ऑड्रे ट्रुस्के संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यू जर्सी में स्थित रटगर्स विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई इतिहास की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. ट्रुस्के के शोध प्रारंभिक और आधुनिक भारत के इतिहास पर केंद्रित हैं. इस विषय पर उनकी तीन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं- कल्चर ऑफ एनकाउंटर : संस्कृत इन द मुगल कोर्ट्स, औरंगजेब : द मैन एंड द मिथ, जो मुगल राजा के पुनर्मूल्यांकन पर तर्क पेश करती है और हाल ही में प्रकाशित लैंगवेज ऑफ हिस्ट्री : संस्कृत नैरेटिव्स ऑफ इंडो-मुस्लिम रूल.
ट्रूस्के अक्सर ही भारत के जटिल बहुसांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास पर किए गए अपने अकादमिक शोध को अपनी मान्यताओं के विपरीत मानने वाले हिंदू दक्षिणपंथी राष्ट्रवादियों के निशाने पर आती रहती हैं. अपनी पहली किताब के विमोचन के बाद से ही ट्रूस्के को धमकी भरे ईमेल, सोशल मीडिया पर उत्पीड़न और हमलों का लगातार सामना करना पड़ा है. कुछ मामलों को सेंसर का सामना भी करना पड़ा. अगस्त 2018 में उन्हें हैदराबाद में एक व्याख्यान देना था जिसे पुलिस को मिले धमकी भरे पत्रों के बाद रद्द कर दिया गया था. उसी वर्ष उनके द्वारा किए गए एक ट्वीट के बाद उन्हें गालियां और धमकियां मिलीं. जिसमें उन्होंने लिखा कि वाल्मीकि के पौराणिक महाकाव्य रामायण के एक छंद के मोटा—मोटी अनुवाद के अनुसार सीता ने राम को महिलाओं से द्वेष रखने वाला एक सुअर कहा था. कारवां में प्रकाशित एक लेख में ट्रूस्के ने इसकी व्याख्या और इस बारे में महिला विरोधी हिंदू दक्षिणपंथियों के रवैये की विवेचन की थी.
इस साल मार्च महीने की शुरुआत में ट्रूस्के को उनके विभिन्न सोशल मीडिया प्रोफाइलों पर बलात्कार और हत्या की धमकी मिलने लगीं साथ ही उन्हें मुस्लिम-विरोधी, यहूदी-विरोधी भद्दी गालियां भी मिलनी शुरू हो गईं. यह सब मुख्य रूप से भारत पर किए गए उनके शोध के कारण हुआ. ट्रूस्के ने 9 मार्च को अपने एक ट्वीट में लिखा कि हाल के दिनों में उन्हें ''नफरत भरे बयानों की बाढ़'' और अपने परिवार के लिए जोखिम का सामना करना पड़ा है. ट्रूस्के ने कहा कि उन्होंने अब तक 5,750 अकाउंट ब्लॉक करवा दिए हैं, ''अभी यह प्रकिया जारी है.'' कुछ दिनों पहले अमेरिकी विश्वविद्यालयों में हिंदू छात्रों द्वारा चलाया जाने वाला एक अनजान ट्विटर अकाउंट "@hinduoncampus" ने रटगर्स प्रशासन को लिखे एक खुले पत्र को पोस्ट किया, जिसमें ट्रूस्के के काम को हिंदुओं के खिलाफ पक्षपातपूर्ण कार्य बताया गया था. 9 मार्च को जारी एक बयान के जरिए रटगर्स विश्वविद्यालय ने ट्रूस्के की इस विवादास्पद शोध को आगे जारी रखने की स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए सभी आलोचनाओं को समाप्त करने का संदेश दिया. उन्होंने विश्विद्यालय परिसर में हिंदू छात्रों के साथ इस मुद्दे पर बातचीत शुरू करने का भी वादा किया.
