जब भारत में कोविड-19 वैक्सीन के वितरण के लिए लॉजिस्टिक्स की तैयारी का अंतिम चरण चल रहा है, तब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या सरकार इसे आधार से जोड़ेगी? स्वास्थ्य मंत्रालय ने अक्टूबर में दिशानिर्देश जारी किए थे कि सरकार ने लोगों के आधार डेटा को उनके टीकाकरण से जोड़ने के मामले में अंतिम फैसला नहीं किया है.
26 अक्टूबर को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजे गए एक आदेश में, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने लिखा था कि नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रिशन कोविड-19 या एनईजीवीएसी के राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह ने “परिकल्पना की थी कि वैक्सीन वितरण की प्राथमिकता में सबसे पहले स्वास्थ्य कार्यकर्ता होंगे और उनके बाद अन्य फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं और आयु वर्ग को वैक्सीन दी जानी हैं.” स्वास्थ्य कर्मियों के डेटा को कोविड-19 टीकाकरण लाभार्थी प्रबंधन प्रणाली या सीवीबीएमएस नामक एप्लिकेशन में पंजीकृत किया जा रहा है. यह यूआईपी के लिए पहले से मौजूद वैक्सीन निगरानी तकनीक और तंत्र का उपयोग करते हुए भारत के लंबे समय से चले आ रहे यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम) के समानांतर चलेगा.
26 अक्टूबर के आदेश से पहले सरकार ने ऐसे दिशानिर्देश भी जारी किए थे जिनमें राज्यों, जिलों और केंद्रशासित प्रदेशों को स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ताओं के नाम, लिंग, मोबाइल नंबर और पिन कोड का डेटा इकट्ठा करने को कहा गया था. स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वास्थ्य अधिकारियों को अक्टूबर के अंत तक डेटा अपलोडिंग प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया था. गाइडलाइन में दस तरह के फोटो पहचान का जिक्र किया गया है जिसे सरकार किसी खास कारण से आधार कार्ड न होने पर स्वीकार करेगी. दिशानिर्देश कहता है कि “आधार विवरण दर्ज नहीं किया जाएगा लेकिन टीकाकरण के समय अनिवार्य होगा.” दस्तावेज में आधार का तीन बार उल्लेख किया गया है. यह स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को आधार डेटाबेस में सूचीबद्ध अपना नाम, आधार से जुड़ा फोन नंबर, यदि हो तो, देने को कहता है और साथ ही यह भी कहता है कि स्वास्थ्य कार्यकर्ता का वर्तमान पता उसके आधार कार्ड में उल्लेखित पते से भिन्न हो सकता है.
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के एसोसिएट काउंसिल देवदत्त मुखोपाध्याय का मानना है कि सरकार का इरादा कोविड-19 टीकाकरण को आधार से जोड़ना है. उन्होंने कहा कि यह मंशा इस तथ्य में स्पष्ट है कि स्वास्थ्य कर्मियों को टीकाकरण के दौरान अपना आधार कार्ड लाने के लिए कहा गया है और सरकार चाहती है कि आधार दस्तावेज से मिलान करने के लिए उनके नाम और फोन नंबर दर्ज किए जाएं. “आधार जैसी आधिकारिक पहचान संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा का एक स्वरूप है और सरकार ऐसे डेटा को तब तक एकत्र नहीं कर सकती जब तक कि ऐसा करने के लिए कानून द्वारा मान्यता प्राप्त एक स्पष्ट और विशिष्ट उद्देश्य न हो.”
