पुराने काहिरा की गलियों में मौजूद कैफे, गोदामों और नाई की दुकानों में मिस्र के प्रतीक चिन्हों के चित्र हर जगह दिखाई देते हैं. राजाओं, राष्ट्रपतियों, धार्मिक और राजनीतिक हस्तियों की तस्वीरों को गौरवशाली अतीत के प्रतीक के रूप में इन दीवारों पर लगा कर उनकी अमरता को दर्शाया गया है. इन हस्तियों को भले ही हार, मृत्यु, इस्तीफों और अपने साम्राज्य के पतन का सामना करना पड़ा हो लेकिन सार्वजनिक जीवन में वे जैसी छवि रखते थे, वह मजबूती से कायम है, शहर भर में टंगी तस्वीरों में उन्हें जीवित रखा गया है.
2015 में फोटोग्राफर अमीना कदौस पांच साल दूर रहने के बाद अपने गृहनगर काहिरा वापस आईं. जब वह चली गईं थी, तो शहर मौलिक, ऐतिहासिक तरीकों से बदल गया था. 2011 की तहरीर स्क्वायर क्रांति ने 1981 से शासन करने वाले मिस्र के चौथे राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को पद से हटा दिया. मुबारक का शासनकाल भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के आरोपों से घिरा हुआ था. क्रांति के परिणामस्वरूप, उन पर मुकदमा चलाने का आदेश दिया गया और अंततः उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. पांच साल बाद यह राजनीतिक बदलाव काहिरा के परिदृश्य में क्या बदलाव लाया? शहर किस तरह से बदल गया था और उतना ही महत्वपूर्ण सवाल है कि वह क्या है जो इन सबके बाद भी नहीं बदला था? कदौस ने 2017 से चल रहे एक फोटोग्राफी प्रोजेक्ट में इन सवालों का पता लगाने के लिए काम शुरू किया.
उनके लिए काहिरा के पुराने हिस्सों में हर जगह लटके फ़्रेमयुक्त चित्र शहर के अपने अतीत की वर्तमान से चल रही बातचीत के प्रयास को दिखाते थे. अपने प्रोजेक्ट के परिचय में वह काहिरा को "प्रतिमाओं का शहर" बताती हैं, यह देखते हुए कि इस तरह सार्वजनिक प्रतीकों का महिमामंडन करना, हमारी परंपराओं और नैतिकता में अरबी संस्कृति से आया है. उनका प्रोजेक्ट शहर की दीवारों पर देश के सार्वजनिक प्रतीकों की लगभग अनुष्ठानिक नक्काशी से सवाल जवाब करने की एक कोशिश है. यह स्मृति के विचार और स्वयं को याद करने के तरीके की जांच करता है. वह पूछती हैं कि शहर भर में पुरानी प्रतिष्ठित आकृतियां इतनी प्रचुर मात्रा में क्यों मौजूद हैं और वह क्या दर्शाती हैं.
इसका उत्तर एक कल्पित गौरवशाली अतीत की इच्छा में उभरता है. कदौस ने इसे मिस्र के अल-ज़मान अल-गमिल यानी अच्छे पुराने दिनों की एक लालसा के रूप में वर्णित किया है. एक खोए हुए, प्राचीन गौरव के लिए ललक जो कभी अस्तित्व शायद रही हो, मुमकिन है न भी रही हो. वह काहिरा के कई निवासियों के "एक गौरवशाली युग की कहानियां सुनकर बड़े होने की बात करती हैं, जिससे लोगों को उम्मीद है कि एक दिन वे वापस आएंगे. यह आशा अतीत के प्रतीकों की याद पर टिकी है, जिनमें से प्रत्येक अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. जिन स्थानों पर ये ऐतिहासिक शख्सियतें मौजूद हैं, वहां के निवासी बदल जाते हैं, कैफे के मालिक, अपार्टमेंट के निवासी आते-जाते रहते हैं, लेकिन प्रतीक टूटी हुई दीवारों पर बने रहते हैं, जो लगभग हर आने वाली पीढ़ी के साथ एक नया रिश्ता बनाते हैं. कदौस ने मुझे बताया, "दीवारों पर बनी तस्वीरें उस जगह की पहचान का हिस्सा बन जाती हैं. कुछ लोग इन आइकन से जुड़े हुए हैं."
