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ब्रसेल्स स्थित एक गैर सरकारी संगठन, ईयू डिसइन्फो लैब ने यूरोप में भारतीय हितधारकों द्वारा प्रधानमंत्री मोदी और भारत सरकार के हितों के लिए, बड़े स्तर फैलाए जा रहे दुष्प्रचार को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. दुष्प्रचार को फैलाने के इस अभियान के प्रमुख करता-धर्ताओं में भारत की सबसे बड़ी वीडियो समाचार एजेंसी एशियन न्यूज इंटरनेशनल और एक फर्जी व्यापार समूह, श्रीवास्तव समूह शामिल है. यह समूह भारत में तब सुर्खियों में आया जब 2019 के अंत में इसने यूरोपीय देशों के कुछ दक्षिणपंथी ससंद सदस्यों के लिए कश्मीर की यात्रा आयोजित की थी. "इंडियन क्रॉनिकल्स" शीर्षक वाली रिपोर्ट, एनजीओ द्वारा एक साल तक की गई जांच पर आधारित है, जिसे फ्रांस में लेस जर्स जैसे समाचार संगठनों द्वारा विशेष रूप से तैयार और प्रकाशित किया गया था. लेस जर्स ने झूठी खबरों के एक विशेषज्ञ के हवाले से इस अभियान को "एक नेटवर्क... जिसका दायरा और प्रभाव उतना ही है जितना संयुक्त राज्य अमेरिका में 2016 में अभियान के दौरान रूसी हस्तक्षेप के संचालन का था," के रूप में बताया.
डिसइन्फो लैब की रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे श्रीवास्तव समूह द्वारा चलाए जा रहे फर्जी मीडिया वेबसाइटों और एनजीओ ने यूरोपीय संसद के सदस्यों या एमईपी की पैरवी की, जो अक्सर पाकिस्तान या चीन के खिलाफ भारत समर्थक रुख अपनाने के लिए ओप-एड लिखते, जिसे तब समूह की डमी समाचार वेबसाइटों पर प्रकाशित किया जाता. तब एएनआई इन्हें यूरोपीय मीडिया की विश्वसनीय रिपोर्टों के रूप में पेश करता, जहां से भारतीय मीडिया और समाचार चैनल बिना सत्यता जांचे इसे लोगों के बीच फैलाते. लेस जर्स की रिपोर्ट सुझाती है कि पूरा ऑपरेशन भारतीय खुफिया सेवाओं से जुड़ा हो सकता था.
डिसइन्फोलैब के अनुसार, इस नेटवर्क ऐसी छवि गढ़ने में किया जाता कि मोदी सरकार भारत में जो कुछ कर रही है यूरोपीय यूनियन के नेता उसका समर्थन करते हैं. रिपोर्ट में दिया गया एक उदाहरण 2019 के आम चुनावों से पहले भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में की गई सर्जिकल स्ट्राइक से जुड़ा है. श्रीवास्तव समूह द्वारा संचालित एक डमी वेबसाइट ईपी टुडे ने यूरोपीय संसद के एक सदस्य रेज्जर्ड कजारनेकी का लिखा एक ओप-एड प्रकाशित किया जिसमें कजारनेकी ने स्ट्राइक का समर्थन किया था. एएनआई ने कजारनेकी की इस राय को एक अलग रूप देते हुए फिर से प्रस्तुत किया और इसे यूरोपीय यूनियन का मोदी को समर्थन करने की घोषणा करने वाला आधिकारिक बयान बताया. इसी दुष्प्रचार को इकोनॉमिक टाइम्स जैसे अन्य भारतीय अखबारों ने लाखों भारतीयों तक पहुंचाया.
डिसइन्फोलैब की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि 15 साल से श्रीवास्तव समूह से जुड़े संगठन संयुक्त राष्ट्र में मुख्य रूप से पाकिस्तान की अनदेखी करते हुए मानवाधिकार परिषद में प्रतिनिधित्व कर रहे थे.
रिपोर्ट के अनुसार, श्रीवास्तव समूह से जुड़े संगठनों ने मर चुके लोगों और खत्म हो चुके गैर-सरकारी संगठनों को ''फिर से जिंदा'' कर इस्तेमाल किया, यानी अपने लिए विश्वसनीयता बनाने के लिए उनके नाम और पहचान का इस्तेमाल किया.
डिसइन्फोलैब की ताजा रिपोर्ट 2019 की उस रिपोर्ट के आधार पर बनी है जिसमें ईपी के कामकाज को उजागर किया था. अक्टूबर 2019 में, यूरोपीय बाहरी एक्शन सर्विस के ईस्ट स्ट्रैट कॉम ने, फर्जी खबरों से निपटने के लिए यूरोपीय संघ के टास्क फोर्स को प्रभावी ढंग से बताया कि ईपी टुडे वेबसाइट रूस टुडे और वॉयस ऑफ अमेरिका से सीधे बड़ी मात्रा में समाचारों को पुनः प्रकाशित कर रही थी. जब डिसइन्फोलैब ने संगठन की जांच की, तो उसे "पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ भारत से संबंधित अन्य मामलों से जुड़े बड़ी संख्या में लेख और ऑप-एड" मिले. जांच ईपी टुडे को "श्रीवास्तव समूह के थिंक टैंक, एनजीओ और कंपनियों के एक बड़े नेटवर्क" से जोड़ती है. ईपी टुडे का आईपी पता श्रीवास्तव समूह से जुड़े एक गैर सरकारी संगठन द्वारा पंजीकृत किया गया था. दिसंबर 2019 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार उनकी जांच में लगभग साठ देशों में संचालित कम से कम 265 फर्जी समाचार वेबसाइटें शामिल थीं, जो सभी भारतीय हितों से जुड़ी थीं. इस रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद रिपोर्ट में नामित कई अन्य समाचार संगठनों की तरह ईपी टुडे वेबसाइट भी गायब हो गई.
डिसइन्फोलैब की 2020 में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि ईपी टुडे अब ईयू क्रॉनिकल के नाम से फिर आ गई है. 14 अगस्त 2020 को, क्रॉनिकल के ट्विटर अकाउंट ने फ्रांस के दक्षिणपंथी नेता थिएरी मैरियानी का एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने कहा, “मैं इस भारतीय स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी को अपनी विनम्र और हार्दिक शुभकामनाएं देना चाहता हूं. जब पूरी दुनिया कोरोना से लड़ रही है तब आपके ऊर्जस्वी नेतृत्व के तहत भारत को आगे बढ़ते हुए देखना एक खुशी की बात है.” क्रॉनिकल ने इसके बाद सेजर्नेकी और फुल्वियो मार्तूसिल्लो जैसे इटली के अन्य दक्षिणपंथी नेताओं के भी इसी तरह के संदेश पोस्ट किए. एक महीने बाद, ईयू क्रॉनिकल ने मारियानी का एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें उन्होंने मोदी को जन्मदिन की शुभकामना दी. डिसइन्फोलैब ने पाया कि ईयू क्रॉनिकल में प्रकाशित ज्यादातर चीजें या तो प्रेस विज्ञप्ति होती या रिपोर्टों की नकल, जो ऐसा लगता था कि मशीनी ढंग से लिखे गए थे. काफी कम समय तक चलने के बावजूद, इसने कजारनेकी और मार्तूसिल्लो के लिखित कई लेख प्रकाशित किए हैं. कश्मीर का दौरा करने वाले यूरोपीय संसद के सदस्यों में, मारियानी, कजरनेकी और मार्तूसिल्लो तीनों ही शामिल थे.
यह पूछे जाने पर कि क्या रिपोर्ट में एएनआई के श्रीवास्तव कंपनियों के साथ सीधे काम करने के सबूत हैं, डिसिन्फोलैब के निदेशक, अलेक्जेंड्रे अल्फिलिप्पे ने लिखा है कि इस पर "कोई टिप्पणी नहीं, लेकिन मैं आपको इन तथ्यों पर गौर करने के लिए जरूर कहूंगा कि 6 मई को ईयू क्रॉनिकल की स्थापना होती है. 11 मई को यूरोपीय संसद के तीन सदस्यों की तरफ से 3 ऑप-एड प्रकाशित होते हैं. 12 मई को, एएनआई एक स्वतंत्र मीडिया और विश्वसनीय स्रोत के रूप में ईयू क्रॉनिकल का उल्लेख किया."