एक बार दिशानिर्देश जारी किए जाने के बाद, समाचार रिपोर्टों ने प्रमाणीकरण के उद्देश्य और “दोहराव से बचने और लाभार्थियों को ट्रैक करने के लिए” आधार के साथ लिंक किए जाने के बारे में गुमनाम आधिकारिक स्रोतों के हवाले से बताया है. ओडिशा और महाराष्ट्र के वरिष्ठ स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने भी संवाददाताओं को बताया कि स्वास्थ्य कर्मियों के आधार कार्ड के विवरण को डेटाबेस से जोड़ा जाएगा. ओडिशा के अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रदीप कुमार महापात्र ने नवंबर के मध्य में मुझे बताया कि राज्य ने तीन लाख बीस हजार से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों का विवरण एकत्र किया है. राज्य के स्वास्थ्य अधिकारी अब सीवीबीएमएस के लिंक का इंतजार कर रहे हैं जिस पर डेटा अपलोड किया जा सकता है. महापात्र ने उन रिपोर्टों की पुष्टि की है कि राज्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के आधार विवरण को इस डेटाबेस से जोड़ना चाहते हैं. “जिला स्तर के डेटा संग्राहक अभी के लिए आवश्यक विवरण भर रहे हैं. हमारे अधिकांश स्वास्थ्य कर्मियों के पास आधार कार्ड है इसलिए इसे बिना किसी परेशानी के डेटाबेस से जोड़ा जाएगा,” उन्होंने कहा.
अधिकांश प्रशासक, स्वास्थ्य अधिकारी और नोडल अधिकारी, जिनसे मैंने बात की, वे आधार के इस्तेमाल के बारे में साफ थे. स्वास्थ्य मंत्रालय के किसी अधिकारी या एनईजीवीएसी के सदस्य ने टीकाकरण प्रक्रिया में आधार की भूमिका पर कोई बयान नहीं दिया है. मैंने टीकाकरण के लिए संयुक्त आयुक्त भूषण और वीणा धवन को ईमेल किया. मैंने राष्ट्रीय कोविड-19 सेल से प्रेम सिंह को भी ईमेल किया, जिन्हें दिशानिर्देश में डेटा संग्रह के बारे में प्रश्नों के लिए संपर्क व्यक्ति के रूप में सूचीबद्ध किया है. इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक किसी ने भी जवाब नहीं दिया.
एक राज्य-स्तरीय यूएनडीपी अधिकारी, जिन्होंने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि कोई भी अधिकारी इस मुद्दे पर एक निश्चित बयान नहीं देगा. “ये तो आप भूल ही जाइए,” उन्होंने नवंबर की शुरुआत में टेलीफोन पर कहा था. उन्होंने कहा कि राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों और यूएनडीपी के अधिकारियों ने आधार को कुछ बिंदु पर कोविड-19 प्रतिरक्षण से जोड़ने की योजना पर चर्चा की थी. “यह एक प्रक्रिया है. अभी कुछ भी पूरी तरह से तय नहीं हुआ है लेकिन ऐसी योजनाएं हैं जहां आधार का उपयोग उन लाभार्थियों को ट्रैक करने और मान्य करने के लिए किया जाएगा जिन्हें प्रमाणीकरण के लिए वनटाइम पासवर्ड भेजा जाएगा.” उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य अधिकारी स्पष्ट रूप से आधार विवरण नहीं मांगेंगे क्योंकि यह प्रक्रिया सार्वजनिक जांच के तहत होगी.
महाराष्ट्र के टीकाकरण अधिकारी, जिन्होंने नाम नहीं छापने का आग्रह किया, ने कहा, “यह एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है. आधार को डेटाबेस से जोड़ने के बारे में कुछ बैठकों में बातचीत हुई थी लेकिन अब हम सिर्फ केंद्र के आदेशों को पूरा कर रहे हैं, डेटा एकत्र कर रहे हैं लेकिन स्वास्थ्य कर्मियों के आधार विवरण नहीं.”
केंद्र ने कोविड-19 वैक्सीन के लिए विशिष्ट डिजिटल सेवाओं की शुरुआत की है. 8 दिसंबर को भूषण ने घोषणा की कि सरकार ने को-विन नामक एक एप्लिकेशन तैयार किया है जो टीकाकरण की इच्छा रखने वाले लोगों द्वारा मुफ्त में डाउनलोड किया जा सकता है. ऐप का उपयोग वैक्सीन वितरण प्रणाली की निगरानी और लाभार्थियों के टीकाकरण की स्थिति पर नजर रखने के लिए किया जाएगा. यह आसान सत्यापन के लिए त्वरित प्रतिक्रिया कोड या क्यूआर कोड नामक दो-आयामी बारकोड के साथ इलेक्ट्रॉनिक टीकाकरण प्रमाणपत्र भी निर्मित करेगा.
