2 अक्टूबर को भारत और दक्षिण अफ्रीका ने विश्व व्यापार संगठन की देशों के बीच मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने के लिए गठित बहुपक्षीय संस्था बौद्धिक संपदा अधिकार परिषद के व्यापार संबंधी विभाग को एक संयुक्त पत्र भेजा. संदेश में विभाग को कोविड-19 को रोकने, नियंत्रित करने और उसके इलाज में प्रौद्योगिकी के लिए टीआरआईपीएस या ट्रिप्स समझौते के प्रमुख बौद्धिक संपदा प्रावधानों में छूट देने के लिए कहा. यह प्रस्ताव कोरोनोवायरस को रोकने के लिए दवाओं और टीकों को विकसित करने की वैश्विक दौड़ के बीच रखा गया था.
संदेश में कहा गया है, “डब्ल्यूटीओ के सदस्यों के लिए साथ मिलकर काम करना आवश्यक है ताकि बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे पेटेंट, औद्योगिक डिजाइन, कॉपीराइट और अघोषित सूचना का संरक्षण, टीके और दवाइयों सहित सस्ती चिकित्सा उत्पादों तक समय पर पहुंच में अवरोध पैदा न हो और कोविड-19 से निपटने के लिए आवश्यक चिकित्सा उत्पादों के अनुसंधान, विकास, विनिर्माण और आपूर्ति को बढ़ाया जा सके."
कोविड-19 से संबंधित टीकों, निदान और दवाओं तक पहुंच ही ट्रिप्स समझौते के विवादास्पद प्रावधान हैं. विश्व व्यापार संगठन मोटे तौर पर इस धारणा पर काम करता है कि मुक्त व्यापार राष्ट्रों के धन को बढ़ाने में मदद करता है और इसके माध्यम से गरीबी को भी कम किया जा सकता है. बौद्धिक संपदा अधिकारों और आईपीआर में पेटेंट, ट्रेडमार्क और कॉपीराइट ट्रिप्स समझौते के तहत आते हैं. ये प्रावधान "इनोवेटर" कंपनियों को एकाधिकार प्रदान करते हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा को कम किया जा सकता है. इस तरह के एकाधिकार स्वास्थ्य से संबंधित उत्पादों जैसे कि दवाइयों, डायग्नोस्टिक्स, मेडिकल वाल्व और यहां तक कि मास्क की पहुंच और सामर्थ्य में बाजार में सामान्य उत्पादों के प्रवेश से पहले बाधा उत्पन्न करते हैं.
उदाहरण के लिए 2013 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए सोफोसबुविर नामक गिलियड साइंसेज की एक दवा को मंजूरी दी. कंपनी को अमेरिका सहित कई देशों में पेटेंट मिला, जिससे उसे 2024 तक बाजार का एकाधिकार मिल गया. नतीजतन सोफोसबुवीर की लागत अमेरिका में 84000 डॉलर है. वही यह दवाई मिस्र में एक सामान्य दवाई के रूप में केवल 1900 डॉलर में उपलब्ध है, जहां कोई पेटेंट नहीं है. अंवेक्षकों को पेटेंट देने का प्रत्यक्ष कारण अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना और नए रास्ते खोजने वाले अंवेक्षकों को पुरस्कृत करना है. हालांकि पेटेंट का उपयोग छुपे तौर पर व्यवसायिक प्रोत्साहन के रूप में अधिक किया गया है, जिसके चलते रोगी कल्याण की भावना कम हुई है. इसके अलावा सबसे बुनियादी आणविक अनुसंधान दवा कंपनियों द्वारा नहीं बल्कि करदाताओं के पैसे से वित्त पोषित सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में किया जाता है. सोफोसबुवीर को विकसित करने के लिए अमेरिका में सरकार द्वारा संचालित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के माध्यम से गिलियड साइंसेज को फंडिंग और पेटेंट मिला था.
कोविड-19 महामारी से पहले भी दुनिया की 50 प्रतिशत आबादी की पहुंच स्वास्थ्य सेवाओं तक नहीं थी. विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में बौद्धिक संपदा अधिकार और ट्रिप्स के चलते आने वाली बाधाओं को 2001 के दोहा मंत्रिस्तरीय शिखर सम्मेलन में स्वीकार किया था. वे ट्रिप्स प्रावधानों के सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने जैसी व्याख्या करने में सहमत हुए. शिखर सम्मेलन से निकल कर आई दोहा घोषणा ने अनिवार्य लाइसेंसिंग जैसे प्रावधानों के उपयोग की अनुमति दी, जिससे सरकारों को पेटेंट एकाधिकार को निलंबित करने या रद्द करने की अनुमति मिली और वर्तमान महामारी जैसी आपात स्थितियों के दौरान सामान्य उत्पादन की अनुमति दी गई.
