गुवाहाटी के एक विदेशी न्यायाधिकरण के समक्ष पेश असम सीमा पुलिस की एक जांच रिपोर्ट की माने तो पास जलाल शेख अनपढ़ भी हैं और आठवीं पास भी. उनके पांच बच्चों की संख्या चार है. वह 2013 में पहली बार गुवाहाटी आकर राजमिस्त्री का काम करने लगे और 2012 में भी पहली बार ही यहां आकर बेकरी में काम करने लगे थे. 35 वर्षीय शेख राज्य के डुबरी जिले के पटनरकुटी गांव के रहने वाले हैं. 2015 के आखिर में, सीमा पुलिस के सब-इंस्पेक्टर बाबुल कलिता ने शेख पर बांग्लादेशी होने का आरोप लगाया और दो महीने के भीतर ही शेख के खिलाफ जांच शुरू करने की मंजूरी के लिए कामरूप जिले के पुलिस उपायुक्त को दो अलग-अलग रेफरल भेजे.
अगले दो महीनों में, कलिता ने गुवाहाटी के अलग-अलग इलाकों में दो अलग-अलग लोगों के रूप में शेख की जांच की. दोनों सिफारिशों को डीसीपी कार्यालय द्वारा अलग-अलग मामलों के रूप में अनुमोदित किया गया. यहां तक कि कलिता ने दोनों सिफारिशों में शेख की उंगलियों के निशान लेने का दावा किया. मार्च 2016 तक, तत्कालीन डीसीपी ने कलिता की जांच रिपोर्टों को सही मानते हुए, शेख के विदेशी होने के दो मामले दर्ज करने की रिपोर्ट गुवाहाटी के एक विदेशी न्यायाधिकरण को भेजी.
कलिता की जांच के नतीजतन, शेख को न्यायाधिकरण से दो बार विदेशी घोषित किया गया है. पहली बार नवंबर 2017 में और दूसरी बार दिसंबर 2018 में. दोनों फैसलों के बाद शेख ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने अप्रैल 2018 में पहले के फैसले को पलटते हुए पुनर्विचार का आदेश दिया जिसमें शेख को दूसरी बार दोषी ठहराया गया. फिलहाल शेख अपनी दूसरी समीक्षा याचिका पर उच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार कर रहे हैं. उनका मामला विदेशी न्यायाधिकरण की गड़बड़ियों को खोल कर रख देता है. विदेशी न्यायाधिकरण एक अर्ध-न्यायिक निकाय है जो अपने नियम तय करने का अधिकार रखता है. यह दर्शाता है कि न्यायाधिकरण एक ही अपराध के लिए व्यक्ति की दो जांच कर सकता है. प्रत्येक न्यायाधिकरण सबूत स्वीकार करने के अपने ही मापदंड तय कर सकता है और साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों का अपने मनमुताबिक उपयोग कर सकता है. सबसे डरावनी बात तो यह है कि न्यायाधिकरण ऐसे पुलिस अधिकारी की ढाल बन सकता है जिसने किसी व्यक्ति को अवैध आव्रजक घोषित करने के लिए जाली साक्ष्य तैयार किए हों.
20 दिसंबर 2015 को कलिता ने पहली रिपोर्ट दायर की, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें शक है कि शेख बांग्लादेशी है क्योंकि भारतीय राष्ट्रीयता साबित करने का "संतोषजनक ब्यौरा" नहीं दे पाया. 15 फरवरी 2016 की कलिता की दूसरी जांच रिपोर्ट में कहा गया है, "मुझे मुहम्मद जलाल शेख का कोई पता नहीं चल सका ... व्यक्ति बांग्लादेश का है और इसीलिए वह उस जगह से भाग निकला और हम उसका पता नहीं लगा सके." दिसंबर 2016 में शेख ने न्यायाधिकरण में एक लिखित बयान दर्ज किया जिसमें उनके और उनके परिवार का विवरण था. इनमें से कोई भी विवरण कलिता की शुरुआती दो सिफारिशों में किए गए वर्णन से मेल नहीं खाता.
अपने बयान में, शेख ने कहा था कि वह भारतीय हैं और जांच रिपोर्ट "मनगढ़ंत" है. हालांकि, फरवरी 2017 में शेख उस सुनवाई में पेश होने से चूक गए जिसमें उन्हें अपनी नागरिकता का सबूत देना था. उसी साल अगस्त में उनके वकील ने केस लड़ने से मना कर दिया और शेख बिना वकील के रह गए. शेख इसके बाद अपनी किसी भी सुनवाई में जा नहीं सके और न्यायाधिकरण ने एकतर्फा कार्यवाही शुरू की और दोनों ही मामलों में उनकी गैरहाजरी में जांच की गई. नवंबर में न्यायाधिकरण ने सबूत के अभाव का कारण बता कर दोनों मामलों में शेख को विदेशी घोषित कर दिया.
इसके बाद मार्च 2018 में, शेख ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर कर अदालत से अनुरोध किया कि वह उसके खिलाफ दर्ज दोनों मामलों को रद्द करे और न्यायाधिकरण के आदेशों को खारिज करे. शेख ने अदालत को बताया कि वह अपनी न्यायाधिकरण सुनवाई से इसलिए चूके कि उनके वकील ने उन्हें कार्यवाही के बारे में सूचित नहीं किया था क्योंकि वे शुरुआत में 4000 रुपए फीस देने के बाद बकाया भुगतान नहीं कर पाए थे. पैसा न मिलने पर उनके वकील ने केस लड़ने से मना कर दिया. उन्होंने दोहराया कि दोनों जांच मनगढ़ंत थीं और न्यायाधिकरण के सामने पेश किए गए उंगलियों के निशान उनके नहीं थे. अप्रैल 2018 में, उच्च न्यायालय ने न्यायाधिकरण के आदेश को खारिज कर दिया लेकिन उसी न्यायाधिकरण के समक्ष पुनर्विचार का आदेश दिया और शेख को अपनी नागरिकता के साक्ष्य प्रस्तुत करने को कहा.
विदेशी न्यायाधिकरण में शेख के मामले पर पुनर्विचार सुनवाई मई 2018 में शुरू हुई. शेख के वकील सुरदीप डे ने मुझे बताया कि शुरूआत से ही यह कार्यवाही बहुत गलत ढंग से हुई थी. उन्होंने कहा कि अदालत में विचाराधीन के सिद्धांत- जो समवर्ती क्षेत्राधिकार की अदालतों को एक साथ दो समानांतर मुकदमों पर कार्यवाही करने और स्थगन पर रोक लगाता है- को दोनों मामलों में लागू किया जाना चाहिए. डे ने मुझसे कहा, “शेख के खिलाफ दूसरा मामला न्यायाधिकरण द्वारा दर्ज नहीं किया जाना चाहिए था. यह प्राकृतिक-न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है.” शेख का मामला रेस सबजुडिस यानी विचाराधीन होने के साथ ही रेस जुडीकाटा यानी ऐसा मामला भी है, जिस पर पहले ही विचार किया जा चुका है. यह किसी अदालत को समान अधिकार वाली अन्य अदालत द्वारा फैसला सुनाए गए मामले में सुनवाई से रोकता है.
अप्रैल 2018 में, उज्जल भुयान की अध्यक्षता में गुवाहाटी उच्च न्यायालय की पीठ ने इस राय को बरकरार रखा था कि भले ही पूर्व न्यायाधिकरण द्वारा किसी व्यक्ति को भारतीय घोषित किया जा चुका हो, लेकिन उस पर एक से अधिक मामलों में मामला दर्ज किया जा सकता है. भुयान याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर ऐसी लगभग दो दर्जन दलीलों पर सुनवाई कर रहे थे, जिन पर विभिन्न जिला पुलिस इकाइयों या विभिन्न न्यायाधिकरणों द्वारा विदेशी होने का आरोप लगाया गया था. भुयान ने माना कि रेस जुडिकाटा का सिद्धांत विदेशी न्यायाधिकरणों पर लागू नहीं होता है. हालांकि मई 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि रेस जुडिकाटा न्यायाधिकरणों पर लागू होगा. हालांकि, यह आदेश एक अलग संदर्भ में दिया गया था जिसमें शीर्ष अदालत यह तय कर रही थी कि अगर कोई व्यक्ति एनआरसी में शामिल हो, लेकिन बाद में किसी न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित होने पर क्या उसे भारतीय माना जाएगा? शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था कि न्यायाधिकरण का आदेश अंतिम होगा. हालांकि, दोनों निर्णयों में ऐसी स्थिति का उल्लेख नहीं था जहां एक ही व्यक्ति के खिलाफ एक ही जांच अधिकारी द्वारा एक से अधिक संदर्भ दिए गए हों. नतीजतन, यह स्पष्ट नहीं है कि शेख के मामले में अदालत के दो विरोधाभासी आदेश कैसे लागू होंगे?
पुनर्जांच के दौरान शेख ने अपने बचाव में 14 दस्तावेज प्रस्तुत किए. दस्तावेजों में 1951 में प्रकाशित हुई पहले नागरिक रजिस्टर में उनकी दादी के प्रमाण पत्र की एक प्रति शामिल थी और 1970 से उनके गांव की एक मतदाता सूची थी, जिस पर उनके दादा का नाम था. 1988 में शेख की दादी, साबिरन बीबी को, इन दोनों दस्तावेजों के आधार पर न्यायाधिकरण ने भारतीय घोषित किया था. हालांकि, शेख के मामले में न्यायाधिकरण ने इन दोनों दस्तावेजों को बिना किसी स्पष्टीकरण के अमान्य बताया.
अक्टूबर 2018 में, शेख ने एनआरसी राज्य समन्वयक के कार्यालय में एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया, जो यह साबित करता है कि मसौदे की दूसरी सूची यानी जुलाई 2018 में प्रकाशित अपडेट एनआरसी में उनके और उनके परिवार के नाम थे. न्यायाधिकरण को दिए अपने लिखित बयान में शेख ने तर्क दिया कि “एनआरसी में दावों के सत्यापन की प्रक्रिया बताई गई है और इस न्यायाधिकरण से भी उम्मीद की जाती है कि वह एनआरसी की प्रक्रिया के अनुरूप कार्य करेगा.” नागरिकता के दावों का निर्धारण करते समय एनआरसी अधिकारियों द्वारा नियोजित मानदंडों में से एक किसी ऐसे पूर्वज के साथ अभिभावक संबंध स्थापित करना है, जिसके पास 1985 के असम समझौते के अनुसार राज्य में मार्च 1971 से पहले से निवास का वैध प्रमाण हो.
इसके अनुसार, मतदाता सूची में शेख के पिता का 1985 से और शेख का 2005 से 2017 तक लगातार नाम दर्ज था. उन्होंने एक भूमि दस्तावेज भी प्रस्तुत किया था जिसमें दिखाया गया था कि उनके पिता ने 1979 में शेख की मां को अपनी जमीन हस्तांतरित कर दी थी. हालांकि न्यायाधिकरण ने इन दस्तावेजों में से किसी को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया. आदेश में, न्यायाधिकरण के सदस्य ने लिखा, “प्रस्तुत, प्रदर्शित और प्रक्षेपण किए गए दस्तावेज वादी के दावे हैं और इनका कोई आधार नहीं है. यह वादी के दावों को मान लेने के लिए भरोसेमंद और उचित नहीं है.'' न्यायाधिकरण के सदस्य ने यह नहीं बताया कि पेश किए गए आधिकारिक दस्तावेजों को विश्वसनीय क्यों नहीं माना जा सकता?
डे, मार्च 2018 में उच्च न्यायालय के समक्ष पहली अपील के बाद से शेख के मामले को देख रहे हैं. वह कानूनी विषयों पर काम करने वाली गैर-लाभकारी संस्था ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क से जुड़े हैं. यह संस्था संदिग्ध आव्रजकों के मामलों में नि:शुल्क सेवा दे रही है. उन्होंने मुझसे कहा, "मतदाता सूची और भूमि दस्तावेज जैसे दस्तावेजों की स्वीकार्यता पर कोई आपत्ति नहीं जताई गई. मुझे नहीं पता कि वास्तव में सदस्य ने उन्हें विश्वसनीय क्यों नहीं पाया."
