कोरोना में पत्रकारों की धरपकड़ का मामला : कश्मीरी फोटो पत्रकार मसरत जहरा पर पुलिस ने लगाया यूएपीए

साभार : शराफत अली
23 April, 2020

20 अप्रैल को 26 साल की कश्मीरी फोटो पत्रकार मसरत जहरा को साइबर पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून के तहत बुक कर लिया. उस दिन सुबह सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही कश्मीर जोन साइबर पुलिस स्टेशन की एक प्रेस विज्ञप्ति में जहरा के फेसबुक अकाउंट का जिक्र था और लिखा था, "इस फेसबुक अकाउंट को चलानेवाली के लिए... माना जाता है कि वह ऐसी तस्वीरें अपलोड कर रही हैं जो जनता को कानून तोड़ने के लिए उकसा सकती हैं." इस पर जहरा कहती हैं, “यह वैसी ही बात है कि एक पत्रकार के रूप में मेरी कोई पहचान ही नहीं है.”

प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार जहरा पर "युवाओं को भड़काने और सार्वजनिक शांति के खिलाफ अपराधों को बढ़ावा देने के आपराधिक इरादों के तहत राष्ट्र विरोधी पोस्ट अपलोड करने" का आरोप लगाया गया है. विज्ञप्ति में आगे लिखा है, "अकाउंट यूजर ऐसी पोस्टें भी अपलोड कर रही हैं जो देश विरोधी गतिविधियों को महिमामंडित करने और देश के खिलाफ असहमति पैदा करने के अलावा कानून को लागू करने वाली एजेंसियों की छवि को धूमिल करती हैं." जहरा के अनुसार, उन्होंने केवल वही तस्वीरें अपलोड की हैं जो उन्होंने जमीनी रिपोर्टिंग करते समय ली थीं. जहरा ने कहा, "मैं बस अपने काम को अपलोड कर रही हूं जिसे मैंने सालों से कवर किया है और कश्मीर में देखा है." उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ तस्वीरें पहले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हो चुकी थीं. "मैं एक फोटो जर्नलिस्ट हूं, मुझे और क्या अपलोड करना चाहिए?"

जहरा की फेसबुक टाइमलाइन उनके विचारों को दर्शाती है. उनकी कई तस्वीरें कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा की गई दैनिक ज्यादतियों का दस्तावेज हैं, जैसे कि उन परिवार के सदस्यों की तस्वीरें जिन्होंने पुलिस की गोलीबारी के दौरान अपने परिजनों या अपना घर-बार गुमा दिया. अन्य तस्वीरों में इस क्षेत्र में चल रहे प्रतिरोध को दर्ज किया गया है. उदाहरण के लिए, 18 अप्रैल को जहरा ने एक तस्वीर अपलोड की जिसमें कपड़े का एक टुकड़ा, कुछ दस्तावेज और फुटकर नोट दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने इसे कैप्शन दिया, ''आरिफा जान अखबार की कतरनें और अपने पति अब्दुल कादिर शेख के खून से सने नोटों को समेटते हुए. उन्हें भारतीय सेना ने आतंकवादी होने के संदेह में गोली मारी थी.” उन्होंने कहा, 'मैं इस दुख से अब उभर नहीं सकी हूं.''' 6 अप्रैल को प्रकाशित एक अन्य तस्वीर में, एक महिला को एक ध्वस्त हो चुके घर के सामने खड़ा दिखाया गया था और कैप्शन था, ''कवि माधो बलहामी, जिन्होंने सुरक्षाबलों की गोलाबारी के दौरान तबाह हो चुके अपने घर में 30 साल में लिखी अपनी कविताओं को खो दिया, ने कहा, ''पहले यह घर मेरे लिए बस एक मकान था अब मेरे लिए यह जगह आस्तान (तीर्थस्थल) है.'" 

साइबर पुलिस ने यूएपीए की धारा 13 के तहत जहरा पर मामला दर्ज किया, जिसके तहत किसी भी गैरकानूनी गतिविधि में शामिल होने या भाग लेने के लिए 7 साल तक की सजा का प्रावधान है. यह अधिनियम गैरकानूनी गतिविधियों में "भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता" के खिलाफ किसी भी गतिविधि में शामिल होने और "भारत के खिलाफ असंतोष का कारण बनने या कारण बन सकने की संभावना" को शामिल करता है. साइबर पुलिस का इस कानून को जहरा पर लगाने से यह प्रतीत होता है कि विभाग पत्रकारिता को गैरकानूनी काम मानता है.