लेस जर्स की रिपोर्ट बताती है कि किस तरह भारतीय विदेशी हितों का समर्थन करने के लिए भारतीय लॉबी को यूरोपीय नेता मिल जाते. सऊदी अरब में महिलाओं के अधिकारों पर ईपी टुडे में लेख लिखने के लिए लॉबीस्ट मैडी शर्मा ने यूरोपीय संसद की एक ब्रिटिश सदस्य, जूली वार्ड से संपर्क किया गया था. शर्मा कश्मीर यात्रा के आयोजकों में से एक थी. बाद में वार्ड ने यूरोपीय संसद में शर्मा द्वारा सुझाया गया एक सवाल उठाया. लेस जर्स के लिए रिपोर्ट करने वाले एंटोनी हसडे और निकोलस क्वेनेल को वार्ड ने बताया, "उसके मुझसे बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर लिखे एक कॉलम पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था. जिसने मुझे असहज कर दिया, ऐसा करना मुझे बेहद पक्षपाती लगा. भले ही मैं पाकिस्तानी सरकार की आलोचक हूं, लेकिन नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रवादी और सत्तावादी होने को लेकर मेरी चिंताएं बढ़ रही हैं." लेख में शर्मा का ईयू क्रॉनिकल से भी संबंध बताया गया.
लेस जर्स ने डिसिन्फोलैब के निदेशक अल्फिलिप्पे के हवाले से कहा कि ब्रुसेल्स में ऑप-एड आम बात थे. “यह एमईपीएस को अपने विचार पेश करने की अनुमति देता है और इसे प्रकाशित करने वाली मीडिया की विश्वसनीयता को पुष्ट करता है. उदाहरण के तौर पर, संसद में पूछने के लिए सवाल सुझाने से पहले लॉबिस्टों के लिए प्रतिनिधि का विश्वास जितने में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.” रिपोर्ट बताती है कि यह यूरोप में घुसने के लिए भारतीय एजेंटों की एक पसंदीदा रणनीति है.
लेस जर्स की रिपोर्ट बताती है कि श्रीवास्तव समूह के गलत जानकारी चलाने के पीछे भारतीय खुफिया सेवाएं हो सकती हैं. अपने इस दावे को सही ठहराने के लिए रिपोर्ट में विभिन्न उदाहरण भी दिए गए हैं. इसने पंजाब के एक मानवाधिकार संगठन, लॉयर्स फॉर ह्यूमन राइट्स इंटरनेशनल के उस बयान को उद्धृत किया है जो समूह के बोर्ड की सदस्य और समूह के संस्थापक की पत्नी प्रमिला श्रीवास्तव से संबंधित एक घटना पर दिया गया था.
लॉयर्स फॉर ह्यूमन राइट्स इंटरनेशनल ने बयान दिया था कि प्रमिला ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में पंजाब में शिशु रोग के बारे में बोलने के लिए एक बाल रोग विशेषज्ञ को धमकी दी थी. प्रमिला ने डॉक्टर की प्रस्तुति पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इससे भारत की एक झूठी छवि बनेगी और उस डॉक्टर को इसके लिए परिणाम भुगतने होंगे. भारत लौटने पर भारतीय खुफिया सेवाओं द्वारा बाल रोग विशेषज्ञ की पूछताछ की गई थी.
लेस जर्स ने यह भी दर्ज किया कि श्रीवास्तव परिवार के ही एक सदस्य अंकुर श्रीवास्तव की एक कंपनी मैलवेयर बनाती है, जिसके बारे में रिपोर्ट बताती है कि यह केवल भारतीय खुफिया सेवाओं को बेचा जाता है. इसने यह भी दर्ज किया कि श्रीवास्तव समूह सोशलिस्ट वीकली, खालसा अखबार लाहौर और टाइम्स ऑफ आजाद कश्मीर सहित कई फर्जी समाचार वेबसाइट चलाता है, जिनके भारतीय खुफिया सेवाओं से जुड़े होने की संभावना है.
इस बारे में पूछे जाने पर अल्फिलिप्पे ने कहा, ''हमारे पास इस ऑपरेशन से औपचारिक रूप से जुड़े होने के बारे में जानकारी नहीं है. हालांकि, इसका धोखा और साथ-साथ ब्रुसेल्स और जिनेवा दोनों ही जगह इसकी भौतिक उपस्थिति कुछ ऐसी है जो वास्तव में हमें साजिश लगती है. इस तरह की कार्रवाई की योजना बनाने और उसे आगे बढ़ाने के लिए आपको कई कंप्यूटरों की जरूरत है."
