“सच हमारे साथ है”, पत्रकार कप्पन सिद्दीकी की रिहाई के लिए पत्नी रेहाना का संघर्ष

शाहिद तांत्रे/कारवां

5 अक्टूबर 2020 को उत्तर प्रदेश पुलिस ने स्वतंत्र पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को गिरफ्तार कर लिया. कप्पन उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित युवति के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की रिपोर्ट करने जा रहे थे. उन पर देशद्रोह और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम जैसे कठोर कानूनों के तहत मामला दर्ज किया गया. 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें उनकी बीमार मां से मिलने के लिए पांच दिन की जमानत दी लेकिन उन्हें मीडिया से बात करने की इजाजत नहीं दी. हाल के महीनों में कप्पन की स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ती जा रही है और 21 अप्रैल को उनकी कोविड-19 जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. उसी दिन कप्पन को इलाज के लिए मथुरा के केएम मेडिकल कॉलेज ले जाया गया जहां उन्हें जंजीरों से बांधकर रखा गया और शौचालय का इस्तेमाल नहीं करने दिया गया. 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सिद्दीकी को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में स्थानांतरित करने का आदेश दिया. 30 अप्रैल को पत्नी रेहाना दिल्ली पहुंचीं लेकिन उन्हें अपने पति से मिलने नहीं दिया गया. 6 मई की रात को उत्तर प्रदेश पुलिस कप्पन को उनके परिवार या वकील को बताए बिना वापस मथुरा जेल ले गई. इस रिपोर्ट के प्रकाशन के समय कप्पन के स्वास्थ्य की स्थिति स्पष्ट नहीं थी.

7 मई को कारवां की मल्टीमीडिया नबीला पनियत और मल्टीमीडिया रिपोर्टर शाहिद तांत्रे ने कप्पन की स्थिति के बारे में पत्नी रेहाना से बात की.

नबीला पनियत : आप दिल्ली कब पहुंची? आपको यहां आने की जरूरत क्यों आन पड़ी?

रेहाना : मैं पहली मई को यहां पहुंची. सुप्रीम कोर्ट ने मेरे पति को इलाज के लिए एम्स ले जाने का आदेश दिया था क्योंकि वह बीमार पड़ गए थे. कोर्ट ने कहा था कि उनके परिजन उनसे मिल सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया गया था कि उनकी कोविड जांच रिपोर्ट नेगेटिव आ गई है. इसलिए मैंने सोचा कि उनसे मिलना और उनकी देखभाल करना संभव है.

1 मई को आते ही मैंने उनसे मिलने की कोशिश की लेकिन मुझे मिलने नहीं दिया गया. एम्स में ​मुलाकात का समय शाम 4 से 6 बजे के बीच है. 2 मई की शाम को मैं अपने बेटे और एक साथी के साथ उनसे मिलने एम्स पहुंचे. प्रवेश द्वार पर पुलिसकर्मी तैनात थे. हमने पुलिस को बताया कि हम पत्नी की पत्नी और बेटे हैं और हम उन्हें सिर्फ एक बार देखना चाहते हैं. उन्होंने हमें फिर भी अंदर नहीं जाने दिया.

काफी मिन्नत करने के बाद उन्होंने हमसे हमारा पहचान पत्र मांगा. हमारे पास हमारा आधार कार्ड था. उन्होंने इसकी फोटो खींची और वार्ड के अंदर पुलिस के पास ले गए. वह वापस लौटे और हमें बताया कि हम उनसे नहीं मिल सकते. हमने उनसे लगभग ढाई घंटे तक गुहार लगाई कि हमें बस उन्हें देखने और उनसे कुछ देर बात करने दें फिर हम चले जाएंगे. उन्होंने हमें बताया कि यह संभव नहीं है और हमें वहां से चले जाने के लिए कहा.

नबीला पनियत : अस्पताल से छुट्टी मिलने के समय कप्पन की स्वास्थ्य स्थिति क्या थी? आपको कैसे पता चला कि उन्हें वापस ले गए हैं?

