पंजाब के गांवों ने किया कोविड-19 जांच और अस्पताल में उपचार का बहिष्कार

15 जून 2020 को अमृतसर के सिविल अस्पताल में नाक का स्वाव लेते स्वास्थ्य कर्मचारी. पंजाब के कई गांवों ने कोविड-19 की सरकारी जांच और इलाज के विरोध में प्रस्ताव पारित किए हैं. समीर सहगल/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस

28 अगस्त को पंजाब के मोगा जिले की समालसर गांव की पंचायत ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसके तहत गांव वालों में कोविड-19 संक्रमण पाए जाने पर उन्हें उनके घरों या गांव में बनाए गए आइसोलेशन केंद्र में रखा जाएगा. प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि सरकारी स्वास्थ्य दलों को किसी भी एसिंप्टोमेटिक गांववासी, जो टेस्ट कराना नहीं चाहता, का टेस्ट करने नहीं दिया जाएगा और सरकारी डॉक्टरों को मरीजों को गांव से बाहर ले जाने नहीं दिया जाएगा. प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि कोविड-19 मरीज की देखभाल और उपचार डॉक्टरों का परामर्श लेकर गांव में ही किया जाएगा. इस प्रस्ताव पर सरपंच अमरजीत सिंह के हस्ताक्षर हैं.

अगस्त के आखिरी हफ्ते में पंजाब के कई गांवों ने ऐसे ही प्रस्ताव पारित किए हैं. इन गांवों ने राज्य की चिकित्सा टीमों को गांव वालों की कोविड-19 जांच करने नहीं दी है और सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में कोविड-19 मरीजों का इलाज या उनको क्वारंटीन नहीं होने दिया है. यह कदम गांव वालों ने सरकारी क्वारंटीन और उपचार व्यवस्था में अविश्वास के चलते उठाया है. गांवों ने इन प्रस्तावों में आरोप लगाया गया है कि गैर कोविड-19 मरीजों को कोविड-19 मरीजों के साथ अस्पतालों में रखा जा रहा है. गांव के लोगों ने मुझे बताया कि सोशल मीडिया में ऐसी अफवाह शेयर की जा रही हैं कि कोविड-19 केंद्रों से बड़ी संख्या में शव निकल रहे हैं और मृतकों के शरीरों से उनके अंगों को निकाला जा रहा है. इन अफवाहों का असर यह हुआ है कि कई जगह स्वास्थ्य कर्मियों पर हमले हुए हैं.

अमरजीत ने मुझे बताया कि गलत उपचार और चिकित्सीय लापरवाही से उन्हें निजी तौर पर नुकसान पहुंचा है. जुलाई के आखिरी सप्ताह में फरीदकोट के गुरु गोविंद सिंह मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में उनकी बीवी मनजीत कौर की मौत हो गई. अमरजीत ने बताया कि बीवी को सांस की परेशानी थी जो नोवेल कोरोनावायरस महामारी के फैलने से पहले से थी और जून में भटिंडा के एक निजी अस्पताल में उनका उपचार कराया गया था. एक महीने तक वह एकदम ठीक थीं लेकिन बाद में उन्हें दोबारा सांस की समस्या होने लगी. जुलाई में उन्होंने पत्नी को जीजीएस अस्पताल में भर्ती कराया जहां उनसे जबरदस्ती कोविड जांच के लिए सैंपल लिया गया और कोरोनावायरस रोगियों के साथ रखा गया. दूसरे दिन अमरजीत और उनके बेटे को बताया गया कि मनजीत को वेंटिलेटर में रखा जा रहा है और शाम 4 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. अमरजीत ने दावा किया कि ना उनकी बीवी को किसी डॉक्टर ने चेक किया और ना उसे कोई दवा दी गई. अमरजीत इस बात से भी नाराज थे कि अस्पताल ने उन्हें और उनके बेटे को पत्नी मनजीत से मिलने नहीं दिया जबकि वह निजी खर्च पर सुरक्षा उपकरण या यानी पीपीई खरीदने को तैयार थे. लेकिन जो बात उन्हें लगातार सताती है वह यह कि शायद उनकी बीवी को कोविड-19 था ही नहीं. उन्होंने मुझसे कहा, “ऐसा लगता है जैसे किसी ने हमारे साथ मजाक किया है. बीवी की मौत के बाद उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई.”