डिसइन्फोलैब की रिपोर्ट के एक बड़े हिस्से में चर्चा की गई है कि किस तरह से एएनआई ईयू क्रॉनिकल और श्रीवास्तव समूह से जुड़े अन्य संगठनों की रिपोर्टों को तोड़-मरोड़कर भारतीय दर्शकों तक इस तरह पहुंचाने में लगा हुआ है कि मोदी के कामों का यूरोप में भी समर्थन हो रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि याहू न्यूज इंडिया और बीपी बिजनेस वर्ल्ड ने ईयू क्रॉनिकल में प्रकाशित खबरों के आधार पर एएनआई द्वारा तैयार कम से कम 8 समाचार और ज़ी5 ने 9 समाचार प्रकाशित किए. बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार और टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी इस प्रकार की सामग्री का उपयोग किया है. डिसइन्फोलैब के जांचकर्ताओं की गिनती के अनुसार, एएनआई ने छह महीनों में 13 बार ईयू क्रॉनिकल में प्रकाशित सामग्री की नकल की. यह साफ नहीं है कि एएनआई इतनी जल्दी से इस तरह के अस्पष्ट समाचार संगठन की खबर को क्यों पुनर्प्रकाशित करता है जबकि समाचार संगठन ने लेस जर्स के टिप्पणी करने के अनुरोध तक का जवाब नहीं दिया.
डिसइन्फोलैब की 2020 की रिपोर्ट यह भी बताती है कि किस तरह एनजीओ और श्रीवास्तव नेटवर्क से जुड़े नए बने अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में लॉबी के रूप में काम किया, ताकि राज्य द्वारा भारतीयों पर की गई हिंसा को छुपाकर, पाकिस्तान में हिंसा को उजागर किया जा सके. डिसइन्फोफैब ने कम से कम दस एनजीओ की पहचान की है जो भारत में झूठी सूचनाएं फैलाने के नेटवर्क से जुड़े हैं. इनमें से कुछ का भारत से औपचारिक संबंध था और कुछ को भारत में शुरू करने से पहले ही बंद कर दिया गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि एक फ्रांसीसी संरक्षण एनजीओ, कैनर्स इंटरनेशनल परमानेंट कमेटी ऑफ कंजर्वेशन जो 2007 में बंद हो गया था उसे श्रीवास्तव नेटवर्क द्वारा यूएनएचआरसी में पाकिस्तान के बारे में बोलने के लिए फिर से शुरू किया गया, जो अक्सर पाकिस्तान की एक नकारात्मक छवि ही पेश करता है.
इसी तरह, डिसइन्फोलैब ने यह भी उजागर किया कि एक अंतरराष्ट्रीय संगठन स्टडी ऑफ द ऑर्गनाइजेशन ऑफ पीस जिसकी सभी गतिविधियां 1970 के दशक में बंद कर दी गई थी, को इस नेटवर्क द्वारा जिनेवा में पाकिस्तान की लगातार आलोचना करने के लिए दुबारा चालू किया. सीएसओपी की ईमेल आईडी का उपयोग भारतीय नेटवर्क से जुड़ी अन्य वेबसाइटों को पंजीकृत करने के लिए किया गया था.
डिसइन्फोलैब ने कहा कि जिनेवा की भाषा में ऐसे संगठनों को "सरकारी संगठित" कहा जाता है. यह राज्य द्वारा प्रायोजित गैर-सरकारी संगठनों होते है किसी देश के हितों का प्रतिनिधित्व करने और उसके प्रतिद्वंद्वी देश की छवि को नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसने संयुक्त राष्ट्र या यूएनएचआरसी के किसी भी नियम का स्पष्ट रूप से उल्लंघन नहीं किया है.
एजेंसी के काम को ''विकृत'' बताते हुए डिसइन्फोलैब की रिपोर्ट कहती है, "एएनआई जिनेवा में संदिग्ध एनजीओ की गतिविधियों को व्यापक रूप से कवर करने वाली एकमात्र प्रेस एजेंसी बनी हुई है." लेस जर्स के पत्रकारों में से एक क्वेनेल ने एक उदाहरण दिया जहां लगता है कि एएनआई को पूरी तरह से पता था कि यह जिनेवा में गैर सरकारी संगठनों से आई गलत खबर है.