पुनर्विचार के दौरान, शेख ने अतिरिक्त सबूत के लिए न्यायाधिकरण के समक्ष चार ताजा याचिकाएं भी दायर की थीं. उनमें से एक में मतदाता सूची की प्रामाणिकता साबित करने के लिए चुनाव प्राधिकरण को नोटिस जारी करने का अनुरोध था. शेख ने मतदाता सूची की डिजिटल प्रमाणित प्रतियां प्रस्तुत की थीं, जो चुनाव प्राधिकरण द्वारा जारी की जाती हैं, हालांकि उसमें हस्ताक्षर नहीं होते. न्यायाधिकरण ने शेख की याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि "विदेशी अधिनियम की धारा 9 के अनुसार, यह वादी का कर्तव्य है कि वह अपना मामला साबित करे और न्यायाधिकरण किसी भी दस्तावेज को साबित करने के लिए किसी भी प्राधिकरण को कोई नोटिस जारी नहीं करता है." न्यायाधिकरण विदेशी अधिनियम, 1946 और विदेशी न्यायाधिकरण आदेश, 1964 द्वारा शासित हैं. चुनाव अधिकारी मतदाता सूची जारी करते हैं और कोई भी व्यक्ति मूल कॉपी को तब तक प्राप्त नहीं कर सकता है जब तक कि अधिकारियों को न्यायाधिकरण ऐसा करने का आदेश नहीं देता. न्यायाधिकरण के समक्ष शेख ने तर्क दिया था कि 1964 की व्यवस्था के आदेश 4 के तहत, किसी न्यायाधिकरण के पास जांच के लिए किसी व्यक्ति को उपस्थित होने के लिए समन जारी करने और किसी भी आवश्यक दस्तावेज की खोज और उसे पेश करने का आदेश जारी करने के लिए सिविल अदालत की शक्तियां होती हैं. फिर भी न्यायाधिकरण सदस्य द्वारा याचिका खारिज कर दी गई.
शेख की दूसरी याचिका में पिता के संबंध में साक्ष्यों को प्रस्तुत करने का समय मांगा गया जो किसी “अनिवार्य कारण” के चलते तय दिन पेश नहीं हो पाए. डे ने न्यायाधिकरण को सूचित किया कि अनिवार्य कारणों से शेख के पिता उपस्थित नहीं हो सकते और उनका यहां न आना सुनियोजित नहीं है. डे ने यह भी तर्क दिया कि व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय के सरबानंद सोनोवाल बनाम भारत संघ मामले के फैसले के तहत अपनी राष्ट्रीयता साबित करने के लिए सभी प्रकार की सुरक्षा का हक है, परिस्थितिजन्य और प्रक्रियात्मक, और इसलिए शेख के पिता को गवाह के रूप में पेश करने के लिए समय दिया जाना चाहिए. यह याचिका बेवजह अस्वीकार कर दी गई.
शेख की आखरी दो याचिकाओं में, जांच अधिकारी कलिता को जिरह के लिए न्यायाधिकरण के समक्ष पेश करने और मई माह में शेख द्वारा दायर लिखित वक्तव्य में संशोधन करने का अनुरोध था. शेख को अपनी जमीन के दस्तावेज में उल्लेखित तारिख को सही करने की अनुमति दी गई लेकिन अधिकरण ने और किसी संशोधन की अनुमति नहीं दी. डे ने तर्क दिया कि कलिता का जिरह जरूरी है क्योंकि उसकी जांच पर संदेह है. लेकिन यह याचिका भी खारिज कर दी गई. दिसंबर 2018 में न्यायाधिकरण ने यह कहते हुए कि शेख अपने दादा से संबंध नहीं स्थापित कर सके, उन्हें फिर विदेशी करार दे दिया और बंदी बना लेने और बाहर निकालने का आदेश दिया.
