“हालिया कृषि कानून देश के किसानों के साथ गद्दारी हैं,” किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी 

गुरनाम सिंह चढूनी हरियाणाम में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जारी आंदोलन का चेहरा हैं. फोटो : मनदीप पुनिया/अमित ओहलाण

हरियाणा और पंजाब के किसान संसद में पारित हुए तीन कृषि कानूनों (कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020) के खिलाफ आंदोलित हैं. हरियाणा में इन दिनों चल रहे किसान आंदोलन की अगुवाई भारतीय किसान यूनियन (चढूनी)के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी कर रहे हैं जो पिछले 30 सालों से हरियाणा में किसान आंदोलन का चेहरा रहे हैं. चढूनी ने हरियाणा भर में किसानों को संगठित किया है और जुलाई महीने से ही, जब सरकार ने इन कानूनों से पहले अध्यादेश जारी किए थे, उन्होंने हरियाणा में कई बड़े प्रदर्शन किए हैं. 

कारवां के लिए स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया और अमित ओहलाण ने चढूनी से बात की. 

अमित ओहलाण : हाल में पारित तीन कृषि सुधार कानूनों में ऐसा क्या है जिसकी वजह से देश भर में किसान आंदोलित हैं? 

गुरनाम सिंह चढूनी : इन तीनों कानूनों में दो-तीन ऐसी बातें हैं जो किसान की मौत बनकर आई है. ये कानून मंडियों से बाहर कहीं भी उत्पाद बेचने-खरीदने को बढ़ावा देते हैं. फसल को बाहर खरीदने-बेचने पर जो मंडियों में टैक्स लगता है वह टैक्स भी नहीं लगेगा, जिसकी वजह से सारे व्यापारी मंडियों से बाहर फसल खरीदने लगेंगे और धीरे धीरे मंडी अपने आप ही खत्म हो जाएगीं. मंडियों के खत्म होने से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी भी अपने आप ही खत्म हो जाएगा. ऐसे में हम ये मांग कर रहे हैं कि सरकार यह कानून लाए कि मंडी या मंडी से बाहर एमएसपी से नीचे खरीदना गैर कानूनी हो और अपराधी को पांच साल की सजा का प्रावधान हो. इस कानून में मुख्यत कॉन्ट्रेक्ट खेती का जिक्र है. लेकिन कॉन्ट्रेक्ट वाले मामले में पेंच यह है कि अगर किसान और कॉन्ट्रेक्टर के बीच कुछ विवाद हो गया तो ऐसे में यह कानून किसानों को कोर्ट में केस दायर करने पर रोक लगाता है. अगर कम्पनी किसान के साथ धोखाधड़ी करती है तो उसकी सुनवाई एसडीएम तक ही होगी. रिश्वत के भूखे अफसर किसानों की तो सुनने से रहे. बड़ी कंपनियां इन अफसरों को रिश्वत खिलाएंगी और फिर ये मिलकर किसानों का खून चूसेंगे. 

कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग वाले मामले में तो दोनों तरफ किसान की मौत है. फर्ज करो कि धान की बुआई के समय एक कंपनी से मेरा सौदा हुआ कि कंपनी मेरा धान 20 रुपए किलो खरीदेगी और अगर फसल काटते-काटते विश्व बाजार में या फिर भारत के बाजार में मंदी आ गई और धान 15 रुपए किलो हो गया तो कंपनी बहाने बनाने लग जाएगी कि फसल बढ़िया क्वालिटी की नहीं है या इसमें नमी है या धान टूटा हुआ है और इस तरह मेरा धान नहीं खरीदेगी. किसान के पास कोई लैब या प्रयोगशाला तो है नहीं जहां जांच की जा सके कि मेरा धान बढ़िया क्वालिटी का है घटिया क्वालिटी का और अगर मार्केट में तेजी हो और धान 25 रुपए किलो हो जाए तो किसान सारी फसल बेचने के लिए बाध्य होगा और चाह कर भी भी कान्ट्रैक्ट नहीं तोड़ पाएगा. कंपनी अनुबंध का हवाला देकर किसान की सारी फसल ओने-पौने दाम पर उठा लेगी. यानी कान्ट्रेक्ट तोड़ने के कंपनी के पास तो दस बहाने हैं लेकिन किसान के पास एक भी नहीं. 