सितंबर में, वर्ल्ड एनवायरोमेंट एंड रिसोर्सेस काउंसिल के लखू लुहाना ने युएनएचआरसी में बात रखी. काउंसिल 1980 के दशक में गायब हो गई थी लेकिन सीएसओपी और सीआईपीसीसी की तरह ही भारतीय रणनीतिक हितों के लिए इन्हें फिर से जिंदा किया गया था. क्वेनेल ने उल्लेख किया कि एएनआई ने भाषण पर एक लेख और एक ट्वीट जारी किया, जो पाकिस्तानी सिंधी अल्पसंख्यकों के "उत्पीड़न" पर केंद्रित था. क्वेनेल ने कहा, "एएनआई के ट्वीट में डब्ल्यूईआरसी का जिक्र किया गया है, हालांकि, लेख के शीर्षक में यह बात पूरी ही तरह से अलग वर्ल्ड सिंधी कांग्रेस के हवाले से है. वर्ल्ड सिंधी कांग्रेस की छान-बीन करने से पता चलता है कि लखू लुहाना इसके महासचिव हैं. एएनआई का सहज ही वर्ल्ड सिंधी कांग्रेस का उल्लेख करने से पता चलता है कि इसे जिनेवा में डब्ल्यूईआर की दोहरी भूमिका के बारे में पता था."
लेस जर्स की रिपोर्ट बताती है कि 2019 में मारियानी दक्षिण एशिया डेमोक्रेटिक फोरम के ब्रसेल्स स्थित थिंक टैंक के निमंत्रण पर जिनेवा भी गए थे. एसएडीएफ को 2011 में पाउलो कासाका द्वारा बनाया गया था, जो एक पहले यूरोपीय संसद सदस्य थे और ब्रसेल्स में उनका पता श्रीवास्तव समूह से जुड़े एक संगठन के कार्यालय का पता है. थिंक टैंक का डोमेन नाम भी सीधे भारतीय कंपनी द्वारा पंजीकृत किया गया था. सितंबर 2019 में एसएडीएफ ने मारियानी को जहाज के बिजनेस क्लास में जिनेवा भेजा और उनके लिए ब्यूरीवेज होटल में दो रातों के लिए रहने का शानदार इंतजाम भी किया. यह सब कुछ थिंक टैंक द्वारा जम्मू-कश्मीर पर आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए किया गया था. इस घटना का क्वेनेल ने उल्लेख किया, "इसे श्रीवास्तव समूह के मीडिया संगठन ने कवर किया गया था और बाद में एएनआई ने भी."
अल्फिलिप्पे ने कहा, "हमारे पिछले अध्ययनों में, हमने विभिन्न हितधारकों के बीच इस तरह का तालमेल नहीं देखा. तथ्य यह है कि पिछले 15 सालों के दौरान और पिछले साल आंशिक रूप से उजागर होने के बाद भी, यह ऑपरेशन अपनी गतिविधियों को बनाए रखने में सक्षम रहा जो इंडियन क्रोनिकल्स के पीछे काम कर रहे लोगों की चालाकी और तत्परता को दर्शाता है. यह निश्चित रूप से सबसे बड़ा नेटवर्क है जिसे हमने उजागर किया है."
अल्फिलिप्पे ने आगे कहा, "दुष्प्रचार सभी देशों के काम करने के तरीके का हिस्सा रहा है. उदाहरण के लिए, हमने जिनेवा में पाकिस्तानी हितों के लिए काम करने वाले एक ऐसे ही ऑपरेशन का पता लगाया, जो बताता है कि सभी देश एक-दूसरे से कैसे सीख रहे हैं और उसे अपना रहे हैं... जरा कल्पना करें कि अगर ऐसा ही ऑपरेशन चीन या रूस ने किया होता तो मीडिया की सुर्खियों क्या रही होतीं?” उन्होंने यूरोपीय निकायों से इस तरह के कृत्यों के खिलाफ कार्रवाई करने का आह्वान करते हुए कहा, “संस्थानों की सबसे बड़ी विफलता यह होगी कि अगर अगले साल जारी रिपोर्ट भी इसी तरह के लोगों और ऐसे ही कामों के बारे में हो. इसका मतलब यह होगा कि यूरोपीय संघ के संस्थानों को विदेशी हस्तक्षेप से कोई समस्या नहीं हैं."