जयंत सिंह चौधरी राष्ट्रीय लोक दल के उपाध्यक्ष हैं. इस पार्टी का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आधार है. आरएलडी का गठन 1996 में जयंत के पिता अजित ने जनता दल से अलग हो कर किया था. इसकी पूर्ववर्ती पार्टी लोक दल थी, जिसकी स्थापना 1980 में जयंत के दादा चौधरी चरण सिंह ने की थी. चरण सिंह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और प्रसिद्ध किसान नेता रहे. अपनी स्थापना के बाद से आरएलडी ने कई बिंदुओं पर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया और उत्तर प्रदेश से विधान परिषद, विधानसभा और लोक सभा चुनाव लड़ा. 2018 में उसने राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए पहली बार यूपी के बाहर एक उम्मीदवार को मैदान में उतारा. उम्मीदवार सुभाष गर्ग ने जीत दर्ज की और फिलहाल पार्टी के एकमात्र विधायक हैं. पार्टी का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2009 में था, जब उसने बीजेपी के साथ गठबंधन बना कर लोक सभा की पांच सीटें जीती. दो साल बाद आरएलडी बीजेपी से अलग हो गई और कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल हो गई.
जयंत 2009 और 2014 के बीच मथुरा से आरएलडी के सांसद रहे. 2019 में उन्होंने बागपत से लोक सभा चुनाव लड़ा लेकिन बीजेपी के सत्यपाल सिंह से हार गए. वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के पूर्व छात्र हैं और लोक सभा में अपने समय में कृषि, वित्त और नैतिकता की स्थायी समितियों में काम किया. कारवां के फेलो सुनील कश्यप ने जयंत से बीजेपी सरकार द्वारा हाल ही में लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन और यूपी के राजनीतिक परिदृश्य के बारे में बात की.
सुनील कश्यप : क्या आप बता सकते हैं कि कृषि कानून क्या हैं और किसान इतने गुस्से में क्यों हैं कि उन्हें सड़कों पर उतर आना पड़ा है? क्या आपको लगता है कि उनकी मांगें जायज हैं?
जयंत सिंह चौधरी : किसानों के नाम पर कानून बना दिया गया है. यह सरकार चीजों का नामकरण करने में माहिर है. इसके पीछे जो कारण है, जो जल्दबाजी है, जो मोटिवेशन है उनका किसान और खेती से कम ही लेना-देना है. इनमें से एक कानून मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता अधिनियम है. न तो इसका सशक्तीकरण से कोई लेना-देना है, न ही यह कोई सुरक्षा ही देता है और मूल्य आश्वासन के बारे में भी कुछ नहीं कहता है. अगर मूल्य आश्वासन होता, तो इस कानून के तहत एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का प्रावधान एक कानूनी गारंटी होता. वे एमएसपी का जिक्र तक नहीं करते हैं लेकिन उन्होंने इसे यह नाम दिया है.
जब से बीजेपी सत्ता में आई है यही उसका मुख्य फोकस है. वे राजनीति का केंद्रीकरण, सत्ता का केंद्रीकरण चाहते हैं, चाहे वह आर्थिक हो या सामाजिक. उसी नाते अर्थव्यवस्था में एक फॉर्मूलाइजेशन की ओर जा रहे हैं. यानी जो व्यवस्थित क्षेत्र है उनको बढ़ावा देना.
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