उमर खालिद के खिलाफ बेदम मामला विरोधियों के खिलाफ सरकार की रणनीति की नजीर

जेएनयू के पूर्व छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता उमर खालिद सांप्रदायिक हिंसा, नागरिकता संशोधन अधिनियम और नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर के विरोध में प्रदर्शन करते हुए. मनीष राजपूत/सोपा इमेजेस/लाइट्रोकेट/गैटी इमेजेस

24 मार्च को नई दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत ने उमर खालिद की जमानत अर्जी खारिज कर दी. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने जमानत खारिज करने के आदेश में लिखा है कि वह बचाव पक्ष के वकील त्रिदीप पाइस से सहमत हैं कि उमर खालिद के खिलाफ “प्रोटेक्टेड (संरक्षित) गवाहों के बयानों में कई विसंगतियां हैं" फिर भी “आरोप-पत्र और पेश दस्तावेजों के परिशीलन पर..." उनका मत है कि "उमर खालिद के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं." न्यायाधीश रावत आगे कहते हैं साजिश की किसी भी घटना में “गतिविधियों को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता है. कभी-कभी किसी खास काम या गतिविधि को अलग-थलग करके देखने से कोई साजिश नुकसान न पहुंचाने वाली लग सकती है लेकिन अगर यह किसी साजिश की कड़ी का हिस्सा हो तो सभी घटनाओं को एक साथ देखा जाना चाहिए.”

उमर और कई अन्य लोगों पर फरवरी 2020 में दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा की कथित साजिश का आरोप है. सरकारी अनुमानों के मुताबिक, उस हिंसा में 33 लोगों की मौत हुई है और 500 से अधिक लोग घायल हुए हैं. दिल्ली पुलिस ने उमर को सितंबर 2020 में एफआईआर नंबर 59 के तहत गिरफ्तार किया और उस पर आतंकवाद सहित गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम की कई धाराओं के साथ ही हत्या, दंगा, देशद्रोह, साजिश और सांप्रदायिक दुश्मनी को बढ़ावा देने के संबंध में भारतीय दंड संहिता के अनेक प्रावधानों के तहत आरोप दायर किए हैं. उमर को औपचारिक रूप से अक्टूबर 2020 में एफआईआर नंबर 101 के तहत गिरफ्तार किया गया था लेकिन इस मामले में अप्रैल 2021 में उसे जमानत दे दी गई थी.

उमर को तब तक जेल में रहना होगा जब तक कि एफआईआर 59 वाली खारिज की गई जमानत याचिका को उच्च न्यायालय उलट नहीं देती क्योंकि, गौर कीजिए, एक न्यायाधीश को लगता है कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के "बेतुके बयान" और अभियुक्तों द्वारा किए गए "अहानिकर कार्य" प्रथम दृष्टया बेगुनाही साबित करने के लिए काफी नहीं हैं. अभियोजन पक्ष की यह धारणा कि कोई साजिश हुई है जो आरोपी के उन अलग-अलग कामों को एक साथ जोड़ने पर आधारित है, जो साजिश न होने की स्थिति में अहानिकर होते. दूसरे शब्दों में यह कि यह साजिश की एक धारणा है जो एक "अहानिकर" गतिविधि को जब दूसरी गतिविधियों (जो दूसरों ने की है) के साथ उसे साजिश के सबूत के रूप में प्रस्तुत करती है. यह एक ऐसा दावा है कि कोई कहे कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उसने ऐसा कहा है.

उमर और अन्य लोगों ने 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ आंदोलन में अलग-अलग क्षमताओं और भूमिका में भाग लिया था. इस आंदोलन ने 2019–2020 की सर्दियों में देश व्यापी विरोध का रूप अखतियार कर लिया. राज्य ने मामला बनाने की कोशिश की है कि उमर जैसे सीएए विरोधी आंदोलन में भाग लेने वाले लोग गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल थे, जैसा कि सुनवाई से पता चला है. इन दावों की पुष्टि करने वाले सबूत बहुत कम हैं. ऐसा करने में पुलिस ने सीएए समर्थकों, दक्षिणपंथी समूहों और यहां तक कि सरकार के सदस्यों द्वारा हिंसा और संभावित भड़कावों के ज्यादा सीधे संबंधों को नजरअंदाज कर दिया है जिन्होंने खुलेआम हिंसा का आह्वान किया था लेकिन जिन्हें या तो आरोपी नहीं बनाया गया या जल्दी ही जमानत दे दी गई.