ठीक तभी स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 टीकाकरण के लिए परिचालन दिशानिर्देश जारी किए. इन दिशानिर्देशों ने एक प्रमाणीकरण प्रक्रिया निर्धारित की है जिसके अनुसार लाभार्थियों को को-विन ऐप में खुद को पंजीकृत करने के लिए अपना आधार कार्ड या अन्य फोटो पहचान देने होंगे. हालांकि दस्तावेज कहता है कि आधार संख्या देकर “लाभार्थी कॉमन सर्विस सेंटरों (सीएससी) से कोविड-19 टीकाकरण का प्रमाण पत्र डाउनलोड और प्राप्त कर सकते हैं.’’ इसमें किसी व्यक्ति के लिए बिना आधार के प्रमाणपत्र प्राप्त करने का तरीका नहीं बताया गया है. स्वास्थ्य मंत्रालय के पहचान दिशानिर्देश कहते हैं कि अगर किसी व्यक्ति के पास आधार नहीं है तो टीकाकरण अधिकारी अपने जनसांख्यिकीय विवरण को सत्यापित करने के लिए अन्य दस्तावेजों का उपयोग कर सकते हैं.
कोविड-19 टीकाकरण के साथ आधार को जोड़ने की संभावना के बारे में जो बड़ा सवाल उठता है वह यह है कि क्या आधार प्रणाली के चलते टीकाकरण नहीं करा पाए लोगों को अन्य सेवाओं से वंचित नहीं कर दिया जाएगां? रीतिका खेरा दिल्ली में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में सामाजिक वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री हैं, जो आधार प्रक्रिया शुरू होने के बाद से इसके कारण कल्याणकारी योजनाओं से लोगों को बाहर कर दिए जाने का दस्तावेजीकरण कर रही हैं. उनके कई लेख प्रकाशित हुए हैं और अपने यूट्यूब चैनल पर उन्होंने 50 से अधिक मामलों के अध्ययनों को अपलोड किया है. ये उन लोगों की कहानियां बताते हैं जो आधार प्रमाणीकरण की समस्याओं के कारण महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम योजना में काम पाने से वंचित हो गए. उन्होंने यह भी दिखाया है कि कैसे लोग सब्सिडी वाले राशन कार्ड और पेंशन से वंचित हो गए हैं. 2016 के अपने एक मामले के अध्ययन में हैदराबाद में एक परिवार अपनी स्थानीय राशन की दुकान पर बायोमेट्रिक मशीन में तकनीकी खराबी के कारण अपने महीने का राशन नहीं पा सका. अगस्त 2018 में अपलोड किए गए एक अन्य वीडियो में दिखाया गया है कि कैसे ओडिशा के गांव में एक दृष्टिहीन लड़का सेवाओं से वंचित था.
खेरा ने कहा, “आधार से मिलने वाले फायदे की जगह उससे हुए दर्द के काफी सबूत हैं हमारे पास. आप इसे वैक्सीन से जोड़कर ऐसी गलती क्यों दोहराना चाहेंगे?” खेरा ने ऐसे तरीकों का अनुमान लगाया जिनमें आधार से जोड़ना लोगों को टीकाकरण की प्रक्रिया से ही बाहर कर देगा जबकि वह एक आवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्य है. कई लोगों पर, जिनमें ऐसे भी लोग शामिल हैं जो बीमार हैं और चलफिर नहीं सकते और जो कभी नामांकन ही नहीं करा पाएंगे यानी बुजुर्ग लोग, बीमार मजदूर लोग जिनके नामांकन के वक्त बायोमेट्रिक्स ठीक से काम नहीं कर रही थी और आखिरकार वे लोग जिनके पास आधार तो है लेकिन है किसी काम का नहीं क्योंकि आधार डेटाबेस में उनके जनसांख्यिकीय या बायोलॉजिकल विवरण गलत तरीके से दर्ज हैं, इसका बुरा असर पड़ेगा.
