उत्तर प्रदेश सरकार ने कोविड-19 के इलाज और रोगनिरोधी दवा के रूप में आइवर मेक्टिन नामक एक एंटीपैरासिटिक दवा के उपयोग को मंजूरी दी है. हालांकि, इस सिफारिश का अभी तक कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. ऐसा कोई परीक्षण नहीं हुआ है जो साबित करता है कि यह दवा नोवेल कोरोनावायरस के खिलाफ कारगर है. इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 का इलाज करने के लिए आइवर मेक्टिन दवा का उपयोग करने के खिलाफ यह कह कर चेताया है कि मौजूदा अध्ययनों में इसकी प्रभावकारिता पर "पूर्वाग्रह का बड़ा खतरा है, साक्ष्य की विश्वसनीयता बहुत कम हैं और मौजूदा साक्ष्य दवा के फायदे के बारे में किसी तरह का निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.” अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने इस दवा को कोविड-19 की रोकथाम या इलाज के लिए अनुमोदित नहीं किया है और अतिरिक्त परीक्षण की आवश्यकता की बात कही है. केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने न तो कोविड-19 रोगियों के उपचार के लिए दवा की सिफारिश की है और न ही इसके उपयोग के खिलाफ कोई सलाह जारी की है.
लेकिन उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों ने कोविड-19 के हल्के और मध्यम मामलों के इलाज के लिए दवा को अपने प्रोटोकॉल में शामिल कर लिया है. इसके अलावा रैपिड रिस्पांस टीम पर (डॉक्टरों की वे टीमें जो उन रोगियों का आकलन करती हैं जिनमें संक्रमण के लक्षण नहीं होते) घर में क्वारंटीन हुए लोगों और संक्रमित रोगियों के प्राथमिक और द्वितीयक संपर्कों को यह दवा वितरित करने का आरोप है.
जापान में कितासो इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं और अमेरिका स्थित दवा कंपनी मर्क एंड को ने 1970 के दशक में पहली बार आइवर मेक्टिन तैयार किया था. इसे पशु चिकित्सा में एक महत्वपूर्ण विकास माना गया था क्योंकि यह आंतरिक और बाहरी परजीवियों के खिलाफ और पशु स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में सक्षम था. बाद में दवा को मानव रोगों जैसे आंकोसर्कायसिस, लसीका फाइलेरिया और खुजली के उपचार में प्रभावी पाया गया. बार्सिलोना इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के एक स्वास्थ्य शोधकर्ता डॉ. कारलोस चाकोर ने बताया, "कुछ देशों में इस दवा को सिर के जूं के खिलाफ शैम्पू के रूप में भी तैयार किया गया है. कुछ लैटिन अमेरिकी देशों में सिर की जूं के इलाज के लिए दवा की खुराक को मंजूरी दी गई है."
चाकोर ने एक दशक से अधिक समय तक इस दवा पर काम किया है और व्यापक स्तर पर कोविड-19 के इलाज में इसके उपयोग के खिलाफ चेतावनी दी है. उन्होंने पेरू जैसे लैटिन अमेरिकी देशों में आइवर मेक्टिन के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग का भी बारीकी से निरीक्षण किया है जहां मानव-उपयोगी आइवर मेक्टिन की आपूर्ति कम होने पर हजारों लोगों ने पशु चिकित्सा में उपयोगी आइवर मेक्टिन का उपयोग करना शुरू कर दिया. इसके चलते कइयों को पेट की बीमारियों, कंपकंपी, बदहवासी और दर्दनाक फफोले सहित कथित तौर पर प्रतिकूल प्रभावों का सामना करना पड़ा. द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक हालिया लेख, "सीरियस इवेर्मेक्टिन टॉक्सिसिटी एंड ह्यूमन एबीसीबी1 नॉनसेंस म्यूटेशन" ने विश्लेषण किया कि कैसे मानव उपयोग के लिए तैयार आइवर मेक्टिन की एक ही खुराक के कारण असामान्य आनुवंशिक स्थिति वाला 13 साल का एक लड़का एन्सेफैलोपैथी का शिकार हो गया और कोमा में चला गया.