आठ महीने से ज्यादा समय तक चली जमानत की सुनवाई में, अभियोजन पक्ष ने बैठकों, संदेशों, भाषणों, आमने-सामने की बैठकों की रिपोर्ट, फोन पर बातचीत के सबूत और जांचकर्ताओं या मजिस्ट्रेट के समक्ष नामित और संरक्षित गवाहों की गवाही और मुख्य अभियुक्तों के डिस्क्लोजर बयान का हवाला दिया है. अभियोजन पक्ष इन घटनाओं और हिंसा के बीच कोई सीधा संबंध बनाने में विफल रहा है. मैंने ऑनलाइन अदालती कार्यवाही को फॉलो किया और अभियोजक की रणनीति को कमजोर और खतरनाक पाया. विभिन्न उदाहरणों में, अभियोजन पक्ष ने शब्दों के अर्थों को तोड़-मरोड़ कर या अभियुक्तों के कार्यों को उनके बहुत ही स्पष्ट संदर्भों से छांटकर मामला तैयार किया.

8 दिसंबर 2019 को उमर, एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवी शारजील इमाम, नेता और एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव, एक्टिविस्ट नदीम खान, जो यूनाइटेड अगेंस्ट हेट अभियान में सक्रिय हैं और सीएए विरोधी कार्यकर्ता ताहिरा दाऊद सहित लोगों का एक समूह दिल्ली के जंगपुरा में मिले. केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश किए जाने के कुछ दिनों बाद ऐसा हुआ था. समूह ने बिल का विरोध करने के तरीकों पर चर्चा करने और इसे पारित होने से रोकने के लिए मुलाकात की. विरोध का तरीका चक्का जाम हो या सड़क नाकाबंदी इस बात की चर्चा हुई. अभियोजक ने इस मुलाकात को कथित साजिश की पहली मुलाकात बताया. उसने दावा किया कि बैठक "गुप्त" थी. हालांकि, चार्जशीट में सबूत के बतौर अचानक ली गई एक तस्वीर भी नत्थी है जिसमें इमाम और यादव को चर्चा करते दिखाया गया है. जांचकर्ताओं को दिए अपने बयान में ताहिरा दाऊद से भी मिलने का जिक्र आया है.

अभियोजक ने यह भी मामला बनाने की कोशिश की कि चक्का जाम का संदर्भ हिंसा भड़काने के लिए किया गया. चक्का जाम भारत में सभी प्रकार की राजनीतिक लामबंदी के दौरान उपयोग की जाने वाली सामान्य रणनीति है. भारतीय जनता पार्टी जब विपक्ष में थी तो 2011 की गर्मियों में उसने पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ बड़े पैमाने पर चक्का जाम किया था और दिल्ली के ट्रफिक को पंगु बना दिया था. दो साल पहले ही 3 जनवरी 2020 को दिल्ली सरकार की शराब लाइसेंस नीति के खिलाफ बीजेपी ने एक व्यापक चक्का जाम का आयोजन किया था. दिसंबर 2020 में शुरू हुए और एक साल से ज्यादा समय तक चले किसान आंदोलन ने दिल्ली के चारों ओर चक्का कर दिया और सरकार को तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

नागरिकता संशोधन विधेयक 12 दिसंबर 2019 को कानून बना. चार्जशीट दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों के पहले विरोध प्रदर्शन के बाद 13 दिसंबर को हुई एक बैठक की बात करती है और आरोप लगाती है कि इस बैठक का इरादा जामिया और उसके आसपास हिंसा फैलाना था. 13 दिसंबर को इमाम ने विश्वविद्यालय में एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने विरोध के रूप में चक्का जाम के बारे में बात की लेकिन स्पष्ट किया कि इस तरह के व्यवधान से लोगों को चोट नहीं पहुंचनी चाहिए और संपत्ति को नुकसान नहीं होना चाहिए. अपने भाषण में, जिसे आरोपपत्र शब्दशः दोहराता है, इमाम ने कहा, “जहां तक संवैधानिकता का सवाल है हम संवैधानिकता पर विश्वास करते हैं और संविधान और संवैधानिकता दो अलग-अलग चीजें हैं. इस बात को गांठ बांध लें. संवैधानिकता का मतलब है कि हम संपत्ति नहीं जलाएंगे, ठीक है? हम लोगों को नहीं मारेंगे, ठीक है? लेकिन भाइयो, क्या हम चीजों को बाधित नहीं कर सकते? व्यवधान पैदा करना कोई कठिन कार्य नहीं है, है न? हम ऐसा कर सकें इसके लिए हमें संगठित होना होगा.”

