प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 24 मार्च को तीन सप्ताह के राष्ट्रव्यापी बंद की घोषणा करने से लगभग छह घंटे पहले, मुख्यधारा के बीस से अधिक प्रिंट मीडिया संपादकों और मालिकों से व्यक्तिगत रूप से कोविड-19 महामारी के बारे में सकारात्मक समाचार प्रकाशित करने को कहा था. मोदी ने जिन मालिकों और संपादकों से मुलाकात की उनमें 11 क्षेत्रीय भाषाओं के मीडिया घरानों के मालिकों और संपादकों सहित इंडियन एक्सप्रेस समूह, हिंदू समूह और पंजाब केसरी समूह जैसे राष्ट्रीय मीडिया घरानों के वरिष्ठ सदस्य भी शामिल हैं. मोदी की आधिकारिक वेबसाइट पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री ने इन लोगों को “सरकार और लोगों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करने” और कोविड-19 संकट से निपटने के लिए “सरकार की सतत प्रतिक्रिया” के बारे में जानकारी उपलब्ध करने के लिए कहा है. वेबसाइट में आगे कहा गया है कि वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजित और डेढ़ घंटे तक चली बातचीत में प्रधानमंत्री ने जोर दिया कि "निराशावाद, नकारात्मकता और अफवाहों से निपटना महत्वपूर्ण है. नागरिकों को आश्वस्त करने की आवश्यकता है कि सरकार कोविड-19 के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध है.”
प्रधानमंत्री की वेबसाइट बताती है कि बातचीत के दौरान मोदी एक नोटबुक और पेन लेकर बैठे थे और प्रतिभागियों द्वारा कोई सुझाव देने पर मोदी को उन्हें नोट करते हुए देखा जा सकता है. यह कवायद पत्रकारों को लगभग सरकार के एक अंग के तौर पर दर्शाती है बजाए इसके कि वे एक ऐसी संस्था के सदस्य हैं जिनका काम सरकार की कमियों पर सवाल उठाना होता है. इसके बजाय ज्यादातर मालिक और संपादक इस बातचीत के लिए आभार प्रकट करते नजर आए. प्रधानमंत्री की वेबसाइट ने बताया कि पत्रकारों ने कोविड-19 के बारे में "प्रेरक और सकारात्मक खबरों को प्रकाशित करने के लिए प्रधानमंत्री के सुझावों पर काम" किया है. बातचीत के बाद बैठक में उपस्थित कुछ मालिकों और संपादकों ने वीडियो कॉन्फ्रेंस में शामिल करने और उनके सुझाव सुनने के लिए ट्वीटर पर प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया और कुछ ने अगले दिन टीवी स्क्रीन पर आई अपनी और मोदी की तस्वीरों के साथ बैठक की रिपोर्ट प्रकाशित की.
कॉन्फ्रेंस के बाद, मैंने बातचीत में शामिल राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया घरानों के 9 मालिकों और संपादकों से बात की. लगभग सभी इस कॉन्फ्रेंस से अभिभूत दिखाई दिए, जिसके बारे में कुछ ने बताया कि मोदी उनके सुझावों पर ध्यान देते हुए गंभीर ''मुद्रा'' में थे.
मैंने मालिकों और संपादकों से पूछा कि क्या मोदी के साथ उनकी बातचीत, जिसमें सकारात्मक खबरों को प्रकाशित करने का सुझाव दिया गया है, नोवेल कोरोनवायरस से लड़ने के लिए सरकार की नीतियों पर कोई आलोचनात्मक लेख प्रकाशित करने पर उनकी संपादकीय नीति को प्रभावित करेगी. उनमें से केवल दो ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे बातचीत के बावजूद सवाल उठाने वाली रिपोर्ट और लेख प्रकाशित करते रहेंगे, जबकि तीन ने कहा कि वे ऐसा नहीं करेंगे, लेकिन यह अन्य कारणों की वजह से होगा, कॉन्फ्रेंस में हुई बातचीत के कारण नहीं. उनमें से एक ने मुझसे इस रिपोर्ट में हमारी बातचीत का हवाला देते हुए इस तरह के सवाल का संदर्भ न देने को कहा. दूसरों ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
लेकिन उनके बाद के कोविड कवरेज की पड़ताल से पता चलता है कि मोदी की चेतावनी ने अपना काम कर दिया है, समाचार पत्र वायरस के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर आलोचनात्मक नहीं हैं. इन संस्थानों द्वारा सार्वजनिक-स्वास्थ्य संकट के कवरेज में लॉकडाउन की खराब योजना और विनाशकारी कार्यान्वयन या विश्व स्वास्थ्य संगठन की पूर्व चेतावनी के बावजूद स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण चिकित्सा उपकरणों का स्टॉक करने में विफलता जैसी महामारी से लड़ने की तैयारी में सरकार की विफलता का बहुत कम उल्लेख है.
इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के प्रबंध निदेशक और संपादकीय निदेशक विवेक गोयनका ने भी इस वीडियो कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया था. गोयनका ने मीडिया कर्मियों के साथ प्रधानमंत्री की बातचीत और उस दिन के उनके राष्ट्र के नाम संबोधन को अभूतपूर्व घटनाओं के रूप में वर्णित किया. गोयनका ने कहा, "इससे पहले कभी भी किसी प्रधानमंत्री ने इस देश के लोगों के साथ संपर्क और संवाद नहीं किया है. आप सभी को जानते ही हैं. तो जाहिर है कि वह सामने से नेतृत्व कर रहे हैं." कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के एक बयान का हवाला देते हुए, जिसमें उन्होंने लॉकडाउन का समर्थन किया, गोयनका ने कहा, "जैसा कि चिदंबरम ने भी कहा है कि मोदी इस लड़ाई के कमांडर इन चीफ हैं."
हालांकि अन्य अंग्रेजी राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों की तुलना में, इंडियन एक्सप्रेस ने लॉकडाउन के कारण भारत के गरीबों की मौतों की अच्छी रिपोर्ट की है लेकिन इन रिपोर्टों में लॉकडाउन की मोदी की घोषणा से पहले केंद्र सरकार की खराब योजना पर मुश्किल से ही सवाल उठाया है. इसके बजाय अखबार ने मौतों को या तो लॉकडाउन के एक अनिवार्य परिणाम के रूप में या उन घटनाओं के रूप में रिपोर्ट किया जिन्हें सरकार रोक नहीं सकती थी. उदाहरण के लिए, दिल्ली के प्रवासी कामगारों के बारे में एक रिपोर्ट में इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि सरकार ऐसे श्रमिकों के लिए पहले से क्या कर सकती थी. रिपोर्ट ने मजदूरों के शहर से पलायन को "एक ऐसा विनाशकारी मानवीय संकट" बताया जिसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने "राहत शिविरों” का आदेश" और "परिवहन” की व्यवस्था की है.
मोदी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस के बाद, दि हिंदू समूह की सह-अध्यक्ष और उसकी संपादकीय नीति टीम की निदेशक मालिनी पार्थसारथी ने ट्वीट किया :
हमें PM@ narendramodi के साथ प्रिंट मीडिया के प्रतिनिधियों के तौर पर बातचीत का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला. भारत को कोविड महामारी का शिकार नहीं बनने देने की उनकी मजबूत प्रतिबद्धता प्रशंसनीय है. आगे कैसे बढ़ा जाए, उस पर उनकी रणनीति स्पष्ट है. हम निश्चित रूप से अच्छे हाथों में हैं!
इसी तरह महाराष्ट्र के एक लोकप्रिय दैनिक लोकमत मीडिया के संयुक्त मीडिया निदेशक और संपादकीय निदेशक ऋषि दर्डा ने भी बातचीत में भाग लिया और इसके बारे में ट्वीट किया. बातचीत के बारे में किए अपने कई ट्वीटों में दर्डा ने ऐसी तस्वीरें पोस्ट कीं जिसमें या तो उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में मोदी को सुनते हुए दिखाया गया था या स्क्रीन पर प्रधानमंत्री और वह साथ-साथ दिख रहे थे.
लॉकडाउन के बाद से पार्थसारथी ने कोविड-19 महामारी के लिए सरकार की प्रतिक्रिया के बारे में दि हिंदू द्वारा प्रकाशित सकारात्मक लेख ट्वीट किए हैं. इनमें से कुछ रिपोर्टों के शीर्षक थे, ''केंद्र ने कहा, विदेशी यात्रियों और 'समृद्ध भारतीयों' की स्क्रीनिंग में कोई कमी नहीं," "अमेरिका ने भारत को 2.9 मिलियन डॉलर सहित 64 देशों को 174 मिलियन डॉलर की सहायता की घोषणा की है"; और "24 घंटे में 180 से अधिक ताजा मामलों के साथ, भारत ने मुख्य केंद्रों की तरफ ध्यान लगाया."
