लॉकडाउन में जिनकी फोटो हुई थी वायरल उन रामपुकार को अब तक नहीं मिला रोजगार

26 अक्टूबर 2020
बिहारी प्रवासी श्रमिक रामपुकार पंडित, जिनकी फोटो मई में सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी, अपने परिवार के साथ बेगूसराय जिले में अपने घर पर.
उमेश कुमार राय
बिहारी प्रवासी श्रमिक रामपुकार पंडित, जिनकी फोटो मई में सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी, अपने परिवार के साथ बेगूसराय जिले में अपने घर पर.
उमेश कुमार राय

बिहार के नेताओं ने रामपुकार पंडित से लाखों की मदद का वादा किया था. 45 साल के पंडित प्रवासी मजदूर हैं. वह पांच महीने पहले लॉकडाउन के कारण गांव वापस आ गए हैं और तब से बहुत गरीबी में जी रहे हैं. मई में दिल्ली के निजामुद्दीन पुल पर फूट-फूट कर रोते रामपुकार की तस्वीर वायरल हो गई थी. उनकी तस्वीर उन हजारों प्रवासी मजदूरों का प्रतीक बन गई जो निर्मम लॉकडाउन में देश के महानगरों में भूखे, गरीब और बेघर हो गए थे. तस्वीर के वायरल होने के बाद रामपुकार के गृह राज्य के तमाम नेताओं में उन्हें आश्वासन देने की होड़ लग गई. सब ने वादा किया कि उनकी और उनके परिवार की मदद करेंगे. बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने उनसे नौकरी और पैसों की मदद का वादा किया. भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) के सत्तारूढ़ गठबंधन ने सरकारी योजनाओं का हवाला देकर भरोसा दिलाया कि लौटे प्रवासियों को राज्य में ही रोजगार दिया जाएगा. लेकिन रामपुकार को मदद नहीं मिली. आज भी वह गरीबी में ही जीने को अभिश्पत हैं.

रामपुकार ने मुझे बताया कि वह मार्च की शुरुआत में, होली के आसपास, काम करने के लिए दिल्ली गए थे. बिहार के बेगूसराय जिले के अपने पैतृक गांव बरियारपुर पुरवी में उनके पास कोई औपचारिक रोजगार नहीं था. बेगूसराय से भारतीय जनता पार्टी के गिरिराज सिंह लोकसभा सांसद हैं और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम राज्य मंत्री हैं. रामपुकार भूमिहीन है लेकिन वह अपने पिता के मिट्टी के बर्तनों के काम को नहीं कर पाते थे क्योंकि बचपन में उनका पैर टूट गया था. उन्होंने मुझे समझाया, "मिट्टी के बर्तन बनाने में बहुत सारा काम पैरों से किया जाता है. आपको मिट्टी तैयार करनी होती है और चक्के को अपने पैरों से चलाना होता है. मेरा पैर इस कदर टूटा था कि अब भी जब पुरबी हवा चलती है तो वह दर्द करता है.”

पहले रामपुकार काम की तलाश में बेंगलुरु गए थे. उनके पिता उत्तम पंडित ने भी काम के लिए पलायन किया था. मार्च की शुरुआत में रामपुकार को दिल्ली के बाहरी इलाके नजफगढ़ में एक निर्माण स्थल पर काम मिला. उस काम के उन्हें प्रतिदिन 250 रुपए मिलते थे.

इस साल मई में रामपुकार की पत्नी बिमल देवी ने उन्हें फोन पर बताया कि उनका एक साल का बेटा बीमार हो गया है. 11 मई को लॉकडाउन के कड़े प्रतिबंधों के चलते उन्हें बिहार वापस जाने के लिए कोई सवारी नहीं मिली और उन्होंने अपने गांव की एक हजार किलोमीटर से अधिक की दूरी पैदल ही तय करने का फैसला किया. रामपुकार ने बताया, "मैं सुबह 5 बजे दिल्ली में निर्माण स्थल से निकला और दोपहर में निजामुद्दीन पुल पर पहुंचा. जब मैंने निजामुद्दीन पुल को पार करने की कोशिश की तो पुलिस ने हमें रोका और गालियां देने लगे. जब मैं पुल के पास था तभी मेरी पत्नी ने मुझे फोन किया और बताया कि वह बेटे का इलाज नहीं करा पा रही हैं. उसने मुझसे कहा कि मेरे आने, न आने का मतलब नहीं हैं क्योंकि बेटा बचेगा नहीं.”

रामपुकार ने मुझे बताया कि उनका दिल टूट गया और वह जहां थे वहीं बैठ कर रोने लगे. ठीक उसी पल प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के फोटो पत्रकार अतुल यादव ने रामपुकार की फोटो ले ली. फोटो में रामपुकार अपने कान में फोन लगाए हुए हैं. काले रंग का मास्क उनकी ठोड़ी पर चढ़ा है. उनके बाल अस्त-व्यस्त हैं और उनके माथे की नसें दिखाई दे रही हैं. वह तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब शेयर की गई. देखते ही देखते वह फोटो उन 23.6 लाख प्रवासियों का प्रतीक बन गई जो बिहार लौटने की कोशिश में थे.

उमेश कुमार राय पटना के स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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