15 दिसंबर की दोपहर और शाम को दिल्ली पुलिस बिना इजाजत जामिया कैंपस में घुस आई. बाद में उसने दावा किया कि वह सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों का पीछा कर रह थी जो परिसर से जंतर-मंतर तक मार्च करने की कोशिश कर रहे थे. पुलिस ने पुस्तकालय में आंसू गैस के गोले दागे, छात्रों की पिटाई की और बाद में उन्हें हाथ उठा कर परिसर से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया. उसी शाम शाहीन बाग में मुस्लिम औरतों ने धरना शुरू कर दिया और सीएए और एनआरसी के खिलाफ सबसे बड़े, सबसे लंबे, सबसे असरदार और सबसे शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया.

पूरक चार्जशीट 27 दिसंबर को शाहीन बाग के पास एक अपार्टमेंट के कमरे में एक और बैठक का हवाला देती है. हालांकि इस बैठक में उमर शामिल नहीं था लेकिन यह अभियोजन पक्ष की कहानी के लिए जरूरी है. अभियोजन पक्ष का आरोप है कि इस मुलाकात के दौरान इमाम रणनीतिक रूप से शाहीन बाग से हट गए. चार्जशीट के अनुसार ऐसा आंदोलन को "झूठ-मूठ में धर्मनिरपेक्ष" दिखाने के लिए किया गया. यह आरोप लगाया जाता है कि "शाहीन बाग से हटने के बाद" और आज तक शारजील इमाम न केवल उत्तर भारत के हिंदी गढ़ के शहरों और कस्बों में सांप्रदायिक और देशद्रोही जहर उगल रहे थे बल्कि विरोध स्थलों का भी दौरा कर रहे थे, वह लोगों को जुटा रहे थे और दिल्ली भर में अपने राष्ट्र विरोधी सड़ांध के प्रसार का सुवरविजन कर रहे थे.”

इमाम लगातार आंदोलन के वाम विचार वाली धर्मनिरपेक्ष रणनीतियों की आलोचना कर रहे थे जिसके चलते उमर उनसे अलग हो गए थे क्योंकि उमर वाम जनवादी धर्मनिपेक्ष परंपरा की मजबूत समावेशी आंदोलन का पक्षधर था. जो बात तब तक साफ हो चुकी थी. विरोध प्रदर्शनों में उमर की कोई भूमिका नहीं रह गई थी क्योंकि उसे इस बैठक के तीन दिन बाद ही गिरफ्तार कर लिया गया था. तब से वह जेल में है. दिल्ली हिंसा इसके दो महीने बाद हुई लेकिन अभियोजन पक्ष उमर को सह-साजिशकर्ता बताने में लगा है. वह उमर के इमाम के विचार से दूर हो जाने को साजिश से हटना न मान कर साजिश में शामिल होने के रूप में परिभाषित कर रहा है.

चार्जशीट में कुछ और बैठकों का जिक्र किया गया है जिसमें 8 जनवरी 2020 की एक बैठक भी है. पुलिस ने आरोप लगाया कि 8 जनवरी की बैठक में कथित साजिशकर्ताओं ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान व्यवधान पैदा करने की साजिश रची थी. चार्जशीट सुझाती है कि चक्का जाम केवल सुनियोजित दंगों जैसे ज्यादा भयावह कामों की प्रस्तावना थी. हालांकि ट्रम्प की भारत यात्रा की खबरें 14 जनवरी को सार्वजनिक हुई थीं. हालांकि इन समाचार रिपोर्टों में विसंगति की ओर इशारा करने के बाद पुलिस ने मामले में दायर एक तीसरे आरोपपत्र में अपनी रणनीति बदल दी. आरोप पत्र बैठक को एक षडयंत्रकारी चर्चा तो बताया गया लेकिन अब सिर्फ सामान्य अर्थों में. अभियोजन पक्ष ने एक संरक्षित गवाह पेश किया जिसने बैठक के बारे में दो बयान दिए. गवाह ने दावा किया कि उमर, कलेक्टिव यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के संस्थापक सदस्यों में से एक खालिद सैफी और आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन 8 जनवरी को शाहीन बाग के पास एक इमारत में मिले. गवाह ने पुलिस को दो बयान दिए. मई 2020 में अपने पहले बयान में गवाह ने कहा कि वह तो बस बाहर खड़ा था जब उसने तीन लोगों को अंदर जाते देखा. सितंबर 2020 में दिए गए बाद के बयान में उसने दावा किया कि वह इमारत में घुसा और ट्रम्प के भ्रमण के दौरान एक बड़ा विस्फोट करने की योजना बनाते सुना. गौरतलब है कि इस भ्रमण की घोषणा अभी हुई भी नहीं थी. उमर को एफआईआर 101 के तहत जमानत देने के आदेश में दोनों बयानों का हवाला दिया गया है.