अमित ओहलाण : जिस तरह से ग्राउंड पर आप लोग लगातार आंदोलन कर रहे हैं, उसी तरह सोशल मीडिया या फिर न्यूज मीडिया में आप लोगों के खिलाफ एक काउंटर नैरेटिव भी चल रहा है जिसमें सत्तरूढ़ बीजेपी के पक्ष यह माहौल बनाया जा रहा है कि आप लोग विपक्ष द्वारा गुमराह किए गए हैं और ये तीनों कानून किसानों के हित में हैं. 

गुरनाम सिंह चढूनी : हां, हम भी लगातार देख रहे हैं कि बीजेपी वाले मोदी को किसानों का मसीहा बता रहे हैं और कह रहे हैं कि मोदी ने किसानों को अपनी फसल कहीं भी बेचने की छूट दे दी है. अब आप यह बताओ कि ऐसा कौन सा कानून था जो किसानों को अपनी फसल कहीं भी बेचने से रोकता था. बल्कि मोदी ने तो ऐसा प्रावधान कर दिया है कि अगर कोई किसान को लूट ले तो वह कोर्ट में भी नहीं जा सकता. कुछ पत्रकारों को छोड़कर ज्यादातर तो सुशांत और वह बॉलीवुड के पीछे ही लगे हुए हैं. किसानों की कोई सुध नहीं ले रहा. बीजेपी के पास खुद के 4000 आईटी सेल वर्कर जो पूरा दिन झूठ और नफरत फैलाते हैं और साथ में यह गोदी मीडिया जो पूरा दिन देश का ध्यान असली मुद्दों से भटकाता रहता है. इसकी वजह से आम लोगों को यह नहीं पता है इन कानूनों को पास कर सरकार ने अनाज और दाल जैसी रोजाना खाने में इस्तेमाल होने वाली फसलों की जमाखोरी की छूट भी दे दी है. किसान के पास तो स्टॉक करने का इंफ्रास्ट्रक्चर वगैरा है नहीं, तो जमाखोरी करेंगे बड़े-बड़े पूंजीपति. वे पूंजीपति बाजार में इन वस्तुओं की किल्लत पैदा करके इनको महंगा बेचेंगे जिससे आम आदमी मारा जाएगा. आम आदमी को यह बात कोई बता ही नहीं रहा. मेरा मानना है कि ये तीनों कानून किसान के ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र के खिलाफ हैं जो अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के दबाव में लाए गए हैं.

मनदीप पुनिया : बीजेपी के पास अपनी आईटी सेल है और इतना बड़ा सूचनातंत्र है जो आंदोलित किसानों के खिलाफ जनता को भड़का रहा है. इतने बड़े मकड़जाल से आप कैसे लड़ेंगे? 

गुरनाम सिंह चढूनी : इनका झूठ का कारोबार कब तक चलेगा? एक दिन तो इसका भंडाफोड़ होना है ही और अब होने भी लगा है. हरियाणा और पंजाब में अब कोई बीजेपी का नेता गांव में घुस नहीं सकता. अभी कल ही मुंडलाना में कृषि मंत्री को किसानों ने तीन घंटे बंदी बनाकर रखा. आप देख लेना ऐसा हर गांव में होगा. जितना जल्दी हो सके इनको (सरकार) ये तीनों कानून वापस ले लेने चाहिए, नहीं तो किसान इनको इनकी औकात दिखा देंगे. हमारे पास इनके जितना बड़ा आईटी सेल खड़ा करने की ताकत तो नहीं है लेकिन हम गांव-गांव जाकर किसानों को समझा रहे हैं और किसानों को यह समझ भी आ रहा है कि मोदी सरकार ने उनकी कब्र तैयार कर दी है. बस किसान को उसमें जिंदा दफनाना बाकी है. इनके पास आईटी सेल, पुलिस, और बंदूकों से किसान सड़कों पर उतरकर लकड़ी की तलवार से लड़ाई रहा है. 

