"मुझे गर्व है कि मैं एक महिला के साथ हुए बलात्कार की रिपोर्टिंग करते हुए जेल गया", पत्रकार सिद्दीकी कप्पन से बातचीत

कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing

अमृता सिंह : दो साल तक जेल में रहने के बाद आप कैसा महसूस कर रहे हैं?

सिद्दीकी कप्पन : फिलहाल तो मैं बहुत खुश हूं. मैं पत्रकार के बतौर कुछ अच्छा करते हुए गिरफ्तार हुआ था. मैं किसी निजी मामले में गिरफ्तार नहीं हुआ था. एक महिला के साथ अत्याचार हुआ था. उत्तर प्रदेश में ऐसा होना आम बात है लेकिन इस मामले में मुझे इसलिए दिलचस्पी थी क्योंकि पुलिस ने उसका जबरन अंतिम संस्कार कर दिया था. इसलिए मुझे यह मामला संदिग्ध लगा. मैंने सोचा क्यों पुलिस इस मामले पर पर्दा डालना चाहती है. और इसीलिए मैं वहां रिपोर्ट करने पहुंचा था. पुलिस और सरकार का आरोप है कि मैं वहां दंगे भड़काने गया था, कि मैं वहां समुदायों के बीच आपसी वैमनस्य बढ़ाने गया था. मेरा दिल मेरी पहली अदालत है. और मेरा दिल जानता है कि मैं निर्दोष हूं. इसलिए मैं खुश हूं कि मैं दो साल चार महीने जेल में रहा, अपने परिवार के लिए नहीं बल्कि भारत की एक बेटी के लिए. मुझे रोक कर पूछा गया कि मुसलमान होने के बावजूद क्यों मैं इस मामले में इतनी दिलचस्पी दिखा रहा हूं. मैंने उनसे कहा कि मैं मुसलमान नहीं बल्कि एक पत्रकार हूं और यह मामला हिंदू-मुसलमान का मामला नहीं है. यह मामला एक औरत के सम्मान का मामला है. भारत के सम्मान का मामला है.

अमृता सिंह : क्या आप हमें 5 अक्टूबर 2020 के दिन जो आपके साथ घटा उसके बारे में बताएंगे?

सिद्दीकी कप्पन : उस दिन सुबह 6 बजे हम ऊबर और ओला से कैब बुक करने की कोशिश करते रहे लेकिन बार-बार कैब कैंसिल हो जाती थी. मैंने अपने दोस्त मसूद अहमद को साथ चलने के लिए कहा था. मसूद पहले जामिया मिलिया इस्लामिया में पढ़ता था और यूपी के बहराइच का रहने वाला था और स्थानीय भाषा अच्छी तरह से बोल सकता था. उसका एक दोस्त था अतीक उर रहमान. हमने उसे भी साथ चलने के लिए बुला लिया. फिर हमने प्रति किलोमीटर की दर से एक कैब बुक करवा ली. ड्राइवर से मैं पहले कभी नहीं मिला था लेकिन उस बेचारे पर भी आरोप लगाए गए क्योंकि वह एक मुस्लिम था. सच तो है कि उसका नाम बस मुस्लिम है लेकिन वह नमाज नहीं पढ़ता, रोजे नहीं रखता. उसका सिर्फ नाम मोहम्मद आलम था. दिल्ली बॉर्डर से एक घंटे चलने के बाद हम मांट टोल प्लाजा पहुंचे जो यमुना एक्सप्रेस-वे पर है और हाथरस से करीब 40 किलोमीटर दूर है. वहां पुलिस ने ब्लॉकेड किया हुआ था. और वे लोग गाड़ियों की तलाशी ले रहे थे. इतने में एक पुलिस अधिकारी हमारी कार के पास आया. मैंने उसे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का अपना कार्ड दिखाया और कहा कि मैं एक पत्रकार हूं और हाथरस जा रहा हूं. पुलिस वालों ने कुछ देर आपस में बातचीत की और फिर हमारी कार में घुस आए. वे करीब चार-पांच पुलिस वाले थे और हम चार लोग एक ही कार में खचाखच भर गए. उनमें से एक पुलिस वाले ने ड्राइवर को हटा कर खुद उसकी जगह ले ली और कार को वापस दिल्ली की ओर घुमा दिया. कार 30 मिनट तक रुकी रही और इस बीच उसने फोन पर शायद अपने से ऊपर के अधिकारियों से बात की. इसके बाद उसने कहा मुझको पूछताछ के लिए उसके साथ चलना पड़ेगा. हम लोग पुलिस चौकी गए, जो टोल प्लाजा से कुछ 200 मीटर की दूरी पर था. हमें 6 बजे शाम तक वहीं बैठाए रखा. मैंने एक पुलिस वाले से पूछा कि "सर क्या हुआ है? अगर आपने हमें गिरफ्तार किया है तो बता दीजिए, हम वापस दिल्ली चले जाएंगे. हम हाथरस नहीं जाएंगे." उसने कहा कि कोई प्रॉब्लम नहीं है बस हम अपने से ऊपर वाले अधिकारियों से बात कर रहे हैं और आर्डर आते ही हम लोग आपको पांच मिनट में छोड़ देंगे. इसके बाद स्थानीय गुप्तचर अधिकारी वहां आ गए और हमसे पूछताछ करने लगे. वे विशेष रूप से मेरे लिए आए थे. आते ही उन्होंने पूछा कि केरल से जो पत्रकार आया है वह कहां है? मुझे वहां से दूसरे कमरे में ले गए और मुझसे पूछताछ करने लगे. वे अजीब तरह के सवाल पूछ रहे थे : "तुम कितनी बार पाकिस्तान गए हो?", "जाकिर नायक को जानते हो?", "उससे कितनी बार मिले हो?", "क्या बीफ खाते हो?", "तुम्हें यहां किसने भेजा है?", "वह सीपीएम लीडर कौन है जिसने तुम्हें भेजा है?" फिर उन्होंने पूछा कि मैं क्यों जामिया में पढ़ाई की? हर सवाल के साथ वे मुझे थप्पड़ मारते और मेरे घुटनों पर लाठियों से वार करते. लगभग चार घंटे यही होता रहा. इसके बाद मिलिट्री इंटेलिजेंस, एटीएस लखनऊ, और एटीएस नोएडा के अधिकारियों बारी-बारी से आकर अगली सुबह तक मुझसे सवाल पूछे. उन्होंने मुझे सोने तक नहीं दिया.