कारवां की वेब एडिटर सुरभि काँगा ने ट्रूस्के से ईमेल के जरिए बातचीत की और यह जानने की कोशिश की कि वह किस तरह इस उत्पीड़न का सामना कर रही हैं. उन्होंने हाल ही में हमलों में आई इस तेजी, उनके ऊपर लगे ''पक्षपात'' के आरोपों सहित ऐसे समय में जब भारत में हिंदू राष्ट्रवादियों की सरकार है, मुगल साम्राज्य पर काम करने वाली इतिहासकार होने के खतरों को लेकर भी चर्चा की .
सुरभि काँगा : सोशल मीडिया पर आपके खिलाफ चल रहे हमलों और गालियों के सिलसिले में उछाल की शुरुआत कैसे हुई? आपको क्या लगता है ऐसा क्यों हुआ?
ऑड्रे ट्रुस्के : अभी तक तो मैं यही बता सकती हूं कि इसका कारण एक बेहद साधारण सच्चाई है कि मैं दक्षिण एशियाई इतिहास को बिना किसी वैचारिक नियंत्रण और राजनीतिक हस्तक्षेप के पढ़ाती हूं.
बीते कुछ समय में मुझ पर बहुत से भद्दे और अपमानजनक आरोप लगाए गए हैं. इसलिए इन हमलों में कुछ भी नया या अनूठा नहीं है. मुझे लगता है कि एक विशिष्ट उत्प्रेरक की कमी ने कई शिक्षाविदों को सही समय पर सतर्क कर दिया है. ऐसा लगता है कि मुझ पर ही इस बात का अध्ययन किया जा रहा है कि क्या कोई पूर्वाग्रह ग्रस्त विचारधारा तर्कपूर्ण शैक्षिक विमर्श, शिक्षण और यहां तक कि बुनियादी तथ्यों को बताने से भी रोक सकती है.
सुरभि काँगा : आपने गालियों और धमकियों के स्क्रीनशॉट और लिंक पोस्ट किए हैं. निशाना बनाकर किए गए ये हमले आपके लिए कैसे रहे हैं और यह आपको कैसे प्रभावित कर रहे हैं?
ऑड्रे ट्रुस्के : बीते कुछ सप्ताह डरावने और खौफनाक रहे हैं. मुझे हर दिन उन्माद, कट्टरता और क्रूरता से भरे सैकड़ों द्वेषपूर्ण संदेश मिलते हैं. इस सब के कारण मुझे अपनी सुरक्षा और बचाव को लेकर भी सोचना पड़ा. सच कहूं तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि पूर्व आधुनिक भारत पर काम करने वाले एक अकादमिक के रूप में मुझे कभी इसकी भी आवश्यकता होगी.
मैं अपने सबसे बड़े दुश्मन के साथ भी ऐसा होने की कामना नहीं करूंगी. इस तरह के हमले किसी को भी प्रभावित कर सकते हैं. अगर उनका लक्ष्य मुझे डराना और परेशान करना था, तो मैं कहूंगी कि वह इसमें सफल रहे हैं. अगर इन सब में कुछ अच्छा है तो वह यह है कि ऐसे घिनौने किस्म के हमलों ने हमला करने वालों के चरित्र को सामने ला दिया है.
सुरभि काँगा : यह पहली बार नहीं है जब आप हिंदू दक्षिणपंथियों की इस तरह क्रूरतापूर्ण आलोचना और निंदा का निशाना बनी हैं. आपको क्या लगता है कि वे आपसे इतने नाराज क्यों हैं?
ऑड्रे ट्रुस्के : मैं उत्तरी न्यू जर्सी इलाके में पढ़ाती हूं और मुझे अच्छी-खासी छात्रवृत्ति भी मिलती है. ऐसा नहीं है कि मैं हमेशा सही हूं, लेकिन मेरे साथियों का मानना है कि आमतौर पर मेरे खयालात विचारीण और विचारोत्तेजक होते हैं. यही चीज मुझे हिंदू दक्षिणपंथियों के लिए खतरा बनाती है क्योंकि मैं भारतीय इतिहास को लेकर उनके मिथकों को उजागर कर सकती हूं और करती हूं. साथ ही उनके विचार में इस काम के लिए न मेरा लिंग सही है न रंग. अपने तमाम कुकर्मों के साथ ही यह हिंदू राष्ट्रवादी मूल रूप से औरत से द्वेष रखने वाले लोग हैं. आखिर में हालांकि वे सिर्फ मेरे पीछे नहीं पड़े हैं. पहले वे मुझे निशाना बना रहे हैं. फिर उनकी नजर हर उस शिक्षाविद पर है जो दक्षिण एशिया के इतिहास पर काम कर रहे हैं और अपने शोध में हिंसा फैलाने वाली विचारधारा से समझौता करने से इनकार करते हैं.