अमरजीत ने कहा कि उनके जैसे और भी मामले जीजीएस अस्पताल में देखे गए हैं. उन्होंने बताया कि एक कैंसर मरीज जो अपनी दवाइयां लेने अस्पताल आया था उसे कोविड-19 के नाम पर भर्ती कर लिया गया और बाद में उसकी मौत हो गई. उन्होंने कहा कि उस आदमी की मौत के बाद मरीज के परिवार और डॉक्टरों के बीच गहमागहमी भी हुई. अमरजीत ने बताया कि समालसर पंचायत और अन्य पंचायतों ने सरकार के कहने पर क्वारंटीन सुविधा के लिए बिस्तर और बेड दान दिए थे. “जब सरकारी केंद्रों के पास मरीजों के लिए कुछ है ही नहीं और मरीजों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है तो हमें उन अस्पतालों में क्यों भेजा जा रहा है?” समालसर पंचायत ने एक स्कूल को पोस्ट कोविड-19 मरीजों का आइसोलेशन केंद्र बनाया है. पंचायत ने तय किया है कि मरीज की दवाइयां और उनके खर्च का वहन वह करेगी और मरीजों की देखभाल करने के लिए गांव के ही स्वयंसेवकों को लगाया जाएगा.

अमरजीत की तरह ही संगरूर जिले के टोलेवाल गांव के जगतार सिंह टोलेवाल ने सरकारी अस्पतालों में भोजन जैसी बुनियादी सुविधा की कमी की चिंता व्यक्त की. उन्होंने बताया कि उन्होंने देखा है कि कैसे पटियाला स्थित राजेंद्र अस्पताल ने मरीज की हालत की जानकारी परिवार को ही देने से इनकार किया था. जगतार ने उन अफवाहों का उल्लेख किया जिनके अनुसार, कोविड-19 से मरने वालों के अंग निकाल लिए गए थे. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि ये अफवाहें कहां से उड़ाई जा रही हैं. टोलेवाल गांव ने भी यह प्रस्ताव पारित किया है कि कानूनन सरपंच को जानकारी दिए बिना पुलिस या सरकारी अधिकारी गांव में दाखिल नहीं हो सकते. उन्होंने बताया कि पंचायत ने सार्वजनिक घोषणा की है कि स्वास्थ्य टीमों का गांव में प्रवेश निषेध है और यदि स्वास्थ्य अधिकारियों ने इस घोषणा को नजरअंदाज किया तो गांव वाले उनका मुकाबला करेंगे. टोलेवाल गांव के सरपंच बेअंत सिंह ने कहा है कि जो भी टीम गांव आना चाहती है उसे पंचायत को जानकारी देनी होगी. उन्होंने यह भी कहा कि वह गांव में ही सामान्य लक्षण वाले कोविड-19 मरीजों के उपचार के सभी आवश्यक प्रोटोकोलों का पालन करने को तैयार हैं.

29 अगस्त को संगरूर के ही बनभौरा गांव में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें गांव वालों की मेडिकल टीम द्वारा कोविड-19 जांच पर रोक लगा दी गई. इस गांव ने संदिग्ध मामलों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली है और उनकी भी जिन्होंने खुद अपना टेस्ट करवाया था और पता चला था कि उन्हें कोविड-19 है.

संगरूर जिले के जाखलों गांव ने भी सरकारी टीम द्वारा जांच करने के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है. जाखलों के बलबीर सिंह ने उस सोशल मीडिया संदेश के बारे में बताया जिसमें बताया गया था कि जो लोग कोविड-19 अस्पतालों में गए थे वे दूसरे दिन मृत पाए गए. इन संदेशों के स्रोतों का पता नहीं चला है. बलबीर, जो गांव की सरपंच परमजीत कौर के पति हैं, ने कहा कि गांव के लोग जिन्हें ऑपरेशन की जरूरत है उन्होंने अपना ऑपरेशन टाल दिया है क्योंकि उनको डर है कि उनका कोविड-19 टेस्ट होगा और उन्हें क्वारंटीन कर दिया जाएगा. उन्होंने दावा किया कि कोविड-19 महामारी का इलाज विटामिन सी खाने और भाप लेने से हो सकता है. यह दावा वैज्ञानिक रूप से पुष्ट नहीं है.

गांव ने 28 अगस्त को गांव वालों की सरकारी जांच ना होने देने के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया है. यह प्रस्ताव सरपंच जोगिंदर सिंह की अगुवाई में पारित हुआ है और इसमें कहा गया है कि यदि किसी गांव वाले में लक्षण दिखाई देते हैं तो पंचायत उसके इलाज और उसे और उसके परिवार को आइसोलेट करने की जिम्मेदारी खुद लेगी. प्रस्ताव में प्रशासन से अनुरोध किया गया है कि वह गांव में कोई भी कोविड-19 टीम न भेजे. राजपुरा के प्रस्ताव में इस बात का जिक्र नहीं है कि उन गांव वालों का क्या होगा जो परीक्षण कराना चाहते हैं या इलाज के लिए अस्पताल जाना चाहते हैं. प्रस्ताव में चेतावनी दी गई है कि गांव में आने वाली सरकारी टीम के साथ यदि कोई हादसा होता है तो उसके लिए वह टीम जिम्मेदार होगी. जोगिंदर ने मुझसे कहा, “पिंड विच दहशत का माहौल है.” उन्होंने दावा किया कि जब मेडिकल टीम लोगों को अपने साथ ले गई तो गांव में भय का माहौल बन गया. उन्होंने कहा, “जब कोविड-19 का कोई इलाज है ही नहीं है तो हम अपने मरीजों को सरकारी अस्पतालों में मरने के लिए क्यों छोड़ें?”