आइवर मेक्टिन पर उत्तर प्रदेश का ध्यान महामारी के शुरुआती दिनों में मलेरिया के उपचार के लिए अनुमोदित दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के लिए दिए गए अनुचित ध्यान की याद दिलाता है. राज्य सरकार ने आधिकारिक उपचार प्रोटोकॉल में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को हटाकर उसकी जगह आइवर मेक्टिन को एक पूरक कोविड-19 दवा के रूप में अनुमोदित किया है. 9 अगस्त को स्वास्थ्य और चिकित्सा के लिए राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद ने एक आदेश जारी किया जिसमें सभी जिलों में मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश दिया गया कि वे कोविड-19 उपचार प्रोटोकॉल में आइवर मेक्टिन को शामिल करें. बदले में मुख्य चिकित्सा अधिकारियों ने सरकारी अस्पतालों में अपडेट प्रोटोकॉल प्रसारित किया और एंटीबायोटिक्स एजिथ्रोमाइसिन और डॉक्सीसाइक्लिन और एंटी इंफ्लेमेट्री दवा पेरासिटामोल के साथ-साथ आइवर मेक्टिन की सिफारिश की. प्रोटोकॉल ने रोगियों को प्रति दिन 12 मिलीग्राम की खुराक तक, अपने प्रतिकिलो वजन के लिए 200 माइक्रोग्राम आइवर मेक्टिन लेने की सलाह दी. इस हिसाब से 60 किलोग्राम वजन वाले वयस्क को प्रति दिन 12 मिलीग्राम आइवर मेक्टिन की एक खुराक लेनी चाहिए.
9 अगस्त का प्रोटोकॉल संक्रमित व्यक्तियों तक सीमित था, जो घरेलू क्वारंटीन के तहत थे और अस्पतालों में मामूली बीमार थे लेकिन दस दिनों के बाद लखनऊ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी आरपी सिंह ने एक आदेश जारी करके पुष्ट कोविड-19 रोगियों के सभी प्राथमिक और द्वितीयक संपर्कों को दवा के 12 मिलीग्राम तक पहले और सातवें दिन उनके संपर्क में आने के बाद लेने के लिए कहा. हिंदी में जारी आदेश में दावा किया गया है कि "उक्त टैबलेट काफी हद तक कोविड-19 महामारी से बचने में मददगार है."
प्रसाद ने मुझसे कहा, “आइवर मेक्टिन का उपयोग शुरू करने का निर्णय एक विशेषज्ञ समिति द्वारा लिया गया था. इस बात के प्रमाण हैं कि दवा वायरस से निपटने में सहायक है इसलिए हम इसे अपने उपचार प्रोटोकॉल के हिस्से के रूप में उपयोग कर रहे हैं.” हालांकि, प्रसाद ने विशेषज्ञ समिति के सदस्यों के नामों का खुलासा करने से इनकार कर दिया. उन्होंने किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन या सबूत के आधार पर आगे टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, जिसके आधार पर राज्य सरकार ने अपने प्रोटोकॉल में आइवर मेक्टिन को शामिल करने का फैसला किया.
डॉ. डी हिमांशु, जो लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में कोविड-19 आइसोलेशन यूनिट के प्रभारी हैं, ने कहा कि सरकार ने आगरा में डॉक्टरों द्वारा किए गए अवलोकनों के आधार पर आइवर मेक्टिन को शामिल करने का निर्णय लिया है. हिमांशु ने ठोस सबूतों की कमी को स्वीकार किया. कोविड-19 रोगियों के लिए आइवर मेक्टिन की सुरक्षा और प्रभावकारिता निर्धारित करने के लिए किसी ने एक यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण या आरसीटी को पूरा नहीं किया है जो दवा परीक्षण के लिए मान्यता प्राप्त मानक है. लेकिन उन्होंने आपातकालीन पूरक उपचार के रूप में इसके उपयोग का बचाव किया. "जब से महामारी ने हमें घेरा है हम बिना किसी ठोस सबूत के परीक्षण के आधार पर दवा का पुन: उपयोग कर रहे हैं," उन्होंने कहा. "न तो हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और न ही स्वाइन फ्लू के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली टैमीफ्लू जैसी अन्य दवाएं तब प्रभावकारी या सुरक्षित साबित हुईं जब हमने उनका इस्तेमाल करना शुरू किया." टैमीफ्लू एंटीवायरल दवाई ऑसेल्टामिविर का एक ब्रांड नाम है. हिमांशु ने यह भी दावा किया कि सरकारी प्रोटोकॉल की जो मात्रा निर्धारित की गई थी वह मानव सेवन के लिए सुरक्षित है.