6 अक्टूबर को करीब सुबह करीब 9 बजे हमें मांट के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया जहां हमें बताया गया कि हमें आईपीसी की धारा 151 के तहत गिरफ्तार किया गया है. (यह धारा सुरक्षात्मक उपाय के लिए बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की इजाजत पुलिस को देती है.) मैंने एसडीएम से अनुरोध किया कि हमें निजी मुचलके पर जाने दिया जाए. उन्होंने कहा कि अगर कोई हमारी जमानत देने आएगा तभी हमें छोड़ा जाएगा. पुलिस ने हम पर दबाव डाला कि हम कोरे कागज पर दस्तखत कर दें. हमने ऐसा करने से मना कर दिया. लेकिन कोर्ट के बाहर उन्होंने कोरे कागज पर दस्तखत जबरन ले लिए. इसके बाद हमें मथुरा के रतन लाल फूल कटोरी देवी स्कूल में क्वॉरेंटाइन के लिए ले जाया गया. यह सब कुछ एक बड़े मजाक की तरह था. हमें पुलिस चौकी से एसडीएम अदालत एक निजी कार में ले जाया गया. वह एक काले रंग की इनोवा जैसी कार थी जिस पर बीजेपी का झंडा लगा हुआ था और पुलिस सादे कपड़ों में थी. वे गाड़ी को संकरी गलियों में तकरीबन एक घंटे गाड़ी चलाते रहे. वहां मैंने उनसे पूछा कि हमें कहां ले जाया जा रहा है और आप लोग कार इतनी तेज क्यों चला रहे हैं. अगर वह पुलिस की गाड़ी होती तो मैं एतराज नहीं करता लेकिन एक प्राइवेट गाड़ी थी जिस पर एक पार्टी का झंडा लगा हुआ था.

अमृता सिंह : मीडिया ने पूर्व में आपके थेजस से जुड़े होने को काफी उछाला. आप इस बारे में कुछ बता सकते हैं?

सिद्दीकी कप्पन : थेजस केरल का एक समाचार पत्र था जो 2018 में बंद कर दिया गया था. फिलहाल वह ऑनलाइन और साप्ताहिक निकलता है. वह सरकार के खिलाफ बहुत लिखता था इसलिए डीएवीपी ने उसे विज्ञापन देना बंद कर दिया. मैंने उस अखबार के लिए दिल्ली और केरल से चार साल काम किया. लेकिन इस अखबार के अलावा मैंने अन्य समाचार पत्रों और ऑनलाइन पोर्टल में भी काम किया है.

शाहिद तांत्रे : थेजस को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का मुखपत्र कहा जाता है. पॉपुलर फ्रंट को भारत सरकार ने प्रतिबंधित किया है. ऐसे पब्लिकेशन के साथ आपने काम क्यों किया?

सिद्दीकी कप्पन : जब मैं थेजस के साथ काम करता था तब वह अखबार प्रतिबंधित नहीं था. और ऐसा नहीं होता कि यदि कोई व्यक्ति किसी अखबार के साथ काम करता है तो वह संगठन से भी जुड़ा होता है. अखबार में अलग-अलग धर्म और संप्रदाय को मानने वाले 380 लोग काम करते थे. वहां ईसाई काम करते थे, हिंदू काम करते थे, मुसलमान काम करते थे. सभी लोग पॉपुलर फ्रंट के सदस्य नहीं थे. पत्रकार होने के नाते मेरे फोन में सभी तरह के लोगों के नंबर हैं. बीजेपी के नेताओं के नंबर हैं, कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के नंबर हैं और सुप्रीम कोर्ट के जजों के भी नंबर हैं. मेरे फोन में सिर्फ फ्रंट के सदस्यों को नंबर भर नहीं हैं.

