भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की एक पूर्व कर्मचारी ने शीर्षस्थ अदालत के 22 न्यायाधीशों को कल भेजे एक शपथपत्र में देश के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न और सताने का आरोप लगाया है. अपने शपथपत्र में महिला ने अक्टूबर 2018 में कथित दुर्व्यवहार की दो घटनाओं का जिक्र किया है. आरोप में उल्लेखित उत्पीड़न की घटनाएं गोगोई के मुख्य न्यायाधीश बनने के कुछ दिन बाद की हैं. पूर्व कर्मचारी ने लिखा है कि जब गोगोई की कथित हरकतों का उसने विरोध किया तो उसके और उसके परिवार को ‘बार-बार परेशान’ किया गया. परिवार वालों को नौकरियों से निकाला गया, गिरफ्तार किया गया और हिरासत में यातना दी गई. महिला ने लिखा है, “मैं कहती हूं कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने अपने पद, कार्यालय और अधिकार का दुरुपयोग किया है और पुलिस को प्रभावित करने के लिए अपनी ताकत और प्रभाव का गलत इस्तेमाल भी किया है”. वह लिखती है, “मुझे और मेरे पूरे परिवार को सीजेआई के अवांछित यौन व्यवहार का विरोध करने के लिए सताया और परेशान किया गया.”
अपने शपथपत्र के साथ इस पूर्व कर्मचारी ने जजों को उल्लेखित घटनाओं के संबंध में वीडियो रिकार्डिंग भी भेजी है. इनमें उस घटना का भी जिक्र है जब इस साल जनवरी में दिल्ली पुलिस के अधिकारी महिला को सीजेआई के आवास पर लेकर गए थे जहां उसे न्यायाधीश की पत्नी से माफी मांगने के लिए कहा गया था. इन वीडियों से यह भी संकेत मिलता है कि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को 11 जनवरी 2019 को घटना से अवगत कराया गया था.
अपने शपथपत्र में पूर्व कर्मचारी ने बताया है कि कैसे सीजेआई बनने के पहले गोगोई ने उसके प्रोफेशनल और निजी जीवन में दिलचस्पी दिखाई थी. इसके बाद महिला का स्थानांतरण गोगोई के तीस जनवरी मार्ग स्थित आवासीय कार्यालय में कर दिया गया जहां महिला से गोगोई के नजदीक रहकर काम करने को कहा गया. वह लिखती है कि दो अलग-अलग अवसरों पर सीजेआई ने उसकी मर्जी के खिलाफ उसे हाथ लगाया और गले लगे. “एक अवसर पर मुझे सीजेआई को धक्का देकर अलग करना पड़ा.” इस पूर्व कर्मचारी ने लिखा है कि गोगोई ने उसे इन कथित घटनाओं के बारे में किसी से बात न करने की हिदायत दी और ऐसा न करने पर गंभीर परिणाम के लिए तैयार रहने की धमकी दी.
इन कथित घटनाओं के चार हफ्तों में इस पूर्व कर्मचारी का सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न विभागों में तीन बार ट्रांसफर किया गया. नवंबर के आखिर में उस पर अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी गई. महिला पर निरंतर स्थानांतरण को लेकर अपनी बेचैनी जाहिर करने के लिए “अनुशासन के प्रति पूर्वाग्रही होकर काम करने”, सहकर्मी से यह पूछने पर कि क्या उसकी क्षमता में कमी है जिसकी वजह से उसका बार-बार ट्रांसफर हो रहा है “अवांछनीय तौर पर दबाव और प्रभाव डालने”, और एक शनिवार के दिन आकस्मिक छुट्टी लेकर “अविनय, कर्तव्य के प्रति समर्पण की कमी और अनुशासनहीनता” का प्रर्दशन करने के लिए कार्यवाही शुरू की गई थी. 21 दिसंबर 2018 को उसे सुप्रीम कोर्ट से बर्खास्त कर दिया गया. उस साल के अंत तक दिल्ली पुलिस में काम करने वाले इस पूर्व कर्मचारी के पति और देवर को भी उनकी नौकरियों से निलंबित कर दिया गया.
इस साल मार्च में हरियाणा के झज्जर निवासी नवीन कुमार ने पूर्व कर्मचारी के खिलाफ दिल्ली के तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई. शिकायत के आधार पर एफआईआर दायर हुई. कुमार के अनुसार, “इस पूर्व कर्मचारी ने उसके साथ 50000 रुपए की धोखाधड़ी की थी”. उसने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट में नौकरी लगवाने के एवज में रिश्वत के एक भाग के रूप में उसने यह रकम महिला को दी थी. अपने शपथपत्र में महिला ने लिखा है कि कुमार के लगाए आरोप “गलत, दुर्भावनापूर्ण और नियोजित हैं, जो उसे और उसके परिवार को परेशान और डराने के लिए लगाए गए हैं”. इस एफआईआर के दायर होने के पांच दिन बाद 8 मार्च को तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन से पुलिस की एक टीम राजस्थान में उसके पति के पुश्तैनी घर में उसे गिरफ्तार करने आई. महिला ने अपने शपथपत्र में लिखा है कि निर्देशानुसार जब वह दूसरे दिन पुलिस स्टेशन पहुंची तो उसे और उसके साथ गए परिजनों के साथ बुरा व्यवहार किया गया. वह लिखती है कि एसएचओ ने उसके एक पांव को बैंच से हथकड़ी से रातभर बांध कर रखा, उसे लात मारी और उसके साथ गालीगलौज की. इसके बाद उसे एक दिन के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया गया. महिला को 12 मार्च के दिन जमानत दी गई. आज पटियाला हाउस कोर्ट में इस मामले में सुनवाई होनी है.
हमारे भेजे सवालों का सीजेआई की ओर से को जवाब नहीं आया. सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि ये आरोप, “पूरी तरह से गलत और झूठे हैं और इनका पूर्ण रूप से खंडन किया जाता है”. सेक्रेटरी जनरल का यह जवाब महिला के खिलाफ मार्च में दायर शिकायत और 2011 में उसके पड़ोसी द्वारा उस पर दायर एक पुराने मामले पर आधारित है. 2011 का मामला इस पूर्व कर्मचारी के ससुर और पड़ोसी के बीच बिजली मरम्मत के काम को लेकर हुए विवाद का था. सितंबर 2016 में दिल्ली उच्च अदालत ने दोनो पक्षों के बीच समझौते के बाद मामले को खारिज कर दिया था.
अपने शपथपत्र में पूर्व कर्मचारी ने लिखा है, “मेरे खिलाफ झूठी और ओछी कार्यवाहियों से मेरा परिवार बर्बाद और आर्थिक रूप से टूट गया है”. यह शपथपत्र फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के दो दर्जन से अधिक जजों के पास है. वह आगे लिखती हैं, “दबाव का यह भार असहनीय होता जा रहा है. अब ऐसा लगता है कि यह उत्पीड़न, अत्याचार और टार्चर तब तक नहीं रुकने वाला जब तक मैं इस उत्पीड़न की वजह का खुलासा न कर दूं”.महिला ने आगे लिखा, “मेरी जान को खतरा है. इसलिए अपनी और अपने परिवार की जान बचाने के लिए मैं पूरा सच सामने लाने के लिए मजबूर हूं”.