We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली और वहां के हाउसकीपिंग स्टाफ के बीच चल रही खींचतान को 14 मार्च को 70 दिन पूरे हो गए. एनएलयूडी का स्टाफ उनकी मांगों का समर्थन कर रहे छात्रों के साथ पिछले साल दिसंबर में विश्वविद्यालय द्वारा श्रमिकों की बर्खास्तगी का विरोध कर रहे हैं. एनएलयूडी ने राजेंद्र प्रबंधन समूह नामक एक नई कंपनी को ठेका देने के बाद पहले से काम कर रहे श्रमिकों को नौकरी से निकाल दिया था. आरएमजी ने अपने कर्मचारियों को रखने का निर्णय किया और पहले से कार्यरत श्रमिकों को नौकरी देने से इनकार कर दिया. हालांकि 13 मार्च को दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय के साथ बैठक के बाद छात्रों और श्रमिकों को किसी समाधान की उम्मीद है.
13 मार्च को दो छात्र प्रतिनिधि और तीन कार्यकर्ता गोपाल राय के कार्यालय में विशेष मामलों के अधिकारी अनिल घिलडियाल से मिले. विश्वविद्यालय ने सहायक रजिस्ट्रार सिद्धार्थ दहिया और डिप्टी रजिस्ट्रार एससी लाथेर को इस बैठक के लिए भेजा था. बैठक के बाद, घिलडियाल ने विश्वविद्यालय से आरएमजी के साथ अपने अनुबंध को फिर से शुरू करने के लिए कहा ताकि सभी पिछले कर्मचारियों को नौकरी पर रखा जा सके. छात्रों और श्रमिकों के गठबंधन नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली वर्कर्स स्टूडेंट्स सॉलिडेरिटी द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, घिलडियाल ने यह भी कहा है कि यदि पहले से काम करने वाले श्रमिकों को बहाल नहीं किया जाता तो आरएमजी के साथ अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा और एक नया टेंडर मंगवाया जाएगा.
घिलडियाल ने एनएलयू द्वारा दी गई तथ्यात्मक रिपोर्ट और इस मुद्दे पर छात्रों द्वारा किए गए प्रतिनिधित्व के आधार पर अपने दिशानिर्देश दिए. विश्वविद्यालय की रिपोर्ट ने अपने पुराने रुख को दोहराया है कि उस पर श्रमिकों के प्रति किसी तरह का कानूनी उत्तरदायित्व नहीं है क्योंकि वे तीसरे पक्ष के द्वारा नौकरी पर रखे जाते हैं. इसमें आरएमजी को दिए नए अनुबंध में अव्यवस्था के आरोपों को भी दरकिनार कर दिया गया. इस मामलें में छात्रों के रिजोइंडर में बताया गया है कि विश्वविद्यालय द्वारा हाउसकीपिंग स्टाफ के लिए लागू निविदा कानूनी रूप से दोषपूर्ण है. जब मैं बैठक के ठीक बाद राय के कार्यालय के बाहर दहिया और लाथेर के पास पहुंचा तो दोनों ने शुरू में इस बात से इनकार किया कि इस तरह की कोई भी बैठक हुई थी लेकिन जब मैंने वहां के छात्रों और श्रमिकों से बात करनी चाही तो उन्होंने मुझसे कहा, "कोई टिप्पणी नहीं" और चले गए.
बैठक के बाद, छात्रों और श्रमिकों को राहत मिली. 43 वर्षीय गीता देवी, जो हाउसकीपिंग स्टाफ है, ने मुझे बताया, "मुझे उम्मीद है कि विश्वविद्यालय इसे अपने स्तर पर सुलझा लेगा और हमें अपनी नौकरियां मिलेंगी. हम बहुत आभारी हैं कि हमें सुना गया है और हमारा विरोध व्यर्थ नहीं गया.
27 दिसंबर की घटना को याद करते हुए गीता ने बताया कि उन्होंने गेट बंद कर हमें अंदर आने से रोक दिया. “हमने वहां कुछ देर तक इंतजार किया लेकिन बाद में वहां पुलिस आई और हमें जबरन हटाने की धमकी दी. उस दिन एनएलयू के 55 संविदा कर्मियों को सूचित किया गया था कि उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन और ठेकेदार कंपनी जिसका नाम व्हाइट फॉक्स और गोल्डन है, ने उन्हें कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी. इसके बजाय, विश्वविद्यालय ने आरएमजी को काम पर रखा था जो अगले ही दिन अपने ही कर्मचारियों को परिसर में ले आया. 31 दिसंबर तक विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुराने श्रमिकों को परिसर में प्रवेश देने से इनकार करना शुरू कर दिया. जिन्होंने फिर परिसर के बाहर ही विरोध प्रदर्शन शुरू किया जो 11 फरवरी तक चला. छात्रों के अनुसार अभी तक मूल श्रमिकों में से 13 को बहाल कर दिया गया है. छात्रों ने मुझे बताया कि उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप किया था कि पूरी बहाली प्रक्रिया के अनुसार ही की जाए. जबकि बाकी श्रमिकों को अभी भी नहीं पता है कि उनके पास नौकरी है या नहीं.