शायद अभियोजन पक्ष की ओर से कल्पना की सबसे चमकदार उड़ान 17 फरवरी 2020 को अमरावती में उमर द्वारा दिए गए भाषण की व्याख्या है. उस भाषण में उमर ने शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन के एक संक्षिप्त इतिहास को रेखांकित किया. इसके बाद उन्होंने नागरिक प्रतिरोध के एक नए दर्शन को साफ-साफ पेश किया जिसकी रूपरेखा बिना नेता के, औरतों द्वारा चलाए जा रहे, अहिंसक, शांति के इरादे वाले, लोकतांत्रिक भागीदारी और संवाद और चक्का जाम की अवधारणा से बनती है. ट्रम्प के आने पर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रदर्शनकारी क्या कर सकते हैं इसका जिक्र करते हुए, उसने अहिंसक विरोध की नैतिकता की बात की. अपने भाषण के एक हिस्से में उसने कहा, “हम हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं देंगे. हम नफरत का जवाब नफरत से नहीं देंगे. अगर वे नफरत फैलाते हैं, तो हम प्यार से इसका जवाब देंगे. अगर वे हमें लाठियों से पीटते हैं, तो हम तिरंगा पकड़े रहेंगे. अगर वे गोलियां चलाते हैं, तो हम संविधान को थामेंगे. जेल जाएंगे तो हम गाते हुए जेल जाएंगे कि सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा.”

अभियोजन पक्ष ने यह कहते हुए इस भाषण की व्याख्या की कि उमर वास्तव में ट्रम्प की यात्रा के दौरान दंगे भड़का रहा था. ऐसा करने के लिए, उसने भाषण का एक अंश प्रस्तुत किया जिसमें उमर को यह कहते हुए दिखाया गया था, "... 24 (फरवरी के) को जब डोनाल्ड ट्रम्प भारत आएंगे, तो हम बताएंगे कि भारत के प्रधानमंत्री और भारत सरकार देश को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं. वे महात्मा गांधी के मूल्यों को नष्ट कर रहे हैं और भारत के लोग शासकों के खिलाफ लड़ रहे हैं. अगर शासक भारत को बांटना चाहते हैं तो भारत के लोग देश को एकजुट करने की दिशा में काम करने के लिए तैयार हैं. हम सड़कों पर उतरेंगे. क्या आप लोग बाहर आएंगे.” जैसा कि उमर के वकीलों ने बताया है कि अभियोजन पक्ष ने यह वीडियो न्यूज चैनल रिपब्लिक टीवी से प्राप्त किया था जिसने खुद इसे बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय के ट्विटर फीड से उठाया और चलाया था. मालवीय ने उस क्लिप का इस्तेमाल किया था जिसे संदर्भ से काटकर संपादित किया गया था और यह कहते हुए ट्वीट किया कि “पहले से ही देशद्रोह के आरोपों का सामना कर रहे उमर खालिद ने 17 फरवरी को अमरावती में एक भाषण दिया जहां उसने मुस्लिम हजूम को 24 तारीख को ट्रंप के भारत आने पर भारी संख्या में सड़कों पर आने का आह्वान किया था. क्या दिल्ली में हिंसा की योजना टुकडे-टुकडे गैंग ने हफ्तों पहले बनाई थी?” अभियोजन पक्ष अगर पूरे भाषण को सबूत के तौर पर पेश करता तो इस तरह का मामला नहीं बना पाता.

हिंसा के दौरान उमर ने शांति की प्रार्थना वाला एक वीडियो फॉर्वर्ड कि था, जिसे दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिल्ली प्रोटेस्ट सॉलिडेरिटी ग्रुप के एक व्हाट्सएप ग्रुप में भेजा था. उस ग्रुप को फिल्म निर्माता राहुल रॉय ने बनाया था और उसमें सीएए का विरोध करने वाले कार्यकर्ता और जो सीएए और एनआरसी के खिलाफ अखिल भारतीय विरोध का समर्थन करते थे, ऐसे लोग थे. उमर उस समय दिल्ली में नहीं था. अभियोजक ने सुनवाई में अनुमान लगाया कि पुलिस अधिकारी ने उमर को यह संदेश "जांच की पैंतरेबाजी" के तहत यह देखने के लिए में भेजा होगा कि क्या वह इसे आगे भेजेगा या नहीं. उन्होंने तर्क दिया कि इससे साबित होता है कि हिंसा के पीछे वास्तव में उमर का "छिपा हाथ" था.