भारत और दक्षिण अफ्रीका का हाल ही में ट्रिप्स परिषद के लिए संदेश दोहा घोषणा को दोहराता नजर आता है. इसे विश्व व्यापार संगठन के विकसित और विकासशील देशों का समर्थन मिला जिनमें 43 सदस्यीय अफ्रीकी समूह की ओर से तंजानिया ने और मिस्र, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, होंडुरास ने समर्थन दिया और साथ ही 36 कम विकसित देशों के समूह की ओर से चाड ने और श्रीलंका, पाकिस्तान, वेनेजुएला, नेपाल, निकारागुआ, अर्जेंटीना, ट्यूनीशिया, माली, मॉरीशस और मोजाम्बिक ने समर्थन दिया.
डब्ल्यूएचओ ने 11 मार्च 2020 को कोविड-19 को महामारी घोषित किया. 1 अक्टूबर तक पूरे विश्व भर में 330 मिलियन से अधिक पुष्टि मामले थे और 10 लाख से अधिक मौतें हुई थीं. मौजूदा दवाएं जिन्हें कोविड-19 के उपचार के लिए भी प्रयोग किया जा रहा है जैसे कि रेमडेसिवीर, हेपरिन, डेक्सामेथासोन और फेविपिरवीर सीमित तौर पर असर करती हैं. महामारी के दस महीने बाद तक कोविड-19 की कोई विशिष्ट दवा या टिका विकसित नहीं हुआ है.
रोग के प्रकोप के शुरुआती वक्त में वैश्विक एकजुटता के प्रयास दिखाई दिए थे. जिस देश में महामारी की उत्पत्ति हुई थी यानी चीन ने कोरोनोवायरस के जीनोम अनुक्रम को डब्ल्यूएचओ के साथ जनवरी 2020 की शुरुआत में साझा किया. महामारी से लड़ने के लिए देशों ने डब्ल्यूएचओ के कोष में योगदान दिया. हालांकि, जैसे-जैसे साल आगे बढ़ रहा है कोविड-19 प्रौद्योगिकी के विकास के लिए मुनाफाखोरी के दृष्टिकोण के साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के साथ व्यापार की सामान्य अवस्था में आती जा रही है, चाहे वह वैक्सीन, निदान, उपचार के लिए दवाइयां, व्यक्तिगत उपकरण और मशीनों के लिए संबंधित उपकरण हो.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जैव चिकित्सा प्रौद्योगिकी के लिए उचित और न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करने के लिए कई उपकरण तैनात किए हैं जो बीमारी का मुकाबला कर सकते हैं. मई 2020 में डब्ल्यूएचओ की निर्णय लेने वाली संस्था, विश्व स्वास्थ्य सभा ने "कोविड-19 के उपचार तक समान रूप से पहुंच" जिसे संक्षिप्त में ईएसीटी के नाम से जाना जाता है, के लिए 'अन्यायपूर्ण बाधाओं का निवारण' नाम से संकल्प पारित किया. डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 प्रौद्योगिकी एक्सेस पूल या सी-टैप पहल की स्थापना की जिससे कोविड-19 से संबंधित टीके, दवाओं, वैज्ञानिक जानकारियों और अन्य प्रौद्योगिकियों को तेजी से एक खुले वातावरण में एकत्र किया जा सके. हालांकि, बड़ी दवा कंपनियों ने इस कदम का उपहास बनाया है. फाइजर के मुख्य कार्यकारी अल्बर्ट बोरला ने कदम को "बकवास" और "खतरनाक" कहा.
दुनिया में लगभग आठ अरब की आबादी के लिए टीकों या दवाओं की आवश्यकता होगी. इतनी बड़ी संख्या में दवाई तुरंत नहीं बनाई जा सकती. कोविड-19 संसाधनों को लेकर असमान पहुंच को देखते हुए डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 स्वास्थ्य उत्पादों को लेकर सभी तक उचित, नैतिक और न्यायसंगत पहुंच के लिए एक आवंटन ढांचा तैयार किया. इस ढांचे में एक 'प्राथमिकता समूह’ बनाया गया है जिसमें वैश्विक आबादी का लगभग बीस प्रतिशत हिस्सा आता है. इसमें फ्रंटलाइन कार्यकर्ता जैसे डॉक्टर, नर्स, सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, स्वच्छता और अन्य आवश्यक कार्यकर्ता, साथ ही बुजुर्ग और सह-रुग्णता वाले लोग शामिल थे. आबादी के इस प्राथमिकता समूह को लगभग जो अरब टीके की आवश्यकता होगी. वैश्विक आबादी को बचाने के लिए इसके बाद भी शेष छह अरब वैक्सीन के निर्माण, खरीद और समान रूप से वितरित करने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता पड़ेगी. यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि कितने लोगों को एक से अधिक बार टीके की आवश्यकता होगी.
