दैनिक भास्कर प्रकरण : अदना सी बहादुरी पर सरकार ने दबोचा

30 जनवरी 2022
कोविड-19 की मौतों पर सरकार के झूठ को उजागर करने के लिए दैनिक भास्कर की खूब तारीफ हुई थी लेकिन इसके बाद इसे सरकारी छापे मारी का भी सामना करना पड़ा है.
कोविड-19 की मौतों पर सरकार के झूठ को उजागर करने के लिए दैनिक भास्कर की खूब तारीफ हुई थी लेकिन इसके बाद इसे सरकारी छापे मारी का भी सामना करना पड़ा है.

भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के कहर के बीच दैनिक भास्कर समूह के गुजराती समाचार पत्र दिव्य भास्कर ने एक चौंका देने वाली खबर की. 14 मई को प्रकाशित उसकी रिपोर्ट के अनुसार, “गुजरात में 1 मार्च से 10 मई के बीच 1.23 लाख मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किए गए जबकि पिछले साल इसी दौरान ऐसे 58000 प्रमाणपत्र जारी किए गए थे.” यानी गुजरात सरकार ने पिछले साल के मुकाबले इस बार 65000 मृत्यु प्रमाण पत्र अधिक जारी किए थे. हालांकि सरकारी आंकड़े बताते रहे कि “केवल 4218 रोगियों की मौत कोविड-19 से हुई है.” इस रिपोर्ट ने महामारी को लेकर सरकार का कुप्रबंधन और जिस तरह से इसे ढंकने की कोशिशें चल रही थीं, वह सब सामने ला दिया.

17 जून को अमेरिकी समाचार पत्र न्यूयॉर्क टाइम्स ने दैनिक भास्कर के राष्ट्रीय संपादक ओम गौड़ की एक रिपोर्ट छापी जिसका शीर्षक था : "दि गंगा इज रिटर्निंग द डेड. इट डजनॉट लाई”. गौड़ ने इसमें महामारी को कवर करने के लिए उनकी टीम द्वारा अपनाए गए तरीकों के बारे विस्तार से बताया कि कैसे उत्तर प्रदेश में तीस पत्रकारों को नदी के किनारे होने वाली हलचल को जानने के लिए भेजा गया था. उन्होंने लिखा, "हम इस त्रासदी के बारे में शायद कभी नहीं पता लगा पाते लेकिन मई की शुरूआत में हुई बारिश ने ऐसा कर दिया. बारिश के कारण बढ़े गंगा के जल स्तर ने लाशों को नदी की सतह और किनारे पर लाकर फेंक दिया. साथ ही बारिश ने ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने, पर्याप्त टीकों की आपूर्ति के वादे और खराब व्यवस्था की जिम्मेदारी लेने में सरकार की भारी विफलता को भी उजागर किया.” अगले महीने दैनिक भास्कर ने अपने कवरेज को बढ़ा कर राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में भी इसी तरह की रिपोर्टिंग की और महामारी के कहर में विभिन्न राज्य सरकारों की विफलताओं को प्रकाशित किया.

भास्कर द्वारा कोविड​​​​-19 के कारण हुई मौतों पर इन रिपोर्टों की मीडिया में खूब सराहना हुई. लेकिन 22 जुलाई को आयकर विभाग ने दैनिक भास्कर समूह के मुंबई, दिल्ली, भोपाल, इंदौर, जयपुर, कोरबा, नोएडा और अहमदाबाद के आवासीय परिसर और व्यावसायिक कार्यालयों पर यह आरोप लगाते हुए छापा मारा कि समूह ने "पिछले छह वर्षों में 700 करोड़ रुपए के करों की चोरी की है, समूह 2200 करोड़ रुपए के चक्रीय ट्रेडिंग में लिप्त है, इसने शेयर बाजार के नियमों का उल्लंघन किया और फर्जी खर्च और फंड छिपाने के लिए कंपनियों की स्थापना की है.” कई लोगों ने छापेमारी को नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अपनी नीतियों की आलोचना करने वाली मीडिया को दबाने के एक और उदाहरण के रूप में देखा. मोदी सरकार के राज में मीडिया समूहों पर छापेमारी, पुलिस शिकायतें, मानहानि के मामले और अन्य प्रकार की धमकियां आम बात हो गई हैं. 2014 के बाद से कारवां, द वायर, न्यूजक्लिक और एनडीटीवी सहित कई मीडिया घरानों को सरकार की पसंद से इतर मुद्दों की रिपोर्टिंग के लिए सरकारी कोपभाजन बनना पड़ा है.

