भारत में कोविड-19 के मामलों चिंताजनक स्तर पर इजाफा हो रहा है. भारत ब्राजील को पीछे छोड़ कर अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा कोविड मामलों वाला देश बन गया है और राजधानी दिल्ली में इसके मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इस बीच बिहारी कामगार काम की तलाश में वापस दिल्ली लौटने लगे हैं. मई में दिल्ली के खिजराबाद इलाके में रहने वाले 300 से ज्यादा मजदूर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार लौट गए थे. अब तीन महीने बाद इनमें से कई मजदूर बिहार में काम हासिल करने में नाकामयाब हो कर दिल्ली वापस आ गए हैं. बिहार के सारण जिले के गरखा खंड के दिनेश राय ने मुझे बताया, “गांव में आर्थिक तनाव झेल रहे परिवार की परेशानी को देखते हुए भूखे मरने से अच्छा है काम करते हुए मरना. वही सोच कर मैं वापस आया हूं.”
मई के शुरुआत में रेल मंत्रालय ने देश भर के अलग-अलग शहरों में फंसे मजदूरों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई थी. बिना सोचे समझे और बहुत खराब योजना के साथ अचानक लगाए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से जब इन मजदूरों की स्थिति बिगड़ने लगी तब मंत्रालय ने ये ट्रेंने चलाईं थी. मैंने कारवां की एक रिपोर्ट में बताया था कि इन ट्रेनों को उसी हड़बड़ी में चलाया गया है जैसी हड़बड़ी का प्रदर्शन भारत ने महामारी के लिए अपनी अकुशल प्रतिक्रिया में किया था जिसके चलते इन मजदूरों को बिना पानी और अनिश्चित हालत में अपने गांवों की यात्रा करनी पड़ी थी. गांव पहुंचकर इन मजदूरों को पता चला कि बिहार के स्वास्थ्य विभाग की महामारी से लड़ने की कोई तैयारी नहीं है और इन मजदूरों में से एक राजनाथ यादव की कोविड-19 के लक्षणों के साथ मौत हो गई जबकि उन्हें पहले सरकारी क्वारंटीन केंद्र में रखा गया था. लेकिन जो लोग बचे उनकी घर वापसी भी उनकी परेशानियों का अंत कतई नहीं थी.
राय ने मुझसे कहा, “उनकी मौत ने कोविड-19 के प्रति हम लोगों के भीतर डर तो भर दिया लेकिन भूख ने हमें वापस यहां लौटने और जिंदा रहने के लिए काम करने को विवश कर दिया. हमारे पास दिल्ली आकर अपनी आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए काम करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं था.” उन्होंने कहा, “हम लॉकडाउन के दौरान संकट में थे और दो महीने तक संकट में रहे. फिर हम रेल में बैठकर अपने घर जा रहे थे तो भी हम संकट में थे, जब हम कोविड-19 से संघर्ष करते हुए अपने गांवों में में पहुंचे तो वहां भोजन के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब भी हम संकट में थे. इसलिए हम लोगों ने तय किया कि हम संकट का सामना करते हुए रोजी-रोटी कमाएंगे.”
राय ने बताया कि उन्हें गांव में काम नहीं मिला और वह कर्ज लेकर गुजारा कर रहे थे. उन्होंने कहा, “गांव की स्थिति अच्छी नहीं है. मैंने अपने ग्राम प्रधान से कहा था कि वह मेरे लिए कुछ काम का इंतजाम करें लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. मई के आखिरी हफ्ते से अगस्त के आखिरी हफ्ते तक मैंने 14000 रुपए का कर्जा लिया है और मैंने पैसों के लिए अपनी पत्नी की कान की बालियां तक गिरवी रखी दी है.”
राय को दिल्ली आने के लिए बस का टिकट खरीदने तक के पैसे उधार लेने पड़े. उन्होंने मुझसे कहा, “सारण और दिल्ली के बीच चलने वाली प्राइवेट बसें 1500 से 1800 रुपए भाड़ा ले रही हैं.” उन्होंने टिकट के लिए 1500 रुपए उधार लिए थे. राय ने कहा कि बसों में बहुत भीड़ रहती है और वहां कोई सामाजिक दूरी के नियम का पालन नहीं करता. “बस में आना बहुत दर्दनाक था क्योंकि बस वाले अपनी सीटों की तुलना में डबल और ट्रिपल पैसेंजर भर रहे थे. हम लोगों ने जाते हुए भी बहुत कुछ झेला और आते हुए भी. परेशानी ने हमारा साथ नहीं छोड़ा.”
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