21 अगस्त को बॉम्बे हाई कोर्ट ने बड़े तीखे स्वर में फैसला सुनाते हुए तबलीगी जमात के सदस्यों पर आपराधिक मुकदमा चलाने के केंद्र सरकार के फैसले की भर्त्सना की. इससे एक महीने पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर बताया था कि सरकार ने 2765 विदेशी तबलीगी सदस्यों का वीजा रद्द कर दिया है. गृह मंत्रालय ने यह भी कहा कि तबलीगी सदस्यों के भारत में पुनः प्रवेश को रोकने के लिए उन्हें काली सूची में डाल दिया गया है. उसने यह भी बताया कि देशभर में विदेशी तबलीगी सदस्यों के खिलाफ 205 एफआईआर दर्ज की गई हैं. बॉम्बे हाई कोर्ट ने 29 विदेशी नागरिकों के खिलाफ दायर एफआईआर खारिज कर दी है और कोरोना महामारी के दौरान तबलीगी सदस्यों को बलि का बकरा बनाए जाने की आलोचना की है.
गृह मंत्रालय ने 35 अलग-अलग देशों के तबलीगी सदस्यों द्वारा दायर याचिकाओं के जवाब में उपरोक्त हलफनामा दायर किया था. उस हलफनामे के अनुसार तबलीगी सदस्यों के खिलाफ एफआईआर इसलिए दर्ज की गई है क्योंकि ये लोग तबलीगी गतिविधियों में भाग लेते पाए गए थे जबकि टूरिस्ट या पर्यटक वीजा में इसकी अनुमति नहीं होती है. गृह मंत्रालय ने जारी आपराधिक कार्यवाही के मद्देनजर इन सदस्यों को देश छोड़ने नहीं दिया. मंत्रालय ने मामले की सुनवाई निपट जाने तक इन्हें भारत में ही रोक लिया है. याचिकाकर्ताओं ने कहां है कि वे लोग भारत वैध टूरिस्ट वीजा पर आए थे और भारत सरकार यह नहीं बता रही है कि उन्होंने किस प्रकार वीजा का उल्लंघन किया है.
हालांकि गृह मंत्रालय ने दावा किया है कि उसने वीजा को केस बाइ केस आधार पर खारिज किया है, तबलीगी जमात के सदस्यों का दावा है कि सभी का वीजा एकसाथ रद्द किया गया है. याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा है कि पुलिस ने गृह मंत्रालय के निर्देश में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. चूंकि ये लोग देश छोड़कर अपने वतन नहीं लौट पा रहे थे इस वजह से इनमें से कइयों ने सरकार से समझौता कर घर लौटने की एवज में मामूली आपराधिक आरोपों को स्वीकार कर लिया.
याचिकाकर्ताओं ने वीजा रद्द किए जाने, सदस्यों को ब्लैकलिस्ट करने और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को चुनौती दी है. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि विदेशी सदस्यों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वदेश लौटने के अधिकार का उल्लंघन हुआ है. गृह मंत्रालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया है जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है. ये अधिकार देश में न केवल नागरिकों को बल्कि विदेशी नागरिकों को भी है. याचिकाकर्ताओं के दावे और गृह मंत्रालय के कदम की वैधानिकता को समझने के लिए यहां तीन चीजों पर विचार करना जरूरी है. ये हैं : वीजा रद्द करना, सदस्यों को ब्लैकलिस्ट करना और उन पर आपराधिक मामले चलाना.
गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा है कि विदेशी तबलीगी सदस्यों ने तबलीगी गतिविधियों में भाग लेकर वीजा शर्तों का उल्लंघन किया है. हलफनामे के अनुसार ऐसा करना वीजा मैन्युअल 2019 के प्रावधानों का गंभीर उल्लंघन है और साथ ही यह विदेशी नागरिक कानून 1946 की धारा 13 और 14 का आपराधिक उल्लंघन है और उपरोक्त धाराओं के तहत दंडनीय है. लेकिन मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों में तबलीगी गतिविधियां क्या हैं यह स्पष्ट नहीं है. इन दिशानिर्देशों के 15 नंबर पॉइंट में “तबलीगी गतिविधियों में शामिल होने पर रोक” को इस प्रकार बताया गया है :
किसी भी तरह के वीजा पर भारत आने वाले विदेशी नागरिक तबलीगी कार्य में शामिल नहीं होंगे. धार्मिक स्थानों में जाने और सामान्य धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने, जैसे धार्मिक प्रवचन सुनना, में कोई प्रतिबंध नहीं है लेकिन धार्मिक विचारधारा का प्रचार करने, धार्मिक स्थानों में भाषण देने और धार्मिक विचारधारा वाले या धर्म परिवर्तन आदि से संबंधित ऑडियो या वीजुअल दिखाने या पंपलेट बांटने की आजादी नहीं होगी.