पार्थसारथी ने मोदी के साथ अपनी बातचीत के बारे में बात करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया, "यह ऑफ दि रिकॉर्ड थी, इसे किसी को बताना नहीं है." महामारी को लेकर दि हिंदू की कवरेज जो छवि पेश करती है उसके अनुसार केंद्र सरकार के प्रत्येक मंत्री, विभाग और मंत्रालय वायरस के खिलाफ लड़ाई में अत्यधिक सक्रिय हैं. कुछ रिपोर्टों में विपक्षी दलों के आरोपों के हवाले से ही सरकार की तैयारी की कमी की रिपोर्ट की गई है.
मैंने उस कॉन्फेंस में भाग लेने वाले टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय निदेशक जयदीप बोस से संपर्क किया लेकिन उन्होंने इस विषय पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. लॉकडाउन के बाद से ही टाइम्स ऑफ इंडिया की कवरेज सूचनाप्रद तो कतई नहीं रही जैसा कि प्रधानमंत्री ने उस वीडियो कॉन्फेंस में सुझाव दिया था. यह अखबार तो यही बताने में ज्यादा लगा रहा कि फिल्म कलाकार अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री कोविड राहत कोष में 25 करोड़ रुपए का चंदा दिया है और टीवी अभिनेत्री हिना खान पेंटिंग भी कर सकती हैं और पाकिस्तान के कराची शहर में लॉकडाउन के दौरान वहां के हिंदुओं को खाना नहीं मिल रहा.
“सकारात्मक रिपोर्ट” प्रकाशित करने और “नकारात्मकता” से बचने की प्रधानमंत्री की सलाह को अपनाने में हिंदुस्तान टाइम्स आगे है. एचटी मीडिया की चेयरपर्सन और संपादक और हिंदुस्तान टाइम्स की प्रकाशक शोभना भरतिया ने भी वीडियो कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया था. लेकिन जब इस समाचार पत्र ने अगले दिन इस पर चार कॉलम की रिपोर्ट छापी तो उसमें खबर को अज्ञात सूत्रों के हवाले से दिया गया. उस खबर में भरतिया का जिक्र तक नहीं है.
हाल के दिनों में हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुईं कुछ खबरों की हैडलाइन इस प्रकार हैं : “भारत में 86 लोगों ने मात दी कोविड-19 को”, “10 फीसदी कोरोना मरीज हुए ठीक”, “कोविड-19 महामारी के खिलाफ सरकार ने बनाया अधिकार प्राप्त समूह और कार्यबल”, “गर्भवति महिला और पति को मजबूरी में चलना पड़ा 100 किलो मीटर, स्थानीय लोग मदद के लिए आए आगे”, और “भारतीय राहत पैकेज और विश्व के राहत पैकेज में क्या है अंतर, इससे ज्यादा क्या कर सकती है मोदी सरकार”. इनमें से किसी भी खबर में सरकार की कमियों की बात नहीं है. इसमें किसी को क्या शक कि संकट की घड़ी में सकारात्मक खबरों से हौसला मिलता है लेकिन भरतिया और उनके अखबार ने सरकार की कमजोरियों के बारे में एक भी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है.
मोदी की यह बातचीत किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस की तरह नहीं थी कि मीडिया मालिक और संपादक सरकार की तैयारियों पर उनसे सवाल-जवाब करते और या पूछते कि सरकार किस आधार पर कह रही है कि सामुदायिक संक्रमण नहीं हो रहा है जबकि डॉक्टर और स्वास्थ्य जानकार इसकी चेतावनी दे रहे हैं. लग रहा था कि वीडियो कॉन्फेंस एक ऐसा मंच है जहां मोदी संपादकों को भरोसे में लेकर यह जानना चाहते हों कि उन्हें क्या लगता कि सरकार को क्या करना चाहिए. मोदी ने एक दिन पहले ऐसी ही मुलाकात वरिष्ठ टीवी पत्रकारों से की थी. 27 मार्च को लॉकडाउन लगने के बाद मोदी ने रेडियो जोकियों से भी ऐसी ही चर्चा की थी और उन्हें भी प्रिंट मीडिया वाली अपनी सलाह दी थी.