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि "दिनांक 18-04-2020 को दर्ज एफआईआर संख्या 10/2020 साइबर पुलिस स्टेशन, कश्मीर जोन, श्रीनगर में पंजीकृत है और जांच जारी है." जहरा ने मुझे बताया कि उन्हें 18 अप्रैल को साइबर पुलिस से एक कॉल आया था और उनसे पूछताछ के लिए स्टेशन आने को कहा था. पुलिस ने उस समय उन्हें यह नहीं बताया था कि उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है. जहरा ने कहा कि उन्होंने पुलिस को सूचित किया कि वह कर्फ्यू पास नहीं होने के कारण नहीं आ पाएगी, लेकिन पुलिस अधिकारियों ने उनसे कहा कि जिस भी चेक पोस्ट पर उन्हें आगे आने से रोका जाए वहां से वह उन्हें कॉल कर लें. इसके बाद उन्होंने कॉल के बारे में सूचित करने के लिए कश्मीर प्रेस क्लब के सदस्यों से बात की,जिन्होंने कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक और जम्मू-कश्मीर के सूचना और जनसंपर्क विभाग के निदेशक सैयद सेहरिश असगर से संपर्क किया.

साइबर पुलिस ने उन्हें यह पूछने के लिए फिर कॉल किया कि वह घर से निकली हैं या नहीं. जहरा ने उन्हें बताया कि वह अगले दिन स्टेशन आ जाएंगी क्योंकि उनके पिता घर पर नहीं हैं. जहरा ने कहा कि पुलिस ने उनको ''फौरन आने'' को कहा लेकिन उन्होंने पुलिस को आश्वस्त किया कि वह अपने पिता के साथ आएंगी. जहरा ने बताया कि उसी शाम उन्हें असगर का फोन आया कि उसने पुलिस से बात की है और जहरा को थाने जाने की जरूरत नहीं है. जहरा ने कहा कि असगर ने उनसे कहा, "मैंने उनसे बात की है और उन्हें बताया है कि वह एक महिला है, यह अच्छा नहीं लगेगा अगर उन्हें अकेले पुलिस स्टेशन आना पड़े." जहरा ने आगे कहा, "इस मामले को सूचना निदेशक और केपीसी द्वारा सुलझा लिया गया था."

लेकिन ऐसा लगता है कि यह ज्यादा लंबे समय तक सुलझा नहीं रहा. प्रेस विज्ञप्ति जारी होने के कुछ ही घंटों बाद जब यह बात सोशल मीडिया पर फैल गई तो 20 अप्रैल को जहरा ने मुझे बताया कि उन्होंने उस सुबह एफआईआर के बारे में एक ट्वीट में पढ़ा और "मैंने उसे फिर से केपीसी के सदस्य को भेज दिया." जहरा ने आगे बताया, “लगभग 11 बजे मैंने ‘ फेसबुक यूजर’ मसरत जहरा के बारे में प्रेस विज्ञप्ति देखी. वे मुझे पत्रकार नहीं कह रहे थे. वे लोग मुझे एक फेसबुक यूजर कह रहे थे. फिर उन्होंने मुझे लगभग 12 बजे फिर से फोन किया और मुझसे अगले दिन आने को कहा.”

कश्मीर प्रेस क्लब के महासचिव इश्फाक तांत्रे ने बताया कि उन्हें 19 अप्रैल की देर शाम प्रेस रिलीज के बारे में पता चला. उन्होंने यह भी माना कि शनिवार को असगर के हस्तक्षेप के बाद मामला सुलझ गया था. "हमारे हस्तक्षेप का कोई असर नहीं हुआ" पुलिस की कार्रवाइयों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, "उन्होंने रवैया बेरहम है और उन्होंने मसरत पर केस बना दिया है."