हलफनामे में उल्लेखित वीजा मैन्युअल में यह लिखा है कि कोई भी व्यक्ति जो तबलीगी काम में शामिल होना चाहता है वह गृह मंत्रालय में आवेदन देकर ऐसा कर सकता है. हलफनामे के अनुसार विदेशी नागरिक कानून की धारा 13 बताती है कि कोई भी व्यक्ति जो वीजा नियमों से अलग गतिविधि करता है तो उस कृत्य को वीजा नियमों का उल्लंघन माना जाएगा. धारा 14 के अंतर्गत वीजा नियमों के उल्लंघन की सजा बताई गई है लेकिन गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में यह नहीं बताया है कि विदेशी तबलीगी सदस्यों ने वीजा शर्तों का उल्लंघन किस तरह किया है.
वीजा प्रावधानों को पढ़ने से कुछ चीजें तुरंत स्पष्ट हो जाती हैं. पहली, सभी तरह के वीजा में तबलीगी काम प्रतिबंधित है. बावजूद कि दिशानिर्देशों में तबलीगी काम क्या है यह स्पष्ट नहीं है, उनमें उन गतिविधियों की एक सूची शामिल है जिन पर रोक है और जिन की अनुमति है. सबसे जरूरी बात यह है कि दिशानिर्देश साफ कहते हैं कि विदेशी नागरिकों को धार्मिक स्थलों पर जाने और सामान्य धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने की आजादी है. इसके बावजूद याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वे लोग सिर्फ एक ही धार्मिक गतिविधि में शामिल हुए थे और वह थी दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के मुख्यालय बंगले वाली मस्जिद यानी मरकज में मौजूदगी.
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि गृह मंत्रालय ने धार्मिक आयोजन में भाग लेने या धार्मिक स्थल में इबादद करने को धार्मिक विचारधारा का प्रचार करने, धार्मिक स्थानों में भाषण देने और धार्मिक विचारधारा वाले या धर्म परिवर्तन आदि से संबंधित ऑडियो या वीजुअल दिखाने या पंपलेट बांटना माना है. गृह मंत्रालय ने इन दोनों गतिविधियों के भेद को मिटा दिया है. याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा है कि धार्मिक स्थल का दौरा करने या सामान्य धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने पर कोई रोक नहीं है और ना ही इन कामों को वीजा शर्तों का उल्लंघन माना जा सकता है.
उपरोक्त बात को समझने के लिए जरूरी है यह समझना कि तबलीगी जमात सबसे पहले एक पुनरुत्थानवादी संगठन है. यह धर्म परिवर्तन कराने वाला संगठन नहीं है. इसकी स्थापना 1926 में देवबंदी इस्लामिक स्कॉलर मोहम्मद इलियास अल कांधलवी कवि ने मेवात में की थी जो हरियाणा के नूह में है. कांधलवी इस्लामिक प्रचारकों का एक ऐसा समूह बनाना चाहते थे जो इस्लाम का पुनरुत्थान करे और ऐसे नए इस्लामिक समुदाय का निर्माण करे जो पैगंबर मोहम्मद के बताए रास्ते पर चले. इसलिए यह समूह धर्म परिवर्तन करना नहीं चाहता बल्कि मुसलमानों को असल इस्लामिक तरीके से जीवन यापन करने की सीख देता है. वह उन्हें धार्मिक संस्कार, कपड़े पहनने का तरीका और निजी बर्ताव के लिए इस्लामिक तौरतरीकों का पाठ पढ़ाता है. संस्थापक अल कांधलवी का नारा था, “ओ मुसलमानों सच्चे मुसलमान बनो.”
तबलीगी सदस्यों के खिलाफ दर्ज एफआईआरों को खारिज करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसी अंतर का उल्लेख किया है. तबलीगी जमात के काम की प्रवृत्ति पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा है, “तबलीगी जमात मुसलमानों का कोई अलग संप्रदाय नहीं है बल्कि धर्म सुधार आंदोलन है. सभी धर्म सालों के सुधार से विकसित हुए हैं और समाज में आए बदलावों के कारण धर्म में सुधार हमेशा जरूरी हो जाता है. इससे यह बात साबित नहीं होती कि ये विदेशी जन धर्म परिवर्तन कर इस्लाम धर्म फैला रहे थे.”