डॉ. अगम वोरा पल्मोनोलॉजिस्ट हैं. वह इंडियन जर्नल ऑफ ट्यूबरकुलोसिस में जुलाई में प्रकाशित श्वेत पत्र, आइवर मेक्टिन एज ए पोटेंशियल थेरेपी फॉर कोविड-19, के प्रमुख लेखक हैं. उन्होंने दावा किया कि इस महामारी जैसी आकस्मिक स्थितियों में, वैज्ञानिकों के पास बड़े और ज्यादा समय लेने वाले नैदानिक परीक्षण करने का समय नहीं है. "हम अतीत में भी सुरक्षित रूप से आइवर मेक्टिन का उपयोग करते रहे हैं जैसे कि 2005 में मलेरिया में और साथ ही स्वाइन फ्लू में," उन्होंने मुझसे बात करते हुए आगे कहा कि उन्हें सस्ती, ऑफ-लेबल दवाओं, जैसे कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और आइवर मेक्टिन पर भरोसा किया. "मैं कोविड-19 के लिए एक रोगनिरोधी के तौर पर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का उपयोग करने में विश्वास करता हूं और नियमित रूप से इसका उपयोग करता हूं."
महामारी की शुरूआत में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को कोविड-19 महामारी के प्रभावी उपचार और निरोधक के रूप में पेश किया गया था. हालांकि, इसे दुनिया भर के उपचार प्रोटोकॉल से हटा दिया गया था क्योंकि अध्ययनों से पता चलता है कि इसका बीमारी पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ा है और यह संभावित रूप से किसी व्यक्ति के हृदय और रक्त संवहनी स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है.
कोविड-19 संबंधित अध्ययन बताते हैं कि सीमित खुराक में मानव उपभोग के लिए आइवर मेक्टिन सुरक्षित है. उदाहरण के लिए, जून 2018 में द लांसेट इन्फेक्शियस डिजीज में प्रकाशित मलेरिया के खिलाफ आइवर मेक्टिन के उपयोग का परीक्षण अध्ययन ने यह साबित कर दिया कि शरीर के वजन के प्रति किलोग्राम 600 माइक्रोग्राम तक की खुराक को कुछ समय के लिए सुरक्षित रूप से इंसानों को दी जा सकती है. चाकौर ने कहा, "मानव शरीर के प्रति किलोग्राम पर 200 माइक्रोग्राम की एक खुराक को कुछ समय तक मानव शरीर अच्छी तरह से सहन कर जाता है." किसी भी अध्ययन ने यह साबित नहीं किया है कि आइवर मेक्टिन सार्स-कोव2 वायरस के खिलाफ काम करता है. "वर्तमान में बहुत सीमित और अनिर्णायक प्रमाण हैं कि आइवर मेक्टिन कोविड-19 का इलाज या रोकथाम कर सकता है," सिडनी विश्वविद्यालय में स्कूल के प्रमुख और फार्मेसी के डीन डॉ. मैक मैकलचैन ने मुझे एक ईमेल में लिखा. "उपलब्ध परीक्षण निम्न गुणवत्ता वाले और अनिर्णायक हैं."
एफडीए द्वारा अनुमोदित दवा आइवर मेक्टिन इन विट्रो में सार्स-कोव-2 की प्रतिकृति को रोकता है, नामक शीर्षक से अप्रैल की शुरुआत में प्रकाशित एक अध्ययन ने शुरूआत में कुछ उत्साह पैदा किया था. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन केवल यह बताने के लिए किया था कि आइवर मेक्टिन एक परखनली के अंदर इन विट्रो में बंदर की कोशिकाओं में सार्स-कोव 2 की प्रतिकृति पर अंकुश लगा सकता है. मैक्लाचैन, जो अध्ययन से जुड़े नहीं हैं, ने द कन्वर्सेशन के लिए एक लेख में बताया कि इसकी प्रक्रिया में आइवर मेक्टिन की सांद्रता की आवश्यकता होती है जो कि मनुष्यों के लिए अनुशंसित खुराक से ऊपर थी. दूसरे शब्दों में, मानव शरीर में सार्स-कोव2 वायरस को मारने के लिए आइवर मेक्टिन की एक सुरक्षित खुराक की संभावना नहीं थी.