रेहाना : 6 मई की रात मुझे आधिकारिक तौर पर नहीं बल्कि किसी और के जरिए पता चला कि उन्हें छुट्टी दे दी गई है. उन्हें कहां ले जाया गया इसकी कोई जानकारी हमें नहीं थी. हम सिर्फ इतना जानते थे कि उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है. तब कुछ पत्रकारों ने इस बात की तस्दीक की कि उन्हें एम्स से ले जाया गया है. मैंने एम्स में फोन किया और अधीक्षक ने मुझे बताया कि उन्हें ले जाया जा चुका है और वह 1.30 बजे अपने गंतव्य पर पहुंच गए हैं. बाद में, 7 मई की सुबह कप्पन ने मुझे फोन किया और कहा कि उन्हें रात के 1.30 बजे वहां लाया गया था और उन्हें बिना बाथरूम वाले कमरे में रखा गया है. उन्होंने मुझे सुबह 11 बजे फोन किया था, उन्होंने उन्हें फोन करने की इजाजत दी थी. उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें 14 दिनों के लिए मथुरा जेल में आइसोलेशन में रखा जाना है.

नबीला पनियत : कैद के दौरान उनका स्वास्थ्य कैसा था?

रेहाना : कप्पन सप्ताह में दो बार रोजा रखते हैं. रमजान से पहले उन्हें बुखार हो गया था. जब उन्होंने मुझे फोन किया था तो बताया था कि उन्हें असहनीय दर्द हो रहा है. तब हमें नहीं पता था कि कोविड की वजह से ऐसा है. लगभग 12-15 दिनों के बाद जब उन्होंने मुझे फोन किया, तो मुझे बताया कि उन्हें बहुत दर्द हो रहा है और वह बीमार हैं. मैंने उनसे रोजा तोड़ने के लिए कहा. उन्होंने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह रोजा रखें या नहीं क्योंकि खाना ही नहीं है. उन्होंने कहा कि पानी भी साफ नहीं है.

उस रात करीब 3 बजे वह बाथरूम जाने के लिए उठे. बाथरूम के बाहर जब वह इंतजार कर रहे थे कि तभी बेहोश हो गए. उनके जबड़े और नाक पर चोटें आई हैं. मुझे अभी भी उनकी चोटों के बारे में पूरा-पूरा नहीं पता है. उन्हें जेल अस्पताल ले गए तो पता चला कि कोविड पॉजिटिव हैं. उन्हें उस सुबह मथुरा के केएम मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. उनके वकील ने मुझे सुबह 8 बजे फोन किया और बताया कि कप्पन को कोविड हो गया है. उन्होंने मुझे हालत को हल्का करके बताया ताकि मैं डर न जाऊं. इसके बाद मेडिकल कॉलेज के अंदर क्या हो रहा था इसकी जानकारी नहीं हो सकी. मैंने केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स को फोन किया, जिन्होंने स्थानीय पत्रकारों से मेडिकल कॉलेज से जानकारी लेने को कहा.

नबीला पनियत : आपको कैसे पता चला कि वह बिस्तर पर जंजीरों से जकड़े हुए थे? इस खबर पर आपकी क्या प्रतिक्रिया थी?

रेहाना : 24 अप्रैल को मुझे कप्पन का फोन आया. किसी अजनबी से उन्होंने किसी तरह फोन लेकर मुझे कॉल किया था. उन्होंने मुझसे सिर्फ दो मिनट बात की. उन्हें नहीं पता था कि मैं उनकी ताजा हालत के बारे में जानती हूं. उन्होंने मुझे बताया कि वह बेहोश हो गए थे और उन्हें कोविड संक्रमण हो जाने के बाद अस्पताल लाया गया था. उन्होंने कहा कि वह खा नहीं पा रहे हैं क्योंकि उनके चेहरे पर चोट के कारण दर्द हो रहा है. वह शौचालय का इस्तेमाल करना चाहते थे लेकिन उन्हें बिस्तर से बांध दिया गया था. “मैं इतने दिनों से शौचालय नहीं गया,” उन्होंने कहा. “वे मेरी जंजीरों को नहीं खोल रहे हैं. पेशाब करने के लिए एक बोतल है. मुझे शौचालय जाना है.”