तबलीगी जमात के संस्थापक अल कांधलवी ने सबसे पहले अपना काम मेवात के मेवो मुसलमानों के बीच शुरू किया. आगे के दशकों में इस संगठन की सदस्यता में बहुत बढ़ोतरी हुई. 1941 में तबलीगी जमात ने अपनी पहली कांफ्रेंस आयोजित की जिसमें 25000 से ज्यादा लोगों ने भाग लिया. आज इस धार्मिक पुनरुत्थानवादी समूह की 150 से अधिक देशों में शाखाएं हैं और इसके अनुयाई करोड़ों में हैं. इसकी सबसे बड़ी शाखा बांग्लादेश में है. इस संगठन के विस्तार की एक वजह इसका अराजनीतिक होना है. इस संगठन ने कभी किसी देश की राजनीति में दखल नहीं दिया और यहां भी बाबरी मस्जिद को गिराने, गुजरात में मुसलमानों के कत्लेआम या नागरिक संशोधन कानून जैसे विवादास्पद मामलों में कभी टिप्पणी नहीं की.
हालांकि तबलीगी जमात की चुप्पी की आलोचना बहुत से इस्लामिक संगठनों और लोगों ने की है लेकिन राजनीतिक दखलअंदाजी से बचाव में उसका चुप रहना काम आया है. जिया उस सलाम ने हाल में प्रकाशित अपनी किताब इनसाइड द तबलीगी जमात में बताया है कि जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के खिलाफ स्टैंड लेने के लिए दो इस्लामिक समूहों- जमात इस्लामी हिंद और जमात उलेमा ए हिंद- पर सख्ती की थी तो भी उन्होंने तबलीगी जमात को नहीं छुआ. हाल तक तो जमात का राजनीति से दूरी बनाए रखना अच्छा ही था लेकिन इस साल मार्च में वह भारत में कोरोना का चेहरा बन गया और भारतीय जनता पार्टी और मीडिया ने तबलीगी जमात के खिलाफ घृणा का अभियान छेड़ दिया.
मार्च के पहले पखवाड़े में दुनिया भर से हजारों तबलीगी सदस्य निजामुद्दीन स्थित उसके अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय में जमा हुए. कोरोना के दौरान तबलीगियों द्वारा इस कार्यक्रम के आयोजन को एक गैर जिम्मेदाराना फैसला माना जा सकता है क्योंकि दुनिया भर में कोरोना महामारी के फैलने की खबर के बीच उसकी गंभीरता का अंदाजा उसे होना चाहिए था तो भी भारत में तब स्थिति भयावह नहीं हुई थी. आयोजन के चलते बहुत सारे सदस्य कोरोना की चपेट में आ गए. इसका पता तब चला जब तमिलनाडु और तेलंगाना लौटे तबलीगी सदस्यों में वायरस पाया गया. बाद में एक कश्मीरी तबलीगी की मौत कोविड-19 से हो गई.
भारतीय मीडिया जिस तरह से कोरोनावायरस के लिए मुसलमानों को दोषी बता रहा था, बात उतनी सरल नहीं है. यह कार्यक्रम 8 से 15 मार्च तक चला. आयोजनों पर प्रतिबंध लगाने वाला दिल्ली सरकार का पहला आदेश 13 मार्च को आया था. लेकिन उस आदेश में भी सिर्फ 200 से अधिक लोगों की उपस्थिति वाले खेल (आईपीएल सहित), कॉन्फ्रेंस, सेमिनार जैसे आयोजनों पर रोक लगाई गई थी. 16 मार्च को मरकज का कार्यक्रम खत्म हो जाने के बाद ही दिल्ली सरकार ने ताजा परिपत्र जारी कर सभी प्रकार के धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया था.
इसके बाद मरकज के बहुत सारे लोग अपने-अपने देश और राज्य लौट गए लेकिन जब सरकार ने अचानक ही 21 मार्च को रेल यातायात पर रोक लगा दी और उसके अगले दिन सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर भी रोक लगा दी तो जो लोग तब तक नहीं लौट पाए थे वे मजबूरी में यहीं फंस कर रह गए. 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता कर्फ्यू की घोषणा की और अगले दिन दिल्ली सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया. इसके बाद राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई.
अंततः स्थिति की गंभीरता समझते हुए रोक संबंधी आदेश जारी होने के बाद मरकज का नेतृत्व सक्रिय हो गया. 25 मार्च को इन लोगों ने दिल्ली पुलिस को चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने बताया कि पिछले दो दिनों में मरकज से 1500 लोग रवाना हो चुके हैं और अभी भी मरकज में लगभग 1000 लोग मौजूद हैं और वे लोग घर लौटने के लिए गाड़ियों का इंतजाम करने में लगे हैं.
गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में उस घटनाक्रम का जिक्र किया है जिसके चलते उसने वीजा रद्द करने और काली सूची में रखने और तबलीगी सदस्यों के खिलाफ मामले दर्ज करने का फैसला लिया गया. मजेदार बात यह है कि याचिकाकर्ताओं ने भी अपने बचाव के लिए इसी घटनाक्रम का हवाला दिया है और दावा किया है कि उनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है. इसमें अंतर सिर्फ कानून के प्रावधानों की व्याख्या का है और गौर से अध्ययन करने पर समझा जा सकता है कि भारत सरकार का तबलीगी जमात को निशाना बनाना गैरकानूनी था.
गृह मंत्रालय के अनुसार 31 मार्च को गृह मंत्रालय के विदेशी नागरिक विभाग ने आव्रजन ब्यूरो से अनुरोध किया था कि वह टूरिस्ट या अन्य तरह के वीजा पर भारत आकर और गृह मंत्रालय से अनुमति लिए बिना तबलीगी गतिविधियों में भाग लेने वाले विदेशी नागरिकों की पहचान करे. यहां भी गृह मंत्रालय ने तबलीगी गतिविधियों की व्याख्या नहीं की. उसी दिन गृह मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि तबलीगी जमात में भाग लेने वालों की पहचान करने और उन्हें आइसोलेट या अलग-थलग करने के लिए उसने क्या-क्या कदम उठाए हैं. प्रेस रिलीज में बताया गया कि 1340 तबलीगी सदस्यों को क्वारंटीन केंद्रों में भेज दिया गया है.
गृह मंत्रालय ने प्रेस रिलीज में तबलीगी जमात और उसकी गतिविधियों की व्याख्या जिस तरह से की है उसे समझना बहुत जरूरी है. देश और विदेश के मुस्लिम धर्मावलंबी धार्मिक कारणों से मरकज आते हैं. कुछ लोग समूह बनाकर देश के अन्य हिस्से में भी तबलीगी गतिविधियों में शामिल होने के लिए घूमते हैं. यह साल भर चलने वाली प्रक्रिया है और अक्सर विदेशी नागरिक तबलीगी टीम का हिस्सा बनकर भारत घूमने आते हैं. वे टूरिस्ट वीजा लेकर आते हैं. गृह मंत्रालय ने पूर्व में ही दिशानिर्देश जारी कर बताया है कि टूरिस्ट वीजा में लोग मिशनरी काम में भाग नहीं ले सकते.
इससे दो चीजें एकदम साफ हो जाती हैं. एक, यह कि केंद्र सरकार तबलीगी विदेशियों के धार्मिक और मिशनरी काम में अंतर करती है और दूसरी, यह कि तबलीगी सदस्य आमतौर पर धार्मिक कार्यों के लिए भारत का दौरा टूरिस्ट वीजा लेकर करते हैं. प्रेस रिलीज में तबलीगी कार्य की जो व्याख्या की गई है वह उस वीजा नीति के अनुरूप है जो मिशनरी कार्य से संबंधित है. रिलीज में कहा गया है, “21 मार्च को लगभग 824 विदेशी तबलीगी कार्यकर्ता मिशनरी कार्यों के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में थे. इसके अलावा 216 विदेशी नागरिक मरकज में रुके हुए थे. उसी वक्त 1500 से अधिक भारतीय तबलीगी जमात सदस्य मरकज में थे और 2100 भारतीय तबलीगी जमात कार्यकर्ता मिशनरी कार्य के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों का भ्रमण कर रहे थे.”
प्रेस रिलीज में इस बात की व्याख्या नहीं है कि वह मशीनरी काम क्या था जिसमें तबलीगी सदस्य शामिल हुए थे. साथ ही रिलीज में यह भी नहीं बताया गया है कि कैसे गृह मंत्रालय को इसकी जानकारी मिली. यह जानते हुए भी कि तबलीगी सदस्य अपने साथी मुसलमान भाइयों को अपनी विचारधारा का बनाना चाहते हैं, केंद्र सरकार ने यह नहीं बताया कि मरकज में धार्मिक विमर्श में भाग लेने के अलावा विदेशी सदस्यों ने और क्या किया था. इसलिए यह साफ नहीं है कि इन लोगों ने वीजा शर्तों का उल्लंघन कैसे किया. उस रिलीज में कहा गया है कि 23 मार्च से राज्य प्राधिकरण और पुलिस ने निजामुद्दीन और आसपास के इलाकों सहित पूरी दिल्ली में कड़ाई से लॉकडाउन लगाया था जिसके बाद तबलीग का काम रुक गया है.
