ऐसे समय में जब भारत अपने ही नागरिकों का टीकाकरण पर्याप्त रूप से नहीं कर पा रहा है, हैदराबाद में निर्मित जॉन्सन एंड जॉन्सन सिंगल-शॉट टीकों की 60 करोड़ खुराकें यूरोप तथा अमेरिका को निर्यात करने पर विचार हो रहा है. इस बात को लेकर नागरिक समाज चिंतित है.
यहां सितंबर में लगभग हर दिन कोरोना के 30 से 40 हजार नए मामले दर्ज किए गए हैं. अब तक देश की केवल 14 प्रतिशत आबादी को ही टीके के दोनों डोज लगे हैं. मोदी सरकार ने 2021 के अंत तक देश की वयस्क आबादी को टीके की दोनों खुराक लगा देने का दावा किया है लेकिन भारत विकसित देशों के दबाव में यदि ज्यादातर खुराकों का निर्यात कर देता है तो सरकार अपना वादा पूरा नहीं कर सकेगी.
20 सितंबर को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने घोषणा की थी कि भारत अक्टूब से कोविड-19 टीकों का निर्यात दुबारा शुरू करने जा रहा है. अप्रैल में आई महामारी की भयानक दूसरी लहर के कारण निर्यात को बंद कर दिया गया था. मेडेकिन्स सैन्स फ्रंटियरेस या डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा एक्सेस अभियान की दक्षिण-एशिया प्रमुख लीना मेंघनी ने प्रतिबंध हटाने का स्वागत तो किया है लेकिन यह भी कहा है कि टीकों की जरूरत जहां सबसे अधिक है उन्हें वहीं भेजा जाना चाहिए. उन्होंने कहा है कि “हमें जॉन्सन एंड जॉन्सन की आपूर्ति का हिसाब चाहिए.” मेंघनी ने एक हलफनामे का उल्लेख किया जो केंद्र सरकार ने 29 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया था जिसमें कहा गया था कि "भारत में निर्मित जॉन्सन एंड जॉन्सन वैक्सीन अगस्त 2021 से उपलब्ध होने की उम्मीद है." मेंघनी ने कहा, "हम इसके बारे में जानना चाहते हैं."
16 सितंबर को 14 नागरिक समाज संगठनों ने जॉन्सन एंड जॉन्सन, भारत सरकार और संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार को एक पत्र लिख बताया था कि जॉन्सन एंड जॉन्सन ने दक्षिण अफ्रीका में लाखों कोविड टीके बनाए किंतु उन्हें यूरोप भेज दिया. पत्र में कहा गया है, “फिलहाल जॉन्सन एंड जॉन्सन के पास यूरोपीय संघ और अमेरिका के अधूरे ऑर्डर हैं. ये देश घरेलू जरूरतों से ज्यादा मात्रा में जमाखोरी कर रहे हैं और ऑर्डर दे रहे हैं. इसमें कोई शक नहीं कि इन अनुबंधों को पूरा करने से काफी पैसा कमाया जा सकता है लेकिन ये ऐसे देश नहीं हैं जहां टीकों की सबसे ज्यादा जरूरत है. जैसे ही टीके बन जाते हैं, तो इन्हें यूरोपीय संघ (ईयू) और संयुक्त राज्य अमेरिका में निर्यात किया जाएगा जहां 50 प्रतिशत से ज्यादा वयस्क आबादी को पूरी तरह से टीका लगाया जा चुका है जबकि भारत में केवल 13 प्रतिशत वयस्कों को दोनों खुराक लगी हैं और अफ्रीकी महाद्वीप में यह आंकड़ा तीन प्रतिशत है."
न तो जॉन्सन एंड जॉन्सन और न ही केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि भारत में बनने वाली खुराक कहां जा रही है. कोविड-19 वैक्सीन ग्लोबल एक्सेस (कोवैक्स) जो वैश्विक वैक्सीन गठबंधन गावी के साथ मिल कर काम करती है, ने इस बात का कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया कि उसे भारत से कितनी खुराकों की अपेक्षा है. कोवैक्स एक वैश्विक पहल है जिसका उद्देश्य कोविड-19 टीकों की समान पहुंच सुनिश्चित करना है. 17 सितंबर को भेजे गए सवालों के जवाब में गावी के एक प्रवक्ता ने लिखा है, “फिलहाल भारतीय निर्यात प्रतिबंधों के चलते भारत से खुराक की आपूर्ति रुकी हुई है. घरेलू उत्पादन के तेजी से बढ़ने और अपने खुद के प्रकोप की घटती तीव्रता को देखते हुए हम उम्मीद करते हैं कि भारत अपने प्रतिबंधों में ढील देगा ताकि दुनिया का वैक्सीन पावरहाउस घर पर महामारी से लड़ने के साथ-साथ विदेशों को भी योगदान करेगा.” इस महीने की शुरुआत में वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत पर टीकों के निर्यात को फिर से शुरू करने का दबाव “संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अमीर देशों से आता है जो कोरोनावायरस की पूरी खुराक ले चुके अपने लोगों को बूस्टर शॉट्स देने जा रहे हैं.”