यह बातचीत तीन दिन बाद हो रही थी. मैं एकदम सदमे में थी. उन्होंने मुझे यह बातें बताईं और फोन काट दिया. वह मुश्किल से बोल पा रहे थे. “उन्हें किसी तरह मुझे वापस जेल ले जाने के लिए कहो, वह इससे बेहतर है. कम से कम मैं बाथरूम जा सकता हूं और कोई जंजीर नहीं होती,” उन्होंने कहा. मैंने वकील को फोन किया और उन्हें इस बारे में बताया.

वकील ने फिर सुप्रीम कोर्ट को इसकी जानकारी देते हुए एक पत्र तैयार किया और अदालत से उन्हें एम्स या केरल ले जाने के लिए कहा. मैंने सभी सांसदों को भी कॉल किया और उन्हें स्थिति से अवगत कराया. ग्यारह सांसदों ने मानवाधिकारों के उल्लंघन पर प्रकाश डालते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को पत्र लिखे. पत्रकारों को जैसे ही पता चला कि वह अस्पताल में भर्ती हैं, उन्होंने भी मुझे फोन किया. केरल के मुख्यमंत्री ने इसमें हस्तक्षेप किया. उन्होंने अब तक हस्तक्षेप नहीं किया था लेकिन जब उन्होंने उल्लंघन के बारे में सुना, तो उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखा. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया.

शाहिद तांत्रे : केरल सरकार ने कितना समर्थन किया है?

रेहाना : केरल सरकार ने शुरू में कोई समर्थन नहीं दिया था. मुझे नहीं पता कि पहले सरकार ने क्यों समर्थन नहीं दिया. मुख्यमंत्री ने इसका कोई कारण नहीं बताया. जब सीएम को मेरे पति के जंजीरों में जकड़े होने के बारे में पता चला तो उन्होंने पहली बार हस्तक्षेप किया. तब तक हमने उनसे कई बार कुछ करने का अनुरोध किया था. मैं कलेक्ट्रेट गई थी, लिखित पत्र दिया था. मुझे डीजीपी से जवाब मिला कि चूंकि यह केरल के अधिकार क्षेत्र से बाहर है इसलिए हस्तक्षेप करने की शक्तियां और अधिकार बहुत सीमित हैं. हां, सीमाएं रही होंगी लेकिन कम से कम अब जब स्थिति बहुत गंभीर हो गई, तो उन्होंने हस्तक्षेप किया और मैं इसके लिए आभारी हूं.

नबीला पनियत : जब वह फरवरी 2021 में पांच दिनों के लिए अंतरिम जमानत पर बाहर थे, तो उन्होंने किस बारे में बात की? क्या उन्होंने आपको जेल की स्थितियों के बारे में बताया?

रेहाना : हां. गिरफ्तारी के शुरुआती दिनों से एक महीने से अधिक समय तक हमें उनके ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. हमें यह भी नहीं पता था कि वह जीवित हैं या नहीं. उन्होंने उन दिनों के बारे में बात की थी, जब उन्हें लगभग पांच सौ अन्य लोगों के साथ एक स्कूल की इमारत के अंदर बंद रखा गया था. पेशाब करने के लिए कोई चीज रखी गई थी, शौचालय जाने के लिए पुलिस ने अधिकारियों के आने तक उन्हें रोके रहने के लिए कहा गया. इन लोगों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जाता था. किसी तरह जिंदा बचे रहने के अलावा कोई चारा नहीं था. वह किसी तरह बच गए. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया. उन्हें यह कहकर स्कूल की इमारत में बंद कर दिया गया था कि यह क्वारंटीन सेंटर है. मथुरा जेल ले जाने के बाद उन्हें इस मानसिक यातना से राहत मिली.

नबीला पनियत : आपके पति के मामले को लेकर बहुत से लोग मुखर हैं. लेकिन कुछ इस आरोप से झिझक रहे हैं कि वह इस्लामिक युवा संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़े हुए हैं. आपको क्या लगता है कि ये आरोप क्यों लगे और आप उनके बारे में क्या सोचती हैं?