बरनाला जिले के कई गांवों ने कोविड-19 के परीक्षण और उपचार के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए हैं. जिले के सिविल सर्जन डॉक्टर जीबी सिंह ने बताया कि इस डर की शुरुआत तब हुई जब सोशल मीडिया में अफवाह फैलने लगीं कि कोविड-19 मरीजों के अंग निकाले जा रहे हैं. इस बीच आम आदमी पार्टी के विधायक और राज्य में पार्टी के विपक्ष के नेता हरपाल सिंह चीमा ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पर एक आरोप लगाया है. उन्होंने मुख्यमंत्री के 22 अगस्त के भाषण का उल्लेख करते हुए बताया कि उस भाषण में मुख्यमंत्री ने कोविड-19 मिशन फतेह के संबंध में कहा था कि 3 सितंबर तक राज्य में कोविड-19 के मामले 64000 तक बढ़ सकते हैं और 18 सितंबर तक मामलों की संख्या 118000 तक हो सकती है. चीमा ने कहा कि मुख्यमंत्री ने जब कहा कि 3 सितंबर तक 957 मौतों का आंकड़ा बढ़कर 1721 और 18 सितंबर तक 3148 हो जाएगा तो गांवों में दहशत फैल गई. लेकिन वास्तविकता तो यह है कि मुख्यमंत्री संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए ऐसा कह रहे थे. उसी भाषण में मुख्यमंत्री ने लोगों से मास्क पहनने और हाथ धोने की अपील की थी. इसके अलावा मुख्यमंत्री ने कहा था कि अगर लोग शारीरिक दूरी का पालन नहीं करेंगे और सुरक्षा उपाय नहीं अपनाएंगे तो राज्य सरकार लोगों की जान बचाने के लिए कड़ी पाबंदियां लगा देगी.

गांवों में फैले डर और गलत जानकारी के चलते सरकारी कर्मचारियों पर हमले की घटना हुई हैं. 14 अगस्त को बहुउद्देशीय स्वास्थ्य कर्मी मस्तान सिंह को लुधियाना के खानपुर गांव में डेरा के लोगों ने बुरी तरह पीट दिया. मस्तान को संदिग्ध कोविड-19 मरीजों को जांच के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इलाके में भेजा गया था. लुधियाना के पुलिस आयुक्त राकेश अग्रवाल ने कहा है कि ऐसा लगता है कि आरोपी नशे में थे और उन सभी को गिरफ्तार कर लिया गया है. अग्रवाल ने कहा कि आरोपियों और उन्हें पकड़ने गई पांच पुलिस जवानों की बाद में कराई गई कोरोनावायरस जांच है पॉजिटिव आई है. लुधियाना की संयुक्त पुलिस आयुक्त (ग्रामीण) कंवरदीप कौर ने बताया कि उन्होंने आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 3, महामारी रोग संशोधन अध्यादेश, 2020 के तहत गिरफ्तार किया है जिसमें स्वास्थ्य कर्मियों पर हिंसा करना संज्ञेय और गैर जमानती अपराध है.

शहीद भगत सिंह नगर जिले के जफरपुर गांव में, जो महामारी के शुरुआती सप्ताहों में कोविड-19 का हॉटस्पॉट था, अगस्त के मध्य में स्वास्थ्य कर्मियों के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया गया. सिविल सर्जन डॉक्टर आरपी भाटिया के अनुसार, गांव के पूर्व सरपंच को कोविड-19 के एडवांस्ड लक्षणों में सिविल अस्पताल लाया गया था और उन्हें अन्य कई तरह के रोग भी थे. वहां से उन्हें पटियाला के राजेंद्र अस्पताल रेफर कर दिया गया जहां उनकी मौत हो गई. इसके बाद 17 अगस्त को एक टीम को कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के लिए गांव भेजा गया लेकिन गांव वालों ने टीम के साथ बुरा बर्ताव किया और उन्हें काम करने नहीं दिया. टीम ने सरपंच जोगिंदर सिंह को फोन किया, जो हाल में अमेरिका में हैं, लेकिन उन्होंने भी स्वास्थ्य कर्मियों के साथ अभद्र और गंदी भाषा का इस्तेमाल किया और उन्हें गालियां दी. भाटिया ने पुलिस से इसकी शिकायत की और पुलिस ने सरपंच, एक अन्य पंचायत सदस्य और उसके बेटे और अन्य लोगों के खिलाफ महामारी रोग अध्यादेश के तहत मामला दर्ज किया है. अगस्त 21 को जफरपुर के निवासियों ने जिला के उपायुक्त को खत लिखा और कहा है, “एक स्वास्थ्य टीम उनके गांव आई थी लेकिन गांव वालों ने एकमत से कहा है कि वे जांच नहीं कराना चाहते. हम आपसे दरख्वास्त करते हैं कि आप इस टीम को दोबारा हमारे गांव में न भेजें. यदि किसी गांव वाले में कोई लक्षण दिखता है तो उसकी जांच निजी स्तर पर कराई जाएगी.”