हिस्सा लेने वाले पत्रकारों और मीडिया मालिकों ने मोदी से सवाल नहीं पूछे. मार्च 2019 में बीजू जनता दल के पूर्व सांसद और ओडिशा पोस्ट और ओड़िया अखबार धारित्रि के प्रकाशक और संपादक तथागत सत्पथी ने घोषण की थी कि वह पत्रकारिता के लिए सक्रिय राजनीति त्याग रहे हैं. सत्पथी भी प्रिंट मालिकों के साथ मोदी की वीडियो कॉन्फ्रेंस का हिस्सा थे. सत्पथी ने मुझे बताया, “मोदी हम सबको यह आश्वासन देना चाहते थे कि संकट की घड़ी में मैं आप लोगों की पहुंच में हूं.” सत्पथी ने कहा कि मोदी ने मीडिया मालिकों और संपादकों से अपील की कि वे सुनिश्चित करें कि लोग शांति बनाए रखें.”
सत्पथी ने कहा कि मोदी चाहते थे कि संपादक प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता का इस्तेमाल कोविड-19 से संबंधित फेक न्यूज को लोगों तक पहुंचने से रोकने के लिए करें और केवल “सच” प्रकाशित करें. जब मैंने उनसे पूछा कि उस सच का क्या होगा जो हमें बताता है कि सरकार व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरण (पीपीई) का भंडारण करने में चूक गई थी तो सत्पथी ने कहा, “मोदी से किसी ने भी यह सवाल नहीं किया. “सच बताऊं तो ऐसा करने की किसी की हिम्मत नहीं थी.”
ओडिशा पोस्ट ने इस मुलाकात को सिर्फ एक कॉलम की जगह दी. सत्पथी ने दावा किया कि मोदी ने प्रिंट मीडिया पर कोरोना से जुड़ी केवल सकारात्मक खबरें छापने की जिम्मेदारी नहीं डाली है. उन्होंने कहा कि वह आलोचना करने वाली खबरें भी छापते रहेंगे. जब मैंने उनसे पूछा कि क्या उस बातचीत में हिस्सा लेने वाले अन्य संपादक भी उनके जैसा ही सोचते हैं तो सत्पथी ने कहा, “वे संकोच करेंगे.”
सत्पथी ने समझाया की वह इस बातचीत को कैसे समझते हैं. “मोदी को एहसास है कि प्रिंट और अन्य क्षेत्रीय मीडिया जहां पहुंच सकते हैं वहां टेलीवीजन और अन्य माध्यम नहीं पहुंच सकते.” सत्पथी को भरोसा है कि मीडिया के लोगों से सीधी बातचीत कर मोदी अपनी मीडिया विरोधी छवि को तोड़ना चाहते हैं.” सत्पथी ने याद किया कि कैसे मोदी ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा था, “‘अरे सत्पथीजी नमस्ते. संसद में हमलोगों को आपकी कमी महसूस होती है.’ यह किसी भी नेता के लिए अच्छी तकनीक होती है कि वह आपको एहसास कराए कि उसे आपकी याद है. उससे आपको लगता है कि ‘हे भगवान उसे मैं याद हूं’. ऐसा करने में मोदी माहिर हैं.”
पूर्व सांसद का मानना था कि प्रिंट मीडिया के साथ मोदी के संवाद को उनकी चिंता की तरह देखना चाहिए. सत्पथी ने कहा, “मुझे ताज्जुब हुआ यह देख कर कि उन्होंने वहां मौजूद एक-एक व्यक्ति की बात को धैर्य से सुना. पहली बार मुझे मोदी बहुत सकारात्मक दिखे. वह बहुत खुल कर बात कर रहे थे और ईमानदारी से कहूं तो मैं इससे हैरान हो गया था.”
सत्पथी ओडिशा के उन पत्रकारों में से एक थे जो उस संवाद का हिस्सा थे. बीजू जनता दल के सांसद और लोकप्रिय ओड़िया समाचार पत्र संबाद के संस्थापक और संपादक सौम्या रंजन पटनायक ने मुझसे कहा, “मोदी ने मीडिया को विश्वास में लेकर अच्छा काम किया है.” उन्होंने कहा कि मोदी ने ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया कि नकारात्मक खबरें प्रकाशित नहीं की जाएं लेकिन यदि मोदी ऐसा ही चाहते हैं तो भी इसमें कोई परेशानी की बात नहीं है. “मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई बुराई है. जो कोई भी ऐसे संकट से लड़ रहा होता है वह सभी का सहयोग चाहता है. और यही तो मोदी कर रहे थे.”