रेहाना : यह सच है कि पॉपुलर फ्रंट पर लगे आरोप एक कारण है कि कई लोग इस मामले में शामिल होने से हिचकिचाते हैं. मेरे पति पॉपुलर फ्रंट के सदस्य नहीं हैं. उन्होंने शुरू में तेजस [पीएफआई द्वारा संचालित एक अखबार] में 2011 से 2018 में बंद होने तक काम किया था. इसमें कई लोग काम करते थे.

जब वह हाथरस जा रहे थे तो पॉपुलर फ्रंट के एक सदस्य भी साथ यात्रा कर रहे थे. उनके साथ दो लोग थे. उनमें से एक जामिया का छात्र था जो कैंपस फ्रंट (एक छात्र संगठन) से जुड़ा था और दूसरा पॉपुलर फ्रंट का सदस्य था. अब सवाल यह है कि उन्होंने उनके साथ यात्रा क्यों की? उन्होंने सभी से कहा था कि अगर कोई हाथरस के लिए जा रहा है तो उन्हें फोन करे. वह वर्तमान में अजीमुखम [एक मलयालम समाचार वेबसाइट] में काम कर रहे हैं, जिसके पास आने-जाने के लिए अपने वाहन नहीं हैं. यह उनके लिए आर्थिक रूप से भी कठिन समय था. तो दो-तीन अन्य लोगों के साथ जाने का मतलब होता साझा खर्च.

अगली चिंता हाथरस में भाषा की थी. वह केवल उतनी ही हिंदी जानते हैं जो उन्होंने दसवीं कक्षा तक पढ़ी थी और जो उन्होंने बाद में दिल्ली में सीखी. लेकिन गांव की भाषा अलग होती है, उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो अनुवाद कर सके. साथी यूपी के. चूंकि मेरे पति ने यहां नौ साल काम किया है, यहां उनके कई दोस्त हैं, न केवल पॉपुलर फ्रंट से बल्कि बीजेपी, आरएसएस, कांग्रेस, सीपीआई-एम और निश्चित रूप से अन्य पत्रकार भी. उन सभी के साथ उनके अच्छे संबंध थे. मुझे लगता है कि उनके जरिए दूसरों को चेतावनी देने की कोशिश है. सरकार कह रही थी कि यूपी में किसी भी मुद्दे को मत छुओ और किसी को भी इसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करनी चाहिए. यदि कोई प्रवेश करेगा, तो उसका भी यही हश्र होगा.

नबीला पनियत : क्या पॉपुलर फ्रंट किसी भी तरह से आपके मामले में मदद कर रहा है?

रेहाना : नहीं, इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं है. वह अपने ही सदस्यों के खिलाफ मामलों से निपट रहे हैं. इस मामले को पत्रकारों का समर्थन है, न कि पॉपुलर फ्रंट का. केरल का पत्रकार संघ इस मामले का संचालन कर रहा है और उन्होंने ही वकील की नियुक्ती की है. वही हमारी मदद कर रहे हैं.

शाहिद तांत्रे : क्या आपको लगता है कि मुस्लिम होने के कारण उन्हें निशाना बनाया गया?

रेहाना : हां, यह भी है. वह मुस्लिम हैं और जिस तरह से घटनाएं घटी हैं उसमें उनका मुस्लिम होना भी एक तथ्य है. उन्हें आसानी से पॉपुलर फ्रंट के सदस्य के रूप में लेबल किया जा सकता था. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कितना कहते रहें कि वह सदस्य नहीं हैं, या इसका कोई सबूत भी नहीं है, वे कप्पन पर लेबल लगाना चाहते थे. यही उनका उद्देश्य था.

शाहिद तांत्रे : अभी सिद्दीकी कप्पन की दो छवि हैं. एक, पत्रकार जो अपना काम करने की कोशिश कर रहा था. दूसरा, पॉपुलर फ्रंट का सदस्य जो उग्रवाद या देशद्रोही गतिविधि से जुड़ा है. इन दो छवियों में बंटी दुनिया को आप क्या कहना चाहती हैं?