अमित ओहलाण : देश में सैकड़ों किसान यूनियन हैं और इसलिए लगता है कि किसानों को समझ नहीं आता की उनकी लड़ाई कौन सी यूनियन लड़ रही है. क्या आपको नहीं लगता कि सारी किसान यूनियनों को इस मुद्दे पर एकसाथ संघर्ष करने की आवश्यकता है. 

गुरनाम सिंह चढूनी : बेशक सैकड़ों किसान यूनियन हैं लेकिन जब किसानों की बात आती है तो सभी एक हो जाती हैं. अभी जितनी भी किसान यूनियन हैं सब एकसाथ लड़ाई लड़ रही हैं. यहां तक की आरएसएस की किसान यूनियन भारतीय किसान महासंघ भी सरकार के खिलाफ है और इन तीनों काले कानूनों की वापसी की मांग कर रही है. रही बात मिलजुल कर चलने की, तो सारी किसान यूनियनें एक साथ मिलकर काम कर ही रही हैं. इसी वजह से इन कानूनों के खिलाफ आयोजित भारत बंद सफल हुआ है. इस दौरान पूरा पंजाब बंद था, पूरा हरियाणा बंद था, पश्चिमी उत्तर प्रदेश बंद था, बिहार बंद था, राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक बंद था. यह इसी वजह से था क्योंकि सारी किसान यूनियनें एक साथ मिलकर काम कर रही हैं. 

अमित ओहलाण : कई सालों बाद हरियाणा और पंजाब के किसानों की एकता देखने को मिली है. क्या यह एकता लंबी चल पाएगी और इसका कोई असर देखने को मिलेगा? 

गुरनाम सिंह चढूनी : जब-जब हरियाणा और पंजाब का किसान एक हुआ है, तब-तब दिल्ली की कुर्सी को खतरा हुआ है. हां यह सच है कि कई साल बाद ऐसा मौका आया है कि पंजाब और हरियाणा दोनों भाई एक साथ खड़े हैं. बीच-बीच में ऐसी कोशिशें भी की जा रही हैं, जो इन दोनों भाइयों के बीच दरार पैदा करें. लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे. पंजाब और हरियाणा के किसानों को समझ चुका है कि सरकारे हमें हमारा हक देने के बजाय दोनों को आपस में लड़ाती रहती हैं. कभी धर्म के नाम पर, कभी जात के नाम पर तो कभी भाषा के नाम पर. लेकिन अब नहीं. अब हम एक साथ लड़ाई लड़ेंगे और अपना हक लेकर रहेंगे. 

मनदीप पुनिया : सरकार कह रही है कि किसानों की फसल एमएसपी पर खरीदी जा रही है और आगे भी खरीदी जाती रहेगी. भविष्य में अगर सरकार कह दे कि हम इन कानूनों में एक लाइन और जोड़ देते हैं कि एमएसपी पर खरीद होगी तो क्या आप अपना आंदोलन वापस ले लेंगे. 

गुरनाम सिंह चढूनी : पिछले दिनों हरियाणा में मक्की की फसल 1100 रुपए प्रति क्विंटल बिकी है. अभी कपास 2000 रुपए प्रति क्विंटल बिक रही है. मैं समय पहले मूंगफली के एरिया में गया था. वहां मूंगफली 3800 रुपए प्रति क्विंटल पर खरीदी जा रही थी जबकि एमएसपी 5500 रुपए प्रति क्विंटल था. कहां गई थी सरकार तब जब किसान की फसल औने-पौने दामों में लुट रही थी. कम से कम एमएसपी के नाम पर झूठ बोलना तो बंद कर दे सरकार. अब सरकार डब्ल्यूटीओ यानी वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन में शामिल हो चुकी है. अगर अमेरिका का मक्का हिंदुस्तान में आएगा तो सरकार उसको रोक नहीं सकती. इस साल 5 लाख टन अमेरिका का मक्का भारत आया है. इसी वजह से तो जो भारत के मक्के का दाम 2000 रुपए प्रति क्विंटल से गिरकर 1100 रुपए प्रति क्विंटल हो गए थे. 

