जगह नई पटकथा वही

मध्य प्रदेश की कमल मौला मस्जिद का हाल बाबरी जैसा करने की कवायद में हिंदू महासभा

कमल मौला मस्जिद परिसर 1912 में ली गई तस्वीर. धार में हिंदू समूहों का दावा है कि कमल मौला मस्जिद ग्यारहवीं शताब्दी की एक संरचना है, जिसे भोजशाला कहा जाता है, जो मध्यकालीन सम्राट भोज द्वारा संचालित एक स्कूल था और यह देवी सरस्वती के मंदिर का स्थान था, जिसे वाग्देवी भी कहा जाता है. वेरनॉन एंड कंपनी/रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी/ गेटी इमेजिस
कमल मौला मस्जिद परिसर 1912 में ली गई तस्वीर. धार में हिंदू समूहों का दावा है कि कमल मौला मस्जिद ग्यारहवीं शताब्दी की एक संरचना है, जिसे भोजशाला कहा जाता है, जो मध्यकालीन सम्राट भोज द्वारा संचालित एक स्कूल था और यह देवी सरस्वती के मंदिर का स्थान था, जिसे वाग्देवी भी कहा जाता है. वेरनॉन एंड कंपनी/रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी/ गेटी इमेजिस

We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing

सितंबर 2023 में मध्य प्रदेश चुनाव से बमुश्किल दो महीने पहले पुलिस ने धार शहर में कमल मौला मस्जिद के परिसर में सरस्वती की मूर्ति रखने की कोशिश करने के आरोप में चार लोगों को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार किए गए लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी अखिल भारत हिंदू महासभा से थे. हिंदू महासभा ने बाद में दावा किया कि मंदिर के भीतर सरस्वती की एक मूर्ति अपने आप ही प्रकट हो गई थी.

यह घटना उस बात की एक भयानक याद दिलाती है जब 1949 में बाबरी मस्जिद में एक मूर्ति के प्रकट होने का ऐसा ही दावा किया गया था. उसमें भी हिंदू महासभा के सदस्य शामिल थे. 1949 की उस घटना ने एक दशक लंबे राजनीतिक और सामाजिक विवाद को जन्म दिया. धार में हिंदू समूहों का दावा है कि कमल मौला मस्जिद दरअसल ग्यारहवीं शताब्दी की एक संरचना है, जो भोजशाला है. यह एक स्कूल था जिसे मध्यकालीन सम्राट भोज चलाते थे और यह देवी सरस्वती के मंदिर का स्थान था, जिसे वाग्देवी के रूप में जाना जाता है. उत्तर प्रदेश में अयोध्या, वाराणसी और मथुरा में विवादित मस्जिदों से आगे बढ़ते हुए हिंदुत्व संगठनों ने धार्मिक मान्यताओं के नाम पर राजनीतिक लामबंदी की चाह में अपना ध्यान कमल मौला मस्जिद और कर्नाटक में बाबा बुदनगिरी दरगाह पर टिका दिया है.

पिछले तीन दशकों में, खासकर 1998 से 2003 तक जब तक मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, धार में हिंदू समूहों ने इस जहग पर दावा करने के कई कोशिशें कीं, जिससे प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच कई बार टकराव के हालात बने. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जारी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अप्रैल 2003 में, राज्य सरकार ने हिंदुओं को मंगलवार को इस जगह पर प्रार्थना करने की और मुसलमानों को शुक्रवार के दिन मस्जिद में नमाज अदा करने की इजाजत दी. कांग्रेस की सरकार के दौरान हुई लामबंदी के बाद मंदिर पर ज्यादातर तनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार के दौरान हुआ, जिसने सत्ता में अपने दो दशकों के दौरान यथास्थिति को बनाए रखा.

सितंबर में इस तरह की खबरें स्थानीय मीडिया में दर्ज की गई थी, लेकिन, राष्ट्रीय स्तर पर यह चुनाव अभियान के शोर में खो गईं. हालांकि, ये दक्षिणपंथी समाचार वेबसाइट ऑपइंडिया की नजर से बच नहीं पाईं. ऑपइंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, “9 सितंबर की रात को सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें दावा किया गया कि ग्यारहवीं सदी के स्मारक में देवी की एक मूर्ति 'प्रकट' हुई है. उसी रात इसी तरह के दावे वाला एक और मेसेज व्हाट्सएप पर भी वायरल हुआ. उस वीडियों को सुबह लगभग 4 बजे भोजशाला परिसर में बनाया गया था और क्लिप के इंटरनेट पर वायरल होने के बाद एक अनजान जगह पर रख दिया गया… पुलिस अधीक्षक इंद्रजीत बाकलवार ने इसे शरारती लोगों की साजिश बताया है और कहा है कि कुछ लोगों ने परिसर की सुरक्षा के लिए लगाए गए तार को तोड़ कर वहां सरस्वती की मूर्ति रख दी.”

Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute