कोरोनावायरस पर फोकस से अन्य बीमारियों के मरीजों की हो रही अनदेखी

विप्लव भुयान/हिंदुस्तान टाइम्स/ गैटी इमेजिस
06 April, 2020

इस महीने की शुरुआत में दिल्ली की 40 वर्षीय मैत्री लाकड़ा को जीभ के कैंसर का पता चला. मैत्री एचआईवी पॉजिटिव भी हैं और वह पिछले दो सालों से मुंह के छालों से पीड़ित हैं. उन्होंने शुरुआत में इसकी चिंता नहीं की क्योंकि एचआईवी पीड़ित लोगों में मुंह के छालों का होना एक सामान्य बात है. लेकिन उनके छाले ठीक नहीं हुए और पिछले साल मई से दर्द इतना बढ़ गया कि वह रातों को सो नहीं पाती थीं. मैत्री और उनके पति नाजारिअस लाकड़ा इलाज के लिए दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में गए. 10 महीनों बाद और कई परीक्षणों और उपचार के उपरांत 9 मार्च को उन्हें दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में कैंसर का पता चला. 

दर्द के चलते मैत्री से खाया भी नहीं जा रहा था वह महीनों से तरल पदार्थों पर आश्रित होकर जी रही हैं. पिछले एक महीने से उनकी आवाज पूरी तरह से चली गई है. मैत्री का वजन केवल 30 किलो रह गया है और लगातार कमजोरी महसूस करती हैं.

उनके इलाज के समय एम्स में सर्जिकल-ऑन्कोलॉजी विभाग के एक डॉक्टर ने बताया कि कैंसर अपने प्रारंभिक चरण में है और कैंसर को स्टेज-3 या स्टेज-4 तक पहुंचने से रोकने के लिए जल्द से जल्द सर्जरी की जरूरत है. मैत्री को यह भी बताया गया कि अस्पताल में रोगियों की संख्या अधिक है इसलिए जुलाई के मध्य से पहले एम्स में सर्जरी की तारीख मिलना मुश्किल है. डॉक्टर ने उन्हें हरियाणा के झज्जर के नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट, एम्स में रेफर कर दिया. मैत्री को बताया गया कि एनसीआई में मरीजों का ऑपरेशन एक या दो हफ्ते में किया जाता है. 16 मार्च को वह एनसीआई गईं. वहां जांच के बाद उन्हें 10 दिन बाद वापस आने के लिए कहा गया.

16 मार्च से भारत भर की राज्य सरकारों ने कोविड-19 महामारी के चलते लोगों के बीच शारीरिक संपर्क कम करने के लिए नियम लागू करना शुरू कर दिए. 16 मार्च को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक परामर्श जारी कर राज्य प्रशासनों को भीड़भाड़ वाली जगहों को बंद करने या वहां जाने पर प्रतिबंध लगाने को कहा. स्वास्थ्य सुविधाओं ने कोविड-19 से संबंध न होने वाली सेवाओं को बंद करना शुरू कर दिया. 22 मार्च को मैत्री को एम्स के रेडियोलॉजी विभाग, झज्जर से एक संदेश मिला जिसमें कहा गया था, “कोविड-19 के संकट को देखते हुए सभी रेडियोलॉजी अप्वाइंटमेंट स्थगित कर दिए गए हैं. बुकिंग पुनः शुरू होने पर आपको सूचित किया जाएगा.”

 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक देशभर में लॉकडाउन की घोषणा कर दी. मैत्री अब अनुरोध करने के लिए झज्जर नहीं जा सकती थीं कि उनकी बीमारी की गंभीरता को समझते हुए उनका तुरंत इलाज किया जाए. वह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी अन्य अस्पतालों से संपर्क नहीं कर सकती थीं क्योंकि ज्यादातर में ओपीडी सुविधाएं बंद हो गई थीं.

इस बीच उसकी हालत और बिगड़ती रही. 30 मार्च को नाजारिअस ने मुझे बताया, “उसकी जीभ से खून बह रहा है और बेहद तेज दर्द हो रहा है. हम पिछले तीन दिनों से उसे दिल्ली के एम्स में इमरजेंसी में ला रहे हैं. यहां उसका सिर्फ दर्द कम किया जा रहा है.”

चूंकि स्वास्थ्य क्षेत्र के संसाधनों को कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए लगा दिया गया है इसलिए अन्य बीमारियों के मरीज इलाज के लिए इंतजार करने को मजबूर हो रहे हैं. उन मरीजों को छोड़कर जिन्हें देखभाल की सख्त जरूरत है, केवल आपातकाल में आए मरीजों का ही इलाज किया जा रहा है. एम्स कैंसर विभाग ने 25 मार्च से नए मामलों को लेना बंद कर दिया था और केवल उन्हीं लोगों का इलाज कर रहा था जो पहले से अस्पताल में भर्ती थे. इस अस्पताल ने सर्जरी करना बंद कर दिया है जिसका असर बड़ी संख्या में रोगियों पर पड़ रहा है. वित्तीय वर्ष 2018-19 में दिल्ली एम्स के कैंसर विभाग डॉ. बीआर अंबेडकर संस्थान रोटरी कैंसर अस्पताल ने लगभग दो लाख रोगियों का इलाज किया और 12000 सर्जरी की थी. जिसका मतलब एक महीने में औसतन एक हजार सर्जरी. कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज शुरू में किया जाना होता है और यदि ऐसा न हो तो रोगी अधिक दर्दनाक और उपचार न हो पाने की हालत में चला जाता है. 

कोविड-19 महामारी के कारण चिकित्सा सेवाओं की कमी से बुरी तरह प्रभावित होने वाले रोगियों की एक अन्य श्रेणी थैलेसीमिया जैसे रक्त संबंधी मरीजों की है. थैलेसीमिया खून से जुड़ी एक वंशानुगत बीमारी है जो शरीर में हीमोग्लोबिन के उत्पादन को कम कर देती है. ऐसे रोगियों को आमतौर पर महीने में दो बार खून बदलने की आवश्यकता होती है. इलाज के बिना उनका हीमोग्लोबिन स्तर गिरना शुरू हो जाता है जो उनके फेफड़ों, गुर्दे और यकृत सहित शरीर के प्रमुख अंगों को लंबे समय तक के लिए नुकसान पहुंचा सकता है.

थैलेसीमिक्स के लिए काम करने वाले और रक्तदान को बढ़ावा देने वाले मुंबई के थिंक फाउंडेशन के उपाध्यक्ष विनय शेट्टी ने बताया,"थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे कोरोना के संकट के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. हमें बहुत से परेशान लोगों तक कॉल आए." 26 मार्च को हुई हमारी बातचीत के दौरान उन्होंने बताया, “कल एक बच्चे को एक सार्वजनिक अस्पताल में खून चढ़ाने के लिए जाना था लेकिन अस्पताल ने उसे आने से मना कर दिया." शेट्टी ने कहा कि रक्त की आवश्यकता वाले बच्चों और बड़ों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. अस्पतालों में जाना भी चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि थैलेसीमिक्स में रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. लॉकडाउन के तहत अस्पताल तक पहुंचना भी एक चुनौती है. इसके साथ, पूरे देश में खून की उपलब्धता अविश्वसनीय रूप से कम हो गई है. शेट्टी ने कहा, "लॉकडाउन के कारण सामान्य रक्त-संग्रह ड्राइव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, हम इस समय रक्तदान शिविरों का आयोजन भी नहीं कर सकते," उन्होंने आगे कहा.

"थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति खुद खून की व्यवस्था नहीं कर सकता क्योंकि उसको खून देने वाला रक्त बैंकों तक नहीं पहुंच पाएगा.” शेट्टी ने अनुमान लगाया कि अकेले मुंबई में थैलेसीमिया से पीड़ित 2400 बच्चे हैं जिन्हें नियमित रूप से रक्त चढ़ाने की आवश्यकता है. “खून की जरूरत वाले हर मरीज को इस समस्या का सामना करना पड़ेगा." शेट्टी ने कहा कि मुंबई में औसतन 900 लोगों को प्रतिदिन रक्त या इसके घटकों की आवश्यकता होती है. “अगर ब्लड बैंकों में खून खत्म हो जाता हैं तो एक चिंताजनक बात होगी."

उन्होंने कहा कि उनका संगठन इस उम्मीद से ब्लड बैंकों से व्हाट्सएप पर स्वयंसेवकों को अनुमति देने के लिए बात कर रहा था कि पुलिस उन्हें रक्त बैंकों तक जाने की अनुमति देगी. 21 मार्च को मुंबई के एक 70 वर्षीय व्यक्ति को बुखार और बेचैनी महसूस हुई. उनके परिवार को लगा कि उनका हीमोग्लोबिन गिरा है क्योंकि ऐसा पहले भी कभी-कभी होता था. उन्होंने आसपास के कई निजी अस्पतालों को फोन किया और लेकिन सभी ने एम्बुलेंस भेजने से मना कर दिया. आखिर में उन्हें घर के पास ही के एक छोटे क्लीनिक में भर्ती कराया गया. सुबह-सुबह उनकी हालत और खराब हो गई और परिवार को बताया गया कि उन्हें वेंटीलेटर में रखने के लिए किसी बड़े अस्पताल में शिफ्ट करना पड़ेगा.

उनका इलाज कर रहे डॉक्टर ने आगे रेफर कर दिया जिसके बाद वे अस्पतालों में कॉल लगाने लगे. कई अस्पतालों के मना करने के बाद एक निजी अस्पताल एम्बुलेंस भेजने के लिए तैयार हुआ और वे मरीज को लेकर अस्पताल पहुंचे.  नाम न छापने की शर्त पर उनके भतीजे ने बताया, "लेकिन जब हम अस्पताल पहुंचे तो बुखार के कारण उनका इलाज करने से मना कर दिया गया. कोविड-19 का लक्षण बुखार है और अस्पताल ऐसे रोगियों को भर्ती करना नहीं चाहता था." भतीजे ने कहा, "बहुत समझाने के बाद अस्पताल इस बात पर सहमत हो गया कि अगर हम कस्तूरबा गांधी अस्पताल से “नो कोविड-19 प्रमाणपत्र” ले आएं, तो वहां उनका इलाज किया जाएगा." जांच करने के बाद मुंबई के कस्तूरबा गांधी अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें प्रमाणपत्र दे दिया लेकिन निजी अस्पताल ने फिर भी इलाज करने से इनकार कर दिया. परिवार जल्दी में उन्हें एक दूसरे निजी अस्पताल में भर्ती कराने ले गया लेकिन उससे पहले ही उनका निधन हो गया. भतीजे ने बताया, "जो हमने देखा वह बहुत डरावना था. अगर अस्पताल कम से कम उनकी जांच के लिए सहमत हो जाता तो आसानी से इलाज हो सकता था. घर में और भी बुजुर्ग हैं जिन्हें किसी भी समय मदद की आवश्यकता हो सकती है. हम बस यही चाहते हैं कि सामान्य स्थिति बहाल होने से पहले उनमें से कोई बीमार न पड़े."

उन्होंने आगे कहा, "हमें जब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिल जाती, बता नहीं सकते कि उन्हें कोरोना था कि नहीं लेकिन उनकी मौत कोविड-19 से हुई है क्योंकि वह कोविड-19 के कारण इलाज के इंतजार में मर गईं." राज्य सरकारें सामान्य गतिविधियों को भी बंद कर रही हैं जो बच्चों में बीमारियों को रोकने के लिए जरूरी हैं. राजस्थान सरकार ने 27 मार्च को टीकाकरण से जुड़़ी सभी आउटरीच सेवाओं को बंद कर दिया है. इसका मतलब है कि ग्राम स्वास्थ्य पोषण दिवस अगले आदेश तक आयोजित नहीं किया जाएगा. वीएचइनडीएस को सरकार के मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत टीकाकरण और सेवाओं की एक श्रृंखला को बढ़ावा देने के लिए हर महीने मनाया जाता है. इनमें प्रसव-पूर्व जांच, नई गर्भवतियों का पंजीकरण और आयरन व फोलिक-एसिड की गोलियों को बांटना शामिल है. वीएचइनडीएस उन बच्चों और गर्भवती महिलाओं की पहचान करने के लिए महत्वपूर्ण है जिन्हें ऐसी सेवाओं की जरूरत है. 30 मार्च को राजस्थान सरकार ने एक और अधिसूचना निकाली जिसमें अधिकारियों को एमसीएच सेवाओं को नहीं रोकने करने के लिए कहा गया लेकिन उसमें यह स्पष्ट नहीं था कि गांवों में आउटरीच सेवाएं जारी रहेंगी.

छाया पंचोली जन स्वास्थ्य आंदोलन की राजस्थान शाखा की सदस्य हैं. जन स्वास्थ्य आंदोलन जमीनी स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का वैश्विक नेटवर्क है. उनके संगठन ने मांग की है कि बड़ी भीड़ जुटाने से बचने के लिए टीकाकरण और प्रसव-पूर्व जांचों को घर-घर जाकर किया जाना चाहिए और साथ ही जरूरी जीवन-रक्षक सेवाओं के व्यवधान से बचा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "आवश्यक एमसीएच सेवाओं में रुकावट के गंभीर परिणाम हो सकते हैं." उन्होंने आगे कहा, “कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य संसाधनों के कम होने से सामान्य स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को बनाए रखना एक चुनौती बन गया है. उन्हें बंद कर देना विनाशकारी होगा.राज्यों को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं जल्द से जल्द शुरू करने के लिए व्यापक योजना बनानी चाहिए. हम इस समय गैर जरूरी मौतें बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे."

 अनुवाद : अंकिता