22 जून को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को एक पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए नोटिस जारी किया. 26 मार्च को जनसंदेश टाइम्स के संपादक विजय विनीत और पत्रकार मनीष मिश्रा ने मुसहर गांवों की खस्ता हालत के बारे में खबर प्रकाशित की थी. कोइरीपुर गांव में मुसहर जाति के लोग भूख से मजबूर होकर जंगली घांस खाने को विवश हो रहे थे. अचानक घोषित लॉकडाउन की वजह से ये लोग अपने लिए भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाए थे. उसी दिन विनीत को वाराणसी के डीएम कौशल राज शर्मा की ओर से नोटिस मिला जिसमें खबर को “झूठा” कहते हुए इसे “मुसहर परिवारों को बदनाम करने का बेहुदा प्रयास” बताया गया था. डीएम ने विजय विनीत को अपना पक्ष रखने के लिए 24 घंटे का समय दिया और कहा कि उनके ऐसा न करने पर उनके खिलाफ जांच की जाएगी.
इससे अगले दिन मानव अधिकार कार्यकर्ता लेनिन रघुवंशी ने एनएचआरसी में विनीत के मामले में शिकायत दर्ज कराई. रघुवंशी की शिकायत में कहा गया है कि शर्मा का नोटिस पत्रकारों को “धमकी” के समान है और “प्रशासन का व्यावहार ऐसा रहा तो पत्रकार और समाचार पत्र जमीनी हकीकत से जुड़ी खबरे प्रकाशित नहीं करेंगे.” एनएचआरसी ने मुख्य सचिव को इस शिकायत पर आठ हफ्तों के भीतर जवाब देने और कार्रवाई के बारे में सूचित करने का निर्देश दिया.
जून के मध्य में उत्तर प्रदेश पुलिस ने पत्रकार और स्क्रॉल वेबसाइट की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकसभा सीट वाराणसी में उनके गोद लिए गांव से रिपोर्टिंग करते हुए बताया था कि लॉकडाउन में उस गांव के लोग भूखे रहने के लिए विवश हैं. पुलिस ने शर्मा द्वारा इंटरव्यू लिए गए उस गांव की एक निवासी की शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की जिसमें शिकायतकर्ता ने दावा किया है कि रिपोर्ट में उन्हें गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है. शिकायतकर्ता ने पत्रकार पर आरोप लगाया है कि उन्होंने एससी-एसटी अत्याचार रोकथाम कानून के तहत उनकी मानहानि करने वाली सामग्री छापी है.
शर्मा के खिलाफ एफआईआर वाराणसी में पत्रकारों के दमन के एक पैटर्न को दिखाती है. यूपी प्रशासन और पुलिस कोरोनावायरस लॉकडाउन में प्रशासन की विफलता पर लिखने वाले पत्रकारों पर कार्रवाई कर रहे हैं. 10 जुलाई को भारतीय प्रेस परिषद ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा पत्रकारों को लक्ष्य बनाने के मामलों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए वक्तव्य जारी किया था. उस वक्तव्य में राज्य के भदोही जिले के चार पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर और विनीत के खिलाफ नोटिस जारी करने का उल्लेख है. उस वक्तव्य में यूपी सरकार को इस संबंध में जवाब देने के लिए कहा गया है.
विजय विनीत ने मुझसे कहा, “मुझे पत्रकारिता करते हुए तीन दशक हो गए हैं. मैंने अमर उजाला, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण जैसे अखबारों में और प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में काम किया है.” उन्होंने बताया कि मुसहर समाज की घास खाने की मजबूरी से संबंधित समाचार प्रकाशित करने से पहले उन्होंने डीएम का पक्ष जानने के लिए उन्हें फोन लगया था लेकिन बात नहीं हो पाई थी.
विनीत ने कहा, “कोइरीपुर गांव की घटना सत्य है. वहां मुसहर जाति के लोग, जो ज्यादातर दिहाड़ी करते हैं, उनके पास कोई जमा पूंजी नहीं होती. अगर एक दिन भी काम ना मिले तो इनको खाने को भोजन नसीब ना हो.”
विनीत को भेजे नोटिस में जिला मजिस्ट्रेट ने दावा किया है कि रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद प्रशासन ने अधिकारियों की एक टीम मामले की जांच के लिए पिंडारा तहसील भेजी थी जिसके अंतर्गत कोइरीपुर आता है. उस नोटिस में लिखा है कि अधिकारियों ने पाया है कि बच्चे जिस चीज को खा रहे थे वह घास ना होकर अंकरी दाल थी. “यह दर्शाता है कि जो रिपोर्ट आपने छापी है वह झूठी है और उसे प्रकाशित करने का उद्देश्य इस संवेदनशील वक्त में जनता में भ्रम फैलाना है.” उस नोटिस में विनीत और जनसंदेश टाइम्स के संपादक को 24 घंटे के भीतर जवाब देने अन्यथा जांच का सामना करने को कहा गया है.