मेना एल बसाल और गोमोरोक के पास मिस्र के उत्तरी तट पर अलेक्जेंड्रिया में एक तस्वीर में हम एक कपास विनिर्माण कंपनी के सुरक्षा कार्यालय की अंदर की दीवार देखते हैं. फ़्रेम किए गए अल्लाह की स्तुति करने वाले अनगिनत संदेशों के बीच बिना सुइयों वाली चार घड़ियां हैं. उनके ऊपर मिस्र के तीसरे राष्ट्रपति मुहम्मद अनवर अल-सादात का चित्र है, जो 1970 से 1981 तक पद पर बने रहे. सादात ने गमाल अब्देल नासिर का स्थान लिया, जो राष्ट्रवादी सेना अधिकारियों का एक समूह, फ्री ऑफिसर्स आंदोलन के कमांडर थे, जिन्होंने एक क्रांति शुरू की जिसने 1952 में मिस्र के राजा फारूक को उखाड़ फेंका.
कदौस द्वारा ली गई एक अन्य तस्वीर में फ़ारूक का चित्र एक मैली दीवार पर देखा जा सकता है. काहिरा के पास स्थित अल दरब अल अहमर में एक जूते की कार्यशाला में काम करने वाला मोहम्मद इस चित्र को लालसा से देखता है. यह क्षेत्र कई कलाकारों की कार्यशालाओं का घर है और यहां की स्थानीय आबादी ने एक स्थायी अर्थव्यवस्था बनाने के लिए दशकों तक संघर्ष किया है. मोहम्मद ने कदौस से कहा, "मैं चाहता हूं कि उसके दिन लौट आएं." वह वर्तमान की विचित्र और कठोर वास्तविकताओं के बजाय उस कल्पित अतीत की संभावनाओं में रहना अधिक पसंद करता था.
इसमें मोहम्मद अकेले नहीं हैं. डेविड लेवी स्ट्रॉस द्वारा लिखित 'बिटवीन द आइज’ के परिचय में कलाकार और आलोचक जॉन बर्जर लिखते हैं, ''हर जगह अलग-अलग परिस्थितियों में रहने वाले लोग खुद से पूछ रहे हैं: हम कहां हैं? सवाल भौगोलिक नहीं ऐतिहासिक है. हम किस दौर में जी रहे हैं? हमें कहां ले जाया जा रहा है? हमने क्या खो दिया है? भविष्य की विश्वसनीय योजना के बिना हम कैसे आगे बढ़ें? हमने जीवन से परे के सभी दृष्टिकोण क्यों खो दिए हैं?
सामूहिक उदासीनता और एक निर्मित इतिहास की भावना का प्रश्न कदौस के काम में मौजूद है. अल-ज़मान अल-गमिल की स्थिति वर्तमान के विपरीत दिखाई पड़ती है, जैसा कि कदौस ने कहा, एक प्रामाणिक, शुद्ध और बेदाग अतीत के विचार को एक अप्रिय और दुखद वर्तमान का सामना करना पड़ता है. उनकी तस्वीरें इस झगड़े, कई कल्पित अतीत और अनिश्चित वर्तमान के बीच फंसे शहर को बयां करती हैं.
मिस्र के एक महत्वपूर्ण भूगोलवेत्ता, डिजाइनर और शहरी शोधकर्ता नर्मिन एल्शेरिफ़ लिखते हैं कि भाषण के रूप में पुरानी घटनाओं को याद करना जिसमें आदर्श राष्ट्र की कल्पना पर बात की गई हो, अल-ज़मान अल-गामिल के समर्थकों के मूल्यों, अपेक्षाओं और निराशाओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है. इससे पता चलता है कि कैसे वे खुद को एक कल्पित आदर्श राष्ट्र में आदर्श नागरिक के रूप में देखते हैं. कदौस के काम में हम जो तनाव देखते हैं, वह कल्पित आदर्श राष्ट्र के साथ उनकी अपनी बातचीत, अपनी पहचान की खोज और उस शहर के साथ संबंधों से उपजी है, जिसे वह कभी जानती थी, जो उसके दूर रहने के दौरान मूल रूप से बदल गया था.