एक बात और बताता हूं आपको. साल 2006 में बिहार में नीतीश कुमार ने नेतृत्व वाली सरकार ने मंडी सिस्टम को तोड़ा दिया था. उसके बाद बिहार सरकार ने अनाज का एक प्रतिशत भी कभी एमएसपी पर नहीं खरीदा. अभी बिहार में धान का रेट 1200 रुपए प्रति क्विंटल है जोकि हरियाणा पंजाब से 800 रुपए कम है. उसका परिणाम क्या निकला? गरीबी बढ़ी और पलायन हुआ. सरकार ने अच्छे-भले किसानों को शहरों के सस्ते मजदूर बनाकर रख दिया. आज बिहार का हर दूसरा परिवार पलायन करने के लिए मजबूर है. रही बात आंदोलन वापस लेने की तो किसान को आंदोलन करने का शौक नहीं है. मजबूरी में सड़क पर आना पड़ता है. यह तीनों काले कानून सरकार वापस ले ले, किसान आराम से अपने घर चले जाएंगे. 

मनदीप पुनिया : 1980 या 1990 तक तक संसद में ऐसे कई सांसद थे जो किसान राजनीति के प्रतिनिधि थे. लेकिन इस समय तो संसद करोड़पतियों के क्लब की तरह लगता है. ऐसे में संसद से आस लगाना क्या बेमानी नहीं है?

गुरनाम सिंह चढूनी : आपकी बात सही है. इस समय संसद में किसानों की आवाज उठाने वाला सांसद एक भी नहीं है. लेकिन हम क्या करें? हमने तो इन्हीं सांसदों को वोट देकर संसद भेजा है. अब यह हमारे साथ ऐसा कर रहे हैं तो हमारे पास सिर्फ आंदोलन का एक रास्ता बचता है जो हम कर रहे हैं. हमने साल 2019 के चुनाव में भी कोशिश की थी कि कुछ किसान प्रतिनिधि संसद भेजे जा सकें लेकिन लोगों ने खेती किसानी की बजाय धर्म और जाति के नाम पर वोट डाले. अब लोगों ने जिनको वोट दिया वे नेता किसानों से गद्दारी कर रहे हैं और अंबानी-अडानी को और अमीर बनाने के लिए किसान विरोधी बिल लेकर आए हैं.

मनदीप पुनिया : 25 सितंबर को भारत बंद के बाद आगे की योजना क्या है? क्या किसान संगठनों का दिल्ली की तरफ कूच करने का भी इरादा है? 

गुरनाम सिंह चढूनी : 25 सिंतबर का भारत बंद सफल रहा. आगे का प्लान सारे किसान संगठन मिलकर ही तय करेंगे. मेरा मानना है कि दिल्ली जाने में कोई फायदा नहीं है. दिल्ली जाओ और रामलीला मैदान में जाकर बैठ जाओ. वहां कौनसा कोई मीडिया या सरकार आएगी. सरकार तो बातचीत के लिए भी तैयार नहीं है. किसानों को चैलेंज कर रही है कि ये तीनों कानून वापस करवाके दिखाओ. दिल्ली चले गए और वहां मीडिया तो दिखाएगा नहीं किसानों को. उसे तो वही बॉलीवुड और हिंदू-मुसलमान दिखाना है. इसीलिए सारे किसान संगठनों को जो जहां पर सक्रिय है, वहीं रहकर किसानों के बीच काम करना चाहिए और किसानों को सरकार के इन काले कारनामों से अवगत कराना चाहिए और इकट्ठा करना चाहिए ताकि लोग इन बीजेपी वालों को गांव में न घुसने दे. सरकार को याद रखना चाहिए, अगर किसान कुर्सी पर बैठाना जानते हैं तो गिराना भी जानते हैं.