गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) के लोनी नगर निगम की एक कॉलोनी में रह रहे 1500 से ज्यादा लोग देशव्यापी लॉकडाउन के बाद राज्य और केंद्र सरकार की भोजन और आर्थिक सहायता के इंतजार में हैं. इस अनधिकृत कॉलोनी में रहने वाले अधिकांश लोग मुस्लिम दिहाड़ी मजदूर हैं. लॉकडाउन में कमाई बंद हो गई है और जो थोड़ा-बहुत स्टॉक किया था, वह अब खत्म हो चुका है. 3 मई तक गुजारा चलाने के लिए उनके पास अब न खाना बचा है और न ही पैसा.
17 अप्रैल को उत्तर प्रदेश सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीजीएस) को सार्वभौमिक बनाने की घोषणा की. राज्य के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट (आदित्यनाथ) ने घोषणा की है कि "राज्य में कोई भी भूखा नहीं रहना चाहिए."
लोनी की इस कॉलोनी के लोगों के अनुसार, राशन की स्थानीय दुकान के कर्मचारी उन्हें वापस भेज दे रहे हैं क्योंकि किसी के पास राशन कार्ड नहीं हैं. जिन लोगों के पास राशन कार्ड हैं उन्हें भी वापस भेज दिया गया क्योंकि उनके कार्ड लोनी से जारी नहीं हैं बल्कि उत्तर प्रदेश और दिल्ली के अन्य हिस्सों में बने हैं.
"हम तीन दिन पहले अनाज लेने राशन की दुकान पर गए थे लेकिन उन्होंने हमें बताया कि हम किसी भी चीज के हकदार नहीं हैं," मोहम्मद जाफरुद्दीन ने मुझे फोन पर बताया. जाफरुद्दीन लोनी नगर निगम के वार्ड नंबर 55 में स्थित इसी कॉलोनी के एक दिहाड़ी मजदूर हैं. “मेरा राशन कार्ड नोएडा से जारी हुआ है लेकिन मैं अपने परिवार के साथ यहां रह रहा हूं. मेरे पास मेरा आधार कार्ड भी है. हम अपना राशन लेने के लिए नोएडा कैसे जा सकते हैं? यहां के राशन दुकान के कर्मचारी हमें कुछ भी देने से मना कर रहे हैं.”
उत्तर प्रदेश सरकार की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, “पीडीएस का सार्वभौमिकरण यह सुनिश्चित करेगा कि प्रत्येक जरूरतमंद व्यक्ति मुफ्त राशन का हकदार है भले ही उसके पास राशन कार्ड या आधार कार्ड न हो. इस तंत्र को कोविड-19 के चलते उत्पन्न विशेष परिस्थितियों में खानाबदोश सहित शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के सभी गरीबों को राहत देने के लिए विकसित किया गया है.” लेकिन 21 अप्रैल की प्रेस विज्ञप्ति में जाहिर सरकार की प्रतिबद्धता और जमीनी हकीकत के बीच का फर्क साफ है. 21 अप्रैल को परेशान लोग सड़कों में निकल आए.
वहां रहने वाली जरीना ने बताया, "हम बाहर इसलिए आए हैं क्योंकि हमें समझ में नहीं आ रहा कि और क्या करें. हमें पता नहीं है कि किससे बात करनी है. अधिकारियों को तुरंत हमें अनाज और खाना पकाने का ईंधन उपलब्ध कराना चाहिए.” दो दिन बाद लोगों ने बताया कि हालत और खराब हो गई है और कोई भी उनकी मदद के लिए नहीं पहुंचा है.
35 वर्षीय शाहजहां ने मुझे बताया, "अब तक कोई सरकारी सहायता हमारे पास नहीं पहुंची है. मेरा राशन कार्ड मुजफ्फरनगर का है लेकिन मैं पिछले 7 सालों से यहां रह रही हूं. मैं तीन बार अपने आधार कार्ड के साथ राशन की दुकान पर गई लेकिन राशन की दुकान के कर्मचारियों ने मुझे बताया कि वे मुझे कुछ नहीं दे सकते. उन्होंने कहा कि मैं घर चली जाऊं. मेरे पति एक दिहाड़ी मजदूर हैं और हमें छह बच्चों को खाना खिलाना पड़ता है.”