स्वतंत्र मीडिया घरानों और पत्रकारों के प्रति सरकार की जानी-पहचानी दुश्मनी को देखते हुए उपरोक्त मीडिया समूहों के खिलाफ इस तरह डराने-धमकाने की घटनाएं उतनी हैरान नहीं करती जितनी कि दैनिक भास्कर समूह पर हुई छापेमारी करती है क्योंकि भास्कर समूह उस संस्थानों में से एक है जिन्हें “मिलाकर चलने वाला” कहा जा सकता है. कोविड-19 मौतों पर इसकी रिपोर्टिंग वास्तव में महत्वपूर्ण और कड़वी सच्चाई सामने लाने वाली हैं. लेकिन महामारी से जुड़े अन्य पहलुओं पर इस समूह ने केंद्र सरकार की इच्छा के अनुसार ही काम किया. उदाहरण के लिए पहली लहर के दौरान तबलीगी जमात पर इसकी रिपोर्ट स्पष्ट रूप से इस्लामोफोबिक थी. भास्कर के रांची संस्करण ने सफाई कर्मचारियों पर मुसलमानों द्वारा थूकने की एक असत्यापित रिपोर्ट प्रकाशित की थी. बताया गया सफाई अधिकारी राजेश गुप्ता को कॉलोनी बिना सैनिटाइज किए छोड़नी पड़ी. लेकिन कारवां के साथ एक साक्षात्कार में गुप्ता ने दैनिक भास्कर के रिपोर्टर के साथ किसी भी तरह की बातचीत होने से भी इनकार किया. इसी तरह अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और अयोध्या फैसले के मुद्दों पर भी समूह के अखबारों ने हिंदू-राष्ट्रवादी रुख अपनाया. लेकिन इन छापों ने समूह को सत्ता-विरोधी होने का तमगा पहना दिया. समूह ने एक बयान में कहा, "कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सरकार की विफलता को उजागर करने के लिए सरकार ने दैनिक भास्कर पर छापा मारा है. चाहे गंगा में तैरते शवों की बात हो या कोरोना से हुई मौतों के आंकड़ो की सच्चाई, भास्कर ने निष्पक्ष पत्रकारिता की है और लोगों को सच्चाई दिखाई है." दूसरी ओर सरकार ने दावा किया कि पूरे मामले में उसकी कोई भूमिका नहीं थी. सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा, "एजेंसियां ​​अपना काम कर रही हैं और उनके काम में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया है."

दैनिक भास्कर समूह उन मीडिया घरानों में से एक रहा है जो सत्ताधारी पार्टियों और उनके करीबी कारपोरेट घरानों के आर्थिक और राजनीतिक वरदहस्त से फूले-फले हैं. कई अनुमानों के अनुसार दैनिक भास्कर कारपोरेट लिमिटेड अब 6000 करोड़ से अधिक की कंपनी है जो मीडिया, रियल एस्टेट, कपड़ा और बिजली जैसे क्षेत्रों में फैली हुई है. छापेमारी के बाद मीडिया में आई खबरों ने आयकर विभाग के इस दावे को हवा दी कि समूह के पास सौ से अधिक कंपनियां हैं. समूह द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार इसके समाचार पत्र दैनिक भास्कर के 11 राज्यों में 45 संस्करण निकलते हैं, 2 राज्यों में दिव्य भास्कर के 9 संस्करण और 1 राज्य में दिव्य मराठी के 6 संस्करण मौजूद हैं. 2019 में दायर सूचना के अधिकार से पता चलता है कि 2014-15 और 2018-19 के बीच मोदी सरकार ने हिंदी अखबारों में विज्ञापन पर 890 करोड़ रुपए और इसी अवधि में अंग्रेजी अखबारों में 790 करोड़ रुपए खर्च किए. सरकारी विज्ञापनों से हिंदी अखबार दैनिक भास्कर को 56.62 करोड़ और दैनिक जागरण को 100 करोड़ रुपए से अधिक प्राप्त हुए थे. वित्तीय वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही में जब अन्य मीडिया घरानों को महामारी से उपजे आर्थिक संकट के कारण संघर्ष करना पड़ रहा है तब भास्कर की विज्ञापन से होने वाली आमदनी 302.9 करोड़ रुपए रही जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 226.3 करोड़ रुपए थी. इसी तिमाही में इसका बिक्री राजस्व 115.9 करोड़ रुपए था. इसने अपने महामारी से पहले हुई बिक्री का 90 प्रतिशत से अधिक भी बहाल कर लिया था.

विष्णु शर्मा कारवां हिंदी के असिस्टेंट एडिटर हैं.

Keywords: Dainik Bhaskar Hindi media Narendra Modi COVID-19
कमेंट