एक अन्य तस्वीर में, हम एक आदमी को एक पुराने कॉफ़ीशॉप के रसोई क्षेत्र से बाहर झांकते हुए देखते हैं. नासिर की एक तस्वीर एक टेलीविजन के ऊपर लटकी हुई है. इस बीच, टेलीविजन पर 1955 में मिस्र सिनेमा के "राजा" के रूप में पहचाने जाने वाले फरीद शॉकी अभिनीत फिल्म चल रही है. अगर टीवी स्क्रीन पर लाल रंग के छोटे पॉप या दाहिनी शेल्फ हुक्के की लाल नली नहीं होती, तो इसे एक मोनोटोन, ग्रेस्केल छवि के लिए गलत माना जा सकता है जो पुरानी तस्वीरों की पहचान है.
कदौस के काम में मुबारक युग की वापसी भी शामिल है. एक तस्वीर में, कदौस हमें ओटोमन राजनेता सैद हलीम पाशा के महल के भूले हुए अवशेष दिखाती हैं. उनकी हत्या के बाद, 1921 में, महल राजा फवाद प्रथम के नियंत्रण में आ गया और ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान इसे एल नसरियाह नामक स्कूल में बदल दिया गया. स्कूल जाना-माना था और 1952 तक चलता रहा. तब से, ओटोमन साम्राज्य के इस अवशेष ने जनता के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं. उनकी तस्वीर में, हम इतालवी वास्तुकार एंटोनिया लैसियाक की भव्य संरचनाएं देखते हैं: ऊंची, पीली दीवारें जो दशकों के छोड़े जाने से थोड़ी खराब हो सकती हैं और एक गहरी, जंगली-हरी फ्रिज़ (गढ़ी हुई या चित्रित सजावट की एक चौड़ी क्षैतिज पट्टी, खासकर छत के पास की दीवार पर), जिसमें टूटी हुई खिड़की से रोशनी आती है. बीच में मुबारक की एक पुरानी छपी हुई तस्वीर है.
यह एक दुर्लभ खोज थी. तहरीर चौक क्रांति के बाद से, काहिरा में मुबारक की तस्वीरों के निशान शायद ही देखे गए हैं. कदौस ने कहा, "जैसे ही आप कमरे में घुसते हैं, आपका सामना उनकी प्रसिद्ध मुस्कान और टकटकी से होता है." “उनकी प्रसिद्ध तस्वीर उनके दिनों में हर जगह लटकाई जाती थी और क्रांति के बाद इसे पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया था, ताकि उनके समय का कोई निशान न छोड़ा जा सके. फिर भी कुछ इस तरह छिपी हुई जगहों पर दिखाई देती हैं.''
अपनी किताब द एक्ट ऑफ सीइंग में, जर्मन फिल्म निर्माता विम वेंडर्स लिखते हैं, “आप जो सबसे अधिक राजनीतिक फैसला लेते हैं, वो है जहां आप लोगों की नजरों को काबू में कर लेते हैं. दूसरे शब्दों में, आप दिन-ब-दिन लोगों को जो दिखाते हैं, वह राजनीतिक है... और सबसे राजनीतिक रूप से प्रेरित करने वाली बात जो आप किसी इंसान के लिए कर सकते हैं, वह है उसे हर दिन यह दिखाना कि कोई बदलाव नहीं हो सकता.' हालांकि मिस्र ने कई राजनीतिक परिवर्तन देखे हैं, कदौस हमें अतीत के बासी अवशेषों को दिखाते हैं जिसकी कल्पना हमेशा वर्तमान से बेहतर के रूप में की जाती है.
काहिरा की दीवारों पर प्रतिष्ठित प्रतीक हमेशा राजनीतिक नहीं होते हैं. उनके काम में मैरी और जीसस के साथ अलेक्जेंड्रिया के पोप शेनौदा III की तस्वीर नजर आती हैं, जो आइनों के पीछे छुपे हुए हैं और साथ ही यहां रसीदें भी चिपकी हैं. एक तस्वीर में, एक पुरानी मसाले की दुकान के अंदर, हम कागजों और पोप की तस्वीरों से ढकी एक दीवार देखते हैं, जिसे बाइंडर क्लिप द्वारा एक साथ जोड़ा गया है. अगले हिस्से में, हम जंग लगे तराजू के बीच पोप की एक और छोटी तस्वीर देखते हैं. कदौस ने कहा, "मालिक के पास पोप शेनौदा III और माता मरियम के कई प्रतीकात्मक चित्र हैं, जिनमें यीशु के साथ जगह की रक्षा करते हुए हर दीवार पर लटके हुए हैं."