शमा परवीन ने बताया, "सरकार हमें अपने घरों के अंदर रहने के लिए कह रही है लेकिन जब हमारे बच्चे भूख से रो रहे हैं तो हम क्या करेंगे?" उन्होंने कहा, "हम नहीं जानते कि अब हमें किसके पास जाना है." परवीन के अनुसार, उनमें से कुछ का गैस सिलेंडर खत्म हो गया है और अब वे खाना पकाने के लिए लकड़ी तक खरीद नहीं पा रहीं हैं.
एक बुजुर्ग सगीना ने बताया, "लॉकडाउन हुए लगभग एक महीना हो गया है लेकिन इस कॉलोनी में 7 नंबर गली में रहने वाले लोगों को सरकार से कोई मदद नहीं मिली है. मेरे पास आधार कार्ड है लेकिन राशन की दुकान ने हमें राशन देने से मना कर दिया.'' कॉलोनी की अनधिकृत स्थिति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ''यह कच्ची बस्ती है इसलिए हममें से किसी के यहां राशन कार्ड नहीं है. मेरे पति दिहाड़ी मजदूर हैं. अब कोई नौकरी नहीं है. हम बहुत परेशानी में हैं.”
उन्होंने कहा कि निवासियों ने अब तक आपस में अनाज बांटकर काम चलाया है लेकिन यह कोई स्थायी समाधान नहीं है. "हम इस तरह कब तक रह सकते हैं?" उन्होंने पूछा. "मैं अपने बच्चों को सिर्फ चावल का दलिया खिला रही हूं." सगीना ने कहा कि वह मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं लेकिन उनके पास दवा खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं.
अधिकांश निवासी निराशा और परेशान हैं. 45 साल के दिहाड़ी मजदूर मोहम्मद शाहीर अपने छह लोगों के परिवार में एकमात्र कमाने वाले हैं. उन्होंने मुझे बताया, "हमारी गली में 200 से अधिक लोग रहते हैं. यहां सभी के पास आधार कार्ड है लेकिन हमें सरकार से कुछ नहीं मिला है. हम लॉकडाउन के सरकार के फैसले का समर्थन करते हैं लेकिन जब हम काम करने और जिंदगी जीने में सक्षम नहीं हैं तो हमें क्या करना चाहिए? वे आज राशन बांट कर रहे थे मैं लेने गया लेकिन उन्होंने हमें राशन नहीं दिया."
वार्ड नंबर 55 के सदस्य नासिर सैफी के अनुसार उन्होंने कॉलोनी के लोगों को अपने पैसों से सामान दिया. उन्होंने बताया, ''जिन लोगों के पास उस दिन बनाने के लिए कुछ नहीं था, उनके लिए मैंने नजदीक की दुकान से अनाज की व्यवस्था की. अभी मैं बस यही करने की स्थिति में हूं.''
सैफी ने बताया कि वह मदद के लिए लोनी के क्षेत्रीय खाद्य आपूर्ति अधिकारी नसीम अख्तर के पास गए थे जिन्होंने उन्हें बताया था कि अनाज केवल राशन कार्ड धारकों के लिए उपलब्ध है. सैफी के अनुसार, अख्तर ने कहा था कि राज्य सरकार 1 मई से सभी व्यक्तियों को अस्थायी राशन कार्ड जारी करेगी जिसके बाद वे भी अनाज की खरीद कर सकेंगे. सैफी के पास इस बात का कोई हल नहीं था कि कॉलोनी के निवासियों के लिए तब तक क्या प्रबंध किया जाए. मैंने अख्तर को कई कॉल और मैसेज किए लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया.