सुरभि काँगा : क्या आपको लगता है कि आपके शोध में शामिल मुगल इतिहास पर अध्ययन करने का मुद्दा हमलों का कारण बना है? औरंगजेब पर लिखी आपकी किताब आपके खिलाफ हुए विरोध और आलोचनाओं का विषय बनी और यह अभी भी जारी है.
ऑड्रे ट्रुस्के : मुगल इतिहास, भारत में इतिहास को राजनीतिक उद्देश्य के लिए मनचाहे रूप बदलने का एक बड़ा लक्ष्य बन गया है. खास तौर से हिंदू राष्ट्रवादी वर्तमान समय में मुस्लिम समुदायों के खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा को सही ठहराने के लिए मुगल इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं. वर्तमान समय में दिखाई जा रही यह आक्रामकता एक घटिया किस्म की है जो भारत में लोगों के जीवन, उनकी आजीविका और स्वतंत्रता को दांव पर लगा रही है. वर्तमान राजनीति में यह न्यायसंगत नहीं है और इसलिए हिंदू राष्ट्रवादी मुगल इतिहास में हुए अत्याचारों के बारे में मनगढंत कहानियां बनाकर और औपनिवेशिक काल में घटी हिंसा को दोहराते हुए अपने औचित्य को खोजने की कोशिश करते हैं. इतिहासकार अतीत को लेकर झूठ नहीं बोलता. यही हिंदू राष्ट्रवादी प्रकल्पों के प्रति हमारे दायित्व को तय करती है.
सुरभि काँगा : सोशल मीडिया पर आपकी आलोचना करने वाले बाकी अकाउंट्स में से "hinduoncampus" नाम का अकाउंट ज्यादा सक्रिय है. इस अकाउंट द्वारा आरोप लगाया जा रहा है कि आपके द्वारा पढ़ाई जाने वाले चीजें "हिंदूफोबिक" और हिंदू आस्था को तोड़ मरोड़कर पेश करने वाली होती हैं. आपका क्या कहना है?
ऑड्रे ट्रुस्के : मैं नहीं जानती कि उस हैंडल को कौन चला रहा है. कई बार ऐसा लगता है कि उन्हें रटगर्स के बारे में पूरी जानकारी नहीं है. जहां तक मैं जानती हूं मेरी कक्षाओं में पढ़ने वाले किसी भी छात्र ने अब या पहले कभी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है. पिछले पंद्रह वर्षों में मैंने पांच विश्वविद्यालयों में सैकड़ों हिंदू छात्र-छात्राओं को पढ़ाया है. सीधे तौर पर कहें तो इन आरोपों में वास्तविकता का अभाव है.
सुरभि काँगा : उस हैंडल ने यह भी आरोप लगाया है कि आपके द्वारा पढ़ाई जाने वाली चीजों से विश्विद्यालय परिसर हिंदुओं के लिए एक असुरक्षित स्थान बन गया है. उस पर कुछ ऐसे बेनाम छात्रों के बयान भी साझा किए हैं जिन्होंने आपके शिक्षण और शोध को लेकर आपत्ति जताई है. इस पर आप क्या कहेंगी?
ऑड्रे ट्रुस्के : मेरे पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि उन बयानों को किसने लिखा था. और इसके अलावा अभी तक जो मैंने सुना है वह यह है कि आपत्ति जताने वाले वह कुछ छात्र मुख्य रूप से रटगर्स के न्यू ब्रंसविक कैंपस के पढ़ने वाले हैं. मैं रटगर्स के न्यूआर्क कैंपस में पढ़ाती हूं. यह दोनों अलग-अलग शहरों में स्थित अलग-अलग कैंपस हैं. इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं हैं.
