दलित समाज के भंवर मेघवंशी 1980 के दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सदस्य हो गए थे और उसके हिंदू राष्ट्र के विचार के हिमायती बन गए. बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों के हाथों उन्हें जातिवादी भेदभाव का सामना करना पड़ा और वह संगठन को आलोचनात्मक दृष्टि से देखने लगे. मेघवंशी ने 2019 में प्रकाशित अपनी किताब, मैं एक कारसेवक था, में आरएसएस में रहते हुए अपने अनुभवों के बारे में बताया है.
भारतीय राजनीति का रूप तेजी से दक्षिणपंथी होता जा रहा है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पहले दक्षिणपंथी संगठनों के सदस्य थे लेकिन अब वाम खेमे में आ गए हैं या कम से कम दक्षिणपंथ से दूर हुए हैं. ऐसा क्यों होता है? कौन सी घटनाएं, परिस्थितियां और विचार उनके निर्णयों को आकार देती हैं? शिकागो विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट के छात्र अभिमन्यु चंद्रा ने कारवां के लिए इंटरव्यू की एक श्रृंखला में इन बदलावों का पता लगाने का प्रयास किया है. चंद्रा ने मेघवंशी से बात की कि किस वजह से वह संघ से जुड़े जबकि उनके पिता कांग्रेस समर्थक थे और उन्हें किन बातों ने संघ त्याग देने के लिए प्रेरित किया.
अभिमन्यु चंद्रा : क्या आप मुझे राजस्थान में अपने बचपन के बारे में बता सकते हैं? अपनी पुस्तक में आपने लिखा है कि आपके पिता लंबे समय तक कांग्रेस के समर्थक थे. किस वजह से वह पार्टी के समर्थक थे?
भंवर मेघवंशी : मेरा परिवार कबीरपंथी है. हमारी पृष्टभूमि सूफीवादी थी यानी एक ऐसा माहौल जहां सभी विचारों के लिए जगह थी. हमारे यहां सामंती स्थिति रही है. सामंतवाद इतना मजबूत था कि दलित बंधुआ मजदूरी करते थे. हजारों वर्षों से दलित एक दमित समाज रहा है. मेरे दादाजी ने यह सब देखा है.
मेरे पिता के बारे में कहूं तो राजस्थान में, राजनीतिक स्तर पर, अगर किसी ने हम दलितों को राजनीतिक रूप से प्रभावित किया था तो वह कांग्रेस पार्टी थी. जब (स्वतंत्रता) आंदोलन शुरू हुआ तो हरिजनों के लिए गांधी के प्रयासों की शुरुआत हुई. इसकी आलोचना की जा सकती है लेकिन सामंतवाद के खिलाफ जो आवाज उभरी वह कांग्रेस की आवाज थी. (हरिजन एक अपमानजनक शब्द है जिसका इस्तेमाल अनुसूचित जाति के लिए किया जाता है. 2017 में सर्वोच्च न्यायालय इस शब्द को अपमानजनक माना था.) यहीं से हमें हमारे अधिकार मिले थे. मेरे पिता के लिए, आज भी कांग्रेस में हुए सभी परिवर्तनों के बावजूद वह अभी भी "गांधीजी की कांग्रेस" है.
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