मीडिया के कुछ वर्ग अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिंग में व्यस्त हैं, यहां तक कि जमानत की सुनवाई के इस प्रारंभिक चरण में भी, लगभग मानो वे खुद ही मुकदमा चला रहे हैं. कुछ समाचार रिपोर्टों ने अभियोजक के तर्कों को फरवरी 2020 में तबाही मचाने के मुख्य साजिशकर्ता के रूप में उमर के अपराध के अभेद्य सबूत के रूप में पेश किया है. पिंजरा तोड़ की कार्यकर्ता नताशा नरवाल और देवांगना कलिता के वकील ने अदालत को बताया कि आरोपपत्र को बचाव पक्ष के साथ साझा करने से पहले ही जांचकर्ता इसे मीडिया को लीक कर रहे थे. उमर की जमानत की सुनवाई के दौरान लॉ बीट नामक एक दक्षिणपंथी कानूनी समाचार वेबसाइट ने अभियोजक द्वारा प्रस्तुत व्हाट्सएप चैट की स्क्रीन ग्रैब ट्वीट किए जबकि सुनवाई चल रही थी. इन व्हाट्सएप चैट में निजी जानकारी थी जैसे कि उन व्यक्तियों के फोन नंबर जो आरोपी भी नहीं थे. ये स्क्रीन ग्रैब पूरे एक दिन तक दिखाए जाते रहे जब तक कि बचाव पक्ष के एक वरिष्ठ वकील ने न्यायाधीश को अगले दिन एक आदेश पारित करने के लिए नहीं कहा जिससे प्रेस को सोशल मीडिया पर अनुचित जानकारी प्रकाशित करने से रोका जाए. लेकिन जज के आदेश के बावजूद दक्षिणपंथी यूट्यूब चैनल सत्य सनातन उसी प्रतिबंधित चैट के कुछ हिस्सों को प्रकाशित करने से नहीं रुका.

23 से 25 फरवरी के बीच उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा की उस उथल-पुथल ने हममें से कई लोगों को, जो दिल्ली को अपना घर कहते हैं, झकझोर कर रख दिया. 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद से राष्ट्रीय राजधानी में हिंसा का यह सबसे बड़ा मामला था. इससे भी अधिक परेशान करने वाली बात यह थी कि इन घटनाओं के बाद दिल्ली सहित पूरे भारत के हाल के इतिहास में सबसे अधिक लोगों को पुलिस द्वारा पकड़ा गया. द डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिंसा के एक साल बाद तक 1753 लोगों को, जिनमें 820 हिंदू और 933 मुसलमान हैं, गिरफ्तार किया गया है और गिरफ्तार लोगों में से 557 लोगों को जमानत दी गई है. गिरफ्तार किए गए लोगों में राजनीतिक असंतुष्ट और बड़ी संख्या में आम मुस्लिम नागरिक हैं. पुलिस ने सूचना को संवेदनशील बताते हुए जमानत देने वाले सभी लोगों के नाम बताने से इनकार किया है. 8 जुलाई 2020 को दिल्ली की अपराध और आर्थिक अपराध शाखा के विशेष पुलिस आयुक्त प्रवीर रंजन ने फरवरी 2020 की हिंसा के सिलसिले में उत्तर पूर्वी दिल्ली के हिंदू युवकों से पूछताछ या उन्हें गिरफ्तार करते समय सावधानी बरतने की बात कहते हुए दिल्ली पुलिस के अधिकारियों और कर्मियों को एक पत्र भेजा था. स्क्रॉल डॉट इन में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि जमानत पर रिहा हुए कई हिंदू आरोपियों ने अप्रैल में होने वाले नगरपालिका चुनावों के लिए बीजेपी का टिकट भी पा लिया.

अभियोजन पक्ष ने उमर की जमानत के खिलाफ अपनी दलीलों में उसके हिंसा का मास्टरमाइंड होने के ना के बराबर सबूत दिए हैं. लेकिन अभियोजन की यह रणनीति महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि अभियोजक पक्ष न्यायाधीश को यह समझाने में कामयाब रहता है कि उमर की जमानत खारिज करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं, तो मामले के ट्रायल में उसे बस जमानत की सुनवाई वाली अपनी रणनीति का ही बचाव करना होगा. यह पूरा ट्रायल महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आतंकवाद और देशद्रोह के सभी मामलों और साथ ही असंतोष से निपटने के लिए राज्य की रणनीति की नजीर बन सकती है.