कोविड-19 टीकों के विकास में एक अन्य वैश्विक संस्था कोविड-19 टेक्नोलॉजीज एक्सीलरेटर या एक्ट-ए मदद कर रही हैं. एक्ट-ए डब्ल्यूएचओ, वर्ल्ड बैंक और एक निजी चैरिटेबुल संस्था बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, गेवी जो वैकसीन केंद्रित वैश्विक गठबंधन है एवं यूनिटएड और वेलकम जैसे वैश्विक स्वास्थ्य संगठन एक्ट-ए के गटक हैं. एक्ट-ए के कार्यों में से एक इसका वैक्सीन तंत्र है जिसे कोवैक्स कहा जाता है, जो कोविड-19 टीकों के लिए एक खरीद प्रणाली है. इसने कुछ ऐसे पात्र देशों की पहचान की है, जहां भारी रियायती कीमतों पर टीके वितरित किए जाएंगे.
कोवैक्स केवल प्राथमिक आबादी, जो दुनिया का मात्र 20 फीसदी है, तक टीके की पहुंच को सुनिश्चित करता है. देशों को कंपनी द्वारा तय कीमतों पर इस लक्षित आबादी के बाहर के लोगों के लिए टीके खरीदने को लेकर निर्माताओं के साथ द्विपक्षीय समझौतों पर बातचीत करनी होगी. बीएमजीएफ जैसे संगठनों ने अपनी वित्तीय ताकत के बल पर कोवैक्स साझेदारी में डब्ल्यूएचओ को हाशिए पर पहुंचा दिया. यह अंततः वैक्सीन तक असमान पहुंच की चिंताओं को जन्म देता है. दुनिया भर के सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने महामारी के दौरान बीएमजीएफ की जवाबदेही पर सवाल उठाए हैं. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा निजी दवा कंपनी आस्ट्राजेनिका को अपनी वैक्सीन तकनीक सौंपने में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की भूमिका रही है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दोहराया है कि ईएसीटी वैश्विक प्राथमिकता है. अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ ऑक्सफैम ने सभी लोगों के लिए समान रूप से टीके की बात की है जिसे सभी देशों में सभी लोगों के लिए मुफ्त उपलब्ध होना चाहिए. हालांकि, कई उच्च आय वाले यानी एलएमआईसी देशों ने वैक्सीन की आपूर्ति के लिए कोवैक्स से परे काम करने की आवश्यकता की आशंका के बाद टीका निर्माताओं के साथ द्विपक्षीय अग्रिम खरीद समझौते या एपीएस किया है.
इसने कोविड-19 के दौर में टीका राष्ट्रवाद को जन्म दिया है. संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन ने एपीए समझौता किया है जिसके तहत दोनों देशों ने सात वैक्सीन निर्माताओं के साथ क्रमशः 10 बिलियन डॉलर में 800 मिलियन डोज और 340 मिलियन डोज का सौदा किया है. अधिक क्षमतावान देश और कोविड-19 उपकरणों पर काम करने वाली कंपनियां वैश्विक एकजुटता से दूर जा रही हैं. एलएमआईसी और एलडीसी (कम आय वाले देश) के बीच कोविड-19 उपचार से संबंधित उपकरणों की पहुंच में भारी असमानता का खतरा है.
उच्च आय वाले देश अपनी अधिकांश आबादी के लिए निर्धारित जरूरतमंद आबादी से अधिक टीके खरीद सकेंगे. हालांकि, वित्तीय संसाधनों की कमी झेल रहे एलएमआईसी और एलडीसीको कम समय के भीतर एपीएस में प्रवेश करके इतने सारे वैक्सीन नहीं प्राप्त सकते हैं. उदाहरण के लिए, 2008 के दौरान एच1 एन1 संकट के समय फ्रांस जैसे देशों ने बाजार में एच1 एन1 के अधिकांश टीके खरीद लिए थे. इस दौरान एलडीसी को टीके के लिए इंतजार करना पड़ा. इस बार भी एलडीसी को कोविड-19 तकनीकों के आईपीआर के लिए इंतजार करना पड़ सकता है ताकि दवाई को लेकर इस प्रतियोगिता के शांत होने पर वे वैक्सीन की कीमतों में कमी ला सकें.
आश्चर्य की बात नहीं कि फार्मास्युटिकल समूह ने अपने आईपीआर और लाभ मार्जिन को सुरक्षित रखने के लिए कोवैक्स में उत्साह से भाग लिया है. वैश्विक दवा उद्योग भी अलग मूल्य निर्धारण पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जिसके कारण क्रॉस सब्सिडी के रूप में एचआईसी को अधिक और एलएमआईसी दवाओं के लिए कम भुगतान करना होगा.
वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली सभी तक टीके की न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एलएमआईसी में कोविड-19 दवाओं के लिए दवा कंपनियों के स्वैच्छिक इरादे पर भरोसा नहीं कर सकती है. इस वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान भी, ड्रग रेमडेसिवीर के लिए पेटेंट रखने वाले गिलियड साइंसेज ने जेनेरिक कंपनियों के साथ अनुचित स्वैच्छिक अनुबंध कर लिया. इसने लैटिन अमेरिकी देशों का बहिष्कार किया और उन देशों की संख्या सीमित कर दी जहां आपूर्ति की जा सकता थी.
ट्रिप्स काउंसिल से भारत और दक्षिण अफ्रीका का संवाद कोविड-19 से जुड़ी तकनीकी और वैज्ञानिक जानकारी तक सभी की पहुंच का रास्ता खोल सकता है. यह ऐसे कदम उठा सकता है इससे देशों को कॉपीराइट पर बौद्धिक संपदा संरक्षण, औद्योगिक डिजाइन, पेटेंट और अज्ञात जानकारी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के उल्लंघन के प्रतिबंधों के डर के बिना अनुमति मिल जाएगी. जो देशों को प्रतिबंधों के डर के बिना कॉपीराइट पर बौद्धिक संपदा संरक्षण को समाप्त करने की अनुमति देगा. यह एक प्रकार से मुनाफे से ऊपर लोगों को रखने और स्वास्थ्य से जुड़े इस आपातकाल में वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता को लेकर एकजुटता और सहयोग का आह्वान है. फार्मास्यूटिकल कारपोरेशनों के स्वैच्छिक तंत्र पर पूरी तरह से भरोसा किए बिना एलडीसी और एलएमआईसी को छूट के लिए इस संवाद का समर्थन करने की जरूरत है ताकि वे यह सुनिश्चित कर सकें कि वे दवा निगमों द्वारा डर या नियंत्रण के बिना कोविड-19 से संबंधित तकनीक का उपयोग किया जाए और लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा हो.
यह भारत और ब्राजील जैसे उत्पादन क्षमता वाले देशों को भी टीकों और दवाओं के विनिर्माण और वितरण में तेजी लाने में मदद करता है. यह संभावित रूप से अन्य एलएमआईसी और एलडीसी को आपूर्ति करने में मदद कर सकता है.
डब्ल्यूएचओ और संयुक्त राष्ट्र के एचआईवी और ऐड्स के संयुक्त कार्यक्रम, जिसे यूएनएड्स के रूप में जाना जाता है, ने माफी प्रस्ताव के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया है. ट्रिप्स परिषद को 15 और 16 अक्टूबर की अपनी बैठकों में सदस्य राज्यों से अलग-अलग सुझाव मिले. दो देशों ने इस कदम का पूरी तरह से समर्थन किया, कुछ ने प्रस्ताव पर आगे की बातचीत के लिए सामान्य समर्थन दिया और नौ सदस्यों ने, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड, जापान, नॉर्वे, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और यूरोपीय संघ शामिल हैं, ने पूरी तरह से इस कदम का विरोध किया.
यदि अन्य डब्ल्यूटीओ सदस्य देश प्रस्ताव का समर्थन करते हैं तो वे ईकेसीटी के सिद्धांतों को प्रभावित करेंगे. वे तकनीकी और वैज्ञानिक जानकारी की बाधाओं को दूर करके महामारी से लड़ने के काम को गति देने में भी मदद करेंगे. इस वर्ष के अंतिम दो महीने महत्वपूर्ण होंगे क्योंकि डब्ल्यूटीओ के नियमों में सदस्य देशों को छूट के लिए आवेदन प्राप्त करने के 90 दिनों के भीतर इस प्रस्ताव पर विचार करने की आवश्यकता है. छूट का प्रस्ताव 31 दिसंबर को समाप्त होगा.
देशों को एकाधिकार को तोड़ने, सभी लोगों तक टीके की पहुंच को बढ़ाने और कोविड से संबंधित उपकरणों तक सभी की पहुंच को आसान बनाने के लिए सक्रिय होने की आवश्यकता है. यह स्वेच्छा से काम करने वाली और अच्छाई प्रदर्शित करने वाली दवा कंपनियों से अपील की तुलना में एक बेहतर रणनीति है. छूट का यह प्रस्ताव महामारी स्थितियों के लिए विश्व व्यापार संगठन के भीतर प्रधानता के निर्माण की दिशा में एक कदम है और सदस्य राष्ट्रों के लिए संकट के इस समय में कोविड-19 उपकरणों को लेकर बौद्धिक संपदा सुरक्षा से बचने वाली नीतियों को विकसित करने के लिए कानूनी स्पष्टता प्रदान करता है.
अनुवाद : अंकिता