अमृता सिंह : पुलिस ने आप पर यह आरोप लगाया है कि आप स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी के सदस्य भी रहे हैं?

सिद्दीकी कप्पन : यह बेबुनियाद है. सिमी को 2001 में ही प्रतिबंधित कर दिया था और तब मैं स्कूल में पढ़ता था. उस समय मैं शायद 17 साल का था.

अमृता सिंह : आपको भीमा कोरेगांव मामले के साथ भी जोड़ा जा रहा है?

सिद्दीकी कप्पन : मैंने भीमा कोरेगांव मामले पर रिपोर्टिंग की है. मैंने जीएन साईबाबा और हनी बाबू की पत्नियों के साक्षात्कार लिए हैं. इसमें गलत क्या है?

शाहिद तांत्रे : 28 महीने आप जेल में रहे और इस दौरान जो आपने खोया उसके बारे में बताइए.

सिद्दीकी कप्पन : मेरी मां और मेरे बच्चों के लिए मेरी मौजूदगी जरूरी थी. उनके बीच न होने से मानसिक और शैक्षिक स्तर पर उनको नुकसान हुआ. मैं अपनी मां के बहुत करीब था और उन्हें अंतिम दिनों में मेरी जरूरत थी लेकिन मैं हिरासत में था. यह था मेरा नुकसान. इसके अलावा दुनिया भर में, भारत में, म्यानमार में अफगानिस्तान, यमन, सीरिया और भी बहुत से अन्य देशों में पत्रकार होने को आतंकवादी होना माना जाता है. इन देशों में प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है. मुझे गर्व है कि ऐसे माहौल में भी मुझे एक महिला के बलात्कार के मामले में रिपोर्टिंग करने के लिए जेल जाना पड़ा. मैं क्यों जेल गया? मैं रेप करने के लिए जेल नहीं किया. मैं धोखाधड़ी करने के लिए नहीं गया. हत्या के मामले में जेल नहीं गया. मेरा मामला क्या है?

अमृता सिंह : फरवरी 2021 में आपको अपनी बीमार मां से मिलने की छूट दी गई थी. आपके लिए वे दिन कैसे थे?

सिद्दीकी कप्पन : मुझे पांच दिन की अंतरिम जमानत दी गई थी लेकिन मैं अपनी मां के साथ तीन दिन भी नहीं बिता सका. यूपी पुलिस ने प्रक्रिया में देरी की और इसलिए मेरे दो दिन बर्बाद हो गए. मेरी मां को अल्जाइमर है. वह लगभग बेहोशी की हालत में थीं. उन्होंने मुझसे बात नहीं की और पूरा एकदम बेहोश पड़ी थीं. कई बार मैं उनके साथ बैठता था और उनसे बात करने की कोशिश करता था लेकिन वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देती थीं. वह मुझे पहचानती नहीं थीं इसलिए मुझे रोना आता था. बस एक ही चीज कहती थीं, "तुम रो क्यों रहे हो?"

शाहिद तांत्रे : मुलाकात के चार महीने बाद आपकी मां की मौत हो गई. आपकी प्रतिक्रिया क्या थी?

सिद्दीकी कप्पन : मैंने अपनी मां की मौत की खबर हिंदू अखबार में पढ़ी. मैंने 18 जून को अपने घर फोन किया था, तो मेरी पत्नी ने मुझे बताया था कि उनकी हालत बहुत खराब है. अगले दिन मैंने यह खबर अखबार में पढ़ी. बहुत खराब लगा. मैं भावशून्य हो गया था. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अपनी भावनाओं को कैसे अभिव्यक्त करूं. मेरी मां मेरी गुरु थीं. उन्होंने मुझे हमेशा कहा कि मैं लोगों को डर और भूख से आजादी दिलाने के लिए काम करूं. उन्होंने बचपन से मुझे ये बातें सिखाई थीं.

अमृता सिंह : अभी हाल के एक इंटरव्यू में आपने कहा था कि आपको पत्रकार होने के लिए गिरफ्तार किया गया था न कि मुसलमान होने के नाते.

सिद्दीकी कप्पन : इस वक्त भारत में पत्रकारिता एक अपराध है. मैं मुस्लिम हूं और यह उनके लिए अच्छा मसाला है. मैं पत्रकार हूं यह भी एक अच्छा मसाला है. मैं केरल से हूं यह तो और भी अच्छा मसाला है. इन सारे मसालों से वे तैयार करते हैं आतंकवाद की बिरयानी.

Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute