सावरकर या वाजपेयी से बड़े कल्ट हैं मोदी : जामिया के प्रोफेसर मुजीबुर रहमान

एलास्ट्रेशन : विद्या बीनू
एलास्ट्रेशन : विद्या बीनू

मुजीबुर रहमान दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल एक्सक्लूजन एंड इनक्लूसिव पॉलिसी विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं. प्रशिक्षण से राजनीतिक वैज्ञानिक रहमान का शोध पहचान और विकास की राजनीति पर केंद्रित है. 2018 में उन्होंने राइज ऑफ सैफरन पावर : रिफ्लेक्शंस ऑन इंडियन पॉलिटिक्स नाम से निबंधों का एक संग्रह संपादित किया और फिलहाल वह शिकवा-ए-हिंद, द पॉलिटिकल फ्यूचर ऑफ इंडियन मुस्लिम किताब पर काम कर रहे हैं जो 2021 में प्रकाशित होगी.

भारत राजनीति रूप से तेजी से दक्षिणपंथी होता जा रहा है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पहले दक्षिणपंथी संगठनों के सदस्य थे लेकिन अब वाम खेमे में आ गए हैं या कम से कम दक्षिणपंथ से दूर हुए हैं. ऐसा क्यों होता है? कौन सी घटनाएं, परिस्थितियां और विचार उनके निर्णयों को आकार देती हैं? शिकागो विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट के छात्र अभिमन्यु चंद्रा ने कारवां के लिए इंटरव्यू की एक श्रृंखला में इन बदलावों का पता लगाने का प्रयास किया है. शुरुआती इंटरव्यू उन व्यक्तियों पर केंद्रित थे जो पहले दक्षिणपंथ में थे लेकिन अब उसके आलोचक हो गए. इंटरव्यू श्रृंखला के इस भाग में, चंद्रा ने उन विशेषज्ञों का इंटरव्यू किया है जो इस बात पर टिप्पणी करते हैं कि कब, क्यों और कैसे कुछ लोग दक्षिणपंथी खेमा छोड़ देते हैं.

एक शिक्षक के रूप में उनके अनुभवों के बारे में चंद्रा ने रहमान से बात की. उन्होंने बात की कि किसी मुद्दे पर बुद्धिजीवी बनाम औसत भारतीय के नजरिए में कितना फर्क है. रहमान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विफलताओं से उनकी अपील तभी कम हो सकती है अगर विपक्षी दल "एक खास असंतोष को एक नई राजनीतिक सोच में बदल" पाएं.

अभिमन्यु चंद्रा : विश्व स्तर पर मोदी सहित प्रमुख दक्षिणपंथी नेताओं की गलतियां, उनके समर्थन को प्रभावित नहीं करती हैं. क्या चीज है जो उनके समर्थकों के मन को बदल सकती है या बदलती है?

मुजीबुर रहमान : अगर कोई मतदान संबंधी व्यवहार के बारे में पारंपरिक साहित्य को देखे, तो मुख्य रूप से तीन प्रकार के मतदाता होते हैं. एक वे हैं जिन्हें "कोर मतदाता" कहा जाता है, जो वफादार हैं. वे लोग जो बीजेपी से संबंधित हैं, जिनके परिवार कांग्रेस से हैं, जिनके परिवार कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन करते हैं. वे अपना विचार नहीं बदलते हैं. फिर हर चुनाव में, हमेशा नए-नए मतदाता शामिल होते हैं. और फिर अस्थायी या स्वतंत्र मतदाता हमेशा होते हैं.

अभिमन्यु चंद्रा शिकागो विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं.

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