रेहाना : मैं दूसरी छवि को नजरअंदाज करती हूं. उन्हें हिरासत में रखने वाले लोग भी जानते हैं कि सिद्दीकी कप्पन निर्दोष हैं. उन्होंने कुछ नहीं किया. उन्हें शिकार बनाया गया. इस रुख का समर्थन करने वाले लोग अपनी स्थिति बदलने वाले नहीं हैं. हम उन्हें कितनी भी बार उनकी बेगुनाही के बारे में बताएं, वे अपना रुख नहीं बदलेंगे. यह केवल हमारे समय की बर्बादी है. सिद्दीकी कप्पन एक पत्रकार हैं और मुझे वास्तव में इस पर गर्व है. कभी-कभी मैं सचमुच निराश हो जाती हूं लेकिन फिर मेरे बच्चे मुझसे कहते हैं, "उप्पाची, उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है.” हमारे गृह नगर में या उनके द्वारा दिल्ली में बिताए नौ वर्षों के दौरन एक भी अनावश्यक मुद्दा नहीं रहा है. कोई छोटा सा भी मामला नहीं. ऐसा व्यक्ति अचानक आतंकवादी कैसे बन सकता है?

शाहिद तांत्रे : महामारी के प्रकोप के बीच कप्पन के बारे में आपका सबसे बड़ा डर क्या है?

रेहाना : मैं सिर्फ कोरोना से नहीं डरती. उससे ज्यादा मुझे उनकी जान का डर है. यूपी सरकार ने एक ऐसे व्यक्ति के साथ बहुत कुछ किया है जिसने कुछ भी गलत नहीं किया है. वे उनके साथ कुछ भी करने में संकोच नहीं करेंगे. इसलिए मैं वास्तव में डरी हुई हूं. मुझे ऐसा लग रहा है कि उनकी जान को खतरा है.

नबीला पनियत : हाथरस और उनकी गिरफ्तारी से पहले भी आपने उल्लेख किया था कि उन्होंने जीएन साईबाबा का साक्षात्कार लिया था. वह भारतीय राजनीति में रुचि रखते थे और भारत में विचाराधीन कैदियों के प्रति सहानुभूति रखते थे. क्या उन्होंने उस समय के बारे में कोई स्मृति साझा की है?

रेहाना : जब जीएन साईबाबा गिरफ्तार हुए, जैसे आप अभी मेरा साक्षात्कार कर रहे हैं, तो उन्होंने साईबाबा की पत्नी का साक्षात्कार लिया था. उन्होंने मुझे बताया था कि उन्होंने एक आदमी को गिरफ्तार किया है जिसे खड़े होने के लिए भी तीन लोगों की मदद की जरूरत पड़ती है. उन्होंने कहा कि वह साईबाबा की पत्नी का यह वर्णन करते हुए नहीं सुन सके. जब उन्होंने यह सब मेरे साथ साझा किया था, तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं भी कभी ऐसी ही स्थिति में पहुंचूंगी.

नबीला पनियत : क्या उन्होंने अपनी कोई आकांक्षा आपके साथ साझा की है, जिसे वह एक पत्रकार के रूप में पूरा करना चाहते हैं? एक सपने जैसा कुछ, किस तरह की रिपोर्टें वह करना चाहते थे?

रेहाना : उनके कई सपने थे. कुछ भी हो, वह आजादी से पत्रकारिता करना चाहते थे. वह सच लिखना चाहते थे. वह सत्य के साथ तोड़-मरोड़ से उन्हें नफरत थी. वह केवल सत्य बताना चाहते थे और वह सच को उजागर करने के लिए कोई भी जोखिम उठाने को तैयार रहते. वह किसी स्थिति का निरीक्षण और अध्ययन करने के लिए निकल पड़ते और फिर उसके बारे में लिखते. उन्होंने कभी किसी एक पार्टी या व्यक्ति को निशाना नहीं बनाया. वह किसी भी पार्टी के संबंध में निष्पक्ष थे, चाहे वह अच्छी हो या बुरी.

