अप्रैल के मध्य में 59 वर्षीय दिलीप मेनन, उनकी पत्नी और बेटे कोविड-19 से ठीक हो रहे थे कि उन्हें नए लक्षण दिखने शुरू हो गए. “उनकी आंख सूज गई थी और उनके चेहरे पर दर्द होने लगा,” उनके बेटे दिलिंद ने मुझे बताया. "हमने सोचा कि यह किसी कीड़े के काटने से हुआ होगा." लेकिन बाद में पता चला कि मेनन को म्यूकोर्मिकोसिस (काला फफूंद) हो गया है. यह फंगल संक्रमण जल्दी से उनके चेहरे के ऊतकों में फैल गया और उनकी दाहिनी आंख की रोशनी चली गई. दिलिंद ने कहा, “हम उन्हें अब वापस घर ले आए हैं लेकिन अभी भी संक्रमण से चिंतित हैं. वह अभी भी दवा खा रहे हैं. वह एक भयावह अनुभव था. सब कुछ बेतरतीब हो गया है."
दिलीप मेनन उन हजारों लोगों में से एक हैं जिन्हें कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोविड-19 के साथ म्यूकोर्मिकोसिस हो गया है. ऐसे लोगों में जिन्हें कोविड-19 संक्रमण हुआ है या जो स्टेरॉयड जैसे इम्यूनोसप्रेसेन्ट (प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को दबाने वाली दवाइयां) पर हैं, यह संक्रमण कवक के बीजाणु प्रतिरक्षाविहीन रोगियों में ऊतकों को जकड़ लेते हैं. कवक कोशिकाओं और तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचाता है और फैलते ही रक्त की आपूर्ति में कटौती करता है. रक्त की आपूर्ति में कमी ऊतक को काला कर देती है. यह रोग "ब्लैक फंगस" के नाम से भी बदनाम है. चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख जगदीश चंदर ने कहा, "लेकिन कवक के बारे में कुछ भी काला नहीं है." म्यूकोर्मिकोसिस अक्सर घातक होता है और म्यूकोर्मिकोसिस के बारे में जो साहित्य उपलब्ध है वह बताता है कि इसकी मृत्यु दर 54 प्रतिशत तक हो सकती है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में म्यूकोर्मिकोसिस को महामारी घोषित किया है. 7 जून को स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि मई 2021 की शुरुआत में बीमारी के सामने आने के बाद से देश में म्यूकोर्मिकोसिस के 28252 मामलों की पहचान की गई है. इनमें से 86 प्रतिशत मामलों में रोगियों को कोविड-19 संक्रमण हुआ था और 62.3 प्रतिशत मधुमेह के शिकार थे. केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे के अनुसार 28 मई तक इनमें से कम से कम 900 रोगियों की मृत्यु हो चुकी है.
डॉक्टरों ने इस डेटा की पुष्टि उन मामलों से की जो उन्होंने आपातकालीन कक्षों में देखे थे. चेन्नई के अपोलो अस्पताल के एक संक्रामक रोग चिकित्सक अब्दुल गफूर ने कहा, "महामारी से पहले हमारे अस्पताल में प्रति वर्ष ऐसे पांच से दस मामले आते थे और अब कम से कम ऐसे पांच रोगियों को हर रोज हमारे अस्पताल में रेफर किया जाता है."
इस साल भारत में म्यूकोर्मिकोसिस को दुर्लभ माना जाता था. अहमदाबाद में एक संक्रामक रोग विशेषज्ञ अतुल पटेल ने अनुमान लगाया कि महामारी से पहले सालाना लगभग 300 मामलों का निदान किया जाता था. पटेल जनवरी 2016 से सितंबर 2017 के बीच किए गए एक बहु-केंद्र अध्ययन के प्रमुख लेखक थे जिसके अनुसार भारत के अग्रणी तृतीयक देखभाल अस्पतालों में 465 म्यूकोर्मिकोसिस रोगियों का निदान किया गया है. हालांकि यह रोग भारत में स्थानिक था और विश्व स्तर पर इस बीमारी का 70 प्रतिशत प्रसार था.
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