विदेशी नागरिकों के विभाग से निर्देश मिलने के एक दिन बाद आव्रजन ब्यूरो ने गृह मंत्रालय को जानकारी दी कि 960 विदेशी तबलीगी जमात की गतिविधियों में शामिल होते पाए गए हैं. लेकिन फिर भी इस जानकारी में तबलीगी गतिविधि क्या है इसकी व्याख्या नहीं थी और यह भी नहीं बताया गया था कि ब्यूरो ने किस आधार पर इन गतिविधियों को तबलीगी गतिविधि कहा है.
2 अप्रैल को गृह मंत्रालय ने दो ज्ञापन जारी किए. एक ज्ञापन दिल्ली पुलिस कमिश्नर को और दूसरा इमीग्रेशन (आव्रजन) ब्यूरो को. दोनों ज्ञापन का शीर्षक था, “टूरिस्ट वीजा पर तबलीगी गतिविधियों में भाग लेने वाले विदेशी नागरिकों के खिलाफ कार्यवाही”. इमीग्रेशन ब्यूरो के ज्ञापन में कहा गया था कि जारी कोविड-19 लोक स्वास्थ्य आपातकाल में तबलीगियों की गतिविधियों के कारण बहुत से लोगों की जान खतरे में आ गई है. ज्ञापन में आगे कहा गया है कि उन लोगों ने वीजा मैन्युअल 2019 और विदेशी नागरिक कानून के प्रावधानों का उल्लंघन किया है परंतु यह नहीं बताया गया है कि प्रावधानों का उल्लंघन किस प्रकार हुआ है. ज्ञापन में आगे लिखा है, “960 विदेशी नागरिकों का वीजा तत्काल प्रभाव से रद्द किए जाने का फैसला किया गया है.”
मंत्रालय के हलफनामे के अनुसार 8 अप्रैल को आव्रजन ब्यूरो ने पुष्टि की थी कि उसने 985 वीजा रद्द किए हैं और 1507 तबलीगी सदस्यों के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी किए हैं. 1 जुलाई तक गृह मंत्रालय 2679 वीजा रद्द कर चुका था. गृह मंत्रालय ने लिखा है कि उसने वीजा केस बाई केस आधार पर रद्द किए हैं. याचिकाकर्ताओं ने रिज्वाइंडर दायर किया है जिसमें उन्होंने इस दावे को चुनौती दी है. गृह मंत्रालय के 2 अप्रैल के निर्देश का, जिसमें 960 वीजा रद्द करने का निर्देश था, उल्लेख करते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि सूची मिलने के एक दिन के अंदर इन वीजाओं को एकसाथ खारिज किया गया है. याचिकाकर्ता लिखते हैं :
उपरोक्त बातों और भारतीय संघ द्वारा घटनाओं के विवरण से यह बात गलत साबित होती है कि वीजाओं को केस बाई केस आधार पर रद्द किया गया है क्योंकि 31 मार्च 2020 और 2 अप्रैल 2020 के बीच ऐसा कर पाना असंभव लगता है. इस कोर्ट को विश्वास दिलाया जा रहा है कि 31 मार्च से 2 अप्रैल के बीच 960 विदेशी नागरिकों की सूची तैयार कर आव्रजन ब्यूरो ने गृह मंत्रालय के विदेशी नागरिक विभाग को सौंप दी और 1 अप्रैल को यानी एक दिन के अंदर ही वीजा उल्लंघन करने के आरोपी प्रत्येक व्यक्ति के मामले की जांच कर ली गई. स्पष्ट है कि 960 विदेशी नागरिकों का वीजा 2 अप्रैल को ही कैंसिल कर दिया गया था.
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि मंत्रालय ने 2679 लोगों का वीजा केस बाई केस आधार पर रद्द करने के समर्थन में एक भी आदेश नहीं दिखाया. 2 अप्रैल के ज्ञापन में गृह मंत्रालय ने कहा है कि उसने इन सभी विदेशी नागरिकों के भारत में प्रवेश को काली सूची में डाल दिया है. मंत्रालय ने अपने हलफनामे में इस फैसले का यह कहकर बचाव किया है कि पर्यटन वीजा में भारत आकर तबलीगी गतिविधि कर वीजा शर्तों का उल्लंघन करने वाले विदेशियों के संदर्भ में निर्देश जारी किए गए हैं. ऐसा कहने के बावजूद मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि वे कौन सी तबलीगी गतिविधियां हैं जिन पर रोक थी लेकिन विदेशियों ने की.
