{एक}
“महामारी के चलते कॉलेज बंद हो जाने के बाद यहां की शामों ने मुझे टूटने नहीं दिया,” कोलकाता स्थित राष्ट्रीय न्याय विज्ञान विश्वविद्यालय के एक छात्र ने साल 2020 की गर्मियों में अपने घर की पानी की टंकी की छत पर बैठ कर मुझे यह बात सुनाई. छात्र के घर की पानी की टंकी दोनों तरफ से उसके घर से ऊंची इमारतों के बीच है. उस छात्र में ने मुझसे कहा, “मेरे कॉलेज में पढ़ने वाले अलग ही दुनिया में रहते हैं. वे अच्छी इंटर्नशिप पा जाते हैं और पढ़ाई में अव्वल रहते हैं. लेकिन मैं चाहे जितनी मेहनत कर लूं वहीं का वहीं हूं.”
कानून की पढ़ाई कर रहे इस छात्र को एक जन्मजात स्वास्थ्य संबंधी जटिलता है. इस जटिलता ने उसे गंभीर रूप से विकलांग कर दिया है. डॉक्टरों ने पहले ही कह दिया था कि उसे विशेष प्रकार की शिक्षा की जरूरत होगी. छात्र को कानून की पढ़ाई करने की प्रेरणा इस उम्मीद से मिली थी कि ऐसा करने से उसके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. साथ ही, छात्र को राजनीति और समाज में गहरी रुचि भी है.
17 साल की उम्र में इस छात्र ने बेहद प्रतिस्पर्धी मानी जाने वाली संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा निकाल ली. इस परीक्षा को पास करने का अर्थ था कि यह छात्र देश के 23 राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (एनएलयुओं) में से किसी एक में प्रवेश ले सकता है. कोविड-19 महामारी से पहले इस छात्र ने कोलकाता स्थित राष्ट्रीय न्याय विज्ञान विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया. यही वह जगह थी जहां एक बार यूं ही बातों-बातों में हम दोनों की मुलाकात हुई. मैं भी वहां पढ़ रहा हूं.
घर की छत पर उसने मुझे बताया कि वह जानता है कि मैं उसे ढाढस देने के लिए कहूंगा कि उसके साथ जो हो रहा है वह उसकी गलती नहीं है और यह भी कि महामारी ने मेरे जैसे करोड़ों छात्र-छात्राओं की पढ़ाई बाधित की है और उन्हें अलगाव की स्थिति में धकेल दिया है. उसने कहा, “लेकिन कई बार खुद से यह कहना कि यह मेरी गलती नहीं है बहुत मुश्किल होता है. यह इतना आसान नहीं है.”
कमेंट