अपनी सभी जगजाहिर खामियों के चलते आधार को कोविड-19 टीकाकरण से जोड़ने के ख्याल ने सार्वजनिक बहस को जन्म दिया है. खेरा ने कहा कि आधार एकीकरण की दिशा में यह नया प्रयास स्वास्थ्य डेटा इकट्ठा करने के लिए राज्य मशीनरी का उपयोग करने का एक सुविधाजनक तरीका है. “इस तरह की स्वास्थ्य निगरानी जो उनके दिमाग में है वह सार्वजनिक हित में नहीं है,” उन्होंने कहा. “कोई भी सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता आपको यही बताएगा कि इस तरह के डेटा संग्रह और डेटा के केंद्रीकरण की संभावना निजी स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के उपयोग के लिए है जो लोगों, विशेष रूप से गरीब लोगों को नुकसान पहुंचाएगी. एक मजबूत गोपनीयता कानून के अभाव में, जिसे लोग समझते हों और उपयोग कर सकते हों, यह निजी लाभ के लिए सार्वजनिक संसाधनों का उपयोग करना है.”
आधार को कोविड-19 टीकाकरण से जोड़ने के विचार का समर्थन करने वाली दो मशहूर हस्तियां, नंदन नीलेकणी और किरण मजूमदार-शॉ, प्रौद्योगिकीविद् और उद्यमी हैं. नीलेकणी आधार के वास्तुकार और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, जो इस योजना को लागू करती है, के संस्थापक अध्यक्ष हैं. 19 अक्टूबर को प्रकाशित इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक साक्षात्कार में नीलेकणी ने कोविड-19 टीकाकरण प्रक्रिया के साथ आधार को जोड़ने के लिए एक विस्तृत प्रस्ताव रखा, जहां सभी लाभार्थियों को आधार और डेटा सहित प्रमाणित किया जाएगा, जहां “व्यक्ति का नाम, वैक्सीन लगाने वाले का नाम, किस टीके का उपयोग किया गया, किस समय, तारीख, स्थान को रिकॉर्ड किया जाएगा” और इन जानकारियों को क्लाउड पर अपलोड किया जाएगा. नीलेकणी ने यह भी प्रस्ताव दिया कि टीकाकरण के प्रमाण के रूप में एक डिजिटल प्रमाण पत्र लाभार्थियों को भेजा जाए, जिसे “नौकरी के साक्षात्कार, हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड आदि“ पर मांगा जा सकता है. उन्होंने कहा कि “यह केवल इसलिए जरूरी नहीं है कि मुझे टीका लग गया है बल्कि यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आप जानते हैं कि मुझे टीका लगा है.
आधार से टीकाकरण को जोड़ने की स्थिति का विचार यह निर्धारित कर सकता है कि कोई व्यक्ति नौकरी पा सकता है, हवाई जहाज या ट्रेन से जा सकता है या अन्य सेवाओं का लाभ ले सकता है या नहीं, यह खतरनाक है. यानी नौकरी के साक्षात्कारकर्ता, हवाई जहाज के टिकट काउंटर पर तैनात व्यक्ति, रेलवे क्लर्क और बस कलेक्टर ऐसे व्यक्ति को हटा सकते हैं जिनके पास यह टीकाकरण प्रमाण पत्र नहीं है. मैंने नीलेकणी को ईमेल किया कि क्या आधार प्रमाण पत्र के रूप में आधार के उपयोग की अनुमति देने से लोगों को सुविधाओं से वंचित किया जा सकता है, क्या डेटा संरक्षण कानूनों की गैर मौजूदगी में इसका उपयोग खतरनाक नहीं है? उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को तकनीकी सहायता प्रदान करने वाले निकाय, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र के एक पूर्व कार्यकारी निदेशक टी सुंदररमन ने कहा, “कोविड-19 वैक्सीन एक अनिवार्य सार्वजनिक कार्य है और एक सामान्य नियम के रूप में, लोगों को कभी भी वैक्सीन लेने या किसी भी तरह से मजबूर होने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए.” सुंदररमन दशकों से भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर शोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि टीकाकरण की स्थिति जैसी जानकारी को संवेदनशील माना जा सकता है और इसे निजी कंपनियों को अंधाधुंध नहीं बांटना चाहिए. “शायद सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा चिंताओं वाला कोई नयोक्ता ऐसी जानकारी मांग सकता है लेकिन फिर से ऐसी जानकारी का खुलासा करने का निर्णय व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए,” उन्होंने कहा.