15 सितंबर को रॉयटर्स ने बताया कि एक भारतीय अधिकारी के अनुसार भारत अफ्रीका के लिए टीकों के निर्यात को फिर से शुरू करने पर विचार कर रहा है. रिपोर्ट में अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि "निर्यात का निर्णय लिया जा चुका है." फिर भी भारत से कितनी खुराक का निर्यात किया जाएगा यह स्पष्ट नहीं है. 29 मई तक मोदी सरकार ने अन्य देशों को लगभग 66.4 मिलियन खुराक बेची या दान की थी. भारतीय दवा नियामक प्राधिकरण ने इस साल अगस्त में जॉन्सन एंड जॉन्सन के टीके को आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूर किया. जॉन्सन एंड जॉन्सन की एक खुराक वाली वैक्सीन का निर्माण भारत में हैदराबाद स्थित कंपनी बायोलॉजिकल ई द्वारा किया जा रहा है. कंपनी की प्रबंध निदेशक महिमा दतला ने एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका नेचर को बताया कि उनकी कंपनी हर महीने 40 मिलियन खुराक बनाने की उम्मीद करती है लेकिन उन्हें नहीं पता कि ये खुराकें कहां जाएंगी. उन्होंने नेचर को बताया, "उन्हें कहां और किस कीमत पर निर्यात किया जाएगा इस पर निर्णय पूरी तरह से जॉन्सन एंड जॉन्सन के दायरे में है." नागरिक समाज संगठनों के पत्र में कहा गया है कि "जॉन्सन एंड जॉन्सन विकासशील देशों की परवाह नहीं करता है. उसे मजबूर किया जाए तो बात अलग है."
इसमें उल्लेख किया गया है कि कंपनी ने अफ्रीका से यूरोपीय संघ को लाखों टीकों का निर्यात किया. अफ्रीकी संघ के एक दूत ने सितंबर की शुरुआत में कहा कि विरोध के बाद यूरोपीय संघ कोरोनोवायरस वैक्सीन की लाखों खुराक वापस महाद्वीप में भेजने के लिए सहमत हो गया. इस महाद्वीप में दुनिया में सबसे कम वैक्सीन लगी है. अफ्रीकी देशों को सबसे खराब वैक्सीन नीतियों का सामना करना पड़ रहा है जिसे "वैक्सीन रंगभेद" कहा जा रहा है. अफ्रीकी संघ के एक अधिकारी स्ट्राइव मासीवा ने इस साल जुलाई में मीडिया को बताया, "जब हम उनके निर्माताओं से बात करने जाते हैं, तो वे हमें बताते हैं कि वे यूरोप की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं, हमें भारत से संपर्क करने को कहा जाता है." उन्होंने बताया कि यूरोपीय संघ ने अफ्रीकी देशों के भारत में बनी कोविशील्ड की खुराक लेने वाले लोगों पर प्रतिबंध भी लगाया हुआ है. जबकि कोविशील्ड यूरोपीय संघ द्वारा स्वीकृत एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का भारत-निर्मित संस्करण है. "तो हमारी हालत ऐसी है कि हम कोवैक्स को पैसा देते हैं, जो भारत से टीके खरीदता है और फिर वे हमें बताते हैं कि ये टीके वैध नहीं हैं?" मासीवा ने कहा.
टीकों की जमाखोरी करने के साथ अमीर राष्ट्र भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा पिछले अक्टूबर में बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलुओं या ट्रिप्स समझौते के तहत दायित्वों को माफ करने के लिए शुरू किए गए एक प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं, इस प्रस्ताव के तहत टीके सहित कोविड-19 प्रौद्योगिकियों को पूरी दुनिया में जल्दी से सुलभ बनाया जा सकेगा. भारत और दक्षिण अफ्रीका को विनिर्माण आउटसोर्सिंग करते समय ये अमीर देश गुणवत्ता संबंधी चिंताओं का हवाला देते हैं. बौद्धिक संपदा विशेषज्ञ और गैर-लाभकारी पहल मेडिसिन, एक्सेस एंड नॉलेज (आई-एमएके) के सह-संस्थापक ताहिर अमीन कहते हैं, "जो देश ट्रिप्स समझौते की छूट का विरोध कर रहे हैं वे ट्रिप्स प्रस्ताव का समर्थन करने वाले देशों को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए टीके का उत्पादन करने देकर उन देशों का शोषण कर रहे हैं. लेकिन छूट के समर्थन में उन लोगों की मदद नहीं करते हैं जो "खुद को और दूसरों की मदद करने के लिए अधिक आपूर्ति बढ़ाने की क्षमता या दक्षता रखते हैं. अगर हालात इतने गंभीर नहीं होते तो यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और जर्मनी के नेताओं ने पाखंड और दोमुंहेपन की जो हद दिखाई है उससे रोना नहीं हंसी आती.”