तांत्रे ने कहा कि प्रेस क्लब ने असगर से दोबारा संपर्क नहीं किया क्योंकि "हमें उन्हें वापस फोन करना उचित नहीं लगा." उन्होंने कहा, "हमने उनसे हस्तक्षेप की मांग की थी, जिसके परिणामस्वरूप कुछ कार्रवाई हुई थी लेकिन यह उस तरह से नहीं हुआ जैसा हम चाहते थे. अगर इसे हल किया जा सकता है तो यह अच्छा होगा क्योंकि वह (जहरा) युवा पत्रकार हैं और उनको अभी बहुत काम करना है और हम उसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं चाहते हैं. लेकिन वे उन चीजों की परवाह नहीं करते हैं.” उन्होंने दोहराया, “वे इन चीजों की परवाह नहीं करते हैं."

"उनके खिलाफ की गई यह कार्रवाई बहुत ही सख्त है," तांत्रे ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा. “वह कानून से सहयोग करेंगी और जो भी कानूनी उपाय होंगे उनका इस्तेमाल करेंगी. प्रेस क्लब उनके साथ है और कश्मीर के सभी पत्रकार उनके साथ हैं. आखिरकार यह एक लड़ाई है और उन्हें इसे लड़ना होगा. ”

कश्मीर जैसे अशांत क्षेत्र में पत्रकारिता शायद ही कभी आसान काम रही है. फिर एक औरत के तौर पर राज्य और पितृसत्ता द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से लड़ना जहरा के लिए खासकर मुश्किल रहा है. जहरा ने 2016 में पत्रकारिता शुरू की और तब से उन्हें ना केवल वहां मौजूद मर्द पत्रकारों और सुरक्षाबलों से बैर मोल लेना पड़ा बल्कि जमीनी रिपोर्ट करने जाने के लिए बार-बार अपने परिवार की इच्छाओं के खिलाफ भी जाना पड़ा. सशस्त्रबलों और पुनरुत्थानवादी उग्रवादियों के बीच झड़पों की रिपोर्टिंग के जोखिमों को समझते हुए जहरा जल्द ही अकेली रिपोर्टिंग करने लगीं. उन्होंने आतंकवादियों के जनाजों को कवर किया, पथराव की झड़पों को कवर किया, भारतीय राज्य द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद की गई नाकाबंदी को कवर किया.

जहरा अपने माता-पिता और अपने भाई के समर्थन के बिना अपनी पत्रकारिता करती रहीं. वह अक्सर उन्हें यह बताने से परहेज करती थीं कि वह रिपोर्ट करने जा रही हैं. कारवां द्वारा प्रकाशित जहरा के सितंबर 2019 के फोटो निबंध में उन्होंने बताया है, "वे कहते रहते हैं, 'तुम नहीं जानती हो कि समाज के लोग क्या कह रहे हैं.' मैं समाज के लिए नहीं जी रहा हूं. मेरे काम में अगर मैं खुद के साथ इंसाफ नहीं कर सकती तो मैं दूसरों के साथ कैसे इंसाफ करूंगी?" पत्रकारिता शुरू करने के चार साल के भीतर, उनके काम ने ना केवल कश्मीर या भारत में बल्कि पूरी दुनिया में पहचान बना ली. उन्हें कई भारतीय और विदेशी समाचार संगठनों द्वारा प्रकाशित किया गया है और उनकी तस्वीरों की न्यूयॉर्क और दिल्ली में प्रदर्शनियां लगी हैं.

अब जहरा को यूएपीए के तहत गिरफ्तार हो जाने की डरावनी संभावना का सामना करना पड़ रहा है. यह कानून किसी व्यक्ति को सबूत के बिना ही छह महीने तक हिरासत में रखने की अनुमति देता है. 20 अप्रैल की सुबह जब जहरा को अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर के बारे में पता चला तो उन्होंने कोरोनोवायरस लॉकडाउन में पहली बार घर से बाहर निकलने का फैसला किया. “मैं घर पर रह रही थी क्योंकि मेरे माता-पिता क्वारंटीन में हैं. अगर मैं बाहर जाती तो यह फिजूल हो जाएगा. मैं उनकी जान जोखिम में नहीं डालना चाहती थी. मुझे कश्मीर में महामारी को कवर करने के कई अनुरोध मिले लेकिन मैंने काम नहीं किया.” 