फिर भी, मोनाश विश्वविद्यालय के अध्ययन को इस उत्साह के साथ लिया गया कि मेडिकल जर्नल एंटीवायरल रिसर्च के मुख्य संपादक, डॉ. माइक ब्रे ने, जिन्होंने यह अध्ययन प्रकाशित किया, 21 अप्रैल को एक पत्र लिखा जिसमें कहा गया कि "लेखकों के सतर्क निष्कर्ष के बावजूद कि आइवर मेक्टिन के "मानवों में संभावित लाभों की आगे जांच हो," अध्ययन को लेकर चिकित्सा और पशु चिकित्सा वेबसाइटों में व्यापक रुचि दिखाई गई है, जो अक्सर कोविड-19 के इलाज या रोकथाम के रूप में दवा का गलत वर्णन करते हैं. " ब्रे ने उस चेतावनी को भी चिन्हित किया जो यूएस एफडीए ने लोगों को खुद ही आइवर मेक्टिन लेकर अपना उपचार करने के खिलाफ दी थी.
मोनाश अध्ययन जैसे इन विट्रो प्रयोग, किसी दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता का निर्धारण करने की लंबी प्रक्रिया का एक कदम हैं. बार्सिलोना इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ता चाकोर ने कहा, "आप देखते हैं कि पेट्री डिश में कोई प्रतिरक्षा प्रणाली नहीं होती है." "पेट्री डिश में, कोशिकाओं में वायरल लोड का अनुपात बहुत अधिक हो सकता है, इसलिए यह नहीं पता है कि यह मानव में कैसे काम करेगा, और यही कारण है कि हमें उचित नैदानिक परीक्षण करने की आवश्यकता है." चाकोर ने कहा कि प्रति दिन 12 मिलीग्राम आइवर मेक्टिन की एक खुराक व्यक्तिगत स्तर पर निर्धारित करना सुरक्षित हो सकता है, लेकिन व्यापक स्तर पर प्रोटोकॉल के रूप में निर्धारित होने पर दवा बहुत नुकसान पहुंचा सकती है. उन्होंने पेरू का उल्लेख किया जहां सरकार के आइवर मेक्टिन को बढ़ावा देने के कारण खुद से दवा लेने की हालत और कथित तौर पर दवा की काला बाजार बहुत ज्यादा बढ़ गई. चाकोर ने एक विश्लेषण लिखा है कि कैसे एक त्रुटिपूर्ण डेटाबेस ने कोविड-19 के इलाज में आइवर मेक्टिन की प्रभावकारिता साबित करने का दावा किया है, जिसने लैटिन अमेरिका में महामारी की प्रतिक्रिया को आकार दिया. उनका विश्लेषण अमेरिका में वैज्ञानिकों द्वारा एक अवलोकन अध्ययन का उल्लेख करता है, जिनका अपना अध्ययन एक अमेरिकी हेल्थकेयर एनालिटिक्स कंपनी सर्जीफेयर के डेटा पर आधारित है, और दावा किया कि आइवर मेक्टिन ने सार्स-कोव 2 वायरल आरएनए को 48 घंटे के भीतर काफी कम कर दिया. अध्ययन सोशल साइंस रिसर्च रिपॉजिटरी में अप्रैल में प्रकाशित किया गया था, लेकिन बाद में चाकोर सहित अन्य वैज्ञानिकों द्वारा डेटाबेस में विभिन्न विसंगतियों को इंगित करने, जो शोध का आधार थे, के बाद इसे वापिस ले लिया गया. "तथ्य यह है कि महामारी के समय में भी, एक दवा को जनता के लिए निर्धारित करने से पहले कठोर वैज्ञानिक अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता होती है," चाकोर ने कहा.
चाकोर उस टीम का हिस्सा हैं जो कोविड-19 रोगियों में आइवर मेक्टिन की सुरक्षा और प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिए एक डबल ब्लाइंड आरसीटी का आयोजन कर रही है, जिसमें प्रति किलोग्राम के लिए आइवर मेक्टिन की 400 माइक्रोग्राम खुराक का उपयोग किया जाता है, जो कि 60 किलोग्राम वजन वाले वयस्क के लिए लगभग 24 मिलीग्राम है. एक डबल ब्लाइंड अध्ययन में, न तो प्रतिभागियों और न ही शोधकर्ताओं को पता होता है कि किसे दवा दी जाती है और किसे प्लेसिबो दिया जाता है. डबल ब्लाइंड आरसीटी परीक्षण दवाओं के सबसे कठोर रूप हैं. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री के अनुसार, वर्तमान में कोविड-19 उपचार में आइवर मेक्टिन की प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिए 11 इंटरवेंशनल अध्ययन भारत में पंजीकृत किए गए हैं, जिनमें से सभी अभी भी परीक्षण कर ही रहे हैं. ग्यारह में से छह आरसीटी हैं. सामान्य परिस्थितियों में, अधिकांश नियामक प्राधिकरण दवाओं को आरसीटी के मजबूत परिणामों के बाद ही अनुमोदित करते हैं. हालांकि, महामारी के दौरान, सरकारों ने ऐसे पद्धतिगत परीक्षणों से परिणामों की प्रतीक्षा किए बिना आपातकालीन उपयोग के लिए दवा को मंजूरी दी है.