उनके लिए, यह फोटो प्रोजेक्ट न केवल उनके शहर को समझने का एक तरीका है, बल्कि मिटाए जाने की प्रक्रिया में वह जो देखती हैं उसे दस्तावेजित करने का भी एक तरीका है. जिन लोगों ने तहरीर चौक विद्रोह में भाग लिया, वे नए भविष्य के लिए लड़ रहे थे. उस पल की उत्तेजित, विद्रोही आशा में, उन्होंने शायद यह अनुमान नहीं लगाया होगा कि एक दशक बाद, मिस्र असहमति पर नकेल कसने वाले एक और शासन की चपेट में होगा. अब्देल फतह अल-सीसी की मौजूदा सरकार के तहत, काहिरा नए उपायों से गुजर रहा है जो इसे एक बार फिर से मौलिक रूप से बदल सकते हैं. कदौस ने कहा, "ऐतिहासिक जगहों की कीमत पर सड़कें और पुल बनाए जा रहे हैं."
उनके काम में नील नदी से लगभग पैंतालीस किलोमीटर दूर काहिरा के बाहरी इलाके में सीसी सरकार द्वारा बनाई जा रही चमकदार नई प्रशासनिक राजधानी का चित्रण नहीं है. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि "इसे एक हाई-टेक स्मार्ट सिटी के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जिसमें 65 लाख लोग रहेंगे और काहिरा में भीड़भाड़ से राहत मिलेगी, इसमें सरकारी और व्यावसायिक जिले, एक विशाल पार्क और एक राजनयिक क्वार्टर शामिल है, जो अभी तक नहीं बना है." कुछ लोगों का मानना है कि यह नई राजधानी वर्गों के बीच मौजूदा अंतर को और गहरा कर देगी, जबकि दूसरे पहले से ही ढह रही राजधानी से बड़ी धनराशि बाहर भेजने से नाराज हैं और उन्हें डर है कि यह जल्द ही एक अवशेष बन सकती है. संक्षेप में, उन्हें चिंता है कि राजधानी को ही मिटाया जा रहा है और बाहर स्थानांतरित किया जा रहा है.
इस माहौल में, कदौस पुराने काहिरा के अवशेषों को रिकॉर्ड और दस्तावेज़ीकृत करती हैं. वह औपनिवेशिक शासन के अत्याचारों और शहर के भविष्य के बारे में पूछताछ करती हैं. उन्होंने परिवर्तन की प्रक्रिया के दौरान कैमरे को "उपचार का एक उपकरण" बताया. उन्होंने कहा, "मैंने फोटोग्राफी इसलिए चुनी ताकि हम बदलाव होने से पहले उसका दस्तावेजीकरण कर सकें."
एक पुरानी फार्मेसी - या आगज़खाना, जैसा कि उन्हें कहा जाता था - की एक तस्वीर में एक वृद्ध जोड़ा है. महिला मजबूत इरादों के साथ पीछे देखती है और उसकी बगल में उसका पति थका—हारा दिखता है. उनके पीछे नासिर और सिसी की तस्वीरें लगी हुई हैं, जो एक ही स्थान पर हैं, हालांकि उनके शासन में लगभग आधी शताब्दी का फर्क है. कदौस ने इस तस्वीर का नाम "इतिहास खुद को दोहराता है" इसलिए चुना क्योंकि "लोग एल-सिसी को 'हमारे समय का नासिर' कहते हैं." इस तस्वीर में महिला खुद को नासिरपंथी और समाजवादी मानती है. वह बड़े चाव से याद करती है कि नासिर युग कितना "शानदार" था. अपने पति के कट्टर समाजवाद-विरोधी होने के बावजूद, यह जोड़ा एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है.
फिर भी, कदौस के काम में, हम जो देखते हैं वह लोगों की तस्वीरें भर नहीं हैं, बल्कि शहर का एक चित्र है, और जिन तरीकों से इसे याद किया जाता है. हम उन लोगों के बीच संबंध देखते हैं जिन्हें वह अपने फ्रेम में रखते हैं और जिन लोगों को वे अपनी दीवारों पर फ्रेम करने के लिए चुनते हैं. इसके जरिए काहिरा का जो कैनवास उभरता है वह परत दार है, जो इसके अतीत और वर्तमान दोनों को परिभाषित करने के लिए चल रही कशमकश की कहानी है.