रोजाना सबसे अधिक पढ़े जाने वाले ओड़िया अखबार दि समाज के कार्यकारी संपादक सुशांत मोहंती ने मुझे बताया कि 24 मार्च के संवाद के बाद उन्होंने ने अपनी संपादकीय टीम को निर्देश दिया है कि केवल सकारात्मक सूचना ही दी जाए. उन्होंने कहा, "दरअसल जब देश संकट का सामना कर रहा है तब प्रधानमंत्री मीडिया से समर्थन मांग रहे हैं. उन्होंने पाठकों को शिक्षित करने के लिए केवल सकारात्मक समाचार की बात कही है... उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि इस समय कोई भी नकारात्मक खबर प्रकाशित नहीं होनी चाहिए.
दक्षिण भारत के सबसे बड़े प्रिंट मीडिया घरानों में से एक के कार्यकारी संपादक, जो प्रधानमंत्री के साथ बातचीत करने वालों में शामिल थे, उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर मुझसे बात की. संपादक ने मुझे बताया कि उन्हें नहीं लगता कि मालिकों और संपादकों के साथ मोदी की बातचीत में कुछ भी गलत था. उन्होंने आगे कहा कि वह निजी रूप से इस "संकट के समय" में मीडिया की भूमिका को "सार्वजनिक सेवा" के रूप में देखते है जिसमें सरकार की "अनुचित आलोचना" को शामिल नहीं करना चाहिए.
संपादक ने कहा कि अगर कोई आलोचना करने वाली खबर लोगों में "घबराहट" पैदा करने वाली न हो तो वह उसे दिखाने से पहले संकोच नहीं करेंगे. उनके अनुसार मोदी के लिए मीडिया से बातचीत करना जरूरी था क्योंकि जनता पहले कोरोनोवायरस के प्रसार के बारे में गंभीर नहीं थी. संपादक ने कहा, "22 मार्च के जनता कर्फ्यू के बाद देश भर में बहुत से लोगों ने सोचा कि वायरस अब चला गया, वे ताली बजाते हुए बाहर आए और फिर अपना काम करने के लिए वापस भीड़ में चले गए."
हालांकि संपादकों ने बताया कि बातचीत के दौरान मोदी के सुझाव उन पर बाध्यकारी नहीं थे लेकिन उन्हें ऐसा लगा कि उनके द्वारा सुझावों का पालन न करने पर अलग परिणाम हो सकते है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घोषणा करने के बाद कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के मजदूरों को अपने प्रदेश पहुंचाने के लिए 200 बसों की व्यवस्था की है, 28 मार्च को दिल्ली और उसके आस-पास के हजारों प्रवासी मजदूर दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे पर जमा हो गए.
उस दिन एक समाचार चैनल ने, जिसका मालिक ही संपादक है, प्रवासी मजदूरों से खचाखच भरे टर्मिनल की फुटेज चलाई. संपादक ने मुझे बताया कि उसी दिन सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने चैनल को एक नोटिस भेजा दिया "जिसमे लिखा था 'कृपया ऐसी खबर चलाने से बचें, सतर्क रहें.'"
मैंने उनसे पूछा कि क्या इस तरह के नोटिसों का दबाव उन पर पड़ा है, संपादक ने जवाब दिया कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से ऐसा नहीं लगा.
लेकिन वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि पैदल चलने वाले प्रवासी मजदूरों के दृश्य दिखाने पर सरकार ने उन्हें नोटिस क्यों भेजा. "मुझे नहीं पता कि 'सतर्क रहें' से उनका क्या मतलब है." उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने केवल इसलिए बसें भेजी थी क्योंकि समाचार चैनल इस फुटेज को दिखा रहे थे. उन्होंने कहा, "यदि कोई चैनल इसे नहीं दिखता तो वह इसकी परवाह नहीं करते." जब मैंने संपादक से पूछा कि क्या वह आश्चर्यचकित हैं कि मोदी सरकार टाइम्स नाउ और रिपब्लिक जैसे सरकार समर्थक समाचार चैनल के साथ अब प्रिंट मीडिया तक भी पहुंच रही है. तो उन्होंने कहा, "यह अलग बात है, यह राजनीतिक नहीं है." इससे ऐसा लक्षित होता है कि प्रधानमंत्री ने माना कि प्रिंट मीडिया सामान्य सरकार समर्थक चैनलों की तुलना में अधिक विश्वसनीय है और वह केवल राजनीतिक संदेश देने के लिए उपयोग कर रही है. प्रिंट मीडिया संगठनों के मालिकों और संपादकों ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत करने के एक दिन बाद 25 मार्च को उनमें से कई ने बातचीत के दौरान अपनी और प्रधानमंत्री की तस्वीरें अपने समाचार पत्रों में प्रकाशित कीं.
