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“हमारी जिंदगानी और जो कुछ इसमें शामिल है, उसके आगे लेखन एक हारे हुए मकसद सा दिखाई दे सकता है. जुलाई 2014 के मध्य में सुबह तकरीबन 8.29 बजे ऐसा ही लग रहा था.'' ये शब्द हैं फिलिस्तीनी लेखिका अदानिया शिबली के. उन्होंने जून 2022 के उस पल को याद करते हुए ऐसा लिखा था, जब उन्हें इजरायली सुरक्षा बलों का एक चेतावनी भरा फोन आया था. "ऑन लर्निंग हाउ टू राइट अगेन" नामक निबंध में शिबली ने शब्दों की निरर्थकता पर अपने विचार रखे हैं. जिस वक्त इजरायली सेना ने रामल्ला पर बम गिराए, उन्होंने लिखा, "इस विकटता की तुच्छता के सामने, लेखन का पेशा यूं है गोया जिसकी आज की हमारी दुनिया में कोई जगह नहीं है." समय-समय पर लेखन को "छोड़ने" और फिलिस्तीन में बिरजिट विश्वविद्यालय में पढ़ाने के पीछे उनकी यही भावना है.
लेकिन शिक्षक, लेखक और साहित्य के प्रोफेसर रेफैट अलारेर ने लेखन की सीमाओं के बारे में इस तर्क के बिलकुल विपरीत बात की है. ‘गाजा राइट्स बैक’ संग्रह के अपने परिचय में- जिसकी आधी प्रविष्टियां उनके छात्रों द्वारा लिखी काल्पनिक कहानियां हैं जो गाजा पर इजराइल के 2008 के हमले पर हैं- उन्होंने लिखा, "यहां तक कि जब किरदार मर रहा होता है, तब भी उसकी अंतिम इच्छा होती है कि दूसरे उसकी 'कहानी बताएं,' जैसा हेमलेट ने कहा था और इस तरह कहानी बताना अपने आप में जीवन का एक कार्य बन जाता है.
अलारेर के शब्द आज के बारे में गंभीर भविष्यवाणी हैं. 6 दिसंबर 2023 को उनकी बहन के घर पर हुए इजरायली हवाई हमले में उनकी मौत हो गई. तब से, हाल ही में उनके द्वारा पोस्ट की गई एक कविता का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है जिसका अंत होता है इस पंक्ति से, "अगर मुझे मरना ही है, मेरी मौत को आशा लाने दो, इसे एक कहानी बनने दो." लेकिन वैश्विक स्तर पर एकजुटता का यह प्रदर्शन तब हुआ जब उनका शरीर मलबे के नीचे पड़ा था. गाजा पर इजराइल के 2014 के हमले के मद्देनजर, अलारेर ने “गाजा अनसाइलेंस्ड” नाम के संकलन का सह-संपादन किया था, जिसमें हवाई हमले में उनके भाई की हत्या के बारे में एक लेख है. उस परिचय में वह इस बात पर सवाल उठाते हैं कि लेखन कैसे सबसे हालिया हमले और साथ ही एक लंबे इतिहास और अनुभव को सामने ला सकता है. इसमें कहा गया है, ''हम आंकड़ों और संख्याओं से भरे पड़े हैं जो यह दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं कि इस छोटी सी जगह में जीवन कैसा है.''
"शब्द वह कैसे व्यक्त कर सकते हैं जो संख्याएं, चित्र, पात्र और ऑनलाइन पोस्ट नहीं बता सकते, चाहे कितनी भी मजबूती से लिखा गया हो?" वह लिखते हैं कि फिर भी फिलिस्तीन में जो हो रहा है उसे धुंधला करने के लिए भाषा को एक उपकरण के रूप में बार-बार इस्तेमाल किया गया है. "गाजा के हालात को मृदु भाषा में डुबा दिया गया है." यह एक ऐसा पहलू है जिस पर इस समय कई पत्रकार और लेखक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं. बीबीसी की एक हेडलाइन जो कहती है कि फिलिस्तीनी "मर गए" लेकिन इजरायली "मारे गए", से लेकर इजरायल के प्रधानमंत्री के हटाए गए ट्वीट, जिसमें वह जारी घटनाओं को "प्रकाश के बच्चों और अंधेरे के बच्चों के बीच संघर्ष" कह रहे थे, इस संघर्ष को लेकर इस्तेमाल की गई भाषा का स्तर पिछले दो महीनों में मीडिया कवरेज में स्पष्ट हुआ है. फिलिस्तीन के प्रकाशकों ने नवंबर 2023 के एक पत्र में यह भी कहा कि "सांस्कृतिक कर्मी के बतौर, जो शब्दों और भाषा के इस्तेमाल पर सचेत रहते हैं, हमने गौर किया है कि इस नरसंहार को जायज ठहराने के लिए इजरायली कब्जे वाले सैन्य नेताओं ने सर्वसाधारण जनता के लिए 'नर-पिशाच' जैसे शब्दों का उपयोग किया है.”