सैफी ने मुझे बताया, "कुछ भी नहीं हो रहा है. राशन कार्ड के बिना लोग मुसीबत में हैं. राशन कार्ड वालों को केवल चावल या गेहूं मिल रहा है." आदित्यनाथ की पीडीएस वाली घोषणा के बारे में सैफी ने कहा, “यह अखबारों में तो आई थी लेकिन राशन की दुकान के कर्मचारी कह रहे हैं कि उन्हें बिना राशन कार्ड वाले लोगों को राशन देने का कोई दिशानिर्देश नहीं मिला है. आधार कार्ड वाले या गरीब लोगों के लिए भी उन्हें कोई निर्देश नहीं मिला है. लॉकडाउन के बाद से यहां के लोगों को सरकार से कोई सहायता नहीं मिली है.”
मैंने गाजियाबाद के नगर आयुक्त दिनेश चंद्रा से भी गाजियाबाद में भोजन वितरण की स्थिति के बारे में बात की. चंद्रा ने कहा कि गाजियाबाद में कवी नगर और वसुंधरा मोहल्लों में दो "सामुदायिक रसोई हैं जहां सुबह और शाम 6000 भोजन पैकेट वितरित किए जाते हैं." ये रसोइयां लोनी की कॉलोनी से 20 किलोमीटर की दूरी पर हैं. लॉकडाउन के दौरान यहां तक पहुंच पाना बहुत कठिन है. चंद्रा ने कहा कि ये रसोइयां 26 मार्च को पूरी तरह चालू हो गई थीं.
"राज्य सरकार और नगर निगम के अधिकारियों ने उन क्षेत्रों की पहचान की है जहां भोजन की आवश्यकता है और वे वहां सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए इसे वितरित कर रहे हैं," उन्होंने बताया. 21 अप्रैल को उत्तर प्रदेश सरकार के आधिकारिक ट्विटर हैंडल में लिखा था कि राज्य ने 754 सरकार-संचालित और 1321 निजी रूप से संचालित सामुदायिक रसोईघर खोले हैं जिनमें 1356987 लोगों को भोजन के पैकेट वितरित किए गए. सैफी ने मुझे बताया कि उन्होंने अपने वार्ड में लगभग 300-500 खाद्य पैकेट वितरित किए है. "लेकिन जब कम से कम 25000 लोग हैं और उनमें से ज्यादातर अनधिकृत कॉलोनियों में रहते हैं तो यह पर्याप्त कैसे हो सकता है?" उन्होंने पूछा. “वार्ड की 30 प्रतिशत आबादी गरीब है.”
लोनी नगर निगम के दोनों कार्यकारी अधिकारियों चंद्रा और स्मिता गुप्ता से जब मैंने राशन की अनुपलब्धता के बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे जिला मजिस्ट्रेट और खाद्य आपूर्ति अधिकारियों से बात करने को कहा. लेकिन गाजियाबाद के जिला मजिस्ट्रेट अजय शंकर पांडे और लोनी के उप-विभागीय मजिस्ट्रेट खालिद अंजिम ने कई कॉल और संदेश किए जाने के बावजूद कोई जवाब नहीं दिया.
18 अप्रैल को एक अन्य प्रेस विज्ञप्ति में राज्य सरकार ने घोषणा की कि उसने " केंद्र सरकार की विश्वकर्मा श्रम योजना के तहत मजदूरों, दैनिक वेतनभोगियों, निराश्रित और पारंपरिक कारीगरों को 1000 रुपए और खाद्यान्न का भुगतान करने की व्यवस्था की थी." प्रेस विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि आदित्यनाथ ने अधिकारियों को "शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के अन्य निराश्रितों की पहचान करने का निर्देश दिया है जो अब तक छूटे हुए हैं" और कहा कि इसे "युद्धस्तर पर किया जाना चाहिए."
