सुप्रीम कोर्ट के कलेजियम ने 11 सितंबर को चार जजों- एसएम मोदक, वीजी जोशी, एनजे जमादार और आरजी अवचट के नामों की सिफारिश करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया. इनके नामों का प्रस्ताव इन्हें प्रमोट करके बॉम्बे हाई कोर्ट में लाने के लिए पारित किया गया था. इनमें से मोदक और जोशी नाम के दो जज अलग-अलग कारणों की वजह से उन परिस्थितियों का हिस्सा थे जिनकी वजह से जज बीएच लोया की मौत हुई.
मोदक ने दावा किया था कि वह लोया के साथ रवि भवन में ठहरे थे. रवि भवन नागपुर का एक सरकारी गेस्ट हाउस है. यह वही गेस्ट हाउस है जहां लोया की मौत हुई थी. लोया 30 नवंबर से एक दिसंबर 2014 के बीच यहां ठहरे थे. लोया की मौत से जुड़ी आधिकारिक जानकारी में बताया गया है कि वह एक साथी जज के बेटे की शादी में शरीक होने नागपुर गए थे. लेकिन महाराष्ट्र लॉ डिपार्टमेंट के नागपुर ऑफिस से 27 नंवबर 2014 को जारी की गई एक सरकारी चिट्ठी में लिखा है कि जोशी और लोया “30.11.2014 की अहले सुबह से 1.12.2014 की शाम सात बजे तक सरकारी काम की वजह से” रवि भवन में रुकने वाले थे.
कलेजियम का फैसला बॉम्बे हाई कोर्ट की एक पूर्व न्यायधीश मंजुला चेल्लूर की सिफारिश पर आधारित है. उन्होंने ही दो सबसे सीनियर जजों के साथ मिलकर 28 नवंबर 2017 को मोदक, जोशी और चार और जजों के नाम की सिफारिश की थी. गौर करने लायक बात है कि महाराष्ट्र सरकार के खुफिया विभाग ने इसी दिन राज्य सरकार को एक “विचारशील रिपोर्ट” सौंपी थी. इस पर भी 28 नंवबर की ही तारीख दर्ज थी. इसका निष्कर्ष ये था कि जज लोया की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई थी. निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए बाकी के दस्तावेजों के साथ खुफिया विभाग ने इसमें वह बयान भी शामिल किया था जिसे मोदक ने दिया था.
खुफिया विभाग द्वारा रिपोर्ट दिए जाने के एक हफ्ते पहले द कैरवन ने दो खबरें ब्रेक कीं. इन खबरों में लोया के परिवार द्वारा उनकी मौत से जुड़ी रहस्यमयी परिस्थितियों को लेकर जताए गए संदेह के अलावा उन्हीं द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस मोहित शाह पर लगाए गए आरोपों के बारे में बताया गया था. लोया के परिवार ने जस्टिस शाह पर आरोप लगाया था कि उन्होंने सोहराबुद्दीन मामले में उनके कहे अनुसार फैसला देने पर लोया को 100 करोड़ रुपए देने की पेशकश की थी. सोहराबुद्दीन के जिस मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मुख्य आरोपी हैं, लोया जून 2014 से उस मामले के जज थे. मोदक ने खुफिया विभाग को 24 नंवबर 2017 को अपना बयान दिया. यानी मामले में रिपोर्ट दिए जाने और चेल्लूर की सिफारिश के चार दिन पहले ये बयान दिया गया था.
कलेजियम के प्रस्ताव पास करने के छह दिनों बाद 17 सिंतबर को नागपुर के एक वकील आरपी जोशी ने जस्टिस रंजन गोगोई को एक लिखित शिकायत की. 3 अक्टूबर को भारत के चीफ जस्टिस की शपथ लेने जा रहे गोगोई से इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की गई थी. वकील ने हमें बताया कि उसने उस महीने के अलावा जुलाई में भी मोदक के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज कराई थीं. ये शिकायत जस्टिस दीपक मिश्रा, बॉम्बे हाई कोर्ट और केंद्रीय कानून मंत्रालय के पास भेजी गई थीं. लेकिन कहीं से कोई जवाब नहीं आया.
मिश्रा, गोगोई और मदन लोकुर ने कलेजियम की सिफारिश पर दस्तखत किए हैं. इसमें लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट के जजों ने सिफारिश में शामिल कुछ जजों के खिलाफ आई “उन शिकायतों को देखा जिन्हें चीफ जस्टिस के ऑफिस को भेजने के अलावा फाइल में रखा गया था” लेकिन कलेजियम ने निष्कर्ष निकाला कि “इन शिकायतों में उन्हें प्रथम दृष्टया ऐसा कुछ नहीं मिला, इस वजह से इन्हें अनदेखा कर दिया गया.” जबकि, गोगोई को की गई शिकायत में जोशी ने कहा है कि “मोदक को ऊंचे पद पर भेजे जाने को देखकर ऐसा लगता है कि अचानक से हुई जज लोया की मौत में बयान देने की वजह से उन्हें फायदा पहुंचाया जा रहा है.”
खुफिया विभाग को दिए गए मोदक के बयान में कई बातें ऐसी हैं जिनमें लोया की मौत के पहले की घटनाओं को लेकर कही गई बातों में चूक नजर आती है. मोदक का दावा है कि खुफिया विभाग को बयान देने वाले एक और जज श्रीकांत कुलकर्णी और मोदक ने 29 नवंबर 2014 की रात को लोया के साथ मुंबई से नागपुर तक का सफर तय किया था और अगले दिन तीनों रवि भवन में एक साथ ठहरे थे. उनके बयान के मुताबिक लोया सुबह चार बजे जाग गए क्योंकि “वह अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे”- मोदक के बयान से यह साफ नहीं है कि अच्छा नहीं महसूस करने से उनका मतलब क्या है. मोदक ने अपने बयान में आगे कहा है कि इसके बाद कुलकर्णी ने “शायद जज बर्डे और जज राथी” को फोन किया. दोनों जज वहीं से ताल्लुक रखने वाले हैं. लेकिन मोदक को ठीक से याद नहीं कि कुलकर्णी ने इसमें से एक को कॉल किया था या दोनों को. इसके बाद चारों जज मिलकर लोया को दांडे हॉस्पिटल ले गए. मोदक कहते हैं कि “शुरुआती जांच” और दांडे के डॉक्टरो की सलाह के बाद “जज लोया को दूसरे हॉस्पिटल ले जाया गया.” लेकिन मोदक को यह भी याद नहीं कि लोया को जहां ले जाया गया उस हॉस्पिटल का नाम क्या था. उन्होंने यह भी नहीं बताया कि डॉक्टरों ने कब लोया को मृत घोषित किया और उन्हें यह भी याद नहीं कि लोया के परिवार को किसने उनकी मौत की जानकारी दी.
मोदक के बयानों में जज लोया की मौत से जुड़ी परिस्थितियों से जुड़े उन सारे सवालों के जवाब गायब हैं जिन्हें लोया के परिवार ने उठाया है. जैसेकि, मेडिट्रिना हॉस्पिटल के रिकॉर्ड्स में लोया कि मौत का समय सुबह के 6.15 बजे का क्यों दर्ज किया गया, जबकि परिवार वालों का कहना है कि उन्हें मौत से जुड़ी कॉल्स सुबह पांच बजे से ही आनी शुरू हो गई थीं. मेडिट्रिना हॉस्पिटल वह दूसरा हॉस्पिटल है जहां लोया को दांडे हॉस्पिटल के बाद ले जाया गया था. ऊपर से लोया की मौत की वजह दिल के दौरे को बताने वाले आधिकारिक बयान को मजबूत करने वाले साक्ष्य के तौर पर एक ईसीजी चार्ट मौजूद है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि उसे दांडे हॉस्पिटल में करवाया गया था. यही वह सबूत है जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद भरोसा जताते हुए लोया की मौत की जांच की मांग से जुड़ी याचिकाओं को खारिज कर दिया.
मोदक के बयानों में न तो कहीं ईसीजी और न ही कहीं हार्ट अटैक का जिक्र है. उल्टे, मोदक के बयान के बाद लोया कि मौत से जुड़ी घटनाओं को लेकर कई और सवाल खड़े होते हैं और द कैरेवन की जांच के बाद हुए खुलासों से पता चलता है कि पहले देखने पर जैसी लगती हैं, ये परिस्थितियां उससे ज़्यादा गंभीर हैं. सबसे बड़ा सवाल तो मोदक के उस दावे से खड़ा होता है जिसमें कहा गया है कि ये तीनों जज रवि भवन के एक ही कमरे में ठहरे थे. रवि भवन में मेहमानों के ठहरने से जुड़े रजिस्टर में लोया के वहां ठहरने से जुड़ी कोई जानकारी है ही नहीं, लेकिन इसमें लिखा है कि कमरा नंबर 10 में कुलकर्णी ठहरे थे. इसका मतलब ये होना चाहिए कि लोया, मोदक और कुलकर्णी कमरा नंबर 10 में एक साथ ठहरे थे और एक दिसंबर 2014 के सुबह चार बजे रवि भवन से एक साथ निकले थे. बाद में की गई एक जांच कुछ और ही कहानी बयां करती है. इस जांच में रवि भवन में अभी काम कर रहे और पहले काम कर चुके 17 लोगों के हवाले से कहा गया है कि इनमें से किसी को नहीं पता था कि यहां ठहर रहे किसी जज को कोई गंभीर मेडिकल प्रॉब्लम हुई थी जिसके बाद उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया और वहां उनकी मौत हो गई. इन 17 लोगों में रिसेप्शन से रूम सर्विस और प्रबंधन का काम देखने से लेकर अन्य छोटे बड़े काम करने वालों लोगों ने ये बातें कही हैं.
तीनों जजों के एक ही कमरे में ठहरने की बात को लेकर भी असमंजस की स्थिति इसलिए पैदा होती है क्योंकि वहां काम करने वाले एक कर्मचारी का कहना है कि हर कमरे में महज दो ही बेड हैं. इसी कर्मचारी ने ये भी कहा कि सामान्य परिस्थितियों में रवि भवन अपने यहां ठहरने वालों को एक्स्ट्रा बेड ऑफर नहीं करता है. उसने कहा, “ज़्यादा से ज़्यादा, इतने सीनियर हैं, बड़े लोग हैं, तो क्या होता है कि एक रूम में नहीं रहना चाहते हैं.” नंवबर 2014 तक रवि भवन में काम करने वाले इन 17 लोगों में से किसी को याद नहीं कि किसी एक्स्ट्रा बेड की मांग की गई हो. जिस स्टोर से एक्स्ट्रा गद्दे दिए जाते हैं उसके रिकॉर्ड में भी ऐसी बात कहीं दर्ज नहीं कि उस साल की 29 और 30 नवंबर की तारीख को किसी एक्स्ट्रा गद्दे की मांग की गई हो.
जब परिवार ने लोया की मौत की परिस्थितियों को लेकर अपने शक जाहिर किए तब बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस चेल्लूर का नाम भी इस मामले के साथ जुड़ गया. चेल्लूर वही जज हैं जिन्होंने मोदक के नाम की सिफारिश हाई कोर्ट का जज बनाने के लिए की थी. 29 नवंबर 2017 को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक लोया के बेटे अनुज लोया चेल्लूर के पास गए थे और कहा था, “पिता की मौत से जुड़ी परिस्थितियों को लेकर परिवार को कोई शक या शिकायत नहीं है.” जब लोया के बेटे की मुलाकात चेल्लूर से हुई थी तब वह बॉम्बे हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस थीं. टाइम्स आफ इण्डिया की रिपोर्ट में लिखा है कि अनुज ने चेल्लूर को एक चिट्ठी दी जिसमें उन्होंने लिखा था: “हमें न्यायपालिक के उन सदस्यों पर पूरा भरोसा है जो 30 नवंबर की रात उनके साथ थे.” सुप्रीम कोर्ट में जज की मौत के मामले से जुड़ी सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत दवे ने इस मामले में चेल्लूर के आचरण पर सवाल खड़े किए थे. दवे ने बेंच से पूछा, “रिटायरमेंट के कुछ दिनों पहले हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस ने लड़के को क्यों बुलाया और बयान जारी किया.” चेल्लूर अनुज से मुलाकात के पांच दिन और जजों के नाम की सिफारिश करने के छह दिनों बाद चार दिसंबर को रिटायर हो गईं. दवे ने आगे कहा, “वो (चेल्लूर) किसे खुश करने की कोशिश कर रही थीं.”