मई 2019 में शेख ने न्यायाधिकरण के दूसरे आदेश को रद्द करने और दोनों मामलों को खारिज करने की याचिका उच्च अदालत में दायर की है. अदालत ने इस याचिका पर सुनवाई करना स्वीकार किया है लेकिन अभी सुनवाई शुरू नहीं हुई है.
उच्च अदालत में दायर अपनी ताजी याचिका में शेख ने भंगागढ़ पुलिस स्टेशन में पुलिसवालों के साथ अपनी बातचीत के बारे में बताया है. सब-इंस्पेक्टर कलिता इसी स्टेशन में नियुक्त थे. डे के अनुसार शेख को उस घटना की तारीख या दिन याद नहीं है. डे ने अदालत को बताया है याचिकाकर्ता जलाल शेख 2014 या 2015 में आजीविका कमाने के उद्देश्य से गुवाहाटी आए थे और भंगागढ़ इलाके में रिक्शा चलाने का काम करते थे. एक दिन जब उन्होंने एक सवारी को गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल छोड़ा था तब भंगागढ़ पुलिस स्टेशन के पुलिसवाले ने शेख को रोका और अंदर ले गया. शेख को बताया गया कि रिक्शे को कैंपस परिसर के अंदर लाना मना है और इसके लिए उस पर 1000 रुपए का जुर्माना लगेगा.
शेख ने याचिका में बताया है कि वे उसी दिन अपने गांव पटनरकु जा कर दस्तावेज ले आए थे और अगले दिन ये दस्तावेज पुलिसवालों को दिखा दिए थे. शेख ने बताया कि उनसे सवाल-जवाब करने के बाद पुलिसवालों ने जाने दिया. शेख ने बताया कि 2015 में कलिता को कोई लिखित वक्तव्य नहीं दिया था और न ही उनकी उंगलियों के निशान लिए गए थे. उन्होंने यह भी बताया कि अपने खिलाफ दायर मामले के बारे में उन्हें 2016 के आखिर में पता चला था जब 3 और 4 नवंबर को न्यायाधिकरण से दो नोटिस प्राप्त हुए थे. शेख ने कोर्ट को यह भी बताया कि मेडिकल अस्पताल वाली घटना के बाद वह पटनरकु लौट गए थे और वहां दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करने लगे थे.
हालांकि कलिता का दावा है उनके पास शेख के दो लिखित वक्तव्य थे. इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर शेख की औपचारिक जांच आरंभ हुई थी. 16 सितंबर 2015 को कलिता ने जो वक्तव्य रिकार्ड किया था उसमें लिखा है: मैं (शेख) तकरीबन दो साल पहले गुवाहाटी आया था. आने के बाद मैंने सबसे पहले राजमिस्त्री के रूप में काम किया और बाद में रिक्शा चलाने लगा. मैं शादीशुदा हूं और मेरी बीवी, दो बेटे और तीन बेटियां गांव के पते में रहते हैं. मैं आठवीं कक्षा तक पढ़ा हूं. मैंने आज तक कभी मतदान नहीं किया है.” उस वक्तव्य में लिखा है कि जब शेख रिक्शा चला रहे थे तब सीमा पुलिस के अधिकारी ने उनसे दस्तावेज मांगे थे. इसमें यह नहीं बताया गया है कि कब और कहां पुलिसवाले ने शेख को दस्तावेजों के लिए रोका था. इस वक्तव्य में शेख के हस्ताक्षर या अंगूठे के निशान नहीं हैं.