एक बार फिर मुख्यमंत्री के वादे धरातल पर कम ही दिखाई दिए. कॉलोनी के 32 वर्षीय ऑटो रिक्शा चालक इमरान खान ने बताया, ''यहां दो-तीन घरों को छोड़कर, हम सुबह बच्चों के लिए चाय भी नहीं बना पा रहे हैं. सरकार ने कहा कि वे हमारे खातों में पैसा देगी लेकिन हमें अभी तक कुछ भी नहीं मिला है." वहीं की रहने वाली संगीता के अनुसार, जब भी यहां के निवासी हताश होकर बाहर सड़कों पर निकल आते हैं तो पुलिस उन्हें अपने घरों को लौटने के लिए कहती है.
स्थानीय निवासी और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता दिलशाद मोहम्मद ने मुझे बताया कि तीन या चार घरों के अलावा कॉलोनी में रहने वाले सभी लोग मुस्लिम हैं. मोहम्मद ने कहा कि कॉलोनी के केवल छह लोगों के बैंक खातों में पैसा आया है और वह भी केवल 500 रुपए. मोहम्मद ने कहा, "हमने वार्ड सदस्य के साथ इस मुद्दे पर बात की थी. उन्होंने भी अब तक कुछ नहीं किया."
यहां के लोगों को सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा का डर भी सताता है. 18 साल के गुलबहार सैफी ने बताया, "पिछले हफ्ते शाम को लगभग 7 बजे मैं दूध लेने बाहर गया था. दो बाइक सवारों ने मेरे साथ मारपीट की और मेरा फोन तोड़ दिया. मेरे हाथ और पैर में चोट लगी है और अभी भी दर्द है. मेरे पड़ोस के कुछ लोगों ने पैसे जमा किए और मुझे डॉक्टर के पास ले जाने में मेरी मदद की. हमें बाहर जाने की इजाजत नहीं है इसलिए मैंने पुलिस में अभी तक कोई शिकायत दर्ज नहीं की है. मुझे बताया गया कि कॉलोनी के दो और लोगों को पीटा गया था.”
इस बीच राज्य सरकार लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए अपने प्रयासों और उपलब्धियों के बारे में अपनी पीठ थपथपाने में लगी है. सरकार ने अपनी दूसरी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि 24 मार्च के बाद से राज्य ने रेहड़ी-पटरी वालों, रिक्शा चालकों,कुलियों, रेलवे कुलियों और अन्य दिहाड़ी मजदूरों के प्रत्येक के खातों में 1000 रुपए डाले हैं. प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया गया है कि सरकार ने शहरी क्षेत्रों के 5.82 लाख मजदूरों को कुल 58.19 करोड़ रुपए की धनराशि हस्तांतरित की थी. इसमें आगे दावा किया गया कि सरकार ने "ग्रामीण क्षेत्रों के असहाय और निराश्रित व्यक्तियों को 43.69 करोड़ रुपए का भुगतान किया है."
मैंने गाजियाबाद की मेयर आशा शर्मा, लोनी के विधायक नंद किशोर गुर्जर, मेरठ जोन के क्षेत्रीय खाद्य नियंत्रक ए. के. पांडे, उत्तर प्रदेश खाद्य सुरक्षा विभाग के राज्य मंत्री धर्म सिंह सैनी और मुख्यमंत्री कार्यालय को फोन और संदेश के जरिए सवाल पूछे थे लेकिन उनमें से किसी से भी जवाब नहीं दिया.
पिछले साल दिसंबर में प्रकाशित एक रिपोर्ट में नीति आयोग ने भूख और गरीबी उन्मूलन के काम में देश के पांच सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश को रखा था. लोनी की कॉलोनी के लोगों ने जो बताया उससे ऐसा नहीं लगता कि यहां कुछ बदला है. कॉलोनी में रहने वाली 45 साल की फरीदा ने बताया, "हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि सरकार हमें राशन मुहैया कराया जाए ताकि हम लॉकडाउन के बचे दिनों में जिंदा बच सकें. अधिकारियों को तुरंत कुछ करना चाहिए. हम क्या भूखों मर जाएं?”