जिस दिन श्रमिकों को पता चला कि उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है, वे एनएलयू के छात्रों के पास गए जो तत्काल उनकी मदद में जुट गए और कुलपति रणबीर सिंह से जाकर मिले. सिंह ने 30 दिसंबर को सभी के साथ एक बैठक करने पर सहमति जताई और उसमें श्रमिकों और संबंधित छात्रों के तीन प्रतिनिधियों को बैठक में भाग लेने की अनुमति दी. अगले दिन जब आरएमजी अपने नए श्रमिकों को साथ ले कर आया तब छात्रों ने सिंह से फिर से संपर्क किया. सिंह तब पुराने श्रमिकों को काम जारी रखने के लिए राजी हो गए. हालांकि बैठक के दिन- जिसमें दहिया, लाथेर, अनुभाग अधिकारी विजय पांडे, विश्वविद्यालय की क्रय समिति के सलाहकार जयपाल, आरएमजी के प्रतिनिधि राजेंद्र वत्स, वत्स के पुत्र अमर, कानूनी सेवा समिति के एक सदस्य और दो छात्र प्रतिनिधियों ने भाग लिया लेकिन श्रमिकों के किसी भी कार्यकर्ता को उपस्थित होने की अनुमति नहीं थी. अगले दिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने श्रमिकों को प्रवेश देने से इनकार कर दिया जिसके बाद उन्होंने परिसर के बाहर ही विरोध शुरू कर दिया.
अगले 37 दिनों तक छात्रों ने श्रमिकों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया और आरएमजी को दिए गए अनुबंध की जांच की. श्रमिकों की दुर्दशा पर छात्रों द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, पहले से सूचना दिए बगैर श्रमिकों को बर्खास्त करना गैर कानूनी है. इसके अलावा, दिल्ली राज्य सरकार द्वारा 2018 में पारित कैबिनेट संकल्प के अनुसार, "किसी भी नए ठेकेदार को ठेका दिए जाने पर कम से कम 80 प्रतिशत और अधिकतम 100 प्रतिशत पुराने कर्मचारियों को नौकरी पर रखना अनिवार्य है." हालांकि, छात्रों द्वारा जारी एक प्रेस नोट में कहा गया है कि "प्रशासन अपने रुख पर अड़ा हुआ है कि निकाले गए श्रमिकों के प्रति उसकी कोई जवाबदेही नहीं है."
इसके अलावा, आरएमजी को दिए गए अनुबंध में अनियमितताएं हैं. रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी के पास अनुबंध प्राप्त करने के लिए कम से कम 71 श्रमिकों का होने जरूरी है लेकिन आरएमजी के पास सिर्फ 30 श्रमिकों होने पर भी उसे अनुबंध दे दिया गया और इन 30 श्रमिकों में से कोई भी वास्तव में उपरोक्त कार्य करने वाला नहीं है. ऐसा करना राज्य सरकार के नियमों का सीधा-सीधा उल्लंघन है. छात्रों ने श्रमिकों की तरफ से एक प्रेस नोट जारी किया है जिसमें कहा गया है कि 8 जनवरी को आयोजित एक बैठक में एनएलयू ने छात्रों के तर्क को स्वीकारा गया कि आरएमजी को दिए गया अनुबंध गलत है.
हालांकि, प्रशासन अनुबंध की समीक्षा करने में अनिच्छुक दिखा. कई दौर की बातचीत के बाद प्रशासन ने दस श्रमिकों को वापस काम पर रखने और कुछ अन्य लोगों को आरएमजी द्वारा विभिन्न परियोजनाओं में लगाने की पेशकश की लेकिन इसका कोई लिखित आश्वासन नहीं दिया. विश्वविद्यालय ने छात्रों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी भी दी और पुलिस कार्रवाई और अदालती मामलों में फंसाने की धमकी के साथ पुराने श्रमिकों को डराने का प्रयास किया.
आखिर में 10 फरवरी को श्रमिकों ने परिसर के बाहर बैठकर विरोध प्रदर्शन किया. 12 साल पहले परिस खोले जाने के बाद से ही सभी श्रमिक विश्वविद्यालय में काम कर रहे हैं. 25 वर्ष के रमण ने बताया, "मैं 16 साल की उम्र से यहां काम कर रहा हूं. हमने यहां अपना सब कुछ दे दिया है और अपने घरों को छोड़ने का जोखिम हम नहीं उठा सकते हैं. हमारा जीवन इस विश्वविद्यालय के इर्द-गिर्द है.” प्रेस नोट के अनुसार, “लगभग 76 प्रतिशत श्रमिकों के परिवारों में एक ही व्यक्ति कमानेवाले हैं. औसतन, एक कमानेवाले व्यक्ति पर 4 लोग आश्रित हैं. लगभग 61 फीसदी कर्मचारी किराए के आवास में रहते हैं. महिला श्रमिकों की संख्या 40 फीसदी है.”
मैंने जिन छात्रों से बात की उनमें से बहुतों ने कहा कि यह पहली बार है जब परिसर का माहौल इतना "राजनीतिक" हुआ है और इतने बड़े पैमाने पर जुटान पहले कभी नहीं हुआ. जब मैं श्रमिकों से बात कर रहा था तो कुछ प्रदर्शनकारियों और छात्रों ने विरोध गीत गाना शुरू कर दिया. जिन लोगों को इस गीत के बारे में पता नहीं था वे उन्हें उन पत्रों से पढ़ रहे थे जिन्हें वहां बांटा जा रहा था. एक कार्यकर्ता मोनिका रॉय ने मुझसे कहा, "आज यहां सभी को एक साथ देखना वास्तव में अच्छा है." उन्होंने कहा, '' यह एक कठिन राह है लेकिन छात्रों की बदौलत मैं उम्मीद का एहसास कर पा रही हूं. मुझे नहीं लगता कि मैं आज जो कुछ भी देख रही हूं उसे कभी भूल पाऊंगी.”
अनुवाद : अंकिता
Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute