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पांच साल पहले मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अभय कुमार गोहिल ने भोपाल स्थित नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी में एक परीक्षा घोटाले में आरोपियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की सिफारिश की थी. गोहिल की रिपोर्ट में एनएलआइयू के पांच छात्रों का भी नाम था लेकिन ये सभी आज भी मध्य प्रदेश की जिला अदालतों में न्यायाधीश के पदों पर बने हुए हैं. गोहिल की 2018 की जांच में इस विधि संस्थान में परीक्षा घोटाले का खुलासा हुआ था. 1998 से 2011 के बीच चले इस घोटाले में विश्वविद्यालय के कर्मचारियों ने पैसे लेकर परीक्षा परिणामों में हेरफेर किया. गोहिल की रिपोर्ट में धोखाधड़ी से पास होने वाले 176 छात्रों की पहचान की गई थी.
शिवराज सिंह गवली, विधान महेश्वरी, पूजा सिंह मौर्य, पूर्णिमा सैयाम और तथागत याग्निक ऐसे पांच जज हैं जिनका नाम रिपोर्ट में था और जो अब भी न्यायाधीश के पद पर आसीन हैं. आरोपों की गंभीरता के बावजूद जांच के नतीजों को काफी हद तक नजरअंदाज किया गया है. 2011 में न्यायाधीन बने महेश्वरी वर्तमान में शिवपुरी में जिला और सत्र न्यायाधीश हैं, जबकि अन्य विभिन्न जिलों में वरिष्ठ श्रेणी के सिविल न्यायाधीश हैं. जवाबदेही की कमी मध्य प्रदेश न्यायपालिका पर सवाल खड़े करती है.
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता देवेंद्र मिश्रा ने 2021 में गोहिल की रिपोर्ट में नामित महेश्वरी और गवली की योग्यता पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में शिकायत दर्ज की. मिश्रा की शिकायत में कहा गया कि फर्जीवाड़ा कर जुटाई डिग्री होने के चलते ये न्यायाधीश न्यायपालिका में शामिल होने की ज़रूरी योग्यताएं नहीं रखते. शिकायत में हाई कोर्ट से अनुरोध किया गया कि यह सुनिश्चित किया जाए कि इन न्यायाधीशों ने न्यायिक सेवा में शामिल होने के समय मूल अंकपत्र और डिग्री प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए थे या नहीं. इसके जवाब में, हाई कोर्ट ने अप्रैल 2022 में कहा कि मामला विचाराधीन है. हालांकि, फरवरी 2024 तक, मुख्य न्यायाधीश द्वारा जांच के बाद शिकायत को बंद कर दिया गया था लेकिन जांच के निष्कर्षों का कोई विवरण साझा नहीं किया गया.
मिश्रा ने सूचना के अधिकार के जरिए पाया कि अन्य सेवा में लगे न्यायाधीश भी गोहिल की रिपोर्ट में नामित थे. कारवां ने इन रिकॉर्डों की समीक्षा की और पाया कि न्यायपालिका और विश्वविद्यालय ने गोहिल की सिफारिशों के जवाब में कोई कार्रवाई नहीं की है. गोहिल ने कर्मचारियों के ख़िलाफ़ कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई की सिफारिश की थी, लेकिन एनएलआइयू ने केवल एक कर्मचारी के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की.
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