इतिहास जनता की स्मृति में जिंदा ही रहेगा : इतिहास के पुनर्लेखन के प्रयासों पर जीएन देवी

27 अप्रैल 2023
शाहिद तांत्रे/<em>कारवां </em>
शाहिद तांत्रे/<em>कारवां </em>

गणेश नारायण देवी एक साहित्यिक आलोचक और सांस्कृतिक कार्यकर्ता हैं. देवी ने भाषा विज्ञान, नृविज्ञान और साहित्यिक आलोचना जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में काम किया है. देवी ने कई किताबें और शोधपत्र लिखे हैं जो ज्ञान और सत्ता के बीच संबंधों और कैसे अभिजात वर्ग ने पूरे मानव इतिहास में ज्ञान को परिभाषित किया है तथा उस पर एकाधिकार रखा है, इसका पता लगाते हैं. वह वड़ोदरा में भाषा अनुसंधान और प्रकाशन केंद्र और गुजरात के तेजगढ़ में आदिवासी अकादमी के संस्थापक हैं, जो आदिवासी शिक्षा पर काम करते हैं. 2010 में, देवी ने पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया की अध्यक्षता की, जिसने 780 जीवित भारतीय भाषाओं पर शोध किया और उनका दस्तावेजीकरण किया. वह साहित्य अकादमी पुरस्कार, सार्क साहित्य पुरस्कार, प्रिंस क्लॉज पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय लिंगुआपैक्स पुरस्कार और पद्म श्री पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं.

2015 में, देवी ने साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, कन्नड़ पुरालेखविद और तर्कवादी एमएम कलबुर्गी की हत्या पर संस्थान की चुप्पी के विरोध में अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया. अक्टूबर 2022 में, देवी सहित लगभग अस्सी विद्वानों के एक वैश्विक समूह ने 600 पन्नों की एक रिपोर्ट जारी की, "होलोसीन के बाद भारत : पिछले बारह हजार साल में पर्यावरण, जन, जीवन, विचार, अभिव्यक्ति, गठन, आंदोलन, परंपराएं और परिवर्तन," यह भारतीय इतिहास के 12000 वर्षों का दस्तावेज है.

कारवां के मल्टीमीडिया रिपोर्टर शाहिद तांत्रे ने इस रिपोर्ट के बारे में साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी चुनावी शाखा, भारतीय जनता पार्टी द्वारा भारतीय इतिहास को फिर से लिखने की कोशिशों, वैकल्पिक ज्ञान प्रणाली, दक्षिणपंथ द्वारा बीआर आंबेडकर को कब्जाने, भारतीय भाषाओं और हिंदी को प्रमुखता दिए जाने आदि पर देवी से बात की.

शाहिद तांत्रे : यह देखते हुए कि भारत की अवधारणा अपेक्षाकृत नई है, उपमहाद्वीप के इतिहास के पिछले 12000 वर्ष क्यों महत्वपूर्ण हैं?

गणेश नारायण देवी : उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान जब यूरोप में इतिहास का अध्ययन शुरू हुआ और हमारे लिए इसके उत्तरार्ध में एक ऐसी प्रवृत्ति उभरी जिसने भारतीय अतीत को आधुनिक, मध्यकालीन और प्राचीन इतिहास में विभाजित कर दिया. प्राचीन भारतीय इतिहास उस समय पर रुक गया जब यूरोपीय इतिहास रुक गया. मैक्स मुलर जैसे विद्वानों का कहना है कि वेद हमारे पास हमारे अतीत को सत्यापित करने के लिए उपलब्ध पहली मौखिक गवाही है इसलिए यूरोपीय इतिहासकार वहीं रुक गए. इसी समय, 1830 के दशक में पुरातत्व उभर रहा था और पुरातत्वविदों ने वेदों से पहले अतीत का अध्ययन करना शुरू कर दिया. हमारा इतिहास अध्ययन उपमहाद्वीप में मानव आवास के अनुरूप नहीं था बल्कि समय के अकादमिक विचारों के अनुरूप था.

शाहिद तांत्रे कारवां के मल्टी मीडिया रिपोर्टर हैं.

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