मजूमदार-शॉ जैव प्रौद्योगिकी कंपनी बायोकॉन की अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं. वह सोशल मीडिया पर जहां उन्हें काफी लोग फॉलो करते हैं, और समाचार मीडिया को दिए अपने साक्षात्कार मे, कोविड-19 टीकाकरण के लिए आधार के समर्थन में मुखर रही हैं. पत्रकार बरखा दत्त के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने आधार को “डिजिटल रीढ़“ कहा, जिसके साथ “लोगों को ट्रैक और ट्रेस किया जाता है.”
सरकार को कोविड-19 प्रतिरक्षण के रिकॉर्ड को बनाए रखने की आवश्यकता होगी लेकिन लोगों का पता लगाने और उन्हें ट्रैक करने की जरूरत खत्म हो सकती है. एक तो इस वजह से कि टीके लगवाने वाले लोगों पर नजर रखना उन लोगों को ट्रेस करने से अलग है जो संक्रमित हैं और उनके संपर्क में आए हैं. ज्यादातर लोग टीकाकरण करवाना चाहते हैं ताकि वे फिर से अपना आर्थिक-सामाजिक जीवन शुरू कर सकें. इसके अलावा, इस बात की थोड़ी चिंता जरूर है कि लोग दी गई खुराकों से ज्यादा पाने की कोशिश करेंगे. “क्या आपको लगता है कि लोग बार-बार वैक्सीन की एक और खुराक के लिए आते रहेंगे?” योगेश जैन ने कहा वे बाल रोग विशेषज्ञ और एक स्वास्थ्य सहायता समूह जन स्वास्थ्य सहयोग के संस्थापक सदस्य हैं. “क्या हमने कभी अन्य टीकाकरण योजनाओं में ऐसा होते देखा है कि कोई मां अपने बच्चे को दो बार टीका लगाने के लिए लाई हो?”
मैंने मजूमदार-शॉ को लिखा कि वह यह बताएं कि वे ऐसा क्यों सोचती हैं कि टीके के लाभार्थियों की निगरानी के लिए आधार का उपयोग किया जाना चाहिए. मजूमदार-शॉ ने अपनी ईमेल प्रतिक्रिया में कहा कि हमारे पास अलग-अलग समय पर कई प्रोफाइलों के साथ कई टीके होंगे. उन्होंने लिखा. “उदाहरण के लिए, यदि टीका ए की प्रतिक्रिया थोड़े समय के लिए हो और और टीका बी की प्रतिक्रिया लंबे समय के लिए, तो एक डेटाबेस होना महत्वपूर्ण होगा जो दिखाता हो कि किसने टीका ए प्राप्त किया ताकि उन्हें सही समय पर दुबारा टीका दिया जा सके.” उन्होंने यह भी कहा कि आधार एक “पहले से तैयार प्रणाली है और इलेक्ट्रॉनिक टैग विकसित करने की कोशिश के बजाय हम इसका ही उपयोग कर सकते हैं” और यह विभिन्न अन्य टीके की तुलना में उम्मीदवारों का एक स्थाई समेकित डेटाबेस बनाने में सक्षम करेगा. जबकि नीलेकणी आधार के लिए टीकाकरण प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिए कह रहे हैं, जिसके आधार पर लोगों को विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति दी जा सकेगी, मजूमदार-शॉ ने मुझे लिखा कि कोई भी किसी के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए टीकाकरण डेटा का लाभ नहीं उठाएगा.