नबीला पनियत : दिल्ली में कोविड-19 की स्थिति विकट है. आपने इस तरह से आने का जोखिम क्यों उठाया? घर में स्थिति कैसी है? 

रेहाना : मैंने अपनी आठ साल की बेटी और अपने बेटे को घर पर छोड़ कर आई हूं. मैं अपने बड़े बेटे को साथ ले आई हूं. कप्पन की मां की हालत बेहद गंभीर है. उनकी नाक में एक ट्यूब लगानी पड़ती है और वह वॉटर बेड पर लेटी रहती हैं. मेरी बेटी सारा दिन रोती है. वह मुझे भी खोने से डरती है. पिछले सात महीनों से हम पूरी तरह से इस मामले में फंस गए हैं इसलिए वह में डरी हुई है. मैं उन सबको छोड़कर यहां उनसे मिलने आई हूं. और फिर भी मैंने उन्हें नहीं देखा है. मैं उन्हें हिम्मत देना चाहती थी. अगर वह मुझे देखते, तो उन्हें थोड़ी राहत महसूस होती, है न? इसलिए मैंने जोखिम उठाया.

नबीला पनियत : आपकी बेटी आपको अक्सर वीडियो कॉल करती है. जो कुछ हो रहा है उसके बारे में वह क्या कहती है?

रेहाना : शुरुआत में वह हर दिन बुरी तरह रोती रहती थी. यह सिलसिला सात महीने से चल रहा है. शुरू में हमें हर सुनवाई से बहुत उम्मीद थी कि उन्हें रिहा कर दिया जाएगा. वे अभी बच्चे हैं और केस, गिरफ्तारी और इन सब बातों से अनजान हैं. वह कुछ नहीं जानते. धीरे-धीरे उन्हें यह प्रक्रिया समझ में आने लगी. हर सुनवाई के बाद जब उन्हें रिहा नहीं किया जाता तो बेटी रोती है. वह भी गुस्सा हो जाती है, पूछती है, "उप्पा घर क्यों नहीं है? बताया गया कि इस बार वह वापस आ जाएंगे." अब वह ज्यादा परिपक्व हो गए हैं. वे प्रार्थना करते हैं, वे दुखी हैं. फोन पर बात करने पर वे रो पड़ते हैं. उनके पिता भी उनकी आवाज सुनकर बहुत दुखी हो जाते हैं.

नबीला पनियत: क्या आपको उनसे फोन पर रोजाना बात करने की इजाजत है?

रेहाना : वकील ने आज जेल अधीक्षक से बात की. हमने एक पत्र भेजकर अनुरोध किया कि मुझे उत्तर प्रदेश में उनसे मिलने दिया जाए. गिरफ्तारी के बाद से मैंने उन्हें एक बार भी नहीं देखा है. अधीक्षक ने अब यह कहते हुए जवाब दिया कि वह कोविड पॉजिटिव हैं और आइसोलेशन में हैं, इसलिए किसी को भी उनसे मिलने की इजाजत नहीं है. अधीक्षक ने कहा कि वह उसकी देखभाल करेंगे. 

शाहिद तांत्रे : आप उनसे मिलने की उम्मीद में दिल्ली आईं और नहीं मिल सकीं. आपकी वर्तमान मानसिक स्थिति कैसी है? आप अदालत के कार्यों के बारे में कैसा महसूस करती हैं?

रेहाना : कोर्ट हमारे पक्ष में खड़ी है. मैंने कहा कि मैं उनकी पत्नी हूं, अगर हम मिल पाते तो हम दोनों को राहत और सुकून मिलता. कोर्ट ने इसे समझा. लेकिन आदेश में इसका विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया. अगर उन्होंने इसका जिक्र किया होता, तो हम पहले ही मिल चुके होते. मैं कैसा महसूस कर रही हूं, इसके बारे में मैं क्या कह सकती हूं? मैं क्या कहूं? मैं इतने दिनों तक रही और उन्हें देख नहीं सकी. मैं तनाव में हूं. मुझे लगता है कि मुझे घर वापस जाना होगा. अगर मैं आई ही नहीं होती, तो मुझे यकीन है कि मुझे और भी बुरा लगता, मैं लगातार सोचती रहती कि क्या मैं उससे मिल पाती.

