भारत के पवित्र साहित्य सभी चीजों को नश्वर मानते हैं और नवीनीकरण और बदलाव को कुदरत की नेमतें मानते हैं लेकिन इसके साथ ही ये ग्रंथ इस बात पर भी जोर देते हैं कि किसी चीज को पूरी तरह त्याग देने या उनके पुनर्निर्माण से पहले उनके नवीनीकरण और उनको सुधार ने की कोशिश की जानी चाहिए. अग्नि पुराण स्पष्ट शब्दों में बताया है कि पुरानी और टूटी हुई मूर्तियों को फेंक देने के बजाय उनकी मरम्मत की जानी चाहिए और उन्हें केवल तभी बदला जाना चाहिए जब मरम्मत मुमकिन न हो. भारत के प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करते समय विद्वानों ने महाकुंभभिषेखम या प्राण प्रतिष्ठा और काकसु-दान सहित अन्य समारोहों को जीर्णोद्धार- यानी संरक्षण और पुन: उपयोग- के रूप में परिभाषित किया है.
कला इतिहासकार अन्नपूर्णा गैरिमेला लिखती हैं, "जीर्णोद्धार का शाब्दिक अर्थ है अतीत को पचाना या नवीनीकरण का पवित्र कार्य." गैरिमेला ने अपने शोध प्रबंध के लिए दक्कन और प्रायद्वीपीय भारत में 2200 शिलालेखों और दर्जनों मंदिरों का अध्ययन किया. उनके शोध का शीर्षक था "प्रारंभिक विजयनगर की वास्तुकला, शैली और राज्य गठन." विजयनगर साम्राज्य, जो चौदहवीं और सोलहवीं शताब्दी के बीच फला-फूला, की इमारतें जिन शासकों ने बनवाई थीं जिन्होंने समायोजन और पुनर्निवेश के जरिए चोल अतीत के प्रति एक सम्मानजनक रवैया अपनाया. गैरिमेला बताती हैं कि इसे "जो पहले से ही कायम है उसकी पूजा-आराधना, जीवन को पुनर्जीवित या पुन: स्थापित करने के बतौर समझा जाता है. 'उद्धार' शब्द का एक अर्थ कर्ज भी है, जो इस मामले में अतीत से वर्तमान ने लिया है, खासकर वंश के संबंध में विरासत और भविष्य के लिए उस अतीत को सामने रखने की व्यक्ति की क्षमता. उनके शोध से पहले के कई ग्रंथ भी इस तरह के व्यवहार पर ध्यान देते हैं. वास्तुकला के बारे में ग्यारहवीं या बारहवीं शताब्दी के एक दक्षिण भारतीय ग्रंथ मयमतम में एक पूरा अध्याय जीर्णोद्धार पर है, जबकि इससे पुराने अग्नि पुराण में इस विषय पर दो अध्याय हैं.
हालांकि, इस अवधारणा पर आधुनिक अध्ययन और लेखन की कमी ने भारतीय कला और मंदिर पूजा में क्या महत्वपूर्ण होता है इसके बारे में गहरी गलतफहमी पैदा की है, साथ ही भारतीय संस्कृति में संरक्षण और इतिहासबोध की अभिन्न भूमिका को भी सामने आने नहीं दिया है. संरक्षण, मरम्मत और रखरखाव भारतीय चिंतन की कुंजी रही है. और इनकी समझ, भारतीय संदर्भ में, ऐतिहासिक कलाकृतियों और स्मारकों के उपयोग के बारे में नया दृष्टिकोण देती है. 2009 में जी8 शिखर सम्मेलन के उद्घाटन के सात महीने पहले, अपनी छवि को लेकर हमेशा सतर्क रहने वाले इतालवी प्रधान मंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी ने सम्मेलन स्थल को एक नए स्थान पर स्थानांतरित करने का निर्णय लिया. यह जगह थी मध्य इटली में ल'अक्वीला शहर, जो आठ महीने पहले आए भूकंप से बड़े पैमाने पर तहस—नहस हो गया था. सम्मेलन की तैयारी दो सालों से चल रही थी. छोटे से द्वीप सार्डिनिया के ला मदाल्डेना में होटल और बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए 287 मिलियन डॉलर की लागत से तैयारी चल रही थी. आलोचकों ने बर्लुस्कोनी को इस तरह जल्दबाजी में फैसले नहीं लेने की सलाह दी. हालांकि, उन्होंने यह कह कर इस मामले को चतुराई से निपटाया कि "सम्मेलन के लिए भूकंप से जख्मी धरती की तुलना में कौन सी जगह ज्यादा सटीक होगी?" बर्लुस्कोनी ने आगे कहा कि उनकी सरकार ने कलात्मक मूल्य के 44 क्षतिग्रस्त स्थलों की एक सूची बनाई है, जिन्हें बाहरी मुल्क "अपना कर" जीर्णोद्धार कर सकते हैं. इस कदम सेजी-8 के नेताओं को इस उद्देश्य के लिए इटली में सहयोग और निवेश करने के लिए मजबूर होना पड़ा. संकट को अवसर में बदल दिया गया.
इसके उलट, जबकि भारत 2023 में जी20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने की तैयारी कर रहा है और महामारी की चपेट से भी जूझ रहा है, देश की सरकार दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट्रल विस्टा की मरम्मत और सुधार के बजाय उसे मटियामेट करने पर तुली है.
भारत के पास अभी जीर्णोद्धार की अपनी प्राचीन परंपराओं और इतिहास पर काम करने का मौका है. अभिनवभारती के छठे अध्याय में, अभिनवगुप्त कहते हैं: "जैसे-जैसे हमारी बौद्धिक जिज्ञासा ऊंची होती जाती है, हमारे सम्मानित पूर्ववर्तियों द्वारा बनाई गई सीढ़ियों के कारण ही थकान महसूस किए बिना सत्य को देखना संभव हो पाता है. एक समृद्ध और फलदायी विचार केवल उसी नींव पर रचा जा सकता है जिसे हमारे पूर्ववर्तियों द्वारा तैयार किया गया है." इसी तरह, कालिदास के मालविका-अग्निमित्रम की शुरूआत एक अद्भुत अंश से होती है जिसमें कलाकार अपने प्रबंधक से पूछते हैं कि उन्हें कुछ नया क्यों करना चाहिए, जबकि यह कहानी पहले से ही स्थापित प्रसिद्ध कवियों, जैसे कि भासा, सौमिलका, कविपुत्र और अन्य ने पेश की है? कालिदास प्रबंधक के जरिए जवाब देते हैं, "कोई वस्तु पुरानी है इसलिए अच्छी नहीं होगी अथवा किसी कविता की निंदा इसलिए करना की वह नई है, उचित नहीं होता. विद्वान पुरुष सावधानीपूर्वक जांचने के बाद इसे या उसे स्वीकार करते हैं. अल्प बुद्धि वाला मनुष्य दूसरों की राय से निर्देशित होता है."
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