मजूमदार-शॉ का तर्क भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम की भारी सफलता को नजरअंदाज करता है, जो आधार के बिना 35 वर्षों से चला आ रहा है. इसने बीसीजी वैक्सीन और डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टेटनस के खिलाफ टीके के लगातार 80 प्रतिशत से ऊपर रहने और हाल के वर्षों में 90 प्रतिशत से ऊपर पहुंचने पर टीकाकरण की उच्च दर हासिल की है. कार्यक्रम की सबसे बड़ी सफलता यह रही कि 2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया गया. यह कार्यक्रम सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं जैसे कि मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता या आशा और सहायक नर्स मिडवाइव्स या एएनएम पर निर्भर करता है जो नियमित रूप से प्रतिरक्षा अभियानों को संचालित करते हैं, लाभार्थियों का रिकॉर्ड बनाए रखते हैं और उनके स्वास्थ्य की निगरानी करते हैं. वे इलेक्ट्रानिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क या ईवीआईएन ऐप के माध्यम से बड़े पैमाने पर टीकाकरण का प्रबंधन करते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ईवीआईएन को “एक मजबूत आईटी अवसंरचना“ वाली एक “अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी” कहता है. ईवीआईएन ऐप का इस्तेमाल 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किया जा रहा है.
सुंदररमन ने मुझे बताया कि कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम को मजबूत निगरानी और डिजिटल रिकॉर्ड की आवश्यकता होगी. यह पहले से ही जारी टीकाकरण प्रणाली के तहत उपलब्ध है. “यह निगरानी आधार के जरिए करने की जरूरत नहीं है. वैक्सीन की प्रभावकारिता और स्थायित्व पर पोस्ट मार्केटिंग डेटा को आधार के बिना दर्ज किया जा सकता है,” उन्होंने कहा.
नीलेकणी और मजूमदार-शॉ तकनीकी तर्क देते हैं. लेकिन एक अच्छे सामूहिक टीकाकरण कार्यक्रम के लिए यह जरूरी है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के मामले में जमीन पर क्या चीज काम करेगी. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या चीज काम नहीं करेगी. खेरा के काम ने बार-बार दिखाया है कि आधार उन अधिकारों और सेवाओं में अवरोध पैदा करता है जहां पहले कोई अवरोध नहीं था. यह तथ्य 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का आधार बना है कि आधार किसी भी सेवा को प्रदान करने के लिए अनिवार्य शर्त नहीं हो सकता है. आधार या प्रमाणीकरण विफलता की अनुपस्थिति का उपयोग कल्याणकारी लाभों से वंचित करने के लिए नहीं किया जा सकता है. प्रमाणीकरण के लिए आधार का उपयोग करना भी समस्याग्रस्त है क्योंकि सिस्टम पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है. उदाहरण के लिए, लोगों ने सरकारी योजनाओं के तहत लाभार्थियों के रूप में गलत तरीके से पंजीकरण करने के लिए सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध आधार संख्या का उपयोग किया है.
जैन का मानना है कि आधार के समर्थक इस योजना का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. “उन्होंने वैक्सीन के रूप में यहां सिर्फ एक और मौका पाया है,” उन्होंने कहा. “एक संभावित वैक्सीन के लिए, जिसकी सुरक्षा और प्रभावकारिता अभी भी हमारे लिए अज्ञात है, तथ्य यह है कि सरकार का संसाधनों के दुरुपयोग और प्रमाणीकरण के बारे में चिंता करना हास्यास्पद है,” उन्होंने कहा.
भले ही किसी व्यक्ति के टीकाकरण की स्थिति सबसे संवेदनशील जानकारी न हो, फिर भी कोविड-19 से जुड़ी बदनामी अभी भी है. इसका मतलब है कि हमें इस बात से सावधान रहने की जरूरत है कि यह जानकारी कहां से जुड़ी है और किसके साथ साझा की गई है. खेरा ने पूछा, “अगर इस जानकारी का कोई इस्तेमाल नहीं करना है, तो वे वैक्सीन को पासपोर्ट से जोड़ कर क्या हासिल करना चाहते हैं?”