मिथक से परे

बहुजन महिलाओं के विद्रोह का प्रतीक हैं सती स्थान

13 मई 2022
बिहार के दरभंगा जिले में स्थित एक सती स्थान. बिहार में ऐसा देवी स्थान लगभग हर जिले और उसके अंदर स्थित कई गांवों में हैं. बिहार में सती स्थानों को देवी स्थान, शक्ति स्थान, शक्ति चौरा या शक्ति पीठ भी कहा जाता है.
कारवां के लिए सागर
बिहार के दरभंगा जिले में स्थित एक सती स्थान. बिहार में ऐसा देवी स्थान लगभग हर जिले और उसके अंदर स्थित कई गांवों में हैं. बिहार में सती स्थानों को देवी स्थान, शक्ति स्थान, शक्ति चौरा या शक्ति पीठ भी कहा जाता है.
कारवां के लिए सागर

बागमती नदी के किनारे बिहार के उत्तर में दरभंगा जिले में स्थित है एक सती स्थान. स्थान का मतलब किसी भौगोलिक जगह से होता है. जबकि सती को देवी माना जाता है. जगह के नाम पर यह करीब 100-150 वर्ग फीट का एक चबूतरा है जिसके चारों तरफ लगभग तीन फीट की मुंडेर है. बीच जमीन पर एक पत्थर रखा जिसे लोग देवी मानते हैं और चढ़ावे पर नारियल, अंकुरित चना, पान का पत्ता, मिठाई और गेरुआ चढ़ाते हैं. वैसे तो यह बीसवीं सदी के मध्य में बने दरभंगा किले से कुछेक किलोमीटर दूर ही पश्चिम में स्थित है और शहर के लगभग बीचो-बीच है मगर सती स्थान के आसपास की आबादी ग्रामीण हैं. एक पतली सी सड़क स्थान को मुख्य शहर से जोड़ती है. 

पिछले दिन तपती दोपहर में जब मैं वहां गया तो सती देवी के दर्शनार्थियों में शादी का एक नया जोड़ा था जो चढ़ावा चढ़ाने के बाद चबूतरे की परिक्रमा कर रहा था. चबूतरे के बगल में ही एक दुधमुंहे बच्चे का मुंडन कराया जा रहा था. एक स्थानीय बाल काटने वाला बच्चे का मुंडन करा रहे आदमी से झगड़ा कर रहा था कि उसने बाहर से आकर उसका काम कैसे ले लिया जबकि सती स्थान पर बाल काटने वाले 5000 से 10000 रुपए तक मेहनताना लेते है. बाल काटने वाले दोनों व्यक्ति नाई जाति के थे. दर्शन करने वालों में ज्यादातर औरतें थीं. कई लोग यहां मन्नतें मांगने भी आते हैं और मन्नत पूरी होने पर प्रतिज्ञा किया हुआ चढ़ावा चढ़ाते हैं. 

यहां का परिवेश वैसे तो देखने में आम हिंदू मंदिरों जैसा ही है मगर फिर भी यह देवी स्थान हिंदू मंदिरों से बहुत अलग था. यहां ईश्वर एक खुरदुरा पत्थर था जिसमें कोई मानवी स्वरूप नहीं था. स्थान की देख रेख के लिए और चढ़ावे का मालिक कोई ब्राह्मण पुजारी नहीं था बल्कि एक मालन जाति की महिला थी, जो अति पिछड़े होते हैं. 

ब्राह्मणवादी साहित्यों के अनुसार सिर्फ ब्राह्मण ही पुजारी हो सकता है. हर रोज सैकड़ों लोगों के दर्शन और पुराने समय का होने के बाबजूद यहां कोई मंदिर नहीं था और न कोई मूर्ति. चबूतरे की मुंडेरों पर आगे की तरफ लगे एक द्वार को भी एक माली जाति का आदमी खोलता और बंद करता था. यहां आने वाले लोग भी ज्यादातर बहुजन समाज के ही होते हैं. एक तरह से ये स्थान बहुजनों के जमवाड़े का स्थल है. 

बिहार में ऐसा देवी स्थान लगभग हर जिले और उसके अंदर स्थित कई गांवों में हैं. बिहार में सती स्थानों को देवी स्थान, शक्ति स्थान, शक्ति चौरा या शक्ति पीठ भी कहा जाता है. ज्यादातर सती स्थान यूं ही छोटी जगहों में एक पत्थर के रूप में होते हैं जिसकी देख-रेख या तो ब्राह्मणवादी व्यवस्था में स्थापित नीची जातियां करती हैं या तो ये जगहें किसी मजार की तरह बिना किसी पुजारी के होती हैं. लेकिन कुछ बड़े शक्ति पीठ भी बिहार में है, जिनका स्वरूप, देख-रेख और पूजा पद्धति ब्राह्मणवादी रिवाजों के अनुसार ही होता है. ऐसे बड़े शक्ति पीठ बिहार ही नहीं पुरे दक्षिण एशिया महाद्वीप में फैले हैं जिनकी मुख्य संख्या, मिथकों के मुताबिक, 52 बताई जाती है. मगर कुल कितने सती स्थान या शक्ति पीठ हैं इस पर इतिहासकारों में मतभेद है. सती स्थान और शक्ति पीठ में क्या अंतर है इस पर भी प्रामाणिक तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि दोनों एक ही मिथक से जुड़े हुए हैं. कम से कम बिहार में इसे पर्यायवाची की तरह इस्तेमाल किया जाता है. 

सागर कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

Keywords: caste violence Bahujan resistance mythology Indian history history
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