बाद में डीएम शर्मा ने अपने बेटे के साथ सोशल मीडिया में एक फोटोग्राफ प्रकाशित की जिसमें उन्होंने दावा किया कि वह और उनका बेटा अंकरी दाल खा रहे हैं. वेबसाइट मीडिया विजिल में इसके बाद प्रकाशित एक रिपोर्ट में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने बताया था कि वह दाल इंसानों के खाने लायक लिए नहीं है. रिपोर्ट में लिखा है, “यदि जानवर भी उसे बड़ी मात्रा में खा लें तो डायरिया हो जाता है.
रघुवंशी ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को लिखी अपनी शिकायत में कहा है कि पुलिस अधिकारी ने बस्ती में जाकर लोगों को धमकाया है. “एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते पत्रकार मामले को प्रकाश में लाया है “ताकि प्रशासन को मदद मिल सके. रिपोर्ट के बाद कोइरीपुर के मुसहर लोगों को राशन और आवश्यक वस्तु उपलब्ध कराई गईं.” रघुवंशी ने लिखा है कि ऐसा लगता है कि प्रशासन जमीनी हकीकत को जनता के सामने आने नहीं देना चाहता.
मैंने इस बारे में शर्मा के कार्यालय से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो पाया. मैंने उन्हें ईमेल और उनके मोबाइल नंबर पर संदेश भी भेजा था लेकिन मुझे जवाब नहीं मिला.
जनसंदेश टाइम्स के ही मोहम्मद इरफान ने बताया कि रिपोर्टिंग करने पर उन्हें भी प्रशासन का शिकार होना पड़ा है. उन्होंने बताया, “14 मई को दिन के करीब 4 बजे मैं वाराणसी के हरुआ ब्लॉक में रिपोर्टिंग कर रहा था जहां प्रवासी मजदूर बनारस लौट रहे थे. मैंने देखा कि वहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा था. मैं अपना मोबाइल निकाल कर फोटो लेने लगा तो एसडीएम का गार्ड मुझे रोकने लगा और मेरे साथ बदतमीजी करने लगा. वह मुझे मां-बहन की गलियां देने लगा.” इरफान ने बताया कि जब उन्होंने उसे बताया कि वह एक पत्रकार हैं तो वह बोला, “तुमको अभी देखते हैं” और एसडीएम के स्टेनो को बुला लाया और वह भी इरफान को गाली देने लगा. जब दोनों इरफान को गाली दे रहे थे तो एसडीएम ए मणिकंदन भी वहां आ गए. “उनके चेहरे पर मास्क भी नहीं था. उन्होंने मेरा कार्ड चेक किया और बोले, ‘अरे यह तो जनसंदेश वाला है इसको जेल भेजो’ और मेरा मोबाइल छीन लिया.”
घटनास्थल पर मौजूद बड़ागांव थाना प्रभारी संजय सिंह के समझाने के बाद भी एसडीएम नहीं माने और दावा किया कि इरफान ने लॉकडाउन की धारा 188 का उल्लंघन किया है. इरफान ने कहा, “एसडीएम ने मेरा नाम पता तक नहीं पूछा, बस मेरा कार्ड देख कर भड़क गए.” इरफान ने आगे बताया, “मुझे चौकी प्रभारी अनुराग मिश्रा के साथ बड़ागांव थाने भेज दिया जहां अनुराग मिश्रा ने अपने हाथों से मेरी पूरी फोटो गैलरी डिलीट कर दी और मुझे दो घंटे तक थाने में बिठाए रखा और मेरा चालान 151 धारा में किया.” इरफान को जमानत 12 जून को मिली.
जब मैंने इस बारे में मणिकंदन से पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं उन्हें सवाल भेज दूं. सवाल पढ़ने के बाद कहा कि जवाब के लिए 15 जून का जनसंदेश टाइम्स देख लूं. उस दिन के अखबार में उनकी प्रतिक्रिया नहीं थी सो मैंने उन्हें फिर फोन लगाया लेकिन उन्होंने बात नहीं की. मैंने बड़ागांव पुलिस स्टेशन फोन लगाया तो सब इंस्पैक्टर अजीत कुमार सिंह के कहा कि स्टेशन में उनकी नियुक्ति अभी-अभी हुई है इसलिए मामले की जानकारी नहीं है.