मंत्रालय ने बार-बार दावा किया है कि ये लोग टूरिस्ट वीजा पर आए थे. जबकि प्रेस रिलीज में कहा गया है कि विदेशी तबलीगी अक्सर ही पर्यटन वीजा पर भारत आते हैं, फिर भी मंत्रालय ने यह नहीं बताया है कि पूर्व में विदेशी तबलीगियों पर इस तरह की सख्ती क्यों नहीं दिखाई गई. मरकज में शामिल होने के अलावा जो काम पिछले सालों में तबलीगी करते रहे हैं, उनसे अलग इस बार इन्होंने ऐसा क्या काम किया है कि इनके खिलाफ इस तरह इस सख्त कार्यवाही की गई.
गृह मंत्रालय ने पुलिस को जो ज्ञापन दिया है उसे पढ़ने पर भी मंत्रालय की कार्रवाई की कमजोरी प्रकट होती है. इस ज्ञापन में लिखा है कि विदेशी तबलीगियों ने नई दिल्ली के निजामुद्दीन के मरकज परिसर में तबलीगी गतिविधियां कीं. इसका मतलब है कि मंत्रालय यह दावा नहीं कर रहा है कि विदेशियों ने शहर में या देश में धर्म परिवर्तन संबंधी अपराध किया है अथवा वीजा प्रतिबंधों का उल्लंघन किया है. मंत्रालय की उपरोक्त बात से लगता है कि वह मानता है कि विदेशियों ने मरकज परिसर के अंदर ही वीजा शर्तों का उल्लंघन किया है. लेकिन ऐसा करना वीजा शर्तों का उल्लंघन नहीं है क्योंकि वीजा मैनुअल में साफ दर्शाया गया है कि धार्मिक प्रवचन सुनने जैसी सामान्य धार्मिक गतिविधियों में शामिल होना और धार्मिक स्थानों का भ्रमण करना प्रतिबंधित नहीं है.
गृह मंत्रालय की कार्रवाइयों और उसके हलफनामे से लगता है कि उसने तबलीगी जमात के सदस्यों को जानबूझ कर परेशान किया है. अपने 2 अप्रैल के ज्ञापन में मंत्रालय ने कहा है, “स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए डिपोर्ट या देश निकाला करने की कार्यवाही की जानी चाहिए.” लेकिन हलफनामे में बताया गया है कि 20 दिन बाद गृह मंत्रालय ने मुख्य सचिवों, सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों, दिल्ली के पुलिस कमिश्नर और आव्रजन ब्यूरो को क्वारंटीन के बाद भी तबलीगियों को देश निकाला करने से रोके रखा.
गृह मंत्रालय ने हलफनामे के साथ जो दस्तावेज जमा किए हैं उनसे पता चलता है कि उपरोक्त निर्देश पूर्व में भारत सरकार की प्रतिक्रिया के विपरीत है. अपने उस दावे को पुख्ता करने के लिए कि ऐतिहासिक रूप से ही भारत सरकार ने तबलीगी काम पर रोक लगाई है, गृह मंत्रालय ने 1996 और 1911 में जारी परिपत्रों को हलफनामे के साथ जमा किया है. लेकिन इन दोनों ही परिपत्रों में लिखा है कि वीजा प्रतिबंधों का उल्लंघन करने पर लोगों को तुरंत डिपोर्ट किया जाना चाहिए. गृह मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि उसने विदेशियों को डिपोर्ट करने की पूर्व की नीति का पालन क्यों नहीं किया.
याचिकाकर्ताओं ने अपने रिज्वाइंडर में बताया है कि वीजा मैन्युअल में तबलीगी कार्य से होने वाले वीजा उल्लंघन के लिए केवल आर्थिक जुर्माने का प्रावधान है. रिज्वाइंडर के साथ आर्थिक जुर्माने की सूची भी दर्ज की गई है जिसमें बताया गया है कि तबलीगी गतिविधियों में शामिल होने का जुर्माना 500 डॉलर है. यह स्पष्ट नहीं है कि भारत सरकार ने विदेशी तबलीगियों पर इस प्रावधान में उल्लेखित जुर्माना क्यों नहीं लगाया.
जुर्माना ना लगाकर सरकार ने उन पर आपराधिक मुकदमा चलाया और मंत्रालय के हलफनामे से पता चलता है कि विदेशियों के अपराधों के बारे में मंत्रालय खुद ही स्पष्ट नहीं था. विदेशी नागरिक कानून और वीजा मैनुअल के प्रावधानों का उल्लंघन इन लोगों ने कैसे किया है यह बताने में असफल रहने के अलावा मंत्रालय ने लिखा है कि इन सदस्यों ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून (2005) और महामारी रोग कानून एवं अन्य कारणों का भी शायद उलंघन किया है. मंत्रालय ने इस बात की विवेचना नहीं की है कि इन कानूनों के किन प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है.