नबीला पनियत : आपका यहां कोई राजनीतिक संपर्क नहीं है और आप एक औरत के रूप में इस तरह के खतरनाक परिदृश्य में दिल्ली तक आ गई हैं. लड़ते रहने की ताकत कहां से लाती हैं?

रेहाना : शायद उनकी दुआओं की वजह से ही मैं इतनी बहादुर बन पाई. मेरे साथ सच्चाई है और मुझे डरने की जरूरत नहीं. जब सच मेरे साथ है तो मैं बोलने से नहीं डरती. मदद मांगने या स्थिति को समझाने में मेरे पास कोई दूसरा विचार नहीं है क्योंकि सच मेरे साथ है. मैं किसी से झूठ बोलकर मुझे बचाने के लिए नहीं कह रही, है न? मुझे अपने पति पर गर्व है, मुझे उनके बारे में किसी से बात करने में कोई संदेह नहीं है. मुझे उन पर गर्व है.

शाहिद तांत्रे : क्या आपको लगता है कि न्याय की राह बहुत लंबी है?

रेहाना : मुझे पता है कि यह न्याय के लिए है. लेकिन हां, मैंने कई और लोगों के मामले भी देखे हैं जिनकी सुनवाई कभी खत्म नहीं होती, यह सिलसिला चलता रहता है. कुछ मामलों में बेगुनाही साबित करने और व्यक्ति को आजाद होने में दस साल लग गए. ऐसी संभावना का डर छोटा नहीं है. कभी-कभी, मैं मानसिक रूप से निराश हो जाती हूं और फिर मैं ताकत हासिल कर उठ खड़ी होती हूं. मैं खुद को याद दिलाती हूं कि मैं पीछे नहीं हट सकती, मुझे लड़ना होगा.

चार्जशीट 5500 पेज की है. अगर आप किसी के जन्म की कहानी मां के गर्भ से लेकर भी लिखना शुरू करे तो वह भी 5500 पेज की नहीं होगी. उन्होंने बहुत सी चीजें गढ़ी हैं. हमें केवल 45 पृष्ठ उपलब्ध कराए गए, यहां तक ​​कि वकील को भी. पूरी चार्जशीट किसी ने नहीं देखी, कोर्ट ने भी नहीं. इन 45 पृष्ठों में कुछ भी ठोस नहीं है. बहुत सारी गढ़ी हुई कहानियां हैं. लेकिन इन 45 पृष्ठों में कुछ भी वास्तव में कप्पन को फंसा नहीं सकता है.

शाहिद तांत्रे : यह रमजान का पवित्र महीना है. इस महीने में आपकी क्या प्रार्थनाएं रही हैं? आप ईद के लिए उपहार के रूप में क्या चाहती हैं?

रेहाना : जब से यह मुद्दा शुरू हुआ मैं उनकी रिहाई के लिए दुआ करती रही और यह कि खुदा उन्हें हौसला दे. मेरी भी रक्षा करे, मुझे भी हौसला दे. कप्पन भी यही दुआ कर रहे होंगे, ताकि मैं मजबूत रहूं. उनका दिमाग शांत रहना चाहिए. उनका शारीरिक स्वास्थ्य खराब हो गया है. उन्हें मधुमेह है और उन्हें मुश्किल से पर्याप्त भोजन मिलता है. मैं उनकी इम्युनिटी को लेकर डरी हुई हूं. यह खुदा का रहम है कि वह उचित भोजन के बिना भी ठीक हैं. वह मेरे और परिवार के पास वापस आ जाएं ईद का इससे ज्यादा अच्छा तोहफा और क्या हो सकता है. अगर अदालत मुझे यह तोहफा दे देती है, तो मुझे इस दुनिया से और कुछ नहीं चाहिए.