उत्तर प्रदेश में आइवर मेक्टिन के प्रचार का खतरा इस तथ्य के कारण भी है कि यह सस्ता और आसानी से उपलब्ध है. उत्तर प्रदेश केमिस्ट्स एसोसिएशन के प्रमुख दिवाकर सिंह ने कहा, “पिछले हफ्ते में आइवर मेक्टिन की बिक्री बढ़ी है. लोग अपने और अपने परिवार के सदस्यों के लिए थोक में दवा खरीद रहे हैं. मैं अपने परिवार के लिए भी कुछ घर लाया हूं.” सिंह ने यह भी कहा कि दवा कंपनी मैनकाइंड फार्मा द्वारा निर्मित आइवर मेक्टिन के ब्रांड नाम वर्मैक्ट 12 मिलीग्राम, खरीदारों के बीच सबसे लोकप्रिय लेबल ब्रांड है. अगस्त में मैनकाइंड फार्मा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्टर जारी किया जिसमें "सभी स्वास्थ्य कर्मचारियों और कोविड-19 रोगियों के निकट संपर्क में आने वाले व्यक्तियों" के लिए एक रोगनिरोधक और हल्के कोविड-19 रोगियों और ऐसे रोगियों जिनमें लक्षण नहीं नजर आते के उपचार के रूप में यूपी सरकार के आइवर मेक्टिन का प्रयोग करने के प्रोटोकॉल का वर्णन था. पोस्टर ने मैनकाइंड के एक और आइवर मेक्टिन फॉर्मूलेशन की ब्रांडिंग की, जिसे बैंडी प्लस कहा जाता है, जिसे पेट के कीड़े मारने के लिए अनुमोदित किया गया था. पोस्टर ने नीचे एक डिस्क्लेमर भी दिया था कि यह "हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की जानकारी बढ़ाने के लिए" है और कंपनी बैंडी प्लस के ऑफ-लेबल उपयोग यानी बिना अनुमोदन के उपयोग को बढ़ावा नहीं देती.
22 अगस्त को एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार लखनऊ में 40 कियोस्क या ठेके स्थापित करने की योजना बना रही थी ताकि शहर में विषम रोगियों को आइवर मेक्टिन की गोलियां वितरित की जा सकें. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन कियोस्क को बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे और राजमार्गों सहित शहर भर में प्रवेश और निकास बिंदुओं पर स्थापित किया जाएगा. लखनऊ के लिए अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट केपी सिंह ने मुझे बताया कि फिलहाल कियोस्क की योजना पर रोक लगा दी गई है लेकिन तेजी से प्रतिक्रिया देने वाली टीमें आइवर मेक्टिन को रोगियों और रोगियों के संपर्क में आने वालों को देना जारी रखेंगी. सिंह ने दावा किया, "यह ऐसे रोगियों के इलाज में प्रभावी साबित हुई है जिनमें लक्षण नहीं दिखते और प्रति दिन 12 मिलीग्राम की खुराक हमारे सरकारी डॉक्टरों द्वारा निर्धारित की जाती है."
उत्तर प्रदेश ने व्यापक रूप से आइवर मेक्टिन को बढ़ावा तो दिया है लेकिन प्रदेश में ऐसा इंतजाम नहीं है जिससे लोगों को घरेलू प्रयोग करने से रोका जा सके. लखनऊ के एक सरकारी अस्पताल के आंतरिक चिकित्सा के एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर मुझसे टेलीफोन पर कहा, “यह सरकार द्वारा किया गया एक और मनमाना निर्णय है. हमें जो आदेश मिला है हमने बस उसका पालन किया है.”