जहरा अपने मां-बाप को एफआईआर के बारे में नहीं बताना चाहती थीं. “मैंने अपनी मां से कहा कि मुझे कहीं जाना है और उन्होंने मुझसे पूछा कि सब कुछ ठीक तो क्योंकि मैं कई दिनों से बाहर नहीं निकली थी. उन्होंने मुझसे पूछा, 'अचानक से क्या हुआ?’ मैंने उन्हें बताया कि कुछ हुआ है तो उन्होंने पूछा कि क्या हुआ है. मैंने बस उन्हें गले लगा लिया. वह मुझसे पूछती रही कि क्या हुआ है. मेरे भाई ने उसके तुरंत बाद मुझे फोन किया.” मसरत ने कहा कि अब उनका परिवार जानता है कि उनेके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है लेकिन उन्होंने इसका जिक्र नहीं किया कि वह यूएपीए के तहत दर्ज हुई है. फिर जहरा श्रीनगर में प्रेस कॉलोनी गईं जहां उन्होंने पता चला कि उनके पत्रकार दोस्त उनके साथ खड़े हैं.

जहरा ने 2016 में पत्रकारिता शुरू की और तब से उन्हें ना केवल वहां मौजूद मर्द पत्रकारों और सुरक्षाबलों से बैर मोल लेना पड़ा बल्कि जमीनी रिपोर्ट करने जाने के लिए बार-बार अपने परिवार की इच्छाओं के खिलाफ भी जाना पड़ा. तन्वी मिश्रा

तांत्रे ने बताया कि नोवेल कोरोनोवायरस से लड़ने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान पत्रकारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई बढ़ गई है और प्रेस क्लब को पत्रकारों से बहुत सारी शिकायतें मिल रही हैं. उन्होंने दो खास घटनाओं का जिक्र भी किया. तांत्रे ने बताया कि 19 अप्रैल को द हिंदू के रिपोर्टर पीरजादा आशिक को श्रीनगर के उसी पुलिस स्टेशन में बुलाया गया जहां जहरा को बुलाया गया था और उनकी रिपोर्ट में कथित तथ्यात्मक गलती के बारे में पूछा था. फिर उन्हें अनंतनाग जिले से चालीस किलोमीटर दूर दक्षिण कश्मीर आने के लिए मजबूर किया गया. कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक के कार्यालय से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, आशिक के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गई है. तांत्रे ने एक अन्य घटना का जिक्र किया जिसमें मुश्ताक अहमद नाम के एक पत्रकार को लॉकडाउन के दौरान रिपोर्टिंग करते समय बांदीपोरा जिले में पुलिस ने पीटा और गिरफ्तार कर लिया.

16 अप्रैल को साइबर पुलिस कश्मीर के प्रभारी पुलिस अधीक्षक ताहिर अशरफ ने ट्वीट किया, “कश्मीर क्षेत्र में अब तक सोशल मीडिया के दुरुपयोग के लिए 13 एफआईआर दर्ज हुए हैं. फेक न्यूज, अफवाह फैलाने वाले और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले हैंडलों पर नजर है. आगे और कार्रवाई की जाएगी.” उनकी ट्विटर टाइमलाइन पुलिस द्वारा अपनाई गई एक नई रणनीति की ओर इशारा करती है, जिसमें कश्मीरियों को सार्वजनिक रूप यह बताना शामिल है कि वे पुलिस की निगरानी में हैं जिसने वे कोई "गैरकानूनी सामग्री" पोस्ट नहीं करेंगे. 19 अप्रैल को कामरान मंजूर नाम के एक पत्रकार ने ट्वीट किया, “मैं साइबर पुलिस स्टेशन श्रीनगर कश्मीर की निगरानी में हूं. लेकिन मैं उन्हें आश्वस्त करना चाहता हूं कि मैं सोशल मीडिया पर फिर से कोई गैरकानूनी सामग्री अपलोड नहीं करूंगा और अब मैं कभी सोशल मीडिया का दुरुपयोग नहीं करूंगा.” एक घंटे के भीतर, अशरफ ने एक टिप्पणी के साथ पोस्ट को रिट्वीट किया, "भगवान आपका भला करे, शुभकामनाएं."

अगले दिन एक अन्य ट्विटर हैंडल ने इसी तरह का एक ट्वीट पोस्ट किया और अशरफ ने फिर से रिट्वीट किया, इस बार टिप्पणी की, "ईश्वर आप पर कृपा करे." इसके तुरंत बाद, अशरफ ने एक अलग टिप्पणी के साथ इसे फिर से रिट्वीट किया, जिसमें कहा गया कि ट्विटर यूजर “एक छात्र है,पत्रकार नहीं. वह पोस्ट कॉपी करता है. भारी दबाव में इसे संपादित करता है और दुबारा से पोस्ट करता है. इसके बारे में उसने महसूस किया कि यह अच्छा नहीं है और अवैध भी था. आइए हम सभी उसकी आगे की पढ़ाई के लिए उसे शुभकामनाएं दें.”