26 अगस्त को संगरूर जिले के डेहा बस्ती के लोगों ने पुलिस अधिकारियों और स्वास्थ्य दलों पर पथराव किया. संगरूर के वरिष्ठ पुलिस सुपरिंटेंडेंट संदीप कुमार गर्ग बताया कि उस इलाके को लघु कंटेनमेंट जोन घोषित किया गया था. उन्होंने कहा कि कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के लिए वहां गई टीम पर कुछ उपद्रवियों ने हमला कर दिया.

संगरूर जिले के चाथा नटेरा गांव के लोग 70 दुकानदारों के कोविड-19 पॉजिटिव निकलने के बाद निराश हैं. ये लोग एसिंप्टोमेटिक थे लेकिन उन्हें इलाज केंद्र में भर्ती कराया गया. जब स्वास्थ्य टीम नमूनों की जांच करने के लिए वापस गांव आई तो गुरुद्वारा से एलान किया गया कि कोई गांव वाला टेस्ट कराना नहीं चाहता और यदि स्वास्थ्य कर्मी जबरजस्ती जांच करेंगे तो उनका घेराव किया जाएगा. भारतीय किसान यूनियन की स्थानीय शाखा के महासचिव रण सिंह चाथा ने मुझसे कहा, “अगर कोई खुद टेस्ट कराना चाहता है और वह पॉजिटिव निकलता है तो उसका इलाज घर में कराया जाएगा या गांव के सरकारी स्कूल में. स्वास्थ्य विभाग को गांव वालों को ले जाने नहीं दिया जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि स्वास्थ्य विभाग की टीमें अच्छे-खासे लोगों को भी सुविधारहित सरकारी अस्पतालों में भर्ती कर देती हैं जहां खाना भी नहीं मिलता.”

एसएससी गर्ग ने बताया कि 10 इलाकों में नमूने लेने वाली टीमों को घुसने नहीं देने वाले प्रस्ताव पारित हुए हैं. उन्होंने कहा, “ऐसा जागरूकता की कमी और अफवाहों के चलते हुआ है. लेकिन अब इसे ठीक कर लिया गया है.” उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने गांव की पंचायतों के साथ बातचीत की है और उन्हें बताया कि यदि गांव वालों को घरों में आइसोलेट करना चाहते हैं तो प्रोटोकॉलों का पालन करना पड़ेगा और गांव वालों को भरोसा दिया गया है कि किसी को भी जबरदस्ती अस्पताल नहीं ले जाया जाएगा.

बरनाला के सिविल सर्जन सिंह ने मुझसे कहा कि जिले में खंड स्तरीय टीमों का गठन किया गया है ताकि सरपंचों को टेस्ट की जरूरतों के प्रति जागरूक किया जा सके और हल्के लक्षणों में सैल्फ क्वारंटीन के अधिकार के प्रति जागरूक किया जा सके. उन्होंने कहा, “हम उन्हें ताजा दिशानिर्देशों की जानकारी देकर उनके भय को दूर कर रहे हैं. यहां लगभग 25000 टेस्ट किए गए हैं, जिसमें से केवल 1100 पॉजिटिव आए हैं और 20 लोगों की मौत हुई है. अब हम यह आंकड़े उनसे साझा कर रहे हैं.”

लेकिन फिलहाल तो यही लगता है कि गांव वालों को समझाने के लिए अभी बहुत कुछ करना होगा. धिलवान नाभा की सरपंच सुखविंदर कौर के पति गुरजंत सिंह ने मुझसे कहा, “गांव वाले डर के माहौल में जी रहे हैं.”


जतिंदर कौर तुड़ वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले दो दशकों से इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और डेक्कन क्रॉनिकल सहित विभिन्न राष्ट्रीय अखबारों में लिख रही हैं.