11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी को अंतरिम जमानत दी. दो साल पुराना यह मामला अर्नब द्वारा इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नायक को आत्महत्या के लिए मजबूर करने से संबंधित है. नायक कॉनकॉर्ड डिजाइंस प्राइवेट लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक थे. अर्नब को जमानत देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की, “हम स्वतंत्रता के ध्वंस के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं.“ अर्नब गोस्वामी को जमानत मिलने की प्रक्रिया अन्य पत्रकारों के मामलों की तुलना में बहुत सहज थी जबकि सरकार की आलोचना करने वाले कई पत्रकार जेलों में कैद हैं और उन्हें जमानत और सुनवाई के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.
हाल में पत्रकारों के ऊपर सरकारी दमन तीव्र हुआ है लेकिन प्रेस संगठनों द्वारा उनके पक्ष में बयान अक्सर देर से आए या आए ही नहीं. मीडिया पर निगरानी रखने वाली संस्था प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने सार्वजनिक रूप से अगस्त 2019 में सरकार के दावे का बचाव करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के सामने कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर में मीडिया की आजादी पर लगाया गया अंकुश राष्ट्र के हितों के अनुकूल है. इसके विपरीत जब गोस्वामी पर 22 अप्रैल को हमला हुआ, तब पीसीआई ने स्वतः संज्ञान लेते हुए महाराष्ट्र सरकार से इस मामले की रिपोर्ट मांगी. उसने यह तब किया जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता.
आतिरा कोनिक्करा कारवां की रिपोर्टिंग फेलो हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त जज और 1995 से 2001 के बीच पीसीआई के अध्यक्ष रहे पीबी सावंत से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नियमन की जरूरत पर बातचीत की. इसके अलावा उन्होंने 2018 में सावंत द्वारा टाइम्स नाउ पर किए गए उस मानहानि के मामले पर भी बात की जब गोस्वामी चैनल के मुखिया थे.
आतिरा कोनिक्करा : प्रेस काउंसिल का न्यूजपेपर और न्यूज एजेंसियों पर न्यायाधिकार है, लेकिन इस साल अप्रैल में भारतीय प्रेस परिषद में अर्नब गोस्वामी पर शारीरिक हमले पर स्वतः संज्ञान लिया था, क्या यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े मामलों पर उसका हस्तक्षेप नहीं माना जाएगा?
पीबी सावंत : यह मामलों पर निर्भर करता है. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि प्रेस काउंसिल को ऐसे मामलों पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. जब पत्रकारों पर हमला होता है, या लिखने के लिए उन पर आक्रमण होता है तो प्रेस काउंसिल हस्तक्षेप कर सकता है लेकिन उसके पास कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है.
आतिरा कोनिक्करा : अर्नब गोस्वामी पर लगे आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप पर न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया था. लेकिन हम यह भी देख रहे हैं कि अन्य पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के मामलों में, जो जेलों में है, न्यायपालिका ने इस तरह की चिंता व्यक्त नहीं की है. क्या आपको लगता है कि अदालतें मामलों की सुनवाई करने या जमानत देने में चयनित हो रही हैं.
पीबी सावंत : आज सभी संस्थाएं व्यक्तियों के मन मुताबिक चल रही हैं. न्यायपालिका से आशा की जाती है कि वह कानून सम्मत काम करेगी और सभी लोगों को बराबर मानेगी, परिस्थितियों पर गौर करेगी और बिना भय और पक्षपात की फैसला करेगी. अब लोगों को दिखता है कि एक व्यक्ति के मामले में उसने पक्षपात किया है और दूसरे व्यक्तियों के मामलों को उसने जानबूझकर नजरअंदाज किया है या लापरवाही बरती है. ऐसे में लोगों को चाहिए कि वे अपनी आवाज उठाएं.
आतिरा कोनिक्करा : क्या आप मानते हैं कि मीडिया को जवाबदेही बनाने के लिए पीसीआई जैसी अर्ध न्यायिक संस्थाओं में सुधार लाए जाने की जरूरत है?
पीबी सावंत : सबसे पहले तो पीसीआई का न्यायाधिकार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया- टेलीविजन और रेडियो- तक बढ़ाना चाहिए. आज मीडिया के एक हिस्से पर, मैं तो कहूंगा कि एक बड़े हिस्से पर, पीसीआई का किसी तरह का हस्तक्षेप या निगरानी नहीं है. जब मैं पीसीआई का अध्यक्ष था, तो मैंने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, खासकर टीवी को, पीसीआई के न्यायाधिकार क्षेत्र में लाने के लिए एक मसौदा कानून भेजा था. तब शायद सुषमा स्वराज प्रसारण मंत्री थी. लेकिन कुछ नहीं हुआ. दो सप्ताह पहले मैंने सुना कि टेलीविजन के लिए नियामक संस्था की मांग हो रही है लेकिन इस दिशा में और कुछ नहीं किया गया. इसकी जरूरत है. अभी पिछले कुछ महीनों से जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं, मुझे लगता है कि नियमन की जरूरत है.
आतिरा कोनिक्करा : आज हम देखते हैं कि “लव जिहाद” जैसी बेबुनियाद बातें मुख्यधारा के मीडिया में विमर्श का विषय बन गई हैं. यहां तक की कोविड-19 के मामले में मुसलमानों को इस वायरस का जिम्मेदार बताकर बदनाम किया गया. क्या आपको लगता है कि बिना जवाबदेही तय किए भारतीय मीडिया ठीक हो सकता है?
पीबी सावंत : मीडिया के पास समाज को बांटने की बड़ी ताकत है. गलतियों के लिए मीडिया को ज्यादा कड़ी सजा दी जाने की जरूरत है. जो लोग देश को बांटना चाहते हैं, वे लोग देश के शत्रु हैं और इसीलिए टेलीविजन के नियमन की जरूरत है और इसके लिए एक नियामक प्राधिकरण की जरूरत है. आज पीसीआई अंकुश तो लगा सकता है. यही उसकी सबसे बड़ी ताकत है. लेकिन वह अपनी शर्तें मीडिया पर नहीं थोप सकता. यदि मीडिया पीसीआई के निर्देशों का पालन नहीं करती है तो पीसीआई उसका कुछ नहीं कर बिगाड़ सकता.
आतिरा कोनिक्करा : यहां कैसे सुनिश्चित होगा कि सरकार नियामक प्रक्रिया में दखलअंदाजी नहीं करेगी?
पीबी सावंत : सरकार चयनित रूप से दखलअंदाजी कर सकती है. वह कर भी रही है.
आतिरा कोनिक्करा : क्या ऐसा हमेशा ही रहा है?
पीबी सावंत : हां
आतिरा कोनिक्करा : जब आप पीसीआई के अध्यक्ष थे तो उस पद में रहते हुए किए गए काम को कैसे देखते हैं?
पीबी सावंत : मैंने पीसीआई के अध्यक्ष की हैसियत से सूचना का अधिकार कानून लाने में भूमिका निभाई. मैं सरकार को इस बात के लिए मना पाया. सबसे पहले मैंने वरिष्ठ पत्रकारों का सम्मेलन आयोजित किया जिसमें कुछ अधिवक्ता और जज भी आए थे. फिर मैंने एक मसौदा तैयार कर प्रसारण मंत्रालय भेजा. मुझे याद है कि उस वक्त गुजराल हमारे प्रधानमंत्री थे. मेरे कार्यकाल में उस मसौदे के अनुरूप सूचना का अधिकार कानून लागू हुआ. जब मैं सुप्रीम कोर्ट का जज था, तब मैंने और मेरे साथी जजों ने एयरवेव या वायु तरंगों को सार्वजनिक संपत्ति घोषित करने वाला फैसला सुनाया था. इस तरह आप, मैं और सभी लोग सिर्फ एक चैनल दूरदर्शन पर निर्भर नहीं रह गए बल्कि आज 400 चैनल हैं. लोग यह भूल जाते हैं कि 1993 तक हम सब केवल एक ही चैनल पर आश्रित थे, यानी सरकारी चैनल दूरदर्शन पर. तब से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का विस्तार हुआ है. इसने बहुत सारे पत्रकारों को रोजगार दिया है. बहुत सारे तकनीशियनों को रोजगार दिया है, कलाकारों को रोजगार दिया है और हर क्षेत्र में इतना सारा टैलेंट उभर कर आ रहा है. इस तथ्य पर जोर दिया ही जाना चाहिए क्योंकि किसी मीडिया पर अंकुश लगाने का मतलब चैनल को सजा देना नहीं है बल्कि उसे ठीक करना है. असल में हम लोग सूचना के अधिकार कानून का लाभ उठा रहे हैं, जबकि धीरे-धीरे इसे कमजोर किया जा रहा है. इसकी धार को कुंद किया जा रहा है.
आतिरा कोनिक्करा : नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से पीसीआई का के काम की समीक्षा आप कैसे करते हैं? क्या आपको लगता है कि उस पर राजनीतिक प्रभाव है?
पीबी सावंत : सच कहूं तो जब से मैंने पीसीआई छोड़ी है, मैंने उसके फैसलों को नहीं देखा है इसलिए मेरे लिए इस पर किसी तरह की टिप्पणी करना संभव नहीं होगा.
आतिरा कोनिक्करा : आपने अर्नब गोस्वामी पर 100 करोड़ रुपए का मानहानि का मुकदमा किया था. क्या आपको लगता है कि ऐसा करना ठीक था? उस वक्त पत्रकारों ने तर्क दिया था कि यह प्रेस की आजादी पर हमला है. क्या आपको लगता है कि आपका वह फैसला सही था?
पीबी सावंत : जब टाइम्स नाउ ने वह खबर चलाई थी, तो हमने उन्हें तुरंत नोटिस दिया था लेकिन उसने नोटिस का जवाब नहीं दिया. उसे दूसरा नोटिस भेजा लेकिन उसने उसका भी जवाब नहीं दिया. उसने तब जाकर लिखित बयान जारी किया जब हमने उसके खिलाफ शिकायत दर्ज की. बस इतना ही नहीं कहा जा सकता कि वह एक बड़ी रकम थी. उसे कई बार अवसर दिए गए लेकिन उसने कोई परवाह नहीं की. अब आप ही बताइए तब हमें क्या करना चाहिए था?
आतिरा कोनिक्करा : 2008 में क्या अर्नब ने आपसे मिलने का समय मांगने के बाद मिलने से यह कह कर इनकार कर दिया वह बीमार हैं?
पीबी सावंत : हां, यह सही है और उसने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि वह कुछ भी देना नहीं चाहता था. उसने बस इतना कहा कि वह माफी प्रकाशित करेगा. देखिए लोगों को लगता है कि सिर्फ उस एक खबर के प्रकाशन के कारण वह मामला दर्ज किया गया था. ऐसा नहीं है. उन्हें नोटिस दिए गए थे लेकिन उन्होंने उन नोटिसों की परवाह नहीं की.
आतिरा कोनिक्करा : कश्मीर और दिल्ली के उन पत्रकारों की सामाजिक पृष्ठभूमि देखने पर जिन पर हिंसक हमले हुए है या जो जेल में बंद हैं, हम पाते हैं कि ये अक्सर बहुजन पृष्ठभूमि के होते हैं. इन पर होने वाले हमलों को पीसीआई जैसी संस्थाएं नजरअंदाज करती हैं. क्या आपको लगता है कि जाति इसका कारक है. क्योंकि ऐसी संस्थाओं में ऊंची जाति के लोग हावी हैं इसलिए बहुजन पर होने वाले हमलों की निंदा उस तरह से नहीं होती जिस तरह से होनी चाहिए.
पीबी सावंत : सरकार की सभी संस्थाओं में ऊंची जातियां हावी हैं. चाहे वह नौकरशाही हो, न्यायपालिका हो, पुलिस और सेना हो या फिर पीसीआई जैसी संस्था हो. अब तक ऊंची जाति के मर्दों के अलावा अन्य सभी जाति के लोगों को, यहां तक कि ऊंची जाति की महिलाओं को भी शिक्षा से दूर रखा गया है. उन्हें सजा दी गई है. निचली जाति के जो लोग आज शिक्षित हो रहे हैं, वे पहली पीढ़ी के हैं. तो आप देखेंगे कि पत्रकारों का बहुत छोटा हिस्सा, चाहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में या प्रिंट मीडिया में, गैर एलीट क्लास से आता है. जब तक कि मीडिया में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं होगा तब तक हमें निष्पक्ष और सही समाचार नहीं मिलेंगे और उनके बारे में नहीं पता चलेगा जिनके बारे में हमें जानकारी होनी चाहिए.