भारतीय मीडिया को निगलने वाले बड़े कारपोरेट घराने

08 दिसंबर 2022
इलस्ट्रेशन : सुकृति आहान स्टैनली
इलस्ट्रेशन : सुकृति आहान स्टैनली

इस साल अडानी समूह द्वारा एनडीटीवी के अधिग्रहण के प्रयास के चलते इस चैनल के भविष्य और भारतीय मीडिया पर अडानी के इस कदम के असर पर तीखी बहस शुरू हो गई. वैसे गौतम अडानी की बहुराष्ट्रीय कंपनी ने मीडिया में अपनी उपस्थिति पहले ही दर्ज करा रखी है. अडानी की कंपनी का क्विंटीलियन बिजनेस मीडिया प्राइवेट लिमिटेड, जो बीक्यू प्राइम (ब्लूमबर्गक्विंट) चलाती है, में निवेश है.

अधिग्रहण के बाद हालांकि बहस इस बात पर अधिकतर केंद्रित रही कि क्यों मुकेश अंबानी की मिल्कियत रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने, जो एनडीटीवी पर प्रॉक्सी नियंत्रण रखने के साथ ही भारतीय मीडिया क्षेत्र में शीर्ष वित्तीय निवेशकों में से एक है, वह अपने सबसे ताकतवर प्रतिस्पर्धी को चैनल सौंपने के लिए राजी हो गई.

इससे पहले कि हम इस सवाल का जवाब देना शुरू करें हमें पत्रकारिता और मीडिया के अंतर को समझ लेना चाहिए. पत्रकारिता का मतलब है समाचार इकट्ठा करने और विश्लेषण करने वाली गतिविधियां. इसके साथ कुछ जरूरी मान्यताएं और मूल्य जुड़े होते हैं. भारतीय मीडिया संस्थानों में आजकल ये मूल्य बहुत सीमित रूप से पालन किए जाते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि ये मूल्य अस्तित्व में नहीं हैं या इनकी जरूरत नहीं है. पत्रकारिता के विपरीत मीडिया एक मूल्य तटस्थ (मूल्य न्यूट्रल) शब्द है जो सिर्फ सूचना के कंटेंट और माध्यम तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें इनको चलाने वाली उपसंरचनाएं भी शामिल हैं. मीडिया एक छाता शब्द है जिसमें समाचार पत्र, टेलीविजन चैनल, बॉलीवुड स्टूडियो, नेटवर्क प्रदाता, मनोरंजन, स्ट्रीमिंग शो और आईपीएल मैच आते हैं. सच है कि मीडिया का अर्थ एक इतनी बड़ी इंडस्ट्री है जिसने पत्रिका के विचार को ही डुबो दिया है जबकि इस शब्द को अक्सर पत्रकारिता के पर्यायवाची के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

भारत में हम पत्रकारिता में करियर शुरू कर रहे व्यक्ति की योग्यता को बड़ी सख्ती से जांचते हैं जबकि जो मीडिया संस्थान चलाते हैं उनके संस्कारों के प्रति उदासीन रहते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब भारतीय गणराज्य की स्थापना हो रही थी तब पत्रकारिता की स्वतंत्रता की आवश्यकता को स्वीकार किए जाने के बावजूद प्रेस की भूमिका पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया.

यह दोहरेपन श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी कानून, 1955 में झलकता है. यह कानून सभी तरह के पत्रकारों, मसलन पत्रकारों, उपसंपादकों या किसी संगठन के संपादक को विशेष सुरक्षा प्रदान करता है. इसमें उल्लेखित सुरक्षा उपाय अन्य किसी पेशे के प्रबंधकीय स्टाफ के लिए उपलब्ध नहीं हैं लेकिन कामकाजी पत्रकारों के तमाम स्तर लेबर कोर्ट जा सकते हैं.

हरतोष सिंह बल कारवां के कार्यकारी संपादक और वॉटर्स क्लोज ओवर अस : ए जर्नी अलॉन्ग द नर्मदा के लेखक हैं.

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