ऐसा लगता है कि सार्वजनिक प्रतिबद्धता के इस अभ्यास को कश्मीरी प्रशासन का समर्थन है. श्रीनगर के जिला मजिस्ट्रेट शाहिद चौधरी ने अशरफ के रिट्वीट का जवाब दिया, “सोशल मीडिया की सफाई में @Tahir_A इसी आदमी का हाथ है. भगवान भला करे." अशरफ ने जवाब दिया "थैंकयू सर."

अशरफ ने मुझे बताया कि जहरा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी क्योंकि उन्होंने एक पुरानी तस्वीर पोस्ट की थी जिसमें पुलिस एक नागरिक को पीट रही है और क्योंकि उन्होंने ऐसी तस्वीरें पोस्ट की थीं जो "आतंकवादियों को शहीद बताती हैं" और जिन्होंने "आतंकवादियों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शहीदों के रूप में महिमामंडित किया है." उन्होंने कहा, "ऐसी अन्य पोस्ट हैं जिनमें वह आतंकवादियों का महिमामंडन कर रही हैं.” मैंने अशरफ से पूछा कि "महिमामंडन" किसे बताया है और जहरा के पोस्ट, जिसमें उनकी रिपोर्टिंग से तस्वीरें और उद्धरण शामिल हैं, किस तरह यूएपीए के तहत वारंट का कारण बन सकते हैं. "आप चाहते हैं कि मैं कानून की व्याख्या करूं. मैं अपनी केस डायरी में अपने कानून की व्याख्या करता हूं ... आपकी एक अलग व्याख्या है."

8 अप्रैल को जहरा ने एक फोटोग्राफर की पोस्ट साझा की थी, जिसमें दो तस्वीरें थीं. उनमें पुलिस अधिकारियों को नागरिकों के साथ मारपीट करते हुए देखा जा सकता था. एक तस्वीर 2008 की थी जिसे उस फोटोग्राफर ने ली थी और दूसरी 2018 में खुद जहरा ने ली थी. उस फोटोग्राफर ने पोस्ट पर कैप्शन दिया था : “एक दशक में कुछ भी नहीं बदला. हर फोटो जर्नलिस्ट रोजाना इसे याद करता है." मैंने अशरफ से पूछा कि नागरिकों की पिटाई करती पुलिस की तस्वीर पोस्ट करने पर एफआईआर क्यों होगी? "क्योंकि यह फर्जी खबर है, ऐसा नहीं हुआ है."

"क्या ऐसा कभी नहीं हुआ?" मैंने पूछा.

उन्होंने कहा, "जब पोस्ट किया तब तो नहीं था." मैंने ध्यान दिलाया कि जहरा ने किसी भी तरह से यह संकेत नहीं दिया था कि यह पोस्ट उसी दिन की है जिस दिन उन्होंने इसे साझा किया था. यह कहने से पहले कि वह बाद में मुझे कॉल करेंगे, उन्होंने कहा "मुझे ना, आप से बात करने के लिए एक-दो घंटे चहिए."

हमारी बातचीत के कुछ ही समय बाद अशरफ ने जहरा का जिक्र करते हुए एक ट्वीट पोस्ट किया : “साइबर पुलिस स्टेशन कश्मीर ने एक सोशल मीडिया यूजर के खिलाफ अभद्र सामग्री पोस्ट करने के लिए एफआईआर दर्ज की जो यूए(पी)ए और आईपीसी के प्रावधानों के तहत आता है. जांच जारी है.” बतौर सबूत अशरफ ने एक तस्वीर का स्क्रीनशॉट अपलोड किया था जिसे जहरा ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया था. सितंबर 2018 के इंस्टाग्राम पोस्ट में कुछ युवकों को हिजबुल मुजाहिदीन के मृत कमांडर बुरहान वानी का पोस्टर उठाए देखा जा सकता है. पोस्टर में वानी को "शहीद" बताया गया था. जहरा ने इस जानकारी के साथ फोटो को कैप्शन दिया था : "तस्वीर में कश्मीरी शिया मुसलमान हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर शहीद बुरहान वानी की तस्वीर ले जाते हुए."