कोई भी संपादक प्रधानमंत्री का इतनी मजबूती से समर्थन नहीं कर रहा था जितना पंजाब केसरी अखबार के मालिक और संपादक अविनाश चोपड़ा ने किया. पंजाब केसरी पंजाब, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक प्रसारित समाचार पत्रों में से एक है. चोपड़ा ने मुझे बताया कि उन्हें नहीं लगता कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में केंद्र सरकार किसी भी तरह से कोई कमी कर रही है और इसलिए कोई भी आलोचनात्मक खबर प्रकाशित नहीं होगी.
उन्होंने कहा, "उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है. मैं उनकी आलोचना नहीं करूंगा, मैं बल्कि राज्य सरकारों की आलोचना करूंगा. अगर हम उत्तरी राज्यों को देखें तो कोई भी विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्र में नहीं है. वे लोगों के साथ बातचीत नहीं कर रहे हैं." चोपड़ा ने पूरे साक्षात्कार में मोदी की प्रतिक्रिया के लिए उनकी प्रशंसा की. पंजाब केसरी के संपादक ने कहा, "वह एकमात्र प्रधानमंत्री है जो देश को बचा सकते है. वह जानते हैं कि भारत के पास अच्छे संसाधन नहीं है, बीमार होने पर हमारी आबादी को बचाए रखने के लिए पर्याप्त वेंटिलेटर नहीं हैं. मुझे लगता है कि वह चाहते है कि हर कोई उनकी समस्याओं और उसकी सीमाओं को समझे. इसलिए मैंने उन्हें बधाई दी.” चोपड़ा के बताया कि लॉकडाउन की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री के साथ एक फोन कॉल पर बातचीत के दौरान उन्होंने मोदी से कहा था, "आपने एक अद्भुत काम किया है."
चोपड़ा इस बात से खुश थे कि प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की घोषणा करते हुए अपने हाथ जोड़कर देश के लोगों से घर पर रहने की अपील की. उन्होंने कहा, "दुनिया के किसी भी प्रधानमंत्री ने कभी हाथ नहीं जोड़े." आप जानते हैं उन्होंने 8 बार अपने हाथ जोड़े. पंजाब केसरी के संपादक को इस बात ने इतना छुआ कि अगले दिन उनके अखबार में मोदी की हाथ जोड़े हुए चार तस्वीरें छपीं. इस खबर को अखबार के पहले पेज पर आधे से ज्यादा जगह में छापा गया. जिसका शीर्षक था, "आपको बचाने के लिए बार-बार हाथ जोड़ते दिखे मोदी"
चोपड़ा ने मुझे बताया कि वह 1990 के दशक से मोदी को जानते हैं जब प्रधानमंत्री भारतीय जनता पार्टी की मूल संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य के रूप में "भारत के कई उत्तरी राज्यों के प्रभारी हुआ करते थे."
चोपड़ा ने आगे बताया, "जब वह आरएसएस और बाद में बीजेपी में थे, तब वह कई बार हमारी प्रेस में आए." कोविड-19 से भरे केसरी के कवरेज में एक और खबर शामिल थी जिसका शीर्षक था, "कोरोना से लड़ने का मोदी मंत्र, पीएम ने थ्री-डी वीडियो के जरिए दिए घर पर फिट रहने के टिप्स."
मोदी के साथ बातचीत में शामिल होने वाले अन्य संपादक थे : राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी, तेलुगु दैनिक ईनाडु के मालिक रामोजी राव, कन्नड़ दैनिक विजयवाणी के प्रबंध निदेशक और संपादक आनंद संकेश्वर और आंध्र ज्योति के मालिक वेमुरी राधाकृष्ण. दूसरों की तरह ही ये संपादक भी प्रधानमंत्री के साथ बातचीत से खुश लग रहे थे और इन्होंने अगले दिन अपनी तस्वीरों के साथ बातचीत की रिपोर्टें अपने अखबारों में प्रकाशित कीं. कोठारी ने अपने ब्लॉग पर इस बातचीत के बारे में लिखा और उस ब्लॉग को अपने अखबार के मुख्य पेज पर छापा. उन्होंने कहा कि मोदी ने उस संवाद से प्रेस को "प्रेरित" किया. संवाद पर संपादकों की बाद की प्रतिक्रियाओं और कोविड-19 महामारी पर उनके आने वाले दिनों कवरेज से प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री ने इन संपादकों और मालिकों को सत्ता के सामने सच कहने के पत्रकारिता के मूल सिद्धांत तो त्याग कर सत्ता की खुशामद करने के लिए प्रेरित कर लिया है.