक सीवर और सेप्टिक टैंक की सफ़ाई करते समय 400 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. ओडिशा और महाराष्ट्र के विशेषज्ञों और स्वच्छता कार्यकर्ताओं ने मुझे ज़मीनी स्तर पर सामना की जाने वाली चुनौतियों और स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में बताया. उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, जाति और लिंग के आधार पर बड़े पैमाने पर भेदभाव के कारण उनका संघर्ष और बढ़ गया है. सफ़ाई कर्मचारी एक्जिमा, स्केली डर्मेटाइटिस और तपेदिक सहित विभिन्न जलजनित और वायुजनित रोग, त्वचा और सांस लेने से संबंधित परेशानियों से भी गुज़र रहे हैं. अक्सर, संसाधनों की कमी के कारण इनमें से कई बिमारियों का निदान नहीं हो पाता. उनमें मस्कुलोस्केलेटल विकारों और मानसिक-स्वास्थ्य स्थितियों का खतरा बढ़ सकता है. सफ़ाई कर्मचारियों की औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 40 वर्ष होने का अनुमान है जो राष्ट्रीय औसत 67 से काफी कम है.
जिन श्रमिकों से मैंने बात की, उन्होंने नियमित दर्द की शिकायत की. ओडिशा के नयागढ़ में कीचड़ हटाने वाले टीटू नाइक ने मुझे बताया, "सेप्टिक टैंकों को साफ करने के लिए हम जिस पाइप का उपयोग करते हैं उसका वजन कभी-कभी असहनीय होता है. उसका वजन एक क्विंटल तक होता है और हमें अपना काम पूरा करने के लिए इसे पूरे दिन अपने साथ रखना पड़ता है और तीन या चार चक्कर लगाने पड़ते हैं. हमारे कंधों पर बहुत अधिक बोझ हो जाता है और इससे होने वाला दर्द असहनीय हो सकता है. कभी-कभी, दर्द इतना गंभीर होता है कि हमें ठीक होने के लिए दो या तीन दिनों के लिए काम से छुट्टी लेनी पड़ती है और उस दौरान हमें कोई वेतन नहीं मिलता.” कई लोगों ने मुझसे कहा कि अगर वे बीमार भी पड़ जाएं तो भी वे छुट्टी नहीं ले सकते. नगर निगम के संविदा कर्मियों के लिए स्थिति अधिक गंभीर है, जो स्थायी कर्मचारी के वेतन के आधे से भी कम कमाते हैं और उन्हें कोई स्वास्थ्य लाभ नहीं मिलता है.
मुंबई में सामुदायिक अपशिष्ट प्रबंधन सुविधा में काम करने वाली 42 वर्षीय पुष्पा रानी ने कहा कि उन्हें नियमित रूप से शरीर में दर्द होता है क्योंकि उन्हें हर दिन भारी कूड़ादान उठाना पड़ता है. इसके चलते उन्हें डॉक्टर की सलाह के बिना दवाएं खरीदनी पड़ती हैं. उन्होंने कहा, "दवाओं की खुराक भी पहले से बढ़ गई है." सफ़ाई कर्मचारियों को अक्सर घरेलू उपचार ही करना पड़ता है या डॉक्टरों से अनियमित रूप से परामर्श करना पड़ता है, जिसके कारण उपचार का कोर्स अधूरा रहता है और डॉक्टर बार-बार बदलते रहते हैं.
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