हमने दो घंटे बाद फिर से बात की. मैंने उनसे ट्वीट के बारे में पूछा और उन्होंने कहा कि वानी का पोस्टर और कैप्शन "आतंकवादियों के महिमामंडन" की मिसाल है. जब मैंने उनसे पूछा कि क्या यह संभव है कि वह केवल पोस्टर में जो लिखा था उसे पुन: प्रस्तुत कर रही थी, तो उन्होंने जोर देकर कहा कि "वह अपना कैप्शन लिख रही थीं." अशरफ ने कहा कि साइबर पुलिस ने "किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की." उन्होंने कहा, “एफआईआर जांच शुरू करने के लिए हमेशा ही पहली चीज है. हम इस बात की जांच करेंगे कि क्या हैंडल उनका है, क्या उन्होंने इसे आतंकवादियों को महिमामंडित करने के इरादे से पोस्ट किया था.” जब अशरफ ने एक बार फिर दावा किया कि जहरा ने फर्जी खबरें पोस्ट की हैं तो मैंने उनसे पूछा कि वह किस खबर का जिक्र कर रहे हैं. "उन्होंने सुरक्षाबलों के साथ झड़पों के बारे में तस्वीरें पोस्ट की हैं जबकि सुरक्षाबल कोरोनोवायरस की रोकथाम के काम में व्यस्त हैं." मैंने फिर से बताया कि जहरा ने यह दावा नहीं किया था कि वह पोस्ट उसी दिन की थी जिस दिन इसे पोस्ट किया गया था. अशरफ ने जवाब दिया कि वह इसकी जांच करेंगे.

अशरफ ने मुझे यह भी बताया कि ट्विटर पर सार्वजनिक स्वीकार्यता उन किशोरों से निपटने की रणनीति का हिस्सा थी जो ट्विटर पर कोविड-19 महामारी के बारे में फर्जी खबरें फैला रहे थे. उन्होंने कहा कि इन पोस्टों ने "एक निवारक" के रूप में कार्य किया और दावा किया कि इसने कई किशोरों को स्वेच्छा से पुलिस के सामने यह स्वीकार करने के लिए संपर्क किया कि वे ट्विटर पर नकली अकाउंट चला रहे थे ताकि दहशत फैल सकें. मैंने जिलाधिकारी चौधरी से भी संपर्क किया, जिन्होंने अशरफ की प्रशंसा की थी. उन्होंने मुझे टेक्स्ट मैसेज में अपने सवाल भेजने के लिए कहा. प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.

साइबर पुलिस की प्रेस रिलीज ने इस तथ्य को छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया कि जहरा के खिलाफ एफआईआर सभी के लिए एक संदेश था. "आम जनता को सलाह दी जाती है कि वे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के दुरुपयोग और इस तरह के प्लेटफॉर्म के माध्यम से अनाधिकृत जानकारी के प्रसार से बचें." यह स्पष्ट नहीं है कि इस बयान का मसरत के पोस्ट से क्या संबंध है, यह देखते हुए कि वह "आम जनता" का हिस्सा नहीं है बल्कि एक पत्रकार है और यह कि उसकी पोस्टें वही थीं जो उन्होंने रिपोर्ट की थीं और तस्वीरें खुद खींची थीं, और इस तरह से ''अपुष्ट जानकारी" नहीं थी. तांत्रे ने भी इस बात पर जोर दिया कि प्रेस विज्ञप्ति ने जहरा को "सामान्य अपराधी" माना और यह स्वीकार करने में विफल रही कि वह एक पत्रकार थी.

"चीजें बहुत कठिन हैं," तांत्रे ने कहा. “मसरत एक निर्भीक पत्रकार हैं. उनका काम इसकी गवाही देता है. यह एक बहुत ही खतरनाक मिसाल है जो वे (पुलिस) कश्मीर में स्थापित कर रहे हैं. पत्रकारों पर सोशल मीडिया में अपना काम पोस्ट करने के लिए मामला दर्ज कर रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे उन्होंने कश्मीर में पत्रकारिता को अपराध बना दिया है. पत्रकारिता कोई अपराध नहीं है.”


Arshu John is an assistant editor (web) at The Caravan. He was previously an advocate practicing criminal law in Delhi.