ऐक्सेस आईबीएसए प्रोजेक्ट के समन्वयक अचल प्रभाला, जो दवाओं तक पहुंच के लिए अभियान चलाते हैं और 16 सितंबर के पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक हैं, ने मुझे बताया, "मुझे इस बात पर गुस्सा आया कि बीच महामारी में जॉन्सन एंड जॉन्सन सोचती है कि वह तय कर सकती है कि वैक्सीन किसे भेजी जानी है बजाए इसके कि किसे इसकी जरूरत है.” प्रभाला एक दक्षिण अफ्रीकी कल्याणकारी संगठन शटलवर्थ फाउंडेशन में फैलो भी हैं. उन्होंने कहा कि जॉन्सन एंड जॉन्सन का हिसाब तो इस विचार से भी बना हो सकता है कि किस देश ने पहले टीकों का ऑर्डर दिया या किसने ज्यादा पैसे दिए. "हमारा हिसाब- जैसा कि हम पत्र में बताते हैं- सरल है : जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है इसे वहीं होना चाहिए,” उन्होंने कहा. भारतीय नागरिक समाज के सदस्यों ने पत्र में कहा है, “भारत और अफ्रीकी महाद्वीप में टीकों की सबसे अधिक जरूरत है और कोवैक्स दुनिया के सबसे गरीब देशों में टीके प्राप्त करने के लिए एक वैश्विक परोपकारी पहल है. बड़ी संख्या में अशिक्षित आबादी वाले विकासशील देशों में कोविड-19 से संक्रमण और मौतों में भयावह तेजी देखी जा रही है. जॉन्सन एंड जॉन्सन को उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए.”
प्रभाला ने कहा, "तथ्य यह है कि इन खुराकों का उत्पादन भारतीय श्रम के साथ-साथ भारतीय धरती पर किया जा रहा है जिससे हमें पता चलता है कि वे कहां जाते हैं और हम चाहते हैं कि वे भारत, अफ्रीकी संघ और कोवैक्स के अलावा और कहीं नहीं जाएं. हाल के इतिहास से पता चलता है कि जॉन्सन एंड जॉन्सन तब तक तर्कसंगत, मानवीय, प्राथमिकताएं निर्धारित नहीं करेगा जब तक कि हम उसे मजबूर नहीं कर दें. इसलिए हम ऐसा कर रहे हैं."
सितंबर 2021 के लिए कोवैक्स सप्लाई फोरकास्ट में उल्लेख है, "जॉन्सन एंड जॉन्सन की इमर्जेंट फैसिलिटी (जिसे कोवैक्स की आपूर्ति करने के लिए अनुबंधित किया गया है) में उत्पादन के मुद्दों के कारण देरी हुई है. जबकि उत्पादन अब फिर से शुरू हो गया है, अन्य द्विपक्षीय ग्राहकों के लिए नए ऑर्डर और पुराने बकाया ऑर्डरों के चलते निर्धारित समयसीमा में देरी हुई और 2021 में कोवैक्स को कम मात्रा में उपलब्ध होगी.” अपने पत्र में भारतीय नागरिक-समाज संगठनों ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से आग्रह किया कि वह जॉन्सन एंड जॉन्सन को ग्लोबल साउथ में दवा कंपनियों के साथ साझेदारी करने को कहें ताकि वैक्सीन इक्विटी की ओर बढ़ा जा सके. अगर अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन पूरी दुनिया के टीकाकरण को लेकर सच में गंभीर हैं तो उनके प्रशासन के पास इतनी नैतिक, कानूनी और अगर जरूरत पड़े तो वित्तीय ताकत है कि वह बौद्धिक संपदा की बाधाओं को हटा सकते हैं और जॉन्सन एंड जॉन्सन को इस बात के लिए राजी कर सकते हैं कि वह स्पुतनिक-वी वैक्सीन बनाने में लगे हर निर्माता को प्रौद्योगिकी और अन्य मदद के साथ ही वैक्सीन का लाइसेंस दे.”