दवे के सवाल ऐसा पहला मौका नहीं हैं जो हाई कोर्ट जज के तौर पर चेल्लूर की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हैं. साल 2014 में जब वह केरल हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस थीं तब उन्होंने एक मामले में आठ महीनों तक अपना फैसला सुरक्षित रखा था. ये मामला 2007 में मुन्नर जिले की उस सरकारी कार्रवाई से जुड़ा था जिसमें एक रिजॉर्ट खाली कराया गया था. जब राष्ट्रपति ने उनके कोलकाता हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर ट्रांसफर के वॉरंट पर दस्तखत किया तो इसके चार दिनों बाद चेल्लूर ने मामले में अपना फैसला दे दिया. इस फैसले में उन्होंने जगह खाली करवाने की कार्रवाई को गैरकानूनी ठहराया और रिजॉर्ट की जमीन का मालिकाना हक उनके मालिकों को वापस दे दिया. इस फैसले की राजनीतिक और कानून हल्कों में चौतरफा आलोचना हुई थी.
पिछले साल अगस्त में बॉम्बे बार एसोसिएशन ने चेल्लूर को लेकर एक निंदा प्रस्ताव पारित किया था. ये प्रस्ताव डिविजन बेंच से एक पिटिशन हटाने और इसे किसी और बेंच को देने को लेकर पास किया गया था. यह फैसला राज्य सरकार की एक ट्रांसफर एप्लिकेशन के बाद लिया गया था जिसमें सरकार ने पिटिशन को पहले देख रहे जज एएस ओका पर निष्पक्षता नहीं बरतने का आरोप लगाया था. मामला ध्वनि प्रदूषण के 2000 के नियम से जुड़ा था और ओका ने मामले में इसे लागू करने में असफल रही राज्य सरकार की खिंचाई की थी. मामले को ट्रांसफर करने के तीन दिन बाद जब उनके इस फैसले के खिलाफ कानूनी बिरादरी में विरोध तेज हुआ तो चेल्लूर ने इसे वापस ले लिया और केस को तीन जजों की बेंच के हवाले कर दिया जिसके अध्यक्ष ओका बनाए गए. इस साल की 31 जुलाई को चेल्लूर को बिजली के लिए अपीलिय न्यायाधिकरण (एपीटीईएल) का अध्यक्ष बनाया गया. विद्युत (बिजली) अधिनियन 2003 के मुताबिक यह बेहद जरूरी है कि एपीटीईएल का अध्यक्ष नियुक्त करने से पहले केंद्र सरकार भारत के चीफ जस्टिस से सलाह-मशविरा करे- चेल्लूर की नियुक्ति के समय भारत के चीफ जस्टिस दिपक मिश्रा थे. वह इस पद पर कम से कम तीन सालों तक बनी रहेंगी.
सुप्रीम कोर्ट में लोया की मौत की जांच से जड़ी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दुष्यंत दवे ने खुफिया विभाग को बयान देने वाले जजों को बुलाकर उनके बायनों पर जिरह करने की जोर देकर अपील की. जिनसे जिरह की बात की गई है उनमें मोदक का नाम भी शामिल है. दवे ने मोदक के बयान पर कोर्ट के भरोसे पर भी सवाल खड़े किए हैं. दवे ने कहा, “माननीय न्यायालय को किसी हाल में सच से मतलब है और सरकार द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर भरोसा करने वाले एकतरफा झुकाव से सच सामने नहीं आ सकता.”