परिणाम स्वरूप विदेशी तबलीगियों के खिलाफ 11 राज्यों में 205 एफआईआर दर्ज हुईं. मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा है कि हाल तलक किसी भी विदेशी तबलीगी जमात सदस्य को डिपोर्ट नहीं किया गया है क्योंकि उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा चल रहा है. याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कहा है कि यह सुनिश्चित किए बिना कि व्यक्ति ने धार्मिक प्रवचन में भाग लिया है या धर्म परिवर्तन करने और प्रतिबंधित गतिविधियों में, मंत्रालय ने विदेशी तबलीगी सदस्यों को गिरफ्तार करने का निर्देश जारी कर दिया.
फिलहाल यह मामला चल रहा है और विदेशी तबलीगी सदस्य परेशानी में फंसे हुए हैं. केवल 227 विदेशी तबलीगी ही वीजा रद्द होने और काली सूची में डाले जाने से पहले भारत छोड़ पाए हैं. 31 मार्च तक करीब 955 विदेशी तबलीगी सदस्य कोविड-19 प्रोटोकॉल के तहत संस्थानिक क्वारंटीन केंद्रों में हैं लेकिन 14 दिन के मानक क्वारंटीन के बाद भी वे मई के आखिरी तक क्वारंटीन केंद्रों में रह रहे थे जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने उन पर लगे आरोपों के मद्देनजर उनकी हिरासत मांगी. फिर तबलीगी जमात ने अपने सदस्यों की मदद करते हुए प्रस्ताव दिया कि हिरासत की जगह इन सदस्यों को समुदाय की निगरानी में आठ अलग-अलग सुविधा केंद्रों में रखने दिया जाए. 28 मई को दिल्ली हाई कोर्ट ने 955 विदेशी सदस्यों को सुविधा केंद्रों में शिफ्ट करने की मंजूरी इस शर्त पर दी कि अन्य केंद्रों में इन सदस्यों को दिल्ली पुलिस की अनुमति के बिना शिफ्ट नहीं किया जा सकता.
फिलहाल कई विदेशी तबलीगी सदस्य क्वारंटीन केंद्रों में ही हैं. दिल्ली पुलिस ने अदालत से कहा है कि उसने किसी भी तबलीगी सदस्य को गिरफ्तार नहीं किया है लेकिन मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में विदेशी तबलीगी सदस्यों को गिरफ्तार किए जाने की खबरें प्रकाश में आई हैं. गृह मंत्रालय ने क्वारंटीन या हिरासत के तबलीगी सदस्यों की संख्या नहीं बताई है. 10 जुलाई को प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने खबर दी थी कि पुलिस ने तब तक 59 विदेशी तबलीगी सदस्यों के खिलाफ आरोपपत्र या चार्जशीट दायर कर दी है. आरोपपत्रों में विदेशी नागरिक कानून के तहत अपराधों के अतिरिक्त विदेशी तबलीगी सदस्यों पर नौकरशाहों के आदेशों को ना मानने, लापरवाही और हानिकारक कृत्य द्वारा रोग फैलाने और क्वारंटीन नियमों का उल्लंघन करने के आरोप हैं.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, 10 जुलाई तक दिल्ली की अदालत ने 371 विदेशी तबलीगी सदस्यों को जमानत दे दी थी. इसके पांच दिन बाद इंडोनेशिया के 200 सदस्यों को जमानत पर रिहा कर दिया गया लेकिन सभी विदेशी तबलीगी सदस्य जमानत नहीं ले पाए हैं और जमानत के बावजूद स्वदेश लौट जाने की अनुमति नहीं है.
चार महीनों से जबरन भारत में रुके कई तबलीगियों ने देश लौट पाने की खातिर सरकार से प्ली बारगेनिंग या दलील सौदेबजी कर ली है. आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत सात साल से कम की सजा अवधि वाले अपराधों में सजा कम करने के बदले में अपराध स्वीकार कर लेने की इजाजत है. जिन तबलीगी सदस्यों ने यह विकल्प अपनाया उन्हें घर लौटने दिया गया. समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, 10 जुलाई को दिल्ली की एक अदालत ने 42 मलेशियाई और 11 सऊदी अरब तबलीगी सदस्यों को क्रमशः 7000 रुपए और 10000 रुपए जुर्माना भर कर देश लौट जाने दिया. रिपोर्ट के अनुसार विदेशी नागरिकों ने हल्के आरोप मान लिए, जो तबलीगी जमात आयोजनों में शामिल होने वाले वीजा नियमों के उल्लंघन से संबंधित थे. 17 जुलाई को 34 थाईलैंड के तबलीगी सदस्यों को मरकज से संबंधित आरोपों को स्वीकार करने के बाद छोड़ दिया गया. 5 दिन बाद 98 इंडोनेशियाई सदस्यों ने दलील सौदेबजी कर ली और प्रत्येक ने 5000 रुपए जुर्माना भर दिया. लेकिन करीब 44 विदेशी नागरिकों ने प्ली बारगेनिंग नहीं की और कानूनी लड़ाई का विकल्प अपनाया है. न्यूयॉर्क के अहमद अली ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “मैंने क्या अपराध किया है? मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा और इसलिए मैं ऐसा अमरीकी नागरिक नहीं कहलाना चाहता जिसने विदेशी जमीन का कानून तोड़ा है.”
