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देश के सबसे पुराने पांच उच्च न्यायालयों में एक इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना 1866 में हुई थी और 13 मार्च 2016 को उसकी 150वीं सालगिरह थी. उस वक़्त धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ इसके मुख्य न्यायाधीश थे, जिनकी तरक्की दो महीने बाद उन्हें सर्वोच्च न्यायालय पहुंचाने वाली थी. आज 160 न्यायाधीशों की स्वीकृत क्षमता के साथ यह सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष शशि तिवारी ने याद किया, "ऐसा समारोह पहले कभी नहीं हुआ था." इस समारोह में कानूनी बिरादरी के दिग्गज शामिल हुए. कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर भी शामिल हुए, लेकिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अलावा बहुत कम राजनीतिक हस्तियों को न्योता भेजा गया था.
आयोजन समिति की अध्यक्षता करने वाले जज तरुण अग्रवाल ने बताया कि शुरू में किसी भी राजनेता को औपचारिक निमंत्रण न भेजने की बात उठी थी. उन्होंने कहा, "यह एक उच्च न्यायालय का समारोह था और राजनेताओं को शामिल करने की कोई वजह नहीं थी." उस वक़्त उच्च न्यायालय में सेवा दे चुके एक अन्य सीनियर जज ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया कि चंद्रचूड़ ने यह फ़ैसला बहुत सोच समझ कर लिया था. उन्होंने कहा, "वह साफ़ थे कि संविधान में उल्लेखित शक्तियों के पृथक्करण के अनुरूप ऐसा किया जाना स्वाभाविक है." शक्तियों के पृथक्करण का प्रावधान यह निश्चित करता है कि भारतीय गणराज्य की तीन शाखाएं, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से काम करें.
सीनियर जज ने बताया, "न तो मुख्यमंत्री और न ही भारत के प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया गया था, लेकिन, चूंकि राष्ट्रपति भाग ले रहे थे इसलिए प्रोटोकॉल के मुताबिक राज्य के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को उनके साथ रहना ज़रूरी था." उस समय के केंद्रीय कानून मंत्री डी. वी. सदानंद गौड़ा को भी औपचारिकतावश आमंत्रित किया गया था लेकिन इस कार्यक्रम में प्रमुख राजनीतिक भागीदारी नहीं हुई. सीनियर जज के मुताबिक, “यह न्यायिक स्वतंत्रता को लेकर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की प्रतिबद्धता का सबूत था.”