सुरभि काँगा : आपके खिलाफ लगाए जा रहे आरोपों में से एक यह यह भी है कि आप अपने शिक्षण में हिंदू इतिहास को पढ़ाने के लिए औपनिवेशिक दृष्टिकोण का प्रयोग करती हैं. हालांकि यह केवल हिंदुत्व को लेकर आपकी आलोचना पर आधारित हो सकता है. साथ ही पश्चिमी शोधों में औपनिवेशिक देशों को लेकर भी लंबे समय से चिंता बनी हुई है. एक इतिहासकार के तौर पर आप इसे कैसे देखती हैं? और किस तरह इन आरोपों का जवाब देतीं हैं?
ऑड्रे ट्रुस्के : मुझे लगता है कि दक्षिण एशियाई इतिहास और हिंदू धर्म का अध्ययन करते समय कई तरह के औपनिवेशिक दृष्टिकोणों के बारे में जानना महत्वपूर्ण है. मैं इसी के बारे में पढ़ाती हूं और इसे पढ़ने के इच्छुक रटगर्स के न्यूआर्क कैंपस के छात्रों को भी अपनी कक्षा में शामिल होने के लिए कहती हूं. उदाहरण के तौर पर, औपनिवेशिक युग पर अध्ययन करने वाले विद्वान "हिंदू इतिहास" के बारे में बताते हैं. जिसका प्रयोग अब हम धार्मिक पहचान की श्रेष्ठता को लेकर बनी संदिग्ध मान्यताओं के कारण नहीं करते हैं. यह उन बाकी चीजों में से एक है जो सांप्रदायिक तनाव फैलने का कारण होती हैं. एक छुपी हुई सच्चाई यह भी है कि मुझ पर किए गए हमले हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा की गई बयानबाजी को ही दर्शाते हैं, जो अब दोहराई जा रही है. यह खासकर धार्मिक पहचान की प्रकृति और प्रमुखता और पूर्व आधुनिक भारतीय इतिहास में संघर्ष से संबंधित होते हैं.
सुरभि काँगा : दक्षिण एशियाई इतिहास को लेकर पिछले कुछ वर्षों में पहले के मुकाबले अधिक विवाद उठे हैं जो अक्सर हिंदू अधिकारों की रक्षा करने वालों की आपत्तियों के कारण बनते हैं. क्या आपको लगता है कि अमेरिकी विश्विद्यालय हिंदू अधिकारों की धारणा को समस्या के तौर पर देखते हैं?
ऑड्रे ट्रुस्के : यह हम पहले से ही जानते हैं कि हिंदू राष्ट्रवादी लोग अमेरिकी विश्वविद्यालय में छात्रों को अपने समूह में शामिल कर उन्हें हिंदुत्व के प्रति कट्टरपंथी बनाने का काम करते हैं. हमारे राज्य न्यू जर्सी में तेजी से फैलती असहिष्णुता और द्वेष को लेकर चिंतित कुछ निर्वाचित अधिकारियों को मैंने इस विषय पर शोध भी उपलब्ध कराया है. पिछले कुछ वर्षों में होने वाली एक अच्छी बात यह है कि जमीनी स्तर पर छात्रों की अगुआई में हिंदुत्व विचारधारा के विश्विद्यालय में पैर पसारने के खिलाफ विरोध किया जा रहा है.
सुरभि काँगा : अपने बयान में रटगर्स ने आपकी आलोचना करने वालों और कैंपस के हिंदू छात्रों से बातचीत करने का वादा किया है. क्या यह आपके लिए चिंता का विषय है? क्या आपको लगता है कि विश्वविद्यालय ऐसा करके आपके आलोचकों को महत्व दे रहा है?
ऑड्रे ट्रुस्के : रटगर्स प्रशासन की सभी समितियों को छात्रों की चिंताओं को सुनना चाहिए. जब छात्र इस प्रकार की अनुचित, बदनाम करने और नुकसान पहुंचाने वाली मांगें रख रहे हों तो उन्हें ऐसे छात्रों से एक बार बातचीत करनी चाहिए. कॉलेज एक ऐसा स्थान होता है जहां छात्र सीखता है और यहां का प्रशासन और मैं यहां छात्रों को यही सिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह खुद को व्यक्त करें, गहराई से कैसे सोचें, अनुचित धारणाओं को कैसे रोकें और अपने मुद्दे को कैसे उठाएं.
सुरभि काँगा : आप नरेन्द्र मोदी प्रशासन और भारत में बढ़ती हिंदुत्व की लहर की मुखर आलोचक रही हैं. क्या आपको लगता है कि आप पर होने वाले हमलों का यही कारण है? क्या पुरुष इतिहासकार की तुलना में यह आपके लिए अधिक कठिन है?
ऑड्रे ट्रुस्के : हिंदुत्व की पैरोकारी करने वाले हमेशा से ही अपनी विचारधारा को बढ़ाने के लिए दूसरों पर हमले करना, धमकियां देना और हिंसा जैसी चीजों पर ही निर्भर रहे हैं. इसका संबंध पीछे नाजियों से सहानुभूति रखने वाले हिंदुत्व के विचारकों से जुड़ा हुआ है, जो एक हिंदू राष्ट्रवादी द्वारा महात्मा गांधी की हत्या करने के लेकर मोदी के भारत में मुसलमानों पर बढ़ते हमलों के रूप में आज सामने आया है. अपने शोध कार्यों और सावर्जनिक कामों में मैं इस इतिहास का सीधा—सरल वर्णन करती हूं. हिंदुत्व के अनुयायी शायद ही सच्चाई को पसंद करते हों. और इसीलिए मुझे लगता है कि वे मुझसे नफरत करते हैं.
एक औरत होने के नाते मैं इन तीखे हमलों का निशाना बना रही हूं. दोनों का ही कारण समाज में भरपूर रूप से व्याप्त महिला विरोधी धारणा और हिंदुत्व का औरत के प्रति द्वेष है. मैं भारत की महिलाओं और हिंदुत्व के खिलाफ खड़े होने वाले कई हिंदुओं के साथ एकजुटता के साथ खड़ी हूं, जिनपर इसी तरह के हमले किए जा रहे हैं.
सुरभि काँगा : ऐसी धारणा बनी हुई है कि इतिहासकारों को सदैव ''अराजनीतिक'' और ''तटस्थ'' होना चाहिए. आपको क्या लगता है कि किसी इतिहासकार के अपने राजनीतिक विचार होना सही है? और क्यों?
ऑड्रे ट्रुस्के : इतिहासकार लोगों को वास्तविक दुनिया से जुड़े मुद्दों और राजनीति से प्रेरित मुद्दों के बारे में आलोचनात्मक सोच रखना सिखाते हैं. हम अपने शैक्षणिक कार्यों में अधिक से अधिक वस्तुनिष्ठ होने का प्रयास करते हैं, जिसका मतलब यह है कि हम सभी विचारों को समान नहीं मानते हैं. यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है. इतिहास के बारे में दिए जाने वाले ऐतिहासिक तर्क और इतिहास को लेकर दिए गए राजनीतिक तर्क मौलिक रूप से एक जैसे नहीं होते हैं. मैं ऐतिहासिक तर्क को आगे बढ़ाने के काम कर रही हूं.
इसी कारण से हिंदुत्व के पैरोकार मेरे साथ बहस नहीं कर सकते हैं. वे अकादमिक स्तर पर बातचीत करने से इनकार कर देते हैं और इसके बजाय मनुष्य होने के आधारभूत तत्व यानी आलोचनात्मक सोच को नकार देते हैं. जिससे वह द्वेष और नफरत फैलाने की अपनी आजमाई हुई रणनीति पर ही निर्भर रह जाते हैं.
सुरभि काँगा : आपको ऐसा क्यों लगता है कि मोदी के दौर में इतिहास न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में बल्कि भारत में भी एक प्रकार से युद्धक्षेत्र बन गया है?
ऑड्रे ट्रुस्के : क्योंकि इतिहास मायने रखता है. और मुझे लगता है कि अधिक से अधिक लोगों को व्हाट्सएप, ट्विटर या अस्पष्ट सूत्रों से नहीं बल्कि कक्षा में आकर इतिहास पढ़ना चाहिए.