27 अगस्त की प्रेस वार्ता में विदेश मंत्रालय ने स्वीकार किया कि तबलीगी सदस्यों के लिए जारी लुकआउट नोटिस हटा लिए गए हैं और उन्हें देश छोड़ने की इजाजत दे दी गई है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने बताया, “24 अगस्त तक 1095 लुकआउट नोटिस हटा लिए गए थे और 630 विदेशी तबलीगी जमात सदस्यों ने भारत छोड़ दिया था.”
बॉम्बे हाई कोर्ट में मार्च में आइवरी कोस्ट, घाना, तंजानिया, जिबूटी और इंडोनेशिया के मरकज में शामिल होने वाले तबलीगी सदस्यों से संबंधित तीन अलग-अलग याचिकाएं दर्ज हुईं. इन याचिकाकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता, महामारी रोग कानून और विदेशी नागरिक कानून के अपराधों के लिए दर्ज किया गया है.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है, “एक राजनीतिक सरकार महामारी या आपदा के समय बलि का बकरा तलाश रही थी और परिस्थिति से लगता है कि इस बात की संभावना है कि इन विदेशी नागरिकों को बलि का बकरा बनाया गया हो. उपरोक्त परिस्थितियों और भारत में संक्रमण के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए थी.” फैसले में केंद्र सरकार की भूमिका के बारे में कहा गया है, “कहा जा सकता है कि शुरुआत में पुलिस का इरादा विदेशियों के पीछे पड़ने का नहीं था लेकिन केंद्र सरकार से निर्देश मिलने के बाद महाराष्ट्र पुलिस ने इन अपराधों में एफआईआर और मामला दर्ज किया है.”
फैसले में कहा गया है कि वीजा मैनुअल के अनुसार विदेशी नागरिकों पर धार्मिक स्थलों में जाने और सामान्य धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं है. मरकज का उल्लेख करते हुए फैसले में कहा गया है, “कई सालों से विभिन्न देशों के मुसलमान भारत आ रहे हैं. ये लोग पर्यटन वीजा पर भारत आते हैं हैं. इनके भारत की मस्जिदों में घूमने और धार्मिक प्रवचनों में भाग लेने पर कोई प्रतिबंध नहीं है. तबलीगी जमात की गतिविधियां केवल तभी रुकीं जब लॉकडाउन की घोषणा हुई और घोषणा तक दिल्ली में तबलीगी गतिविधियां जारी थीं. इस बात का कोई रिकार्ड नहीं है कि इन गतिविधियों पर सरकार ने स्थाई रूप से प्रतिबंध लगाया है.
बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के मद्देनजर कोविड-19 महामारी के दौरान केंद्र सरकार द्वारा तबलीगी जमात के सदस्यों को सताए जाने पर गौर किया जाना चाहिए. सबसे पहले, गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में कोरोनावायरस फैलाने के लिए तबलीगी जमात को कसूरवार बताया जबकि इन सदस्यों को क्वारंटीन केंद्रों में रखने के बावजूद कोरोनावायरस के मामलों में लगातार तेज बढ़ोतरी होती रही. इसके बाद गृह मंत्रालय ने विदेशी तबलीगी जमात सदस्यों के वीजा रद्द कर दिए और बिना यह बताए कि उन्होंने वीजा शर्तों का उल्लंघन किस प्रकार किया है उन्हें ब्लैकलिस्टेड कर दिया. लेकिन उन्हें डिपोर्ट नहीं किया और कानून के तहत जुर्माना नहीं लगाया बल्कि गृह मंत्रालय ने उनके अपराधों की पहचान किए बिना उन पर आपराधिक मुकदमा शुरू कर दिया. अंततः परेशान होकर तबलीगी जमात सदस्यों ने घर लौट पाने के लिए ऐसे आरोप स्वीकार कर लिए जिन्हें केंद्र सरकार तक स्थापित नहीं कर पाई थी.