अगर दस्तावेजों की माने तो एक नाटकीय घटनाक्रम में दो महीने बाद, 9 नवंबर 2015 को, कलिता 16 सितंबर के वक्तव्य में बताई गई एकदम वैसी ही परिस्थिति से मुखातिब होते हैं. दूसरे दस्तावेज के मुताबिक शेख उस वक्त रिक्शा चला रहे थे जब कलिता ने उनसे दस्तावेजों की मांग की. लेकिन इस वक्तव्य में शेख का चित्रण अलग है. इस वक्तव्य में कहा गया है: मैं (शेख) तकरीबन तीन साल पहले गुवाहाटी आया था. आने के बाद सबसे पहले मैंने एक बेकरी में मजदूर के रूप में काम किया और बाद में रिक्शा चलाने लगा... मेरे मां-बाप, बीवी और चार बच्चे गांव के पते पर रहते हैं…. मैं शिक्षित नहीं हूं और मैंने कभी मतदान नहीं किया है.” मतदाता सूची, जिसे शेख ने अपनी पहली सुनवाई के दौरान पेश किया था, दोनों ही वक्तव्यों में उल्लेखित बातों को झुठला देती है और शेख ने भी बताया था कि उसने बेकरी में कभी काम नहीं किया.
अपनी ताजा याचिका में शेख ने कलिता द्वारा रिकॉर्ड किए गए वक्तव्य को जाली बताया है और इसके बाद की जांच को मानने से इनकार किया है. केस डायरी के अनुसार 17 नवंबर 2015 और 12 दिसंबर 2015 को डिएसपी ने कलिता को शेख की औपचारिक जांच करने की मंजूरी दी थी. पहली जांच रिपोर्ट में, जिसके बारे में कलिता ने दावा किया है कि 20 दिसंबर 2015 को की गई थी, शेख का अस्थाई पता गुवाहाटी का तरुण नगर बताया गया है. केस डायरी में लिखा है कि कलिता तरुण नगर गए थे और 40 वर्षीय रफीक अली और 32 वर्षीय ऐनुल हक के बयानों को साक्षी के बयानों के रूप में दर्ज किया गया है. इस डायरी में यह भी कहा गया है कि कलिता ने गवाहों और शेख से पूछताछ की थी लेकिन उन गवाहों ने क्या कहा यह दर्ज नहीं है. शेख ने अदालत को कहा था कि वह रफीक और ऐनुल को नहीं जानते. शेख ने बताया कि सच्चाई यह है कि कलिता के बताए दिन उनसे नहीं मिले थे और कोई जांच नहीं की गई थी.
कलिता की लिखी दूसरी जांच रिपोर्ट, जिसे 15 फरवरी 2016 को पेश किया गया, में कहा गया है कि सब-इंस्पेक्टर चिलाराई नगर में शेख के घर गया था. इसमें तरुण नगर का उल्लेख नहीं है. रिपोर्ट में कलिता ने लिखा है कि उन्होंने उस दिन घर पर शेख को नहीं पाया, लेकिन दो गवाहों, मुहम्मद अलाउद्दीन और सुशांत सरकार, के बयान दर्ज किए. कलिता ने कहा कि अलाउद्दीन उस घर का मालिक था जहां शेख कथित तौर पर रहता था. सुशांत सरकार ने अपना रिक्शा शेख को किराए पर दिया था.
शेख ने पिछले साल अपनी पहली अपील में अदालत को बताया कि वह गुवाहाटी में किसी शंकर राय के घर पर कुछ दिनों के लिए रहे थे और उनका रिक्शा चलाते थे. वह अलाउद्दीन या सुशांत सरकार को नहीं जानते.
शेख ने अदालत से कहा कि उनका मानना है कि जांच अधिकारी ने उनके खिलाफ फर्जी दस्तावेज गढ़कर मामला बनाया क्योंकि वह समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के थे और खुद का बचाव नहीं कर सकते थे. शेख ने अदालत के सामने गुहार लगाई कि पिछले चार सालों तक राज्य मशीनरी ने जैसा व्यवहार उनके साथ किया है, वह अपमानजनक है.
ऐसा डेटा नहीं है जो असम के विदेशी न्यायाधिकरण में संदिग्ध विदेशी होने के दोहरे अपराध का सामना करने वाले अभियुक्तों की संख्या बता सके, लेकिन राज्य में दो दर्जन से अधिक वकीलों के साथ मेरी बातचीत में मुझे बताया गया कि शेख अकेले नहीं हैं. इन वकीलों ने बताया कि उन्होंने ऐसे सैकड़ों मामले देखे हैं.