नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली को बहाल करने होंगे बर्खास्त कर्मचारी

18 मार्च 2020
कारवां के लिए नबीला पानियत
कारवां के लिए नबीला पानियत

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली और वहां के हाउसकीपिंग स्टाफ के बीच चल रही खींचतान को 14 मार्च को 70 दिन पूरे हो गए. एनएलयूडी का स्टाफ उनकी मांगों का समर्थन कर रहे छात्रों के साथ पिछले साल दिसंबर में विश्वविद्यालय द्वारा श्रमिकों की बर्खास्तगी का विरोध कर रहे हैं. एनएलयूडी ने राजेंद्र प्रबंधन समूह नामक एक नई कंपनी को ठेका देने के बाद पहले से काम कर रहे श्रमिकों को नौकरी से निकाल दिया था. आरएमजी ने अपने कर्मचारियों को रखने का निर्णय किया और पहले से कार्यरत श्रमिकों को नौकरी देने से इनकार कर दिया. हालांकि 13 मार्च को दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय के साथ बैठक के बाद छात्रों और श्रमिकों को किसी समाधान की उम्मीद है.

13 मार्च को दो छात्र प्रतिनिधि और तीन कार्यकर्ता गोपाल राय के कार्यालय में विशेष मामलों के अधिकारी अनिल घिलडियाल से मिले. विश्वविद्यालय ने सहायक रजिस्ट्रार सिद्धार्थ दहिया और डिप्टी रजिस्ट्रार एससी लाथेर को इस बैठक के लिए भेजा था. बैठक के बाद, घिलडियाल ने विश्वविद्यालय से आरएमजी के साथ अपने अनुबंध को फिर से शुरू करने के लिए कहा ताकि सभी पिछले कर्मचारियों को नौकरी पर रखा जा सके. छात्रों और श्रमिकों के गठबंधन नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली वर्कर्स स्टूडेंट्स सॉलिडेरिटी द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, घिलडियाल ने यह भी कहा है कि यदि पहले से काम करने वाले श्रमिकों को बहाल नहीं किया जाता  तो आरएमजी के साथ अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा और एक नया टेंडर मंगवाया जाएगा. 

घिलडियाल ने एनएलयू द्वारा दी गई तथ्यात्मक रिपोर्ट और इस मुद्दे पर छात्रों द्वारा किए गए प्रतिनिधित्व के आधार पर अपने दिशानिर्देश दिए. विश्वविद्यालय की रिपोर्ट ने अपने पुराने रुख को दोहराया है कि उस पर श्रमिकों के प्रति किसी तरह का कानूनी उत्तरदायित्व नहीं है क्योंकि वे तीसरे पक्ष के द्वारा नौकरी पर रखे जाते हैं. इसमें आरएमजी को दिए नए अनुबंध में अव्यवस्था के आरोपों को भी दरकिनार कर दिया गया. इस मामलें में छात्रों के रिजोइंडर में बताया गया है कि विश्वविद्यालय द्वारा हाउसकीपिंग स्टाफ के लिए लागू निविदा कानूनी रूप से दोषपूर्ण है. जब मैं बैठक के ठीक बाद राय के कार्यालय के बाहर दहिया और लाथेर के पास पहुंचा तो दोनों ने शुरू में इस बात से इनकार किया कि इस तरह की कोई भी बैठक हुई थी लेकिन जब मैंने वहां के छात्रों और श्रमिकों से बात करनी चाही तो उन्होंने मुझसे कहा, "कोई टिप्पणी नहीं" और चले गए.

बैठक के बाद, छात्रों और श्रमिकों को राहत मिली. 43 वर्षीय गीता देवी, जो हाउसकीपिंग स्टाफ है, ने मुझे बताया, "मुझे उम्मीद है कि विश्वविद्यालय इसे अपने स्तर पर सुलझा लेगा और हमें अपनी नौकरियां मिलेंगी. हम बहुत आभारी हैं कि हमें सुना गया है और हमारा विरोध व्यर्थ नहीं गया.

27 दिसंबर की घटना को याद करते हुए गीता ने बताया कि उन्होंने गेट बंद कर हमें अंदर आने से रोक दिया. “हमने वहां कुछ देर तक इंतजार किया लेकिन बाद में वहां पुलिस आई और हमें जबरन हटाने की धमकी दी. उस दिन एनएलयू के 55 संविदा कर्मियों को सूचित किया गया था कि उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन और ठेकेदार कंपनी जिसका नाम व्हाइट फॉक्स और गोल्डन है, ने उन्हें कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी. इसके बजाय, विश्वविद्यालय ने आरएमजी को काम पर रखा था जो अगले ही दिन अपने ही कर्मचारियों को परिसर में ले आया. 31 दिसंबर तक विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुराने श्रमिकों को परिसर में प्रवेश देने से इनकार करना शुरू कर दिया. जिन्होंने फिर परिसर के बाहर ही विरोध प्रदर्शन शुरू किया जो 11 फरवरी तक चला. छात्रों के अनुसार अभी तक मूल श्रमिकों में से 13 को बहाल कर दिया गया है. छात्रों ने मुझे बताया कि उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप किया था कि पूरी बहाली प्रक्रिया के अनुसार ही की जाए. जबकि बाकी श्रमिकों को अभी भी नहीं पता है कि उनके पास नौकरी है या नहीं.

अहान पेनकर कारवां के फेक्ट चेकिंग फेलो हैं.

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