10 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने आदेश दिया कि उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना किसी मौजूदा या पूर्व विधायक या सांसद के खिलाफ मुकदमा वापस नहीं लिया जाएगा. पीठ में न्यायाधीश विनीत सरन, सूर्यकांत और भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना शामिल थे. अदालत ने उच्च न्यायालयों से 16 सितंबर 2020 के बाद के ऐसे सभी मामलों की वापस जांच करने का अनुरोध किया, चाहे वे लंबित हों या निपटाए गए हों. अदालत ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत अभियोजक की शक्ति के "दुरुपयोग" की बात की जिसके तहत एक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक कुछ शर्तों के तहत मामला वापस ले सकता है.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश 9 अगस्त को वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया द्वारा दायर एक रिपोर्ट के संबंध में आया है. हंसारिया 2016 के मामले में न्याय मित्र हैं. उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर के उच्च न्यायालयों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की संख्या दिसंबर 2018 में 4122 से बढ़कर मार्च 2020 में 4222 और सितंबर 2020 में 4859 हो गई. रिपोर्ट में कई राज्यों के मौजूदा और पूर्व सांसदों के खिलाफ लंबित मामलों और ऐसे मामलों को वापस लिए जाने की भी जानकारी दी. रिपोर्ट में ऐसे मामलों से निपटने के लिए बनाई गई विशेष अदालतों के कामकाज के बारे में भी बताया गया है.
9 अगस्त की रिपोर्ट हंसारिया द्वारा पेश 13वीं रिपोर्ट थी. हंसारिया की सहायक वकील स्नेहा कलिता ने बताया कि मामले में याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि अगर सांसदों और विधायकों का आपराधिक रिकॉर्ड है तो उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगनी चाहिए. कलिता सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड हैं.
हंसारिया की रिपोर्ट में उल्लेख है कि 31 अगस्त 2020 को कर्नाटक सरकार ने “61 ऐसे मामलों को वापस लेने के निर्देश जारी किए जिनमें से कई राज्य विधानमंडल के निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ हैं." साथ ही रिपोर्ट बताती है कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 के बीच एक जनहित याचिका के जवाब में तीन आदेश पारित किए जिनमें निर्देश दिया गया कि 31 अगस्त 2020 के आदेश के आधार पर कार्रवाई नहीं की जा सकती.
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 2020 में मीडिया ने बताया था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 2013 की मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के आरोपियों के खिलाफ मामले वापस लेने की अपील की है. मुजफ्फरनगर हिंसा में 65 लोग मारे गए थे और 40000 लोग विस्थापित हुए थे. 12 जनवरी की एक समाचार रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि "यूपी के विशेष कानून सचिव अरुण राय के अनुसार राज्य सरकार ने शनिवार को 11 जनवरी को मुजफ्फरनगर जिले के अधिकारियों को चार और मामलों को वापस लेने के लिए अदालत में अपील दायर करने का निर्देश दिया है.” इससे पहले राज्य सरकार ने दंगों से जुड़े ऐसे 76 मामलों को वापस लेने का फैसला किया था. दिसंबर 2020 में इंडियन एक्सप्रेस ने बताया था कि राज्य सरकार ने तीन बीजेपी विधायकों, संगीत सोम, सुरेश राणा और कपिल देव, और आरएसएस से संबद्ध विश्व हिंदू परिषद की नेता साध्वी प्राची के खिलाफ मामला वापस लेने की अपील की है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार चारों पर भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. उन पर लगे आरोप हैं : लोक सेवक कर्तव्य का पालन करने से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का इस्तेमाल करना, धर्माधारित शत्रुता को बढ़ावा देना और नुकसान पहुंचाने के इरादे से